शनिवार, 28 मई 2016

लखनिया दरी फॉल ( Lakhaniya Dari Fall ) : Varanasi

 इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !  सीधे बनारस की और पोस्ट तक जाने के लिए यहाँ हिट करिये !


उस दिन यानि 18 अप्रैल को केवल विश्वनाथ मंदिर और राम नगर किला ही देख पाया था और फिर वहां से मुझे अपने मित्र और कॉलेज में जूनियर रहे बिपिन के पास जाना था , ओबरा , सोनभद्र में आजकल साहब उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन में जूनियर इंजीनियर हैं !

रामनगर फोर्ट से थोड़ा आगे निकलकर नारायणपुर के लिए ऑटो पकड़ा ! वहां से रॉबर्ट्सगंज ( इसे रापट गंज भी कहते हैं वहां के लोग ) प्राइवेट बस से ! प्राइवेट बस की स्पीड एकदम बढ़िया था ! रॉबर्ट्स गंज से ओबरा की एयरकंडीशन बस मिल गयी ! पहले 20 रूपये की लस्सी पी और फिर बिना किराया पूछे बस में बैठ गया ! सरकारी नहीं , प्राइवेट बस थी ये ! मेरे बराबर में एक मोटे से सज्जन और बैठे थे पहले से ही , तो पक्की बात है सीट का 70 प्रतिशत हिस्सा तो उन्होंने ही कब्जा लिया था ! कंडक्टर आया भी लेकिन हमसे उसने किराया ही नहीं माँगा , हम कौन से राजा हरिश्चन्द्र की औलाद हैं जो अपने आप उसे बुलाते और किराया दे देते ! 100 रूपये तो बच ही गए होंगे ! राजा हरिशचन्द्र की तथाकथित फ़र्ज़ी औलादें आजकल दिल्ली में शासन चला रही हैं ! तो जी , शाम लगभग 8 बजे हम बिपिन के घर थे ! नाश्ता -चाय के बाद सीधा बाथरूम में ! शरीर पर पसीना और धूल की परत जमी पड़ी थी ! नहाने के बाद बड़ा आराम मिला और ऐसा लगा जैसे शरीर का वजन कुछ किलो कम हो गया हो !





रात बिपिन को बता के सोया था कि भाई सात बजे तक निकल जाऊँगा ! लेकिन जैसा अक्सर होता है , नींद ही आठ बजे खुली तो बन्दा 9 बजे से पहले कैसे निकलता ? बिपिन की वाइफ ने पूड़ी और अचार भी बैग में रख दिया था , मतलब खाने की टेंशन तो ख़त्म आज की ! शाम को देखेंगे कहाँ खाना है , क्या खाना है ! थोड़ी देर इंतज़ार किया कि कुछ मिल जाए तो सीधा बनारस ही पहुँच जाऊं , लेकिन नहीं मिला तो फिर चोपन का टैम्पो पकड़ा और चोपन से एक स्कार्पियो गाड़ी मिल गयी ! ड्राइवर के बगल वाली सीट मिली !


कल जब बिपिन के यहाँ था तब उसने रॉबर्ट्सगंज के पास एक बहुत विचित्र और सुन्दर जगह के बारे में बताया था ! उस जगह को गाडी में से ही देख पाया लेकिन उस जगह को यहां बताना जरूर चाहूंगा , और ये भी अनुरोध करूँगा कि अगर आप वहां से हैं या आसपास जा रहे हैं तो कुछ समय के लिए इस जगह भी होकर आइये ! ये जगह है वीर लोरिक स्टोन पार्क ! मार्कण्डेय पहाड़ी पर स्थित ये पत्थर पार्क वीर लॉरिक को समर्पित है ! रॉबर्ट्सगंज से करीब 5 किलोमीटर पहले स्टेट हाईवे संख्या 5 पर है , अगर आप बनारस से जा रहे हैं तो , ये एक खूबसूरत जगह है लेकिन गर्मी बहुत ज्यादा होती है उस क्षेत्र में , इसलिए कोशिश करिये मानसून या ठण्ड के मौसम में ही जाएँ !


वीर लॉरिक , इस क्षेत्र में हर लोक संगीत में शामिल है ! लॉरिक और उसकी प्रेमिका मंजरी के प्यार की कहानी को कहता ये पार्क विचित्र सा लगता है ! लॉरिक और मंजरी दोनों को एक साथ मिलाकर महसूस करने से इन दोनों का नाम "लोरिकी " ज्यादा लिया जाता है ! कहानी सुनना चाहेंगे ? सुन ही लो भाई ! - सतयुग में सोन नदी के किनारे एक राज्य हुआ करता था अगोरी , जो अब उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में है ! इस राज्य का राजा था मोलागत ! मोलागत अपनी प्रजा में बहुत इज्जत पाता था और हर कोई उसे प्यार और सम्मान की दृष्टि से देखता था लेकिन वो राजा , यादव वंश के एक और राजा "महरा " से नफरत करता था , उसका कारण था कि महरा बहुत ही शक्तिशाली था ! एक दिन राजा मोलागत ने , राजा महरा को अपने महल में जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया और शर्त ये रख दी कि जो भी जीतेगा वो ही पूरे राज्य पर शासन करेगा ! राजा महरा ने ये चुनौती स्वीकार कर ली ! असल में राजा मोलागत जुआ खेलने में माहिर था और उसे भरोसा था कि वो ये जुआ का खेल वो ही जीतेगा लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा और यादव राजा महरा जीत गया और राजा मोलागत को अपना राज्य छोड़ना पड़ा ! राजा मोलागत का ये हाल देखकर भगवान ब्रह्मा ने साधु का रूप धरा और राजा को कुछ सिक्के दिए और उससे कहा कि अब तुम फिर से राजा महर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करो और ध्यान रहे , जुआ तुम्हें इन्हीं सिक्कों से खेलना है ! राजा मोलागत ने ऐसा ही किया और इसके परिणामस्वरूप यादव राजा महर हारने लगा और वो 6 बार हार गया ! उसकी हालत ऐसी हो गयी कि वो अपने राजपाट के साथ साथ अपनी पत्नी को भी जुए में हार बैठा ! सातवीं बार में उसने अपनी गर्भ धारण किये पत्नी के गर्भ को भी हार लिया ! ये समय मुश्किल था लेकिन यादव राजा को स्वीकार करना पड़ा लेकिन राजा मोलागत ने दया दिखाते हुए कहा कि यदि रानी के बेटा पैदा हुआ तो वो घोड़ों के अस्तबल में काम करेगा और पैदा हुई तो उसे अपनी रानी की सेवा में लगा देगा !

कुछ दिनों बाद रानी को बेटी पैदा हुई जो बहुत खूबसूरत थी , उसका नाम मंजरी रखा गया ! इसकी खबर जब राजा महर को हुई तो उसने अपने आदमियों को मंजरी को ले आने को भेजा लेकिन उसकी रानी ने मंजरी को देने से मना कर दिया और अपने पति को सन्देश भिजवाया कि जब मंजरी बड़ी हो जायेगी और उसकी शादी हो जायेगी तब मैं खुद ही इस राजा को मारकर आपके पास आ जाउंगी !

जैसे जैसे मंजरी बड़ी हुई तो उसने अपने असली पिता को कहा कि आप "बलिआ " गाँव जाओ वहां आपको एक सुन्दर युवक "लॉरिक " मिलेगा , आप उससे मेरा रिश्ते की बात करके आइये ! उनका रिश्ता तय हो जाने के बाद दोनों ने बिना राजा मोलागत की अनुमति लिए विवाह कर लिया , इससे राजा मोलागत बहुत क्रोधित हो गया और उसने अपने सैनिकों को दोनों को पकड़ने के लिए भेजा लेकिन ये खबर पाकर लॉरिक और मंजरी दोनों सोन नदी के किनारे भाग गए ! लेकिन आखिर दोनों पकडे गए और उनकी सैनिकों से लड़ाई होने लगी जिसमें लॉरिक को पराजित होते हुए देख मंजरी उसे दुश्मन सैनिकों से निकाल कर ले आई और लॉरिक से कहा- तुम अगोरी फोर्ट के नजदीक के गांव गोथानि के शिव मंदिर में जाकर भगवान की प्रार्थना करो , जीत हमारी ही होगी ! अंततः लॉरिक विजयी हुआ और उसने पूरे रीति रिवाज से मंजरी से विवाह किया !

जब लॉरिक और मंजरी उस जगह से जाने लगे तो मंजरी ने लॉरिक कहा कि अपने प्यार को अमर करने केलिए कुछ विशेष किया जाए तब लॉरिक ने वहां पड़े बहुत बड़े पत्थर को उसी तलवार से , जिससे उसने लड़ाई जीती थी , दो हिस्सों में काट डाला ! तो ये थी लॉरिक और मंजरी यानि लोरिकी के प्यार की कहानी !
 
स्कार्पियो में बैठे बैठे आपको लॉरिक और मंजरी की कहानी सुना दी और अब मैं आ पहुंचा हूँ अदलहाट ! यहीं उतरता हूँ , यहाँ से लखनिया दरी है तो केवल तीन किलोमीटर दूर लेकिन कुछ व्हीकल नहीं मिल पाने का ! गर्मी अलग है तो पैदल चलना भी बहुत मुश्किल होगा ! टैम्पो ले लिया , 200 रूपये लगा और साथ के साथ गाइड का भी काम करेगा ! सौदा बुरा नहीं है ! वैसे अगर आप वाराणसी से बस से आ रहे हैं तो सबसे बढ़िया है स्टेट हाईवे संख्या 5 पर , वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर दूर अदलहाट उतरिये और मेरी तरह ऑटो लीजिए ! लेकिन कोशिश करियेगा कि जब भी जाएँ मानसून के मौसम में जाएँ वर्ना आपको भी मेरी तरह सूखा फॉल देखने को मिलेगा !

पानी की बोतल ले लेता हूँ पता नहीं वहां पानी मिले न मिले ! स्टेट हाईवे संख्या 5 से थोड़ा सा हटकर है , बल्कि ये कहूं कि पहले रास्ता लखनिया दरी से होकर ही जाता था लेकिन जब नया हाईवे बना तो लखनिया दरी अलग हट गया और अब मुख्य रास्ते से थोड़ा दूर है ! ऐसे दो दूकान हैं यहाँ जहां चाय -पानी कोल्ड ड्रिंक मिल जायेगी ! रास्ता लगभग 400 मीटर तक तो पत्थरों को जोड़ जोड़कर बना है और बाइक भी जा सकती है लेकिन कार नहीं जा पायेगी ! इसके बाद बड़े बड़े पत्थरों पर बंदरों की तरह कूद कूद कर आगे जाना होता है ! बहुत बड़े बड़े पत्थर पड़े हैं , लेकिन एक छोटा सा रास्ता और है किनारे किनारे लेकिन वहां भी आपको आखिर में बड़े पत्थरों पर ही चलना होगा !

आज बहुत लम्बी पोस्ट हो गयी , लेकिन क्या कर सकता हूँ ? चलो जी फोटो भी देखते जाओ :


वीर लॉरिक ने जिस पत्थर को अपनी तलवार से काट के दो टुकड़े कर दिए थे ! फोटो मेरी नहीं है ( Veer Lorik cut this stone in two pieces by his sword ) 

वीर लॉरिक ने जिस पत्थर को अपनी तलवार से काट के दो टुकड़े कर दिए थे ! फोटो मेरी नहीं है ( Veer Lorik cut this stone in two pieces by his sword ) 

लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं ( Moving towards Lakhaniya fall )



लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं , डरो मत !  चले आओ पीछे पीछे ( Moving towards Lakhaniya fall , Don't worry .Everything is ok )

लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं , डरो मत चले आओ पीछे पीछे

लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं , डरो मत चले आओ पीछे पीछे

लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं , डरो मत चले आओ पीछे पीछे 
लखनिया फॉल की तरफ बढ़ रहे हैं , डरो मत चले आओ पीछे पीछे


इस रास्ते पर लोग बाइक भी ले जाते हैं कुछ दूर तक ( You can ride Bike here for 300 mtr approx )


प्रकृति की कलाकारियां देखते हुए चलो ( Art of nature )


प्रकृति की कलाकारियां देखते हुए चलो ( Art of nature )


भीम तो उठा लेते इस पत्थर को ?





इसे भी "किन्नर कैलाश " की तरह छोटा शिवलिंग कह दें क्या ?


यहाँ के हम सिकंदर !!

प्रकृति की कलाकारियां देखते हुए चलो





मधुमक्खियों का छत्ता है यार , पत्थर मत मार देना



पहुँच गए लखनिया फॉल ! अरे , ये तो सूखा हुआ है ? 42 डिग्री के टेम्परेचर में आदमी सूखा जा रहा है ये तो फॉल है भाई


पहुँच गए लखनिया फॉल ! अरे , ये तो सूखा हुआ है ? 42 डिग्री के टेम्परेचर में आदमी सूखा जा रहा है ये तो फॉल है भाई

प्रकृति की कलाकारियां देखते हुए चलो

प्रकृति की कलाकारियां देखते हुए चलो






नीचे तो पानी है लेकिन ये पहले से ही जमा है इधर


ये बहुत देर से यहां बैठा था और हमारे बाद भी बैठा रहा ! जरूर प्यार का मारा आशिक होगा



एक फोटो तो अपनी भी बनती है !!



( Art of nature )


मानसून में कुछ ऐसा दीखता होगा ये फॉल ( Lakhaniya Fall in Monsoon)



मानसून में कुछ ऐसा दीखता होगा ये फॉल ( Lakhaniya Fall in Monsoon)


मानसून में कुछ ऐसा दीखता होगा ये फॉल ( Lakhaniya Fall in Monsoon)

 प्रकृति की अपनी "आर्ट " होती है , वो ऐसा कुछ बना देती है जो इंसान के बस का नहीं











ये गरीबी का हाल है ! जब हम इधर से गए तब भी और आये तब भी ये सिर्फ मछलियां निकालने में लगे थे !! ये मूर्खता है या गरीबी ?












भला कोई पुल के भी फोटो देता है ? लेकिन ये पुल आज का नहीं है ये प्रथम पंचवर्षीय योजना (1952 -1956 ) के अंतर्गत 1954 में बना था ! गरई पुल , आज कुछ भी न लगे लेकिन उस वक्त बहुत महत्व का रहा होगा














बहुत देर हो गयी इधर लखनिया फॉल पर ! चलता हूँ , अभी सारनाथ भी जाना है और फिर गंगा आरती भी देखनी है ! आपको समय मिले तो आप भी आ जाना !!