भूलभुलैया : लखनऊ
लखनऊ की घुमक्कड़ी के किस्से को शुरू से पढ़ने के लिए
यहां माउस चटकाएं या ऊँगली दबाएं !!
बड़ा इमामबाड़ा देख चुका हूँ , यहां अच्छी खासी भीड़ है। शायद इतवार की वजह से हो ! हर एक कदम मुझे पिछली बार यहां आने की याद दिला देता है , तब मैं अपने दोस्तों के साथ था और आज अकेला हूँ। सीढ़ियों से ऊपर जाता हूँ लेकिन उधर से एक रेला सा चला आ रहा है , बुरका पहने कई सारी ख़्वातीन ऊपर से नीचे आ रही हैं तो लाजमी है कि नीचे से ऊपर जाने वालों को रुकना पड़ेगा। लखनऊ आइये तो एक बार बुरका स्टाइल और डिज़ाइन पर भी ध्यान दीजिये , आपको बड़े सलीकेदार बुर्के और सलीकेदार बुर्के वालियां दिखेंगी। तहज़ीब जैसे लखनऊ की दूसरी पहिचान हो , यहां की मुस्लिम महिलाएं शायद उत्तर प्रदेश की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी महिलाएं होंगी। अब हमारा नंबर है ऊपर चढ़ने का , सीढ़ियां खूब चौड़ी हैं लेकिन फिर भी वन वे किया हुआ है ऊपर जाने -आने का रास्ता। जैसे ही सीढ़ियां शुरू होती हैं वहां एक बोर्ड लगा है जो "स्वच्छ भारत अभियान " का हिस्सा लगता है क्योंकि ये तब नहीं था जब हम पहले यहां आये थे 1997 में।
ऊपर भूल भुलैया है। अंग्रेजी में (the labyrinth ) कहते हैं। भूलभुलैया को आप लखनऊ की पहचान कह सकते हैं और कह क्या सकते हैं , है ही और तभी से है जब से ये नवाब साब ने बनवाया है। दो सौ साल से ज्यादा हो गए इसे बने हुए और आज भी ज्यों की त्यों जवान लगती है। हाँ कुछ कुछ ऐसे ही मेक अप उतर गया है जैसे किसी कमसिन ने मुंह धो लिया हो और क्रीम पाउडर की परत हट गई हो ! भूलभुलैया नाम से समझ में आ जाता है कि जहां आप खो जाएँ या रास्ता भूल जाएँ a place where you can forget directions and paths and get lost’.इसे बनवाने का किस्सा भी मजेदार और इंजीनियर की सोच का परिणाम है , ऐसा नहीं है कि यूँ ही बना दिया गया हो। ये किस्सा थोड़ी देर में सुनाता हूँ , उससे पहले ये बता दूँ कि इसमें एक जैसे 489 एक जैसे दरवाज़े हैं और एक जैसे हैं इसीलिए खो जाने का , रास्ता भूल जाने का डर रहता ही है। हालाँकि पता नहीं क्यों , भूलभुलैया मुझसे नफरत करती है , मैं हर बार यहां खो जाना चाहता हूँ , चिल्लाना चाहता हूँ कि मैं खो गया हूँ , कोई मुझे ढूंढ लो। .... लेकिन मैं कभी खोता ही नहीं। .... न इस बार। ... न तब ! I hate you Labyrinth क्योंकि तुम मुझे खोने नहीं देती but I love you too, I like you क्योंकि मुझे तुम्हें देखना , तुममें खो जाना पसंद है and so I am here in Lucknow in this summer . ये भी अच्छा है कि तुम केवल एक Structure वरना मेरी बीवी को तुमसे बड़ी नफरत होती !!
नवाब ! इधर यूपी में बहुत चलता है , मेरे अपने गाँव में भी ! किसी की लंका लगानी हो तो - बहुत बड़ौ नवाब है रह्यो है !! नवाब बन रहयो है !! जैसे मुहावरे प्रचलित हैं !!
पढोगे -लिखोगे बनोगे नवाब
खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब
पहले यही चलता था लेकिन अब असली नवाब वो हैं जो खेल में नाम कमा रहे हैं। नवाब लखनऊ में भी हैं , कुछ शायद काम के भी हों लेकिन ज्यादातर नाम के ही हैं। अपने नाम के आगे बस नवाब लिख लेने से ये खुद को नवाब मान लेते होंगे जैसे नवाब फलाने अली खां , नवाब ढिकाने अली खां ! नवाब शब्द असल में फ़ारसी भाषा के शब्द "नायब " से आया है जिसका मतलब होता है डिप्टी (Deputy ) ! नवाब मुग़ल काल में अपने Deputy के रूप में मुग़ल शासकों द्वारा तय किये जाते थे और ये शब्द ज्यादातर उत्तर भारत में ही प्रयोग किया जाता था। यहां थोड़ी सी नोट करनी वाली बात ये है कि नवाब केवल पुरुष बनाये जाते थे और महिलाओं को बेग़म का ताज नवाजा जाता था। खैर इतना इतिहास मुझे भी नहीं पता लेकिन 1857 की क्रांति के बाद इन नवाबों के बुरे दिन आने शुरू हो गए और अब आज की तारिख में इन्हें कोई नवाब नहीं मानता। होगा तू अपने घर का नवाब !!
अच्छा हाँ , भूलभुलैया के बनने की कहानी भी तो लिखनी थी। भूलभुलैया , इमामबाड़े की ऊपर वाली मंजिल पर बना है और इमामबाड़े की बात तो आप पहले पढ़ ही चुके है कि क्यों और कैसे बना। इमामबाड़ा ऐसी जगह होती है जहाँ शिया मुस्लिम विशेष दिन आकर इबादत करते हैं , शायद मुहर्रम के दिन। इमामबाड़े एशिया के दूसरे अन्य मुस्लिम देशों में भी हैं लेकिन इनके नाम अलग -अलग हैं। बहरीन और UAE में इन्हें 'मातम " कहते हैं जबकि सेंट्रल एशिया के देशों में इसे "तकियाखाना " कहते हैं !! संभव है , मैं कहीं गलत हूँ तो अगर आपको मेरे तथ्य गलत लगते हैं तो कृपया सुधार करें। आपका स्वागत है।
तो क्योंकि इमामबाड़ा एक बड़ा सा हॉल है जिसमें कोई बीम नहीं लगी तो इसकी Ceiling को हल्का रखना था और ऊपर कुछ बनाना भी जरुरी था , तब आर्किटेक्ट हाफ़िज़ किफ़ायतुल्लाह ने ये डिज़ाइन तैयार किया जो कुछ Hollow हो , और इस तरह से ये भूलभुलैया का डिज़ाइन दुनिया के सामने आया। और हाँ , ये भी उसी तरह से बनाया गया जैसे इमामबाड़ा बनाया गया , मतलब अकाल पीड़ित लोगों को काम देने के लिए , जैसे आज की तारीख़ में मनरेगा (MNREGA ) से लोगों को काम दिया जाता है।
अकेले घूमने का एक नुकसान रहता है कि कोई फोटू खींचने वाला नहीं मिलता , सेल्फी का ज्यादा शौक नहीं पाला कभी। एक को कैमरा दिया कि भाई एक फोटू खेंच दियो ! ले लिए फोटो - शोटो ! अब चलता हूँ बाहर -एक कोई बावली भी है और स्नानघर भी है मुग़लों के ज़माने का। हाँ , यहां भूलभुलैया के बाहर जो खुला -खुला सा है वहां से लखनऊ बहुत सुन्दर दीखता है , उसे मिस मत करना कभी जाओ तो।
शाही बावली , सामने ही है। जिस तरफ से आप भूलभुलैया गए थे उसी तरफ कुछ आगे जाकर है ये। बावली , आपको पता ही होगा कि पहले के समय में पानी इकठ्ठा करने के लिए बनाई जाती थीं। हिन्दू शासक भी खूब बावली बनवाते थे और उम्मीद करता हूँ आप ने दिल्ली में उग्रसेन की बावली तो देखी होगी। इसके अलावा भी दिल्ली में बहुत सी बावली हैं , चाहें तो
मेरी पोस्ट पढ़ सकते हैं। मैंने
पांच बावली देखी हैं दिल्ली में अब तक। इसे भी नवाब असफउद्दौला ने बनवाया था और डिज़ाइन भी हाफ़िज़ किफ़ायतुल्लाह ने ही किया था।
चलो जी ! अब आगे चलता हूँ छोटा इमामबाड़ा घूमने ! तब तक आप ये फोटो देखते जाओ :