दिल्ली मेरा प्रिय
स्थान रहा है घूमने के मामले में। दो तीन वजहों से -एक तो ये मेरे बिल्कुल
नजदीक है और लोकल ट्रेन से 10 -20 रूपये की टिकट में दिल्ली पहुँच जाता
हूँ और 100 -150 रूपये के कुल खर्च में एक जगह घूम आता हूँ। दूसरा -
दिल्ली ऐतिहासिक जगह है और इसके हर कोने में कुछ न कुछ ऐतिहासिक मिल जाएगा
जो तोमर वंश से लेकर अंग्रेज़ों के जमाने तक की याद दिलाता है ! तीसरी वजह -
छुट्टी नहीं लेनी पड़ती और बीवी भी जाने के लिए मना नहीं करती :)
आज अजीतगढ़ चलते हैं। नाम सुना है आपने पहले ? शायद सुना होगा , और अगर अजीतगढ़ नहीं सुना तो Mutiny Memorial तो जरूर ही सुना होगा। अरे वही जो हिन्दू राव हॉस्पिटल के सामने वाली रोड पर है जिसे कमला नेहरू रिज़ बोलते हैं। हिन्दू राव अस्पताल के एकदम सामने है अशोका पिलर , उसी रास्ते पर आगे चलते जाते हैं तो बाएं हाथ पर आपको ये ऐतिहासिक इमारत देखने को मिल जायेगी। इसके opposite में पहले कभी टेलीग्राफ ऑफिस हुआ करता था लेकिन अब दिल्ली सरकार के जल निगम का कुछ है। रास्ते के दोनों तरफ घना जंगल है और अकेले जाने में डर सा भी रहता है कि कोई लूट न ले और कैमरा , मोबाइल फ़ोन न छीन ले जाए।
Mutiny Memorial यानी अजीतगढ़ को अंग्रेज़ों के समय में PWD ने बड़ी जल्दी में डिज़ाइन किया और बनाया था। बताते हैं कि इसको बनाने पर हो रहे खर्च की वजह से विवाद बढ़ रहा था और उससे बचने के लिए इसे जल्दी तैयार किया गया लेकिन मुझे आज भी बेहतरीन लगा। शुरुआत में जब इसे बनाया जा रहा था 1863 में , तब इसका नाम Mutiny Memorial था लेकिन भारत की स्वतंत्रता के 25 वर्ष पूरे होने पर 1972 में इसका नाम अजीतगढ़ रखा गया। इस मेमोरियल को दिल्ली के "दिल्ली बैटल फील्ड " में 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई में मारे गए अंग्रेज़ और भारतीय सैनिकों को समर्पित किया गया है। यहाँ जो नाम लिखे हैं वो अंग्रेजी में हैं और ज्यादातर अंग्रेज़ सैनिकों के नाम हैं , कहीं -कहीं भारतीय सैनिकों के भी नाम खोदे गए हैं। शुरुआत में , जब अंग्रेज़ों ने ये पत्थर लगवाए थे तब " भारतीय दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए " ऐसे पत्थर लगे थे और स्पष्ट रूप से यहाँ दुश्मन भारतीय स्वंतत्रता सैनानी थे , इसलिए आज़ादी के बाद उन पत्थरों को वहां से हटा दिया गया और अब बस सैनिकों का नाम और कोई तारिख लिखी होती है जो शायद उनके शहीद होने की तारीख है।
Mutiny Memorial यानी अजीतगढ़ को अंग्रेज़ों के समय में PWD ने बड़ी जल्दी में डिज़ाइन किया और बनाया था। बताते हैं कि इसको बनाने पर हो रहे खर्च की वजह से विवाद बढ़ रहा था और उससे बचने के लिए इसे जल्दी तैयार किया गया लेकिन मुझे आज भी बेहतरीन लगा। शुरुआत में जब इसे बनाया जा रहा था 1863 में , तब इसका नाम Mutiny Memorial था लेकिन भारत की स्वतंत्रता के 25 वर्ष पूरे होने पर 1972 में इसका नाम अजीतगढ़ रखा गया। इस मेमोरियल को दिल्ली के "दिल्ली बैटल फील्ड " में 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई में मारे गए अंग्रेज़ और भारतीय सैनिकों को समर्पित किया गया है। यहाँ जो नाम लिखे हैं वो अंग्रेजी में हैं और ज्यादातर अंग्रेज़ सैनिकों के नाम हैं , कहीं -कहीं भारतीय सैनिकों के भी नाम खोदे गए हैं। शुरुआत में , जब अंग्रेज़ों ने ये पत्थर लगवाए थे तब " भारतीय दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए " ऐसे पत्थर लगे थे और स्पष्ट रूप से यहाँ दुश्मन भारतीय स्वंतत्रता सैनानी थे , इसलिए आज़ादी के बाद उन पत्थरों को वहां से हटा दिया गया और अब बस सैनिकों का नाम और कोई तारिख लिखी होती है जो शायद उनके शहीद होने की तारीख है।
यूरोपियन स्टाइल "गोथिक " में बनाई गई इस इमारत को चार खण्डों में लाल बलुआ पत्थरों से अष्ट कोणीय आधार ( octagonal base )
पर बनाया गया है जिसके सबसे निचले और बड़े खण्ड को सात face में बनाया गया
है जिन पर शहीद सैनिकों के नाम अंकित हैं। इसमें एक तरफ ऊपर जाने का
रास्ता भी है जो हाल फिलहाल तो बंद है। इसके सामने से जो रोड जा रही है ,
उसको छोड़कर सब तरफ से ये जगह घने जंगल से घिरी है और एक अनजाना सा डर रहता
है। हालाँकि कहने वाले ऐसा भी कहते हैं कि इस जगह से इस ईमारत के बनने के
बाद भी अंग्रेज़ सैनिकों की Body मिली थीं जिनके सिर , धड़ से गायब थे और कभी
-कभी ये भी सुनने को मिलता है कि उनकी आत्माएं यहां आती रहती हैं। ये सब
सुनी -सुनाई बातें ही हैं क्योंकि मैं जब गया था तब मेरे साथ न कोई साथ गया
था और न कोई वहां मिला। न मैंने ऐसा कुछ भी महसूस किया तो मैं आपसे भी
यही कहूंगा -बिंदास जाइये और इस ऐतिहासिक ईमारत में उन लम्हों को जीकर आइये
, महसूस करके आइये जो भले हमारे दुश्मनों की याद में बनी है लेकिन उस
दुश्मन से भारत के महान वीरों का भी संबंध रहा है कहीं न कहीं !