रविवार, 26 नवंबर 2023

Krimchi temples: Udhampur

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क्रिमची मंदिर (पांडव मंदिर): उधमपुर


27 June-2022

अनायासेन मरणं विनादैन्येन जीवनं । 

देहि मे कृपया शम्भो त्वयि भक्तिं अचन्चलं ॥ 

भगवान शिव से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी मृत्यु अचानक हो जाए , जीवन बिना किसी रोग -बीमारी के गुजर जाए ! बस इतनी कृपा बनाए रखिए ! 

आज 27 जून 2022 है ! मैं अकेला ही जम्मू के रेलवे स्टेशन के पास ही 150 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से सरस्वती भवन की डॉर्मिटोरी में रुका हुआ हूँ।  सुबह के सात बजे हैं , चाय मिल गई है और अब मुझे जल्दी ही नहाधोकर स्टेशन निकलना होगा ! 

सरस्वती भवन के बाथरूम भले कॉमन हैं मगर साफ़ सुथरे हैं और ज्यादा भीड़भाड़ नहीं रहती।  हर एक फ्लोर पर दो कोनों में बाथरूम बने हैं जिनमे 7-8 टॉयलेट्स और तीन बाथरूम हैं। 

 

स्टेशन पर भी बहुत भीड़ नहीं है , टिकट वेंडिंग मशीन (TVM ) से टिकट मिल गया , मुश्किल से पांच मिनट लगे होंगे।  फिर से टाइम देखा ! अभी 7 बजकर 42 मिनट हुए हैं और ट्रेन का टाइम 7 बजकर 55  का है , ब्रेड पकोड़ा और एक कप चाय खेंच लेते हैं , फिर चलेंगे ! हमारे यहाँ कहावत है कि -घर खीर तो बाहर खीर ! मतलब कि जब कहीं निकलो तो कुछ खा -पीकर निकलो ! पता नहीं बाहर कुछ मिले न मिले ! 


जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से निकल चुका हूँ ! जम्मू तवी स्टेशन पर जो बोर्ड लगा है -वो चार भाषाओँ में है ! सभी जगह तीन भाषाओँ में ही होता है -हिंदी , अंग्रेजी और उस स्टेट की स्थानीय भाषा ! मगर यहां चार भाषाएं हैं -हिंदी , अंग्रेजी , उर्दू और  चौथी डोगरी !  ट्रेन बजालता स्टेशन पहुँचने वाली है और यहां जब आ रहे थे तब बलिदान स्तम्भ की रायफल ट्रेन से दिखाई दे रही थी।  बलिदान स्तम्भ मैं आप लोगों को पहले ही दिखा चुका हूँ।  आप चाहें तो फिर से पढ़ सकते हैं , इसके नाम पर क्लिक करिये बस ! 


इतना सब हो गया ! मगर अभी तक मैंने आप लोगों को ये नहीं बताया कि मैं जा कहाँ रहा हूँ सुबह -सुबह ही ? अब बता देता हूँ -मैं उधमपुर जा रहा हूँ ! हांजी -जम्मू के पास वाला ही उधमपुर ! आप कहेंगे -वहां क्यों जा रहा हूँ ? मैं फिर बताऊंगा आपको -मैं वहां क्रिमची मंदिर देखने जा रहा हूँ जिनको पांडव मंदिर भी बोलते हैं ! अब ठीक है ? 


आपको बताते -बताते मैं संगर स्टेशन पहुँच चूका हूँ।  जिस ट्रेन से उधमपुर जा रहा हूँ वो पठानकोट से सुबह सवा चार (4 :15) बजे चलती है और जम्मू सुबह के 7 बजकर 55 मिनट पर पहुँचती है।  बताया था पहले भी ! 


लो जी मनवाल स्टेशन आ गया ! छोटा मगर अच्छा स्टेशन है , स्टेशन के नाम में कुछ -कुछ पंजाबी भाषा का प्रभाव दिख रहा है।  जम्मू से उधमपुर कुल 55 किलोमीटर ही है , और ये स्टेशन शायद दोनों तरफ से बीच में ही होगा ! मनवाल बहुत काम आएगा आगे -आगे ! ध्यान रखना पड़ेगा इस स्टेशन को।  


क्रिमची मंदिर जाने से पहले उधमपुर निवासी आदरणीय रोमेश शर्मा जी के यहाँ पहुंचना है।  उनसे फेसबुक / व्हाट्स एप्प से मेल मुलाकात हुई थी फिर एक बार दिल्ली में प्रत्यक्ष मुलाकात भी हुई और फिर साथ में सतोपंथ -स्वर्गारोहिणी ट्रेक पर बद्रीनाथ तक साथ गए थे।  उनका साथ मिलेगा तो क्रिमची मंदिरों को और बढ़िया से घूम पाऊंगा।  रामनगर जे एण्ड के स्टेशन आ गया है।  रामनगर के साथ  जे एण्ड के जोड़कर अच्छा किया है , अलग पहचान मिल गई है ! अब बस आखिरी स्टेशन उधमपुर है।  अब तक कई सुरंगों से होते हुए निकलकर आये हैं हम , और अब आसपास बहुत ही खूबसूरत नज़ारे दिख रहे हैं।  पहाड़ों पर हरियाली छाई हुई है , छोटी-गहरी खाइयों को देखते हुए जब ट्रेन नदी पर बने एक पुल को पार करती है तो जबरदस्त दृश्य नजर आने लगता है। आपको उधर जाने का मौका मिले तो इस पल को छोड़िएगा मत।  


उधमपुर आ गया।  ट्रेन में  चलते हुए मुझे आज भी छोटे बच्चे की तरह का रोमांच होता है ! नए -नए स्टेशन ! नए -नए लैंडस्केप ! नए -नए लोग ! मुझे आज भी बहुत आकर्षित करते हैं।  



सुबह के नौ बजे के आसपास का समय है।  एक कप चाय बनती है यहाँ भी ! चाय पीकर उधमपुर के बोर्ड के साथ फोटो लेने  के लिए बढ़ा ही था कि आसमान में गड़गड़ाहट होने लगी।  फाइटर जेट की आवाज थी ये ! बाद में पता चला कि उधमपुर में कहीं एयरफोर्स स्टेशन है।  


चाय पीने के चक्कर में गड़बड़ हो गई यार ! असल में उधमपुर का रेलवे स्टेशन शहर से दूर है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट केवल तभी मिलता है जब कोई ट्रेन आती है ! अब ट्रेन को आये हुए 20 -25 मिनट हो चुके हैं और जिसे जाना था , वो जा चुका है।  अब मैं अकेला ही था यहाँ।  थ्री व्हीलर वाले से बात करी -कितने पैसे ? 150 रूपये ! ज्यादा हैं ! सामान नहीं था मेरे पास कोई भी , सब कुछ जम्मू के सरस्वती भवन में लॉक था।  हम पैदल -पैदल आगे बढ़ चले।  

थोड़ी देर में उधर यानि अपोजिट साइड से आते हुए एक ऑटो मिल गया ! कितना ? 100 रुपए ! ना भाई 80 दूंगा ! चलिए .. बैठिये ! रोमेश जी से लगातार सम्पर्क में था , उन्होंने जहाँ कहा,  उतर गया ! कुछ ही देर में वो अपना स्कूटर लेकर उपस्थित हो गए।  


गर्मी अपने पूरे जोश में थी।  सुबह के 10 या साढ़े दस बजे होंगे मगर गर्मी से बुरा हाल हुआ पड़ा था।  उधमपुर को पटनी टॉप के पास होने का कोई ख़ास फायदा नहीं मिल रहा था।  रोमेश जी के यहाँ नाश्ता कर के हम लगभग 12 बजे के आसपास क्रिमची मंदिरों की तरफ निकल चुके थे।  रोमेश जी धीरे मगर अच्छी ड्राइविंग करते हैं।  

उधमपुर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क्रिमची (पांडव ) मंदिर , क्रिमची गाँव के बाहरी छोर पर बिरुनाला नदी के किनारे पर सात मंदिरों के समूह के रूप में  स्थित हैं !  मंदिरों के इस समूह को स्थानीय तौर पर पांडव मंदिर के नाम से जाना जाता है।


इतिहास 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान किया गया था।मंदिरों का निर्माण चरणों में किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर संख्या 6 और 7 कई सदियों पहले क्षतिग्रस्त हो गए थे। 


स्थानीय मान्यता है कि वे महाभारत युद्ध के नायकों, या स्वर्गीय पांडव राजवंश के समय से चले आ रहे हैं, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में शासन किया था ( अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा अनुमान लगाया गया था )। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा कीचक को क्रिमची शहर और राज्य का निर्माता कहा जाता था। यह भी कहा जाता है कि निर्वासन में पांडव लंबे समय तक वहां रहे थे। चूंकि मंदिरों का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था, इसलिए ये मंदिर परिसर इंडो-ग्रीक वास्तुकला की गहराई को दर्शाते हैं। 


मंदिर पहुँचने के रास्ते में करीब 100 मीटर का रास्ता एकदम नीचे उतरता है।  हालाँकि रोमेश जी अच्छे ड्राइवर हैं इसलिए बहुत मुश्किल नहीं हुई।  शायद टिकट लगा था इसका या मुफ्त था ... भूल गया मैं ! लेकिन वहां जो व्यक्ति बैठा था उनका नाम गौरव था और वो यूपी के बिजनौर से हैं।  अच्छी दोस्ती हो गई उनसे कुछ ही देर में।  

सीढ़ियां चढ़ते ही एक प्लेटफार्म दीखता है और उससे आगे एक अकेला मंदिर जो इस प्लेटफार्म से नीचे है बाकी सभी प्लेटफार्म पर ही हैं।  पहले आपको प्लेटफार्म के नीचे वाले मंदिर पर ले चलता हूँ।  


इन मंदिरों को सीमेंट की बजाय मिट्टी -गारे से जोड़ -जोड़कर बनाया गया है , हालाँकि अब जब और जहाँ भी रेनोवेशन का काम होता है अब सीमेंट से ही होता है और सीमेंट भी उतना ही कि हाथ से उखड़ जाए ! निश्चित सी बात है कि सरकारी काम है और सरकारी लोग जिसके लिए कुख्यात होते हैं , उन्होंने अपना कौशल यहाँ भी दिखाया है।  मुझे नहीं समझ आता कि अगर उन्होंने इस काम में 2 -4 लाख बना भी लिए होंगे तो उससे कौन से वो अम्बानी -अडानी बन जाने वाले हैं ! 



नीचे वाले मंदिर का शिखर टूट चुका है और अब बस गिरना शेष है।  यहाँ इन मंदिरों में से सिर्फ एक ही मंदिर में पूजा पाठ होता है।  बाकी मंदिर बस ढाँचे के रूप में खड़े हैं मगर हाँ , आसपास की हरियाली बहुत व्यवस्थित है और अच्छी लगती है।  



बीच का कॉरिडोर बहुत ही सुन्दर स्तम्भों से बनाया हुआ है , आप एक बार जीभर के देखने के लिए रुकने को मजबूर हो सकते हैं। आठवीं -नौवीं शताब्दी के मंदिरों के स्तम्भों पर इतनी महीन कलाकारी वास्तव में इन्हीं मंदिरों को ही नहीं बल्कि हमारे सभी देवालयों को आकर्षक बनाती हैं। 




इस मंदिर काम्प्लेक्स के एक किनारे पर टॉयलेट बने हुए हैं और साफ़ सुथरे हैं।  

इस मंदिर प्रांगण को खूब अच्छी तरह से घूम के बाहर निकल आये।  गौरव भाई ने इन मंदिरों की एक बुकलेट भी दी थी मगर वो अब कहीं गुम हो गई है।  बाहर ही रोमेश जी की गाडी खड़ी थी।  मंदिर के बाहर ही गाड़ियां खड़ी  करने की खूब सारी जगह उपलब्ध है और अभी हाल -फिलहाल पार्किंग फ्री है।  आगे का मुझे नहीं मालूम  , क्या होगा !


लौटते हुए थोड़ी देर चाय -कोल्डड्रिंक के लिए क्रिमची गाँव की एक दुकान पर रुक गए। उसी दुकान के बराबर में सब्जी की दुकान भी थी जहां मुझे  सब्जी देखने को मिली -रोमेश जी से पूछा तो उन्होंने उसका नाम कड़म बताया।  कड़म को गांठ गोभी भी कहा जाता है और ये सब्जी कश्मीर क्षेत्र में खूब प्रचलित है।  मुझे उत्सुक देखकर रोमेश जी ने उस सब्जी को खरीद लिया , बोले -योगी जी चलिए आज आपको यही सब्जी खिलाते हैं।  

घर पहुँचने के कुछ देर बाद ही शानदार खाना सामने था जिसमें कड़म की सब्जी भी शामिल थी।  रोमेश जी की धर्मपत्नी स्कूल की प्रिंसिपल हैं मगर आज वो स्कूल से जल्दी आ गई थीं।  फिर से लिख रहा हूँ , बहुत ही शानदार खाना था और कड़म की सब्जी पहली बार खाई थी तो उसकी तारीफ तो बनती ही है।  


जून का महीना था तो स्वाभाविक है कि गर्मी होगी ही! खाना खाने के बाद थोड़ी देर आराम किया और सूरज की तपिश थोड़ी कम होने के बाद वापस अपने दड़बे , जम्मू के सरस्वती भवन की तरफ लौट चले उसी ट्रेन से जिससे जम्मू से उधमपुर गए थे।  

खाना खाते हुए रोमेश जी से जम्मू -उधमपुर के आसपास की घूमने लायक जगहों के विषय में बात हो रही थी तब उन्होंने मनसर और सुरिंसर लेक के बारे में तो बताया ही , एक और जगह बताई जिनका मैंने नाम भी नहीं सुना था।  ये थे काला डोरा मंदिर ! रोमेश जी भी कभी इधर नहीं आए इसलिए उन्हें exact लोकेशन तो मालुम नहीं थी लेकिन इतना अंदाजा था कि मनवाल के आसपास ही कहीं हैं।  मुझे अगले दिन सुरिंसर और मानसर लेक जाना ही था तो.... बाकी मेरा होमवर्क था।  

अगले दिन की बात अगली पोस्ट में लिखूंगा मगर ध्यान रखियेगा , अगली पोस्ट क्रिमची मंदिरों से भी पुराने और गुमनाम जगहों के बारे में अपनी बात लेकर आऊंगा।  आते रहिएगा ......
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सोमवार, 20 नवंबर 2023

Places to visit in Jammu : Jamwant Gufa

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जामवंत गुफा ,जम्मू 

26 June-2022



मुबारक मण्डी हेरिटेज से वापस लौट रहे थे , बिश्नोई जी बोले कि चलिए एक और जगह दिखा के लाता हूँ।  मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीर खो है ! जामवंत की गुफाएं भी कहते हैं इस जगह को ! तो अब हम पीर खो नहीं बल्कि जामवंत गुफा ही लिखेंगे आगे।  इस गुफा में कई पीरों, फकीरों, और ऋषियों ने तपस्या की,  इस कारण से इसका नाम पीर खोह् पड़  गया। डोगरी भाषा में इसे खोह् गुफा भी बोलते है।



कहते है कि श्री राम -रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब  विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।

उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो। इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था।



एक कथा के अनुसार राजा सत्यजीत ने सुर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को प्रकाश मणि प्रसाद के रूप में दे दी। राजा का भाई मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने मणि धारण कर ली। इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर मणि प्राप्त की। कृष्ण से हारने के बाद ये मणि जामवंत ने कृष्ण को दे दी।


यहीं से कृष्ण और जामवंत फिर से मिले। जामवंत ने कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया यहीं पर जामवंत ने कृष्ण के समक्ष अपने पुत्री सत्य भामां से विवाह का अनुरोध किया और दहेज स्वरूप प्रकाश मणि दी।


ये तो हो गई इस जगह से जुडी कहानी ! अब मंदिर में चलते हैं ! सीढ़ियों से जैसे ही ऊपर पहुँचते हैं एक बड़ा सा हॉल दीखता है और उस हॉल में से ही कहीं नीचे की तरफ सीढ़ियां जाती हैं।  छोटी -छोटी सीढ़ियां उतरते हुए कभी कभी ऐसा लगता है जैसे सिर अभी टकरा जाएगा मगर जैसे ही आप नीचे उतर जाते हैं , छोटे मगर बहुत ही सुन्दर मंदिर बने हुए हैं।  यही गुफा मंदिर हैं ! फोटो या वीडियो लेना सख्त मना है मगर मैंने अनुरोध किया तो मुझे एक फोटो लेने की अनुमति मिल गई ! 



मंदिर प्रांगण  उतरे तो बराबर में ही एक सुन्दर पार्क है और इस पार्क के एक कोने पर रोप वे का स्टेशन भी है।  पता किया तो बताया गया कि ये रोप वे जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक जाती है और फिर महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक जाती है।  उस वक्त यानि कि जून -2022 में ,  इसका किराया जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक 150 रुपए था और इतना ही महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक का था मगर आप एक साथ आने जाने का करेंगे तो ये 500 रूपये प्रति व्यक्ति हो जाता है।  


मैं हालाँकि इस रोप वे में बैठा नहीं था मगर कल्पना करें तो जब ये तवी नदी और बहु गार्डन के ऊपर से होकर गुजरती होगी , अद्भुत दृश्य देखने को मिलता होगा।  मुझे जानकारी नहीं थी तब और न उतना समय बचा था क्योंकि ये शाम छह बजे तक ही मिलती है और सुबह 11 बजे शुरू होती है।  आपको मौका मिले तो जरूर आनंद लीजियेगा , अच्छा लगेगा ! 

थक चुका था मैं ! सुबह लगभग आठ बजे से ही घूमता फिर रहा था तो पार्क में एक जगह मैं और बिश्नोई भाई , कोल्डड्रिंक और चिप्स लेकर बैठ गए ! अन्धेरा होने में अभी कुछ देर बाकी थी मगर जैसे ही हल्का सा अँधेरा घिरने लगा , पार्क के एक कोने में लगी भगवान शिव की मूर्ति और उसके आसपास लगे फव्वारे चमक उठे।  शिव की मूर्ति से निकलती जलधारा , माँ गंगा का रूप व्यक्त करती हुई प्रतीत होती हैं।  


जैसे -जैसे शाम घिरने लग रही थी , भीड़ बढ़ती जा रही थी।  ये ज्यादातर स्थानीय लोग थे जो अपने बच्चों के साथ पिकनिक मनाने आ रहे थे।  

अब ऐसा कुछ जम्मू शहर में रह नहीं गया था जो मेरी लिस्ट में रहा हो और देख न पाया होऊं ! बल्कि जितना सोचा था उससे ज्यादा , बहुत ज्यादा देखने और घूमने का मौका मिल गया और ये सब संभव हुआ मित्र सूखराम बिश्नोई जी की वजह से ! धन्यवाद भाई जी !! 


बिश्नोई भाई ने मुझे सरस्वती भवन छोड़ दिया।  खाना खाकर अब बस सो जाना है क्यूंकि कल उधमपुर जाऊँगा और आपको एक ऐसी जगह 
दिखाऊंगा  जो बहुत ऐतिहासिक है... प्राचीन है.... विशिष्ट है... मगर जिसके विषय में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है... आते रहिएगा !! 


रविवार, 5 नवंबर 2023

Balidan Stambh-Mubarak Mandi : Jammu

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26 June-2022

शाम होने में अभी कुछ देर बाकी थी ! शायद तीन या साढ़े तीन बजे होंगे जब मैं बहु बाग़ से बाहर निकला था।  जिस गेट से एंट्री लिया था उससे दूसरे वाले गेट पर बाहर निकला था , यहां सुखराम बिश्नोई जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! एंट्री गेट पर आपको चाय -पानी तक की भी कोई दुकान देखने तक को भी नहीं मिलती मगर इस वाले गेट पर न केवल दुकानें थीं बल्कि ऑटो / ई रिक्शा भी बहुत सारे खड़े थे ! 



सुखराम बिश्नोई भाई अपनी हॉस्पिटल ड्यूटी खत्म कर के सीधे यहीं आ गए थे अपनी बाइक से और इससे मेरा बहुत सा टाइम बच गया जिससे मैं ऐसी जगहों तक भी जा पाया जिनके बारे में मुझे पहले से पता नहीं था ! ऐसी ही एक जगह थी -जम्मू का बलिदान स्तम्भ ! 



बलिदान स्तंभ ,  जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित एक स्मारक है । इसका निर्माण उन सैनिकों और पुलिसकर्मियों के वीरतापूर्ण कार्यों को याद करने के लिए किया गया था जो सीमाओं की संप्रभुता की रक्षा के लिए और जम्मू-कश्मीर में चल रहे विद्रोह के दौरान मारे गए थे । देश में अपनी तरह का पहला निर्माण भारतीय सेना द्वारा 2009 में 13 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। यह एक सैनिक की बंदूक के आकार में साठ मीटर ऊंचा है। देश भर के 52 स्तंभों पर 4877 शहीदों के नाम अंकित हैं। कुछ स्तंभ कारगिल युद्ध में शहीद हुए 543 सैनिकों को समर्पित हैं। इन शहीदों में से 71 जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों से थे। बाद में, जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के दौरान मारे गए सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के 15,000 कर्मियों को स्मारक में सम्मानित किया गया। 




स्तंभ का आकार 
संगीन राइफल जैसा है। स्तंभ की ऊंचाई आधार से लगभग 60 मीटर है और सूर्य की किरणें इसके किनारों से छनकर आती हैं। आधार पर एक शाश्वत ज्योति है, शहीद की लौ को राइफल के बट के भीतर रखा जाता है। स्मारक का डिज़ाइन 5.56 मिमी इंसास राइफल के इर्द-गिर्द घूमता है । प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ 6 मीटर लंबी इंसास गोलियां खड़ी की गई हैं। यह स्मारक विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के भीतर युद्ध और आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान शहीद हुए सैनिकों को समर्पित है। इसमें 1947-1948 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1962 का भारत-चीन युद्ध , 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1999 का कारगिल युद्ध और 1990 के बाद से आतंकवाद विरोधी अभियान शामिल हैं। ये नाम स्मारक की परिधि के चारों ओर बने स्तंभों और अमर जवान ज्योति के आसपास की दीवारों पर भी अंकित हैं। परिधि के आधे हिस्से में परमवीर चक्र और अशोक चक्र पुरस्कार विजेताओं के भित्ति चित्र हैं


जितनी सुन्दर और ऐतिहासिक ये जगह है उस हिसाब से यहाँ हमें उतने लोग नहीं दिखाई दिए।  बाद में जब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स में इस बात का जिक्र किया तो पता चला कि ज्यादातर लोगों को इस जगह का पता ही नहीं है , यहाँ तक कि जम्मू के स्थानीय लोग भी इस जगह से अनभिज्ञ हैं ! 

           

अगर आप कभी जम्मू से कटरा या जम्मू से उधमपुर वाली ट्रेन से गए हों तो आपको इस पर लगी राइफल स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन आप इसको तभी पहचान पाएंगे जब आप यहाँ कभी गए हों ! सर्दियों में शाम पांच बजे तक और गर्मी के मौसम में छह बजे तक खुले रहने वाले बलिदान स्तम्भ का कोई टिकट नहीं लगता है ! 
हमे लगभग पांच बज चुके थे और अब यहाँ बलिदान स्तम्भ पर देखने के लिए कुछ खास बचा नहीं था इसलिए बिश्नोई भाई ने अपनी बाइक कहीं और जाने के लिए तेजी से दौड़ा दी। मेने उनसे पुछा भी - अब कहाँ ? तोह बोले -योगी भाई आपको बहुत जबरदस्त जगह दिखाऊंगा जो बिलकुल आपके मतलब की है। 

उन्होंने बाइक इधर उधर घूमते हुए अमर पैलेस पर जाके रोक दी। अमर पैलेस डोगरा राजाओं के समय में एक महल हुआ करता था जो अब होटल में परिवर्तित हो चुका है।  यहाँ हमारे लिए करने को कुछ था नहीं तो बहार से एक - दो फोटो लिए और चलते बने। 


अगला पड़ाव मुबारक मंडी था। मुबारक मंडी डोगरा राजाओं के समय का सचिवालय कहा जा सकता है। यहाँ आपको डोगरा राजाओं के समय के विदेश मंत्रालय , रक्षामंत्रालय  जैसी बिल्डिंग देखने को मिल जाएँगी। यहाँ विदेश मंत्रालय वाले भवन में एक म्यूजियम भी है मगर जब वहां पहुंचा तब तक वह बंद हो चुका था। 



आसपास की अधिकांश बिल्डिंग यूरोपियन स्टाइल में बनी हुई है जिनका अब जीर्णोद्धार किया जा रहा है। उम्मीद कर सकते है कि यहाँ फिर से वही पुराना रूप और गौरव दिखाई देगा !




पास में ही रानी चरक का खण्डहरनुमा महल भी है जो बहुत आकर्षित करता है ! बिलकुल गिरने की हालत में एक पहाड़ी पर खड़ा ये महल , मेरे लिए जम्मू का सबसे बड़ा आकर्षण था ! पहाड़ी तक जाकर इस महल में घुसने की न तो इजाजत थी और न उतना समय था हमारे पास इसलिए नीचे से ही फोटो लिए और अपनी अगली और आखिरी मंजिल की तरफ बढ़ गए! आखिरी मंजिल -जामवंत गुफा! मगर उसकी बात अगली पोस्ट में करेंगे.....