दिस इस यमराज कॉलिंग फ्रॉम ………………
संडे था ! सोचा था देर तक सोऊंगा ! लेकिन
पता नहीं सबको मेरी तरह नींद क्यों नहीं आती , 7 बजे होंगे किसी ने मोबाइल
बजा दिया ! लम्बा हाथ करके मोबाइल उठाया और हैल्लो करी तो उधर से अंग्रेजी
में आवाज़ आई – कैन आई स्पीक टू मिस्टर योगी सारस्वत ? मैंने भी अंग्रेजी
में ही बोल दिया – याह ! स्पीकिंग ! तब तक वो दोबारा बोल गया – दिस इस
यमराज कॉलिंग फ्रॉम ……….. ! कौन यमराज ? यार मेरी नींद मत खराब करो ! मैं
किसी यमराज को नहीं जानता ! और मैंने फोन काट दिया ! फ़ोन फिर घनघनाया !
मैंने दो बार तो नहीं उठाया , लेकिन जब वो लगातार बजता रहा तो उठा ही लिया !
हाँ – बोल भाई !
सर दिस इस यमराज कॉलिंग फ्रॉम …………………. !
यार बता भाई युवराज ! कौन सा युवराज बोल
रहा है ? इंडियन टीम वाला , मेरे कॉलेज वाला या वो कोने वाला ? कौन सा
युवराज ? नो सर ! दिस इज़ यमराज , नॉट युवराज ! भाई देख तू अब मेरा दिमाग मत
खराब कर सुबह सुबह ! एक तो तूने मेरी नींद खराब कर दी और अब ये बेसिर पैर
की बातें कर रहा है ! कौन है तू और क्या चाहता है ? जल्दी बता , मुझे अभी
और सोना है ! और हाँ , हिंदी में बोल ! मुझे हिंदी आती है !
ओके ! सर ! मैं यमराज बोल रहा हूँ !
मेरा दिमाग झन्ना गया – अबे यार बता न कौन बोल रहा है ! नहीं तो मैं अब फोन काट दूंगा !
नो सर, प्लीज ! आप मेरी बात तो सुन
लीजिये पहले ! सर मैं यमराज ही बोल रहा हूँ स्वर्ग से ! आपका टिकेट कन्फर्म
हो गया है स्वर्ग का !
यार मेरा कौन सा टिकेट कन्फर्म हो गया है
? मैंने तो कोई टिकेट कराया ही नहीं ? फिर तूने कैसे कन्फर्म कर दिया ?
अबे पागल समझा है क्या ? और कहाँ का कन्फर्म कर दिया स्वर्ग का ? अबे ऐसे
मैं कौन कश्मीर जाने बैठा है ! बच्चो के स्कूल खुलने वाले हैं , तू पागल तो
नहीं है कहीं ? मेरा कोई टिकेट विकेट नहीं है , कैंसिल कर दे अगर कर दिया
है तो ! अब सो जाऊं ?
अरे सर ! हमें आना है आपको लेने के लिए ! आप तैयार रहिये ! आपके लिए सीट तैयार करी जा रही है !
अबे तुम बिलकुल ही पागल हो क्या ? गजब
करते हो यार ! मैंने टिकेट लिया नहीं , मुझे मालुम नही कि मुझे कहीं जाना
भी है और तुम हो कि कह रहे हो कि तुम मुझे लेने आ रहे हो ? तुम्हारे बाप का
राज है क्या ? और जाने आने और दुसरे खर्च के पैसे कौन देगा , तुम्हारा
फूफा ?
नहीं सर ! बाप और फूफा की कोई बात नहीं
है ! आपको लाने के लिए न हमें पैसों की जरुरत है न आपको ! सब फ्री हो जाता
है , मजे मजे में ! बस आप तैयार रहिये !
ओह ! तो ऐसे कहो न ! मेरा कोई ऑफर होगा !
मतलब मैंने कुछ जीता होगा , दो या तीन रात का फ्री ? ऐसा कुछ न ! चलो बताओ
कब चलना है ? मैं फिर छुट्टियां डाल देता हूँ कॉलेज में !
नहीं सर ! अब आपको छुट्टियां लेने की कोई जरुरत नहीं !
सही कह रहे हो बेटा ! तुम हमारे बॉस को
जानते नहीं हो ! चलो ठीक है , मुझे बता देना कब चलना है ! ओके ! और हाँ
यार , ये नाम बदल लो ! यमराज ! ये कोई नाम है ? इससे तो युवराज ही कर लो !
सर मेरा यही नाम है ! आप मुझे अब भी पहिचान नहीं पा रहे ! मैं असली यमराज हूँ !
फिर मजाक !
नहीं सर ! आप कहो तो आपको आपकी पिछली
जिंदगी का सब कुछ बता देता हूँ , तब तो आप मानोगे कि मैं असली यमराज हूँ !
और हकीकत में उसने सब बयान कर दिया ! दिल बैठ गया !
क्या -तुम सचमुच के यमराज हो ?
क्या -तुम सचमुच के यमराज हो ?
रुको ,एक मिनट !
फ़ोन बंद किया ! नंबर देखा ! अरे भगवान !
ये 50 डिजिट का नम्बर ! ये तो सच में ही यमराज है ! कॉल बैक करी – आवाज़ आई !
ये इस दुनियां का नम्बर नहीं है , कृपया नंबर जांच लें ! अब तो मैं पसीना
पसीना !
इतनी देर में फिर उसका फोन आ गया !
ओह ! तो तुम मेरी सच्चाई पता कर रहे थे ! मैं कोई स्पेशल 26 का नकली सीबीआई अफसर नहीं हूँ ! तैयार रहना ! हम जल्दी ही आएंगे !
ओह ! तो तुम मेरी सच्चाई पता कर रहे थे ! मैं कोई स्पेशल 26 का नकली सीबीआई अफसर नहीं हूँ ! तैयार रहना ! हम जल्दी ही आएंगे !
अरे सुनो तो भाई ! एक बात तो बताओ ! माना
तुम यमराज हो , लेकिन यमराज तो सिर्फ संस्कृत या हिंदी बोलते हैं तुम
अंग्रेजी क्यों बोल रहे हो ?
अब क्या है कि हिंदुस्तान में भी बहुत
से लोगों को हिंदी या संस्कृत समझ में नही आती इसलिए हमारे यहां ये सिखाया
जाता है कि भारत में भी अंग्रेजी से शुरुआत करो ! अब हमारे यहां भी 90
दिनों में अंग्रेजी सीखें वाले कोर्स चल रहे हैं !
हम्म्म !
और तुम ये फोन करके इन्फॉर्म कबसे करने लगे ?
ये भी जरुरी हो गया है अब ! होता क्या है
कि अब बिना नंबर के बहुत से लोग अपना टिकेट काट लेते हैं , उनसे हमारा
रजिस्टर मैंटेन करना मुश्किल हो जाता है इसलिए हम पहले से इन्फोम कर देते
हैं जिससे सही आदमी सही जगह पर जाए !
हम्म्म्म !
अब तुम तैयार रहना !
अरे यार , सुनो तो ! सुनो ! कुछ ले दे के काम चल जाए तो ठीक है न ?
क्या ?
यार मेरी जगह कहीं और से उठा ले ! ले दे
के मामला सुलझा ले यार ! अभी देखियो मुझे बहुत सारे ब्लॉग लिखने हैं यार !
जो तेरा बनता हो , मैं दे दूंगा !
उसने थोड़ी देर सोचा ! फिर बोला ! हाँ यार
! तेरे ब्लॉग तो मैं भी पढता हूँ , बढ़िया लिखता है ! चल तुझे थोड़ा टाइम और
देता हूँ ! लेकिन मेरे लिए तुझे एक ब्लॉग लिखना पड़ेगा !
पक्का ! जरूर लिखूंगा !
लेकिन यार तेरी जगह किसका टिकेट कन्फर्म करूँ ? मुश्किल हो रही है !
मैंने धीरे से फुसफुसाया – ईराक से देख ले , मेरे जैसा एक आध तो मिल ही जाएगा !
अरे , हाँ ! सही आईडिया दिया तूने ! चल फिर ऐश कर ! मजे मार ! बाय
बाय ! धन्यवाद यमराज भाई ! बहुत बहुत धन्यवाद ……………. तेरी वजह से मुझे …………।
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और पढ़ें मेरे और यमराज के किस्से :
Travelling with Mr.Yamraaj in Delhi Metro
Travelling with Mr.Yamraaj in Delhi Metro -II
चन्दरु की दुनियाँ
उर्दू के अज़ीम ओ तरीन अदीब कृष्ण चन्दर की एक बहुत ही प्रसिद्द कृति
"चन्दरु की दुनियाँ " उर्दू साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है ! ये कृति
मूल रूप में उर्दू में है , मैंने पढ़ी तो मुझे लगा आपके लिए भी इसको हिंदी
में लिखना श्रेयस्कर होगा ! आइये पढ़ते हैं :
कराची में भी उसका यही धंधा था और बांदरे आकर भी यही धंधा रहा। जहां तक
उसकी जात का तालुक था, कोई तकसीम नहीं हुई थी। वो कराची में भी सिद्धू
हलवाई के घर की सीढ़ियों के नीचे एक तंग और अँधेरी कोठरी में सोता था और
बान्दरे में भी उसे सीढ़ियों के अक़ब में ही जगह मिली थी। कराची में उसके
पास एक मैला कुचला बिस्तर, जंग लगे लोहे का एक छोटा सा ट्रंक और एक पीतल का
लोटा था। यहां पर भी वही सामान था । ज़हनी लगाव न उसे कराची से था न बम्बई
से । सच बात तो ये है कि उसे ये मालुम ही न था कि ज़हनी लगाव कहते किसे
हैं ? कल्चर किसे कहते हैं ? अलवतनी क्या होती है और किस भाव से बेचीं जाती
है ? वो उन सब नए धंधों से वाक़िफ़ न था , बस उसे इतना याद कि जब उसने आँख
खोली तो अपने आप को सिद्धू हलवाई के घर में बर्तन मांजने , झाड़ू लगाते ,
पानी भरते , फर्श साफ़ करते और गालियां खाते पाया । उसे उन बातों का कभी
मलाल न हुआ क्योंकि उसे मालुम था कि काम करने और गालियां खाने के बाद ही
रोटी मिलती है और उसकी किस्म वाले लोगों को ऐसे ही मिलती है। सिद्धू हलवाई
के घर में उसका जिस्म तेज़ी से बढ़ रहा था और उसे रोटी की बहुत जरुरत थी और
हर वक्त महसूस होती रहती थी। इसलिए वो हलवाई के दिए छोटे सालन के साथ उसकी
गाली को भी रोटी के टुकड़े में लपेट के निगल जाता था।
उसके माँ बाप कौन थे , किसी को पता न था। खुद चन्दरु ने कभी उसकी जरुरत
महसूस नहीं की थी। अलबत्ता , सिद्धू हलवाई उसे गालियां देता हुआ अक्सर
कहा करता था कि वो चन्दरु को सड़क पर से उठाकर लाया है। उस पर चन्दरु ने
कभी हैरत का इज़हार नहीं किया। न सिद्धू के लिए कभी उसके मन में प्रशंसा के
बीज उगे। क्योंकि चन्दरु को कोई दूसरी जिंदगी याद ही नहीं थी।
उसे बस इतना मालुम था कि कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके माँ बाप होते हैं ,
कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके माँ बाप नहीं होते। कुछ लोग घरवाले होते हैं ,
कुछ लोग सीढ़ियों के नीचे सोने वाले होते हैं ; कुछ लोग गालियां देते हैं ,
कुछ लोग गालियां सहते हैं ; एक काम करता है , दूसरा काम करने पर मजबूर
करता है। बस ऐसी है ये दुनिया और ऐसी ही रहेगी। दो खानो में बनी हुई।
यानि एक वो जो ऊपर वाले हैं , दूसरे वो जो नीचे। ऐसा क्यों है और ऐसा
क्यों नहीं है और जो है वो कब , क्यों , कैसे बेहतर हो सकता है ? वो ये सब
कुछ नहीं जानता था। और न उस किस्म की बातों से कोई दिलचस्पी रखता था।
अलबत्ता जब कभी वो अपने दिमाग़ पर बहुत ज़ोर देकर सोचने की कोशिश करता था तो
उसकी समझ में यही आता था कि जिस तरह वो सट्टे के नंबर का दांव लगाने के लिए
कभी कभी हवा में सिक्का उछाल कर टॉस कर लेता था उसी तरह उसके पैदा करने
वाले ने उस के लिए टॉस कर लिया होगा और उसे इस खाने में डाल दिया होगा, जो
उसकी किस्मत थी।
यह कहना भी गलत होगा कि चन्दरु को अपनी किस्मत से कोई शिकायत थी , हरगिज़
नहीं। वो एक खुशमिज़ाज , सख्त मेहनत करने वाला , भाग भाग कर जी लगाकर खुश
मिजाजी से काम करने वाला लड़का था। वो रात दिन अपने काम में इस कदर मशगूल
था कि उसे बीमार पड़ने की भी कभी फुर्सत नहीं मिली।
कराची में तो वो एक छोटा सा लड़का था। मगर बम्बई आकर तो उसके हाथ पाँव और
खुले और बढे। सीना चौड़ा हो गया था। गंदमी रंग साफ़ होने लगा था। बालों
में लच्छे से पड़ने लगे थे और आँखें ज्यादा रोशन और बड़ी मालूम होने लगीं
थीं । उस की आँखें और होंठ देखकर मालूम होता था कि उसकी माँ जरूर किसी बड़े
घर की रही होगी।
चन्दरु को भगवान ने सुनने की शक्ति तो दी थी किन्तु वो बोल नहीं सकता था।
आमतौर पर गूँगे बहरे भी होते हैं। मगर वो सिर्फ गूंगा था , बहरा न था।
इसलिए हलवाई एक दफ़ा उसे बचपन में एक डॉक्टर के पास ले गया । डॉक्टर ने
चन्दरु का मुआइना करने के बाद हलवाई से कहा कि चन्दरु के हलक में कोई
पैदाइशी नुक्श है मगर ऑपरेशन करने से ये नुक्श दूर हो सकता है और चन्दरु
को बोलने के लायक बनाया जा सकता है। मगर हलवाई ने कभी उस नुक्श को ऑपरेशन
के ज़रिये दूर करने की कोशिश नहीं की। सिद्धू ने सोचा ये तो अच्छा है कि
नौकर गाली सुन सके मगर उसका जवाब न दे सके।
चन्दरु का यही नुक्श सिद्धू की निगाह में उसकी सबसे बड़ी खूबी बन गया। इस दुनिया में मालिकों की आधी जिंदगी इसी फ़िक्र में गुजर जाती है कि किसी तरह वो अपने नौकरों को गूंगा कर दें। इसके लिए कानून पास किये जाते हैं , पार्लियमेंटें सजाई जाती हैं , अखबार निकाले जाते हैं , पुलिस और फ़ौज़ के पहरे बिठाए जाते हैं। सुनो , मगर जवाब न दो !
और चन्दरु तो पैदाइशी गूंगा था। यकीनन सिद्धू ऐसा भी भला नहीं है कि उसका ऑपरेशन करवाये !
कहानी आगे ज़ारी रहेगी :
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