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नाबी गाँव पहुँच चुके हैं जहाँ हमारे पास रुकने के दो विकल्प हैं। एक छान है जिसमें खाना और रुकना केवल 150 रूपये प्रति व्यक्ति में हो जाएगा लेकिन यहां चारों तरफ खुला -खुला है और फिर 8 -10 मजदूर भी हैं तो जगह कम रहेगी। अब एक दूसरा विकल्प है बढ़िया और साफ़ -सुथरे और एकदम नए बने गेस्ट हाउस में रुकने का लेकिन इनके यहाँ 350 रुपया प्रति व्यक्ति खर्च पड़ेगा। कह -सुन के शाम और सुबह की चाय इसी में करा ली और अपने बैग यहीं पटक दिए। जब तक चाय -खाना होगा अपना फेवरिट गेम "नाभी " खेलेंगे।
सुबह "अपि " पर्वत के सुन्दर और शानदार दर्शन हो रहे थे। कल यहाँ गर्म पानी मिल गया था तो शायद सभी ने अपने शरीर का कुछ वजन कम कर लिया था। कल किसी ने बताया था कि यहाँ से साढ़े छह बजे GREF की गाडी जायेगी कुटी की तरफ लेकिन इंतज़ार ही करते रहे और फिर आखिर ये सोचकर कि गाडी आएगी तो आगे कहीं मिल ही जायेगी ! लेकिन न बाबा आये न घण्टा बजा :) और ये हमारे लिए अच्छा ही रहा नहीं तो हम बेहतरीन प्राकृतिक नजारों को देखने से वंचित रह जाते। यहाँ एक बात जरूर और जोर देकर कहना चाहूंगा कि नाबी गाँव के दूसरी तरफ कुटी नदी के उस तरफ एक छोटा सा लेकिन बहुत सुन्दर और प्यारा गाँव है "रेकोंग "। लेकिन रेकोंग मुख्य रास्ते पर न होने की वजह से शायद ही कोई उधर जाता हो , हम भी नहीं गए लेकिन आप जरूर जाना। हम गए तो नहीं लेकिन मुझे एक बुजुर्ग महिला मिली उस गाँव की और उनसे बात करते हुए ऐसा लगा जैसे वो किसी दूसरे गृह से यहां आई हों !! उन्होंने आजतक शहर नहीं देखा !! रेकोंग की छवि बिल्कुल ऐसी है जैसे हम ड्राइंग रूम में पेंटिंग लगाकर रखते हैं या आपको नाई की दुकान में जैसे पोस्टर लगे दीखते हैं -घर कब आओगे " वाले ! बेहद खूबसूरत गाँव है रेकोंग !!
रास्ता कुटी नदी के किनारे -किनारे चलता जाता है और खूब चौड़ा रास्ता है। चौड़ा होगा ही क्यूंकि यहाँ आर्मी और GREF की गाड़ियां चलती रहती हैं इसलिए भले RCC की रोड न हो , रास्ता खूब चौड़ा बनाया है। प्राकृतिक नजारों का आनंद लेते हुए हम "कलिम्फू " पहुँच गए जहाँ " खान -पान सुविधा " वाला बोर्ड तो लगा है लेकिन है कुछ भी नहीं , न कोई दूकान न कोई घर बस बहकाने को बोर्ड जरूर लगा है । भले यहाँ खाने पीने को कुछ नहीं है लेकिन जोशी जी के पास फाफड़ा के कई पैकेट बचे हैं तो उन पर टूट पड़े और क्या जबरदस्त स्वाद था ! मजा आ गया । फाफड़ा गुजरती आइटम है जो पापड़ की तरह पतला और हल्का होता है , इसे अगर चटनी और कोई पाउडर सा आता है उसके साथ खाओ तो टेस्ट और दस गुना बढ़ जाता है । रास्ते भर फोटो खींचते- खींचते नम्फा पहुँच गए। गुंजी से कुटी गाँव पूरे 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन हम नाबी गाँव से चले हैं आज तो तीन किलोमीटर कम चलना होगा। नम्फा में ऐसे KMVN का रेस्ट हाउस दिखा लेकिन रुकने की कोई व्यवस्था नहीं दिखी , बस बनाकर छोड़ दिया है और एक चौकीदार भी रखा हुआ है जो कुटी गाँव के ही रहने वाले कुंदन सिंह हैं। नम्फा में KMVN के गेस्ट हाउस के सामने ही इन्होने अपना चाय -पानी का इंतेज़ाम किया हुआ है और एक -दो लोगों के लिए रुकने का भी ठिकाना मिल जाता है। इन्होने जो मस्त परांठे और भांग की चटनी खिलाई उससे जी खुश हो गया। हालाँकि नींद आने लगी थी लेकिन जब चलने लगे तो नींद फिर से कहाँ भाग गई वो पता ही नहीं लगा। नम्फा में हमारी दूसरी टीम से भी सुखद मुलाकात हो गई जिसमें लखनऊ से सुरेंद्र मणि त्रिपाठी जी , राहुल और वरुण जालंधर पंजाब से और सुनील जी भेल से शामिल थे और ये आदि कैलाश दर्शन करने के पश्चात ॐ पर्वत की तरफ जा रहे थे जबकि हम ॐ पर्वत के दर्शन कर आदि कैलाश की तरफ बढ़ रहे थे।
नम्फा से आगे एक लोहे का पुल आता है और इस पुल को पार कर कुटी नदी एक बहुत चौड़ी घाटी से गुजरते हुए दिखाई देती है , और ये नजारा बड़ा विहंगम दृश्य पैदा करता है। यहाँ से थोड़ा आगे तक रास्ता बना हुआ है और आर्मी और GREF के ट्रक आते रहते हैं लेकिन इससे आगे अभी रास्ता बन रहा है और संभव है कि दो -चार साल बाद आप जब उधर जाएँ तो और भी आगे तक आपको रास्ता बना हुआ मिले। यहाँ से धीरे -धीरे नीचे उतरते जाते हैं और लगभग दो किलोमीटर में 100 मीटर की ऊंचाई कम हो जाती है लेकिन अब रास्ता बहुत संकरा और कुटी नदी के एकदम किनारे आ जाता है जहाँ से आप चाहें तो कुटी नदी में हाथ डालकर इसके ठण्डे पानी को छू सकते हैं। पानी साथ में लेकर चलिएगा क्यूंकि नाबी गाँव के बाद आपको नम्फा और फिर कुटी में ही पानी मिल पायेगा , हाँ ! बीच में एक जगह एक वाटर टैप लगा है (जिसे आप फोटो में देख सकते हैं ) लेकिन उसका कोई भरोसा नहीं कभी पानी आ जाता है , कभी नहीं आता। अब तक का रास्ता ऐसा रहा है जहाँ न ज्यादा चढ़ाई और न ज्यादा उतराई है , यानी आपको लगेगा ही नहीं कि आप पहाड़ों में यात्रा कर रहे हैं !
रास्ता चलते -चलते जब कुटी नदी आपके बायीं तरफ , आपसे दूर होने लगे तो समझ लीजिये आप कुटी गाँव के पास पहुँचने वाले हैं लेकिन वहां पहुंचना एकदम से इतना आसान भी नहीं है। अभी आपको धीरे -धीरे ही सही एक चढ़ाई और चढ़नी है और जब आप इस चढ़ाई को पूरा कर के ऊपर पहुँचते हैं तो आपको एक हरा -भरा मैदान दिखाई देता है जहां आप चाहें तो क्रिकेट खेल सकते हैं। हम क्रिकेट बैट -बॉल नहीं ले गए थे इसलिए नहीं खेल पाए लेकिन आप जब जाएँ तो पूरी क्रिकेट किट ले जाना और खूब क्रिकेट खेलना क्यूंकि वहां के बच्चे तो खेलते नहीं। बच्चे होंगे तब खेलेंगे , पेट की खातिर उनके माँ -बाप उन्हें वहां से धुंआ उगलते शहरों में खींच ले आये हैं दुनियां की होड़ में शामिल करने के लिए , सुबह से शाम तक की जिंदगी की दौड़ में बेमतलब दौड़ाने के लिए उन्हें उन्हीं की जड़ों से उखाड़ लाये हैं। अब वहां बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजती , खंडहरों और खालीपन का एहसास अपनी चादर ओढ़े सोता रहता है और अपने अंतिम दिनों को गिन -गिन के पूरा करता है। ख़्वाबों की माला के मोती पिरोता रहता है कि कोई आएगा जो इस सन्नाटे को , डरावने खालीपन को तोड़ेगा। लेकिन कौन आएगा ? कब आएगा ? दुनिया की दौड़ में भागना स्वीकार है उसे , अपनी जड़ों को शायद वो अब कभी न लौटे और अगर वो नहीं लौटा तो उसके बच्चों को कौन लौटा के ला सकेगा ?
ये जो मैदान है , खूब हरा भरा है और हमने करीब दो घण्टे यहाँ गुजार दिए होंगे लेकिन हम मुसाफिर हैं। कहाँ रुक पाते हैं ! चलना ही होगा !! एक और छोटा सा पुल पार किया तो कुटी का स्वागत द्वार दिखा। इसमें से प्रवेश करते ही एक अलग और खूबसूरत दुनियां में प्रवेश कर जाते हैं। रास्ते के दोनों तरफ रंगीन ईंटों से बनी रेखाएं ध्यान आकर्षित करती हैं और इसके साथ ही प्रवेश द्वार के बिल्कुल पास लगे कुछ पत्थर हैं जिन पर कुछ नाम और अंक लिखे हुए हैं। अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये इस गाँव के निवासी उन वीर पुत्रों के नाम हैं जो किसी न किसी युद्ध में देश की खातिर शहीद होकर अपने आपको इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा चुके हैं।
सामने ही कुटी गाँव दिखने लगा है और बाएं तरफ एक पहाड़ी पर कोई बहुत पुरानी संरचना दिख रही है। ये जो पहाड़ी पर संरचना , खँडहर के रूप में दिख रही है ये पांडव किला है जिसे स्वयं पांडवों ने बनवाया था। कुटी गाँव का नाम भी तो पांडवों की माता "कुंती " से ही आया है जो कुंती से अपभ्रंश होते -होते कुटी हो गया। कुटी गाँव के निवासी अपने नाम के साथ "कुटियाल " लगाते हैं !! जोशी जी और कोठारी जी ने तो ऊपर चढ़ पाने में असमर्थता दिखा दी लेकिन मैंने जब से Anshul Rautela का ब्लॉग पढ़ा है तब से यहाँ जाने का मन था तो अब कैसे छोड़ सकता हूँ ये मौका। तो मैं और हरजिंदर चल दिए उस पहाड़ी पर चढ़ने और वहां खूब फोटोग्राफी की ।
पिछली पोस्ट में एक जगह आपको "ज़िप्पू " नाम के जानवर से परिचित कराया था मैंने , आज उसके फिर से दर्शन हुए और इस बार खेत जोतते हुए मिले ये महाराज। फाफड़ की खेती का समय था तो छोटे -छोटे खेतों में बुवाई का काम चल रहा था। फाफड़ ! वही जिसकी हमने कालापानी में रोटी खाई थी। हमारे मैदानी इलाकों में जैसे गेहूं की खेती होती है वहां फाफड़ होता है। दुनियां के सबसे सुन्दर गाँव में शामिल किये जा सकने वाले कुटी गाँव की दहलीज पर पैर रखना जैसे मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा था। कुटी , यूँ समुद्र तल से 3850 मीटर की ऊंचाई पर है और नबी गाँव 3200 मीटर की ऊंचाई पर। गुंजी से कुटी लगभग 19 किलोमीटर है और गुंजी से नबी गाँव करीब 3 किलोमीटर। आज क्यूंकि हम नबी गाँव से चले हैं तो कुटी तक की करीब 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा रही जिसमें गुंजी से 12 किलोमीटर दूर "नम्फा " में ही कुछ खाने -पीने की व्यवस्था मिली। नम्फा से कुटी सात किलोमीटर और आगे है। लेकिन 16 किलोमीटर की यात्रा में सच कहूं तो ज्यादा परेशानी नहीं आई।
अब बाकी की कहानी अगली पोस्ट में :
नाबी गाँव पहुँच चुके हैं जहाँ हमारे पास रुकने के दो विकल्प हैं। एक छान है जिसमें खाना और रुकना केवल 150 रूपये प्रति व्यक्ति में हो जाएगा लेकिन यहां चारों तरफ खुला -खुला है और फिर 8 -10 मजदूर भी हैं तो जगह कम रहेगी। अब एक दूसरा विकल्प है बढ़िया और साफ़ -सुथरे और एकदम नए बने गेस्ट हाउस में रुकने का लेकिन इनके यहाँ 350 रुपया प्रति व्यक्ति खर्च पड़ेगा। कह -सुन के शाम और सुबह की चाय इसी में करा ली और अपने बैग यहीं पटक दिए। जब तक चाय -खाना होगा अपना फेवरिट गेम "नाभी " खेलेंगे।
सुबह "अपि " पर्वत के सुन्दर और शानदार दर्शन हो रहे थे। कल यहाँ गर्म पानी मिल गया था तो शायद सभी ने अपने शरीर का कुछ वजन कम कर लिया था। कल किसी ने बताया था कि यहाँ से साढ़े छह बजे GREF की गाडी जायेगी कुटी की तरफ लेकिन इंतज़ार ही करते रहे और फिर आखिर ये सोचकर कि गाडी आएगी तो आगे कहीं मिल ही जायेगी ! लेकिन न बाबा आये न घण्टा बजा :) और ये हमारे लिए अच्छा ही रहा नहीं तो हम बेहतरीन प्राकृतिक नजारों को देखने से वंचित रह जाते। यहाँ एक बात जरूर और जोर देकर कहना चाहूंगा कि नाबी गाँव के दूसरी तरफ कुटी नदी के उस तरफ एक छोटा सा लेकिन बहुत सुन्दर और प्यारा गाँव है "रेकोंग "। लेकिन रेकोंग मुख्य रास्ते पर न होने की वजह से शायद ही कोई उधर जाता हो , हम भी नहीं गए लेकिन आप जरूर जाना। हम गए तो नहीं लेकिन मुझे एक बुजुर्ग महिला मिली उस गाँव की और उनसे बात करते हुए ऐसा लगा जैसे वो किसी दूसरे गृह से यहां आई हों !! उन्होंने आजतक शहर नहीं देखा !! रेकोंग की छवि बिल्कुल ऐसी है जैसे हम ड्राइंग रूम में पेंटिंग लगाकर रखते हैं या आपको नाई की दुकान में जैसे पोस्टर लगे दीखते हैं -घर कब आओगे " वाले ! बेहद खूबसूरत गाँव है रेकोंग !!
रास्ता कुटी नदी के किनारे -किनारे चलता जाता है और खूब चौड़ा रास्ता है। चौड़ा होगा ही क्यूंकि यहाँ आर्मी और GREF की गाड़ियां चलती रहती हैं इसलिए भले RCC की रोड न हो , रास्ता खूब चौड़ा बनाया है। प्राकृतिक नजारों का आनंद लेते हुए हम "कलिम्फू " पहुँच गए जहाँ " खान -पान सुविधा " वाला बोर्ड तो लगा है लेकिन है कुछ भी नहीं , न कोई दूकान न कोई घर बस बहकाने को बोर्ड जरूर लगा है । भले यहाँ खाने पीने को कुछ नहीं है लेकिन जोशी जी के पास फाफड़ा के कई पैकेट बचे हैं तो उन पर टूट पड़े और क्या जबरदस्त स्वाद था ! मजा आ गया । फाफड़ा गुजरती आइटम है जो पापड़ की तरह पतला और हल्का होता है , इसे अगर चटनी और कोई पाउडर सा आता है उसके साथ खाओ तो टेस्ट और दस गुना बढ़ जाता है । रास्ते भर फोटो खींचते- खींचते नम्फा पहुँच गए। गुंजी से कुटी गाँव पूरे 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन हम नाबी गाँव से चले हैं आज तो तीन किलोमीटर कम चलना होगा। नम्फा में ऐसे KMVN का रेस्ट हाउस दिखा लेकिन रुकने की कोई व्यवस्था नहीं दिखी , बस बनाकर छोड़ दिया है और एक चौकीदार भी रखा हुआ है जो कुटी गाँव के ही रहने वाले कुंदन सिंह हैं। नम्फा में KMVN के गेस्ट हाउस के सामने ही इन्होने अपना चाय -पानी का इंतेज़ाम किया हुआ है और एक -दो लोगों के लिए रुकने का भी ठिकाना मिल जाता है। इन्होने जो मस्त परांठे और भांग की चटनी खिलाई उससे जी खुश हो गया। हालाँकि नींद आने लगी थी लेकिन जब चलने लगे तो नींद फिर से कहाँ भाग गई वो पता ही नहीं लगा। नम्फा में हमारी दूसरी टीम से भी सुखद मुलाकात हो गई जिसमें लखनऊ से सुरेंद्र मणि त्रिपाठी जी , राहुल और वरुण जालंधर पंजाब से और सुनील जी भेल से शामिल थे और ये आदि कैलाश दर्शन करने के पश्चात ॐ पर्वत की तरफ जा रहे थे जबकि हम ॐ पर्वत के दर्शन कर आदि कैलाश की तरफ बढ़ रहे थे।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम: शिवाय् ॥
जो शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी–लंबी खूबसूरत जिनकी जटायें हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं; ऐसे उस यकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
नम्फा से आगे एक लोहे का पुल आता है और इस पुल को पार कर कुटी नदी एक बहुत चौड़ी घाटी से गुजरते हुए दिखाई देती है , और ये नजारा बड़ा विहंगम दृश्य पैदा करता है। यहाँ से थोड़ा आगे तक रास्ता बना हुआ है और आर्मी और GREF के ट्रक आते रहते हैं लेकिन इससे आगे अभी रास्ता बन रहा है और संभव है कि दो -चार साल बाद आप जब उधर जाएँ तो और भी आगे तक आपको रास्ता बना हुआ मिले। यहाँ से धीरे -धीरे नीचे उतरते जाते हैं और लगभग दो किलोमीटर में 100 मीटर की ऊंचाई कम हो जाती है लेकिन अब रास्ता बहुत संकरा और कुटी नदी के एकदम किनारे आ जाता है जहाँ से आप चाहें तो कुटी नदी में हाथ डालकर इसके ठण्डे पानी को छू सकते हैं। पानी साथ में लेकर चलिएगा क्यूंकि नाबी गाँव के बाद आपको नम्फा और फिर कुटी में ही पानी मिल पायेगा , हाँ ! बीच में एक जगह एक वाटर टैप लगा है (जिसे आप फोटो में देख सकते हैं ) लेकिन उसका कोई भरोसा नहीं कभी पानी आ जाता है , कभी नहीं आता। अब तक का रास्ता ऐसा रहा है जहाँ न ज्यादा चढ़ाई और न ज्यादा उतराई है , यानी आपको लगेगा ही नहीं कि आप पहाड़ों में यात्रा कर रहे हैं !
आदि कैलाश के रास्ते में "रेकॉन्ग गाँव " Rekong Village on the route to Adi Kailash |
Kuti River कुटी नदी |
Rekong Village in the lap of Mountains |
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बस बोर्ड ही लगा है , बाकी खाने -पीने का कुछ नहीं मिलता |
ये नम्फा है जहां आपको खाने -पीने की सुविधा मिल जाती है और पीने का पानी भी ↓ ↑ |
ये नम्फा से दोनों तरफ की दूरियां |
रास्ते तैयार हो रहे हैं और संभव है कुछ सालों में रास्ता कुटी गाँव तक पहुँच जाय |
इसकी यहाँ क्या जरुरत थी ? |
यहाँ भी One Way........ |
Water Tap is available about 2 Km before Kuti |
रास्ता चलते -चलते जब कुटी नदी आपके बायीं तरफ , आपसे दूर होने लगे तो समझ लीजिये आप कुटी गाँव के पास पहुँचने वाले हैं लेकिन वहां पहुंचना एकदम से इतना आसान भी नहीं है। अभी आपको धीरे -धीरे ही सही एक चढ़ाई और चढ़नी है और जब आप इस चढ़ाई को पूरा कर के ऊपर पहुँचते हैं तो आपको एक हरा -भरा मैदान दिखाई देता है जहां आप चाहें तो क्रिकेट खेल सकते हैं। हम क्रिकेट बैट -बॉल नहीं ले गए थे इसलिए नहीं खेल पाए लेकिन आप जब जाएँ तो पूरी क्रिकेट किट ले जाना और खूब क्रिकेट खेलना क्यूंकि वहां के बच्चे तो खेलते नहीं। बच्चे होंगे तब खेलेंगे , पेट की खातिर उनके माँ -बाप उन्हें वहां से धुंआ उगलते शहरों में खींच ले आये हैं दुनियां की होड़ में शामिल करने के लिए , सुबह से शाम तक की जिंदगी की दौड़ में बेमतलब दौड़ाने के लिए उन्हें उन्हीं की जड़ों से उखाड़ लाये हैं। अब वहां बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजती , खंडहरों और खालीपन का एहसास अपनी चादर ओढ़े सोता रहता है और अपने अंतिम दिनों को गिन -गिन के पूरा करता है। ख़्वाबों की माला के मोती पिरोता रहता है कि कोई आएगा जो इस सन्नाटे को , डरावने खालीपन को तोड़ेगा। लेकिन कौन आएगा ? कब आएगा ? दुनिया की दौड़ में भागना स्वीकार है उसे , अपनी जड़ों को शायद वो अब कभी न लौटे और अगर वो नहीं लौटा तो उसके बच्चों को कौन लौटा के ला सकेगा ?
ये जो मैदान है , खूब हरा भरा है और हमने करीब दो घण्टे यहाँ गुजार दिए होंगे लेकिन हम मुसाफिर हैं। कहाँ रुक पाते हैं ! चलना ही होगा !! एक और छोटा सा पुल पार किया तो कुटी का स्वागत द्वार दिखा। इसमें से प्रवेश करते ही एक अलग और खूबसूरत दुनियां में प्रवेश कर जाते हैं। रास्ते के दोनों तरफ रंगीन ईंटों से बनी रेखाएं ध्यान आकर्षित करती हैं और इसके साथ ही प्रवेश द्वार के बिल्कुल पास लगे कुछ पत्थर हैं जिन पर कुछ नाम और अंक लिखे हुए हैं। अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये इस गाँव के निवासी उन वीर पुत्रों के नाम हैं जो किसी न किसी युद्ध में देश की खातिर शहीद होकर अपने आपको इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा चुके हैं।
सामने ही कुटी गाँव दिखने लगा है और बाएं तरफ एक पहाड़ी पर कोई बहुत पुरानी संरचना दिख रही है। ये जो पहाड़ी पर संरचना , खँडहर के रूप में दिख रही है ये पांडव किला है जिसे स्वयं पांडवों ने बनवाया था। कुटी गाँव का नाम भी तो पांडवों की माता "कुंती " से ही आया है जो कुंती से अपभ्रंश होते -होते कुटी हो गया। कुटी गाँव के निवासी अपने नाम के साथ "कुटियाल " लगाते हैं !! जोशी जी और कोठारी जी ने तो ऊपर चढ़ पाने में असमर्थता दिखा दी लेकिन मैंने जब से Anshul Rautela का ब्लॉग पढ़ा है तब से यहाँ जाने का मन था तो अब कैसे छोड़ सकता हूँ ये मौका। तो मैं और हरजिंदर चल दिए उस पहाड़ी पर चढ़ने और वहां खूब फोटोग्राफी की ।
पिछली पोस्ट में एक जगह आपको "ज़िप्पू " नाम के जानवर से परिचित कराया था मैंने , आज उसके फिर से दर्शन हुए और इस बार खेत जोतते हुए मिले ये महाराज। फाफड़ की खेती का समय था तो छोटे -छोटे खेतों में बुवाई का काम चल रहा था। फाफड़ ! वही जिसकी हमने कालापानी में रोटी खाई थी। हमारे मैदानी इलाकों में जैसे गेहूं की खेती होती है वहां फाफड़ होता है। दुनियां के सबसे सुन्दर गाँव में शामिल किये जा सकने वाले कुटी गाँव की दहलीज पर पैर रखना जैसे मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा था। कुटी , यूँ समुद्र तल से 3850 मीटर की ऊंचाई पर है और नबी गाँव 3200 मीटर की ऊंचाई पर। गुंजी से कुटी लगभग 19 किलोमीटर है और गुंजी से नबी गाँव करीब 3 किलोमीटर। आज क्यूंकि हम नबी गाँव से चले हैं तो कुटी तक की करीब 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा रही जिसमें गुंजी से 12 किलोमीटर दूर "नम्फा " में ही कुछ खाने -पीने की व्यवस्था मिली। नम्फा से कुटी सात किलोमीटर और आगे है। लेकिन 16 किलोमीटर की यात्रा में सच कहूं तो ज्यादा परेशानी नहीं आई।
अब बाकी की कहानी अगली पोस्ट में :
Plain and a Big Field before Kuti Village |
Pandav Fort on the Hill |
Kuti : A Beautiful Village named after Kunti , mother of Pandavas |
Ruins of Pandav Fort on the Hill ↑ ↓ |
Fafad : is like wheat which is used to make Roti |
Have Reached "Kuti" Village |