बाय बाय जमशेदपुर
जैसा कि मैंने अपने इसी यात्रा वृत्तान्त में कहा कि जमशेदपुर मतलब टाटा और इसीलिए इसका एक नाम टाटा नगर भी है ! जमशेदपुर भी जमशेद जी टाटा के नाम पर ही है ! कोई अपने आपको कितना भी बड़ा देश भक्त क्यों न कहे लेकिन मैं समझता हूँ कि एक उद्योगपति से बड़ा देशभक्त कोई नहीं होता ! सवाल उठाया जा सकता लेकिन मैं ऐसा मानता हूँ क्यूंकि मुझे लगता है उसी की वजह से 10 - 20 से लेकर लाखों घरों के चूल्हे सुबह शाम जल रहे हैं ! इसलिए टाटा को शत शत नमन !
पिछले वृतांत
में एक बात बताना भूल गया ! हुआ यूँ कि जब हमारी ट्रेन मुरी जंक्शनपर
पहुँचीं तो मैं और सौरभ सारस्वत दौनों नीचे उतर गये ! हमें पानी और
कोल्ड ड्रिंक की बोतल लेनी थी ! हमारा डिब्बा इंजन की तरफ़ से चौथ डिब्बा
था और पानी और कोल्ड ड्रिंक वाले की दुकान बहुत पीछे थी ! लोगों ने बताया
था कि ट्रेन 10 मिनट रुकेगी यहां ! हम उतर गये और अपनी अपनी चीजें खरीदकर
वहीँ स्टेशन पर ही बैठ गये ! 2 ही मिनट हुए होंगे कि ट्रेन सरकने लग गयी और
सरकी क्या उसने बिना सीटी बजाये अच्छी खासी स्पीड भी पकड़ ली ! हमने दौड़
लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ ! अब तो हम बस यही सोच रहे थे कि चलो ये
ट्रेन टाटानगर तक ही जाती है वहाँ शायद अपना सामान मिल जाये ! अगली ट्रेन
का इंतज़ार करने के अलावा और कोइ रास्ता ही नहीं था ! थक हार के बैठ गये !
जब हम दौड़ लगा रहे थे तब शायद हमें लोगों ने देख लिया होगा , तो उन्हीं
मैं से एक हमारे पास आया और बोला आप लोग भाग क्यों रहे थे ? हमने अपनी राम
कहानी उसे सुनाई तो वो पास ही बैठ गया और आराम से बोला अभी आएगी लौटकर !
फिर उसी ने बताया कि इसका आधा हिस्सा राँची होते हुए राउरकेला जाता है और
आधा टाटानगर ! अभी लौटके आएगी और उसमें अभी एक डिब्बा और जुडेंगे यहॉं से !
ओह ! तो ये बात थी ! फिर तो ऐसे निश्चिंत हो गये जैसे अब कहीं जाना ही नही है !
भले आप पूरे भारतवर्ष में महात्मा गाँधी , नेहरू जी और इन्दिरा जी की मूर्तियों के अलावा किसी और की मूर्ति न देख पायें लेकिन ज़मशेदपुर में तो
आपको टाटा का ही जलवा देख़ने को मिलेगा ! बहुत कुछ दिया है टाटा ने इस शहर
को ! मूलभूत सुविधाओं से लेकर एक पहिचान तक ! आसान नहीं होता ये सब !
पहली बार जे.एन ( जमशेत जी नुसरवान ज़ी ) टाटा , जिन्होने टाटा ग्रुप की
नींव रखी , के प्रयासों को करीब से जाना और समझा ! एक पारसी होते हुए भारत
को इतना सब देने का माद्दा ! मुझे पारसी बहुत अलग किस्म के लगते हैं ! कहीं
पढ़ा था कि अगर एक पारसी के परिवार की मासिक आमदनी 90,000 रुपये है तो उसे
गरीब माना जाता है ! और हमारे यहाँ ये शायद अमीर होने और दिखने का पहला
पड़ाव ! इन्होने कभी आरक्षण नहीं माँगा , कभी अपनी हैसियत के हिसाब से
लोकसभा या राज्यसभा का टिकेट नहीं माँगा ! सिर्फ अपना काम करना है !
आजकल बच्चे
बाय बाय बोलते हैं लेकिन मैने देखा है कि गाँव में ज्यादातर माँ -बाप अपने
बच्चों को टाटा , बाय बाय कहना सिखाते हैं ! टाटा एक परम्परा बन गयी है ! आसान नहीं होता ये सब !
अपनी ही लिखी एक हास्य कविता से एक पंक्ति भि जोड़ रहा हूँ शायद आपको पसन्द आये !
टाटा -बिड़ला -अम्बानी करते हैं मुझको फ़ोन
कहते हैं ! घर में बच्चे भूखे हैं , दिलवा दो थोड़ा सा लोन !!
अब चलते हैं ! फिर मौका मिला तो जमशेदपुर की जमीन और टाटा के प्रयासों को नमन करने जरूर आऊँगा !
टाटानगर में जो कुछ देखा उसके फ़ोटो दे रहा हूँ !
टाटानगर में जो कुछ देखा उसके फ़ोटो दे रहा हूँ !
जमशेदपुर के चिड़ियाघर में रंगीन तोता ! इसका नाम लिखा था वहाँ , भूल गया |
ये सौरभ का स्टाइल है |
जयंती सरोवर में बोटिंग |
शुतुरमुर्ग जैसा दिखने वाला ईमू |
और ये शुतुरमुर्ग |
एक फोटू मेरा भी |
लकड़ी से बनी बेहतर स्टेचू |
मनमोहन सिंह द्वारा यहाँ 2009 में एक पेड़ लगाया गया |
पार्क में खुले में पढ़ती लड़कियां , आश्रम की याद दिलाती हैं ! इनके टीचर ने हमें फोटू खेंचने के लिये मना किया था लेकिन तब तक हम क्लिक कर चुके थे |
टाटा के परिवार के सदस्य होंगे कोई |
रुसी मोदी सेंटर के पास ही बना पिरामिड जैसा कुछ ! उस दिन ये सेंटर बन्द था इसलीये अन्दर नही जा पाये |
टाटा बाबा |
फिर मिलते हैं , किसी और जगह के विषय में जानने के लिये !
बाय बाय !
स्टील सिटी में श्री जवाहर सिंह जी के साथ
इलाहबाद पर पहुँचते पहुँचते रात हो गयी थी ,पक्का था कि अब सो जाना चाहिए क्यूंकि बहुत सुबह का जगा हुआ था ! इसी सोने सोने में मेजा रोड , विंध्याचल , मिर्ज़ापुर , चुनार , रॉबर्टसगंज और चुर्क स्टेशन निकल गए ! चोपन स्टेशन पर इसे रात को 10 बजे पहुँच जाना चाहिए था लेकिन जब हमारी आँख खुली और देखा कि ट्रेन चोपन पर रुकी हुई है , सुबह के 6 बजे हुए थे यानि 8 घण्टे देरी से चल रही थी ट्रेन ! चोपन पर मुंह हाथ धोकर चाय पी और पानी में भीगे चने का नाश्ता किया ! मुझे बुरी आदत है कि मैं बिना मुंह धोये चाय पीता हूँ , लेकिन यहाँ कम से कम मुँह तो धो लिया था ! चोपन पर ही पहली बार वी.आई.पी प्लेटफार्म भी देखा ! फोटो लगा है उसी वी.आई.पी प्लेटफार्म का ! ऐसा होता होगा वी.आई.पी प्लेटफार्म ? चोपन के बाद रेनुकूट होते हुए निकल चले विंढमगंज स्टेशन ! ये उत्तर प्रदेश में पड़ने वाला इस लाइन पर आखिरी स्टेशन है , इससे आगे फिर झारखण्ड शुरू हो जाता है ! नगर उंटारी झारखण्ड का इस ट्रैक पर पहला स्टेशन है ! जैसे जैसे झारखण्ड में आगे चलते गए वहां के हालात से परिचित होते चले गए ! इतनी गरीबी , इतना सूखा ! इतनी खाली खेत खलिहान ? छोटे छोटे खेत , जो उनकी जीवन चलाने के लिए किसी भी तरह से शायद काफी नहीं होते होंगे ! राजधानी में एयर कंडिशन्ड कमरों में बैठे हमारे माननीयों को इधर भी कुछ ध्यान देना होगा !
झारखण्ड को क्षमा याचना के साथ झाड़खण्ड कहना ज्यादा मुफीद होगा ! हर जगह बस नीरसता , खालीपन ! हाँ , मोटर साइकल्स जरूर दिखती रहीं ! एक जगह पड़ती है गढ़वा ! जब ट्रेन उस स्टेशन पर रुकी तो कई सारे लोगों ने अपने हाथ में बन्दूक थाम रखी थी, सुनते रहे थे कि ये नक्सल प्रभावित इलाका है ! तो क्या सच में नक्सली हैं ये ? लेकिन वहां का माहौल देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा था ! जैसे ही ट्रेन रुकी , ज्यादातर वो लोग जिनके हाथ में बन्दूक थी , हमारे ही डिब्बे में चढ़ आये ! फूंक सरक गयी अपनी ! उन्होंने एक के लिए जगह मांगी हम पूरा ही खिड़की की तरफ सरक गए ! हालाँकि बाद में बातचीत में पता चला कि वो सादी वर्दी में झारखण्ड पुलिस के लोग थे ! ऐसे होते हैं पुलिस वाले ? न ढंग से दाढ़ी बनी हुई , न बाल ठीक से कटे हुए ! लेकिन सब जींस में थे और हट्टे कट्टे थे ! हमें क्या !
जमशेदपुर में स्पष्ट रूप से कहूँ तो देखने को कुछ भी नहीं है ! बस , टाटा का नाम जपते रहिये ! लेकिन इतना है की वहां के लोगों की पिकनिक बहुत सुन्दर बन जाती है ! यानी एक दिन आप बढ़िया गुजार सकते हैं ! सब कुछ टाटा का दिया हुआ है जमशेदपुर को ! शहर के नाम से लेकर बिजली पानी तक ! सब कुछ टाटा !
जमशेदपुर पहुँचते ही श्री जवाहर सिंह जी और मित्र सुशील शर्मा को सूचित कर दिया ! टाटा नगर पहुँचते पहुँचते हमारी ट्रेन 10 घंटे लेट हो चुकी थी ! ये 12 अप्रैल का दिन था जो ख़त्म हो रहा था ! सुशील से बात हुई तो मिलने का प्रोग्राम भी फिक्स हुआ और हम करीब 9 बजे रात को उसके यहां जा धमके ! खाना वाना खा पीकर होटल पहुंचे ही होंगे कि श्री जवाहर सिंह जी का फोन आ गया कि कल मैंने शिफ्ट बदल ली है , अब मैं शाम को कंपनी जाऊँगा ! पक्का हो गया कि अगले दिन श्री जवाहर सिंह जी के यहां जाना है !
अगले दिन यानी 13 अप्रैल को अपना कॉलेज का काम ख़त्म करके करीब दोपहर 2 बजे हम श्री जवाहर जी के यहां पहुँच गए ! खाना खाया , बल्कि ज्यादा खाया क्यूंकि श्रीमती जवाहर सिंह जी ने खाना ही इतना स्वादिष्ट बनाया था ! अब बस यही सोच थी कि ए.सी. की ठण्डक में एक नींद ले ली जाए लेकिन समय इजाजत नहीं दे रहा था इसलिए वहां से जुबिली पार्क के लिए निकल चले !
भारतीय रेलवे का वी आई पी प्लेटफार्म
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भारतीय रेलवे का वी आई पी प्लेटफार्म
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ट्रेन से दिखता हिंडालको प्लांट
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बहुत सुन्दर स्टेशन है ये
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उत्तर प्रदेश का इस लाइन पर आखिरी स्टेशन |
झारखण्ड का इस लाइन पर पहला स्टेशन
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नक्सलवाद से प्रभावित लातेहार |
शायद बड़ा भाई काना रहा होगा उसी के नाम पर बड़का काना यानी बरकाकाना
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झाड़खण्ड
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झाड़खण्ड
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यहाँ रांची के लिए ट्रेन बदल सकते हैं |
जमशेदपुर से बिलकुल पहले का स्टेशन ! बंगाल में पुरुलिया की तरफ की गाड़िया इधर से निकलती हैं |
मुरी पर हालत खराब सी हो गयी थी बैठ बैठे ट्रैन में |
आखिर टाटा नगर पहुँच ही गए
आदरणीय श्री जवाहर सिंह जी के साथ
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स्टील सिटी जमशेदपुर में
जमशेदपुर जाने का कोई प्रोग्राम पहले से नहीं था लेकिन जब पता चला कि कुछ लोग बाहर जा रहे हैं कॉलेज के विज्ञापन के लिए तो मैंने भी अपना नाम लिखवा दिया और जमशेदपुर जाने का कार्यक्रम बन गया ! दो बातें एक साथ हो गयीं ! एक तो कॉलेज का काम हो गया दूसरा मेरा जमशेदपुर देखने और घूमने का मौका भी तैयार हो गया ! जैसे ही प्रोग्राम फाइनल हुआ , मैंने अपने मित्र सुशील शर्मा और ब्लॉगर मित्र श्री जवाहर सिंह जी को तुरंत सूचित कर दिया ! उन्हें सूचित करने के तुरंत बाद का काम था कि ट्रेन में टिकेट देखा जाए , और मिला भी ! इधर से जब देखा कि जम्मू तवी से टाटा नगर ( जमशेदपुर ) जाने वाली मुरी एक्सप्रेस में स्लीपर क्लास में अलीगढ से 17 सीट उपलन्ध हैं , तुरंत आरक्षण करा लिया ! असल में मैं जब अमृतसर से जनवरी में लौटा था तो इस ट्रेन ने हमें बिलकुल ठीक समय पर गाजियाबाद उतार दिया था इसलिए यही सोचा था कि ये बेहतर रहेगी लेकिन आखिर में ये अति आत्मविश्वास ले डूबा और ये ट्रेन टाटानगर पहुँचते पहुँचते 10 घंटे लेट हो गयी ! खैर ! ये अच्छा रहा कि लौटने के लिए इस ट्रेन को वरीयता नहीं दी , उधर से हमें आरक्षण मिला ओडिशा से आने वाली ओडिशा सम्पर्क क्रांति एक्सप्रेस में !
11 अप्रैल को सुबह 5 :30 बजे की ट्रेन मुरी एक्सप्रैस पकड़नी थी तो इसका मतलब था कि मुझे कम से कम 4 बजे जागना पड़ता , और इतनी जल्दी मैं शायद साल दो साल में एक दो बार ही जग पाता होऊंगा , पक्का था कि मैं नहीं जग सकता इतनी जल्दी ! इसलिए बेग़म साहिबा को कह दिया कि मुझे ठीक 4 बजे फोन करें ! ससुर साब को भी कहा कि मुझे 4 बजे फोन करके जगा दें ! मकान मालिक को भी कहा कि दरवाजे पर आकर खटखट कर दें और कहें कि योगी अब जग जा , 4 बज गए ! आप सोच रहे होंगे , अजीब बेवकूफ है ! इतने सारे लोगों से कहने की क्या जरुरत थी , अलार्म लगा देता ! असल में मुझे अलार्म कभी जगा ही नहीं पाता ! वो शायद मेरे लिए नहीं है ! हाँ अगर कोई 2-3 बार फोन कर दे तो तुरंत बैठ जाता हूँ और फिर जाग भी जाता हूँ ! आलस बड़ी चीज है !
खैर जैसा कि अक्सर होता है जागते जागते 4 की जगह साढ़े चार बज गए ! लेकिन ये भी होता है कि जब समय कम होता है तो काम स्पीड से भी होता है और वही हुआ ! ठीक 5 बजे तैयार और ऑटो वाले को फोन किया कि आजा भैया , मैं तैयार हूँ !
पाँच
बजकर 10 मिनट पर गाज़ियाबाद स्टेशन पर पहुँच गया , मुझे सबसे पहले टिकट
लेना था क्यूंकि मेरे पास आरक्षण अलीगढ से था , तो गाजियाबाद से अलीगढ जाने
के लिए जनरल टिकेट लेकर प्लेटफॉर्म नम्बर 3 पर पहुँच गया ! थोड़ी देर में
घोषणा हुई , मुरी एक्सप्रेस 2 घण्टे की देरी से चल रही है ! ओह ! 10 अप्रैल
को गाज़ियाबाद में चुनाव हुआ था , तो सोचा समय गुजारने के लिए अखबार ही ले
लेता हूँ ! अखबार खोला ही था कि एक पुलिस वाला आ गया। अंदर का पेज निकाल
देना ! ये आदत मुझे बड़ी बुरी लगती है , लेकिन उस दिन स्टेशन पर चुनाव की
वजह से बहुत से पुलिस वाले जमा थे , उनकी संख्या देखकर ही सहम गया मैं और
बिना कुछ कहे अन्दर के चार पेज उसे निकाल दिए ! 7 :30 बज गए तो लगा कि अब
ट्रेन आने वाली है , अखबार लपेटकर बैग में डाल दिया लेकिन तभी फिर घोषणा
हुई , अमृतसर के रास्ते जम्मू तवी से आने वाली , कानपूर इलाहबाद के रास्ते
टाटानगर को जाने वाली 18110 मुरी एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से 2 घण्टे
30 मिनट की देरी से चल रही है ! जल भुन गया मैं ! एक तो इतनी सुबह आके बैठ
गया हूँ और ट्रेन है कि आने को ही राजी नहीं ! खैर 8 बजे ट्रेन आ पहुंची !
अपने आरक्षित डिब्बे और आरक्षित सीट पर जाकर बैठ गया ! न किसी ने पूछा , न
कोई टीटी आया ! अलीगढ से तो अपना राज था ही सीट पर ! अलीगढ से ही सौरभ सारस्वत को भी आना था ! वो भी आ गया और आते ही , वो खाना खोल लिया जो वो
लेकर आया था घर से ! मेरे जैसे भुक्कड़ को और क्या चाहिए था ?
चोला स्टेशन , यहाँ आपको हमेशा बंदरों की फ़ौज़ दिखेगी |
यहाँ आप कासगंज और मथुरा के लिए ट्रेन बदल सकते हैं |
मुलायम सिंह यादव का गृह जिला |
सौरभ सारस्वत |
सौरभ सारस्वत ने ही बीवी से बात करते हुए मुझे भी क्लिक कर दिया |
रेलवे लाइन के बीच में लिखा फतेहपुर आकर्षित करता है |
इलाहबाद पहुँचते पहुँचते रात हो गयी |
यात्रा जारी है..................... यहाँ क्लिक करें ....
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