अमृतसर यानि अमृत + सर, मतलब अमृत का सरोवर । इस शहर को रामदासपुर और
अम्बरसर भी कहा जाता रहा है ! अमृतसर वास्तव में तुंग नाम का एक गाँव हुआ
करता था , लेकिन सन 1574 ईस्वी में गुरु रामदास जी ने इस गाँव को 700 रुपये
में गाँव वालों से खरीद लिया और एक झील बनाई जिसे अमृतसर कहा गया और वो ही
नाम अब इस शहर को मिल गया ।
अक्टूबर -नवम्बर 2013 में अलग अलग लोगों के विचारों से संकलित पुस्तक लाहौर
-1947 पढ़ रहा था ! उसमें आजादी से पहले और तुरंत बाद का जो द्रश्य वर्णित
किया गया है उसमें अमृतसर का भी जिक्र है ! पुस्तक पढ़ते समय कभी कभी दुःख
हुआ और आँखों में आंसू तक भी आये ! दिल में अमृतसर की वही तस्वीर बिठा रखी
थी , और उसी तस्वीर की हकीकत और 1984 के समय के ऑपरेशन ब्लू स्टार के
अवशेषों को देखने का विचार मन में पाले हुए गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस में
परिवार सहित 25 जनवरी का रिजर्वेशन करा लिया ! 25 जनवरी का आरक्षण कराने के
दो मकसद थे , पहला ये कि अगले दिन कॉलेज की छुट्टी थी और दूसरा ये कि
छब्बीस जनवरी होने के कारण वाघा बॉर्डर पर अच्छी खासी भीड़ होने और पूरा
आनंद उठाने की उम्मीद थी । रेल आरक्षण कराने में एक परेशानी हो गयी , हमारा
वापिस लौटने का आरक्षण राउरकेला मुरी एक्सप्रेस से तो कन्फर्म था लेकिन
अमृतसर जाने का आरक्षण गोल्डन टेम्पल में हमें वेटिंग मिली 4 और 5 ! हमने
59 दिन पहले गोल्डन टेम्पल ट्रैन में आरक्षण कराया था लेकिन हमारी सीट जाने
वाले दिन यानि 25 जनवरी को ही कन्फर्म हो पायी । देर आये दुरुस्त आये ।
जैसे ही हमारा टिकेट कन्फर्म हुआ , मैंने तुरंत अपने रिश्तेदार श्री
राजदीप सारस्वत जी से दिल्ली संपर्क किया , वो BSF में हैं और उनकी ड्यूटी
अभी दिल्ली में ही है ! असल में ये संपर्क वाघा बॉर्डर के लिए BSF से पास
लेने के लिए किया गया था जिससे हम आसानी से बच्चों के साथ परेड देख सकें |
राजदीप जी ने हमें अमृतसर में रहने वाले श्री आर के .साहू जी का नंबर दिया !
हमने उनसे बात करी तो उन्होंने हमें आश्वस्त कर दिया कि आप जब बॉर्डर पर
जाओगे तो आपको पास मिल जाएगा ! प्रसन्नता हुई !
गोल्डन टेम्पल गाजियाबाद स्टेशन पर बिलकुल ठीक समय पर आ पहुंची यानि
ठीक 8 बजकर 5 मिनट पर । बच्चे साथ में थे लेकिन गोल्डन टेम्पल में आरक्षण
तो कन्फर्म मिल गया लेकिन हम दौनों पति पत्नी की सीट अलग अलग दे दीं । बहुत
से लोगों से बात करी लेकिन ज्यादातर तो अपने परिवार के साथ थे वो जा नहीं
सकते थे और कोई एक आध जो सिंगल था वो अपनी सीट बदलने को तैयार नहीं था ।
एक भाईसाब मिले भी अकेले , लेकिन उन्होंने मना कर दिया , बोले मुझे
लुधियाना तक जाना है ,आप वहाँ मेरी सीट पर आ जाइयेगा । लेकिन उनका सीट न
बदलने का असल कारण बाद में पता चला । असल में उनके सामने वाली सीट पर एक
बेहद खूबसूरत और युवा महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ मुम्बई से ही यात्रा
कर रही थी , और ऐसे मौके को देखकर भला कोई हमारे लिए सीट कैसे छोड़ देता ?
खैर सहारनपुर तक हमें अलग अलग ही बैठना पड़ा । टी टी ई से कई बार बात करी
लेकिन वो कुछ कर नहीं पाया । सहारनपुर जाकर हमें पास पास की सीट मिल गयीं
और आगे का रास्ता सुगम हो गया । अमृतसर पर करीब 6 बजे गोल्डन टेम्पल
एक्प्रेस पहुँच गयी । जो लोग दिल्ली या आसपास के हैं और अमृतसर जाना चाहते
हैं उनसे यही कहूंगा कि वो प्राथमिकता इसी ट्रेन को दें । औसतन बहुत सही
समय पर चलती है ।
अमृतसर स्टेशन से बाहर निकलते ही , बल्कि ये कहूं कि स्टेशन पर ही आपको
बहुत से लोग मिल जायेंगे जो आपसे गाड़ियों के लिए भाव ताव करने लगेंगे । उस
वक्त यानि 25 जनवरी को अमृतसर में अच्छी खासी ठण्ड होनी चाहिए थी , जैसा
कि फेसबुक के मित्र श्री विक्रमजीत सिंह जी ने बताया था कि जनवरी में बहुत
सर्दी रहती है , लेकिन सच कहूं तो ग़ाज़ियाबाद जैसी ही ठण्ड थी या उससे भी
कम रही होगी । बाहर साइन बोर्ड लगा है वहाँ वो उस दिन 11.6 टेम्परेचर बता
रहा था और ग़ाज़ियाबाद में एक दिन पहले का टेम्परेचर 10 डिग्री था । खैर ये
ठीक ही था कि मौसम कुछ गर्म रहने की उम्मीद थी । स्टेशन से बाहर निकलकर
इण्डिका गाडी किराए पर ले ली | 1500 बोला था उसने लेकिन बात 1200 रुपये में
तय हो गयी और सीधे हम चल दिए दुर्गियाना मंदिर की धर्मशाला । वहाँ जाने का
कार्यक्रम बस इतना था कि वहाँ जाकर नहायेंगे कपडे बदलेंगे और सामान छोड़कर
चलेंगे । कौन लादेगा इतना सामन । केवल 60 रुपये की ही तो पर्ची कटवानी थी ,
सौदा सस्ता लगा तो पहुँच गए । वहाँ से करीब 8 :30 बजे हम दुर्ग्याणा मंदिर
, जो बिलकुल पास है , के दर्शन के लिए निकल गए । बहुत ही सुन्दर मंदिर है ।
उसे भी गोल्डन टेम्पल की तरह सोने का बना रहे हैं वो लोग , और कुछ पर सोने
की परत लग भी गयी है । वहाँ पहली बार मैंने किसी मंदिर में 100 रुपये का
दान किया । हाहाहा ।
दुर्ग्याणा मंदिर के दर्शन करने के पश्चात हमारा ध्येय गोल्डन टेम्पल
जाने का था और कार वाले ने तुरंत ही गाडी मोड़ दी गोल्डन टेम्पल की तरफ !
अत्यंत सुन्दर । जितना सुना , समझा था उसे भी कई गुना सुन्दर । तालाब (सर )
एकदम साफ़ स्वच्छ । वहाँ लाइन में थोडा समय जरुर लगता है लेकिन वो समय
अखरता नहीं है । आस पास का माहौल बहुत अच्छा लगता है । अंदर जाने के भी कई
रास्ते हैं । व्यवस्था अच्छी है । मुख्य स्थान अति सुन्दर है , पूरा स्वर्ण
जड़ित । मुख्य द्वार , जहां से मंदिर का रास्ता शुरू होता है वहाँ दौनों ओर
जो बिजली के लट्टू लगे हैं वो भी स्वर्ण जड़ित हैं । अंदर घुसते ही लगता है
कि एक सर्वाधिक सुन्दर जगह के दर्शन हो रहे हैं , वहाँ गुरबानी का पाठ
लगातार चलता रहता है । प्रकाश ही प्रकाश । ऊपर के लिए सीढ़ियां हैं लेकिन वो
इतनी छोटी और रपटीली हैं कि गिरने का अंदेशा बना ही रहता है । हालाँकि
वहाँ लोग लगातार साफ़ सफाई करते रहते हैं लेकिन फिर भी लगता है कि कोई न कोई
जरुर ही फिसलता होगा ।
दुर्ग्याणा मन्दिर में पानी के बीच से बना मंदिर तक का रास्ता |
दुर्ग्याणा मन्दिर |
दुर्ग्याणा मन्दिर में लगी महावीर हनुमान की सुन्दर प्रतिमा |
दुर्ग्याणा मन्दिर |
दुर्ग्याणा मन्दिर में पानी के बीच से बना मंदिर तक का रास्ता |
स्वर्ण मंदिर , रात के समय में ! ये फ़ोटो इंटरनेट से ली गयी है !
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स्वर्ण मंदिर
क्रमशः