सोमवार, 28 अगस्त 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Budha Madhmaheshwar to Kachhni Dhaar ( Day 3)

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इस ट्रैक को करने में जितना मुश्किल आई उससे ज्यादा मुश्किल लिखने में आ रही है ! क्योंकि आप मेरे मित्र हैं , मेरे शुभचिंतक हैं तो आपके साथ तो मैं अपने दुःख -सुख साझा कर ही सकता हूँ ! आप देखें तो मैंने पिछली पोस्ट 8 अगस्त को लिखी थी और ये आज लिख रहा हूँ मतलब 15-20 दिन का अंतराल ! कहीं गया नहीं था घूमने ! 14 तारीख़ को मेरे जन्मदाता , मेरे पिताजी इस दुनियां से दूसरी दुनियां में चले गए ! स्वर्गवासी हो गए ! बीमार चल रहे थे पिछले तीन महीने से और जब जून में इस ट्रैक पर गया था तब भी उनकी तबियत खराब चल रही थी ! लेकिन मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूँ कि जब पिताश्री अंतिम सांस ले रहे थे , मैं उनके पास था !! एक पुत्र के लिए ये संतोष की बात है !!


पिछली पोस्ट में आपसे मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी बताने का वायदा किया था ! आज अपना ये वायदा पूरा करना चाहूंगा :

मध्यमहेश्वर या मदमहेश्वर मंदिर , गढ़वाल के पंच केदारों में से एक केदार है जो भगवान शिव को समर्पित है ! यह मंदिर पंच केदार में चौथे नंबर पर आता है , पहले नंबर पर विश्वप्रसिद्ध केदार नाथ , दुसरे स्थान पर तुंगनाथ , तीसरे पर रुद्रनाथ और पांचवे नंबर पर कल्पेश्वर मंदिर आता है ! ये जो नंबर दिए गए हैं ये उनकी खूबसूरती या महत्व के अनुसार नहीं हैं बल्कि दर्शन के हिसाब से हैं ! मतलब पहले हमें केदारनाथ जी के दर्शन करने चाहिए , फिर तुंगनाथ जी और रुद्रनाथ जी के तब फिर मध्यमहेश्वर और अंत में कल्पेश्वर मंदिर के ! इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ये मंदिर 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जबकि हमारी अपनी device के अनुसार इस मंदिर की ऊंचाई 3150 मीटर मिली ! जो भी है , आप तय कर लीजिये ! मध्यमहेश्वर के मध्य यानि Middle शब्द का उपयोग ही इसके नाम में होता है , मतलब भगवान शिव के मध्य भाग नाभि (naval ) की पूजा की जाती है इस मंदिर में ! ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को पांडवों ने बनवाया था !

अच्छा , पूरी कहानी सुनना चाहते हैं शायद आप ? चलो जी , जैसी आपकी इच्छा ! तो आइये पूरी कहानी पढ़ते हैं , और हाँ आगे याद रखना इस कहानी को :)


महाभारत का युद्ध तो पता ही है आपको , पांडवों और उनके चचेरे भाई कौरवों के बीच हुआ था जिसमें पांडवों ने कौरवों और उनकी मदद करने वाले ब्राह्मणों को मार दिया था ! क्योंकि पांडवों ने अपने ही लोगों और ब्राह्मणों की हत्या की थी इसलिए उन्हें ब्रह्म हत्या का दोषी माना गया ! आज भले ही कोई ब्राह्मण हत्या कर दे कुछ नहीं होता लेकिन उस युग में ब्रह्म ह्त्या बहुत बड़ा पाप था , तो जी पांडवों ने ब्रह्म हत्या का पाप किया था , इसलिए उनका मोक्ष प्राप्ति का रास्ता मुश्किल था ! इसका तरीका निकाला भगवान श्री कृष्णा ने ! उन्होंने पांडवों को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा लेकिन भगवान शिव पांडवों से कुपित थे और वो पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे इसलिए भगवान शिव ने अपना रूप बदल लिया और नंदी ( Bull ) का शरीर धारण करके गढ़वाल निकल गए ! वैसे ही निकल गए होंगे जैसे आजकल नेता चुनाव के बाद दिखना बंद हो जाते हैं :) ! पांडवों को भगवान शिव का पता चला तो वो भी पीछा करते करते गढ़वाल के क्षेत्र में पहुँच गए और पांडवों ने आखिरकार गुप्तकाशी की पहाड़ियों में नंदी बने भगवान शिव को विचरण करते हुए पहिचान लिया ! भगवान शिव पांडवों से बचकर भागने लगे तो पांडवों ने उनकी पूंछ और टांग पकड़ने की कोशिश की , पांडवों ने मतलब भीम ने ! लेकिन भीम भी शिव को पकड़ नहीं पाया और भगवान शिव जमीन में अदृश्य हो गए और फिर अपने वास्तविक रूप में पांच हिस्सों में प्रकट हुए ! कुबड़ा मतलब Hump केदारनाथ जी में ! भुजाएं मतलब arms तुंगनाथ में ! मुख यानि Face रुद्रनाथ में , नाभि मतलब Naval और उदर मध्यमहेश्वर में और शिव की जटा मतलब Hair कल्पेश्वर में प्रकट हुए ! भगवान शिव के इन पाँचों स्थानों पर पांडवों ने मंदिर स्थापित किये , उनकी पूजा की और अंततः भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्त कर दिया और पांडवों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ ! तो जी ये कहानी है सभी पाँचों केदार की !! इसीलिए आपसे कहा कि इस कहानी को याद रखियेगा !!


अब तक हम बूढ़ा मद्महेश्वर पहुँच चुके हैं और आज काछनी धार तक पहुँचने का लक्ष्य तय किया हुआ है ! अब जो भी आगे की कहानी आएगी वो डायरी से आएगी :
 कल बारिश करीब 6 बजे रुक गई थी लेकिन रात में जबरदस्त बारिश आती रही ! शाम को बारिश के बाद मस्त नज़ारे देखने को मिले ! यहां से चौखम्भा चोटी दिखाई देती है ! बारिश रुकने के बाद बूढ़ा मद्महेश्वर के छोटे से मंदिर में अगरबत्ती जलाने पहुंचे ! यहां कभी -कभी ही अगरबत्ती जलती होगी , आज हम यहां हैं और ये हमारा सौभाग्य है कि हम यहां भगवान की पूजा कर पा रहे हैं ! एक छोटी सी घंटी भी रखी है , बजा दी ! भगवान खुश हो गए होंगे , या हो सकता है गुस्सा हो गए होंगे कि कौन आ गया नींद खराब करने :) बूढ़ा मद्महेश्वर करीब 3400 मीटर की ऊंचाई पर है लेकिन यहां आसपास गाय -भैंस चरते हुए दिख जाते हैं और हरे -हरे बुग्यालों में इनके चरने की फोटो बहुत मस्त लगती है !!

सुबह जगे तो मौसम साफ़ था , हालाँकि धूप नहीं थी ! एक पॉर्टर ने नीचे की तरफ मोनाल बर्ड दिखाई लेकिन जब मैं चुपके -चुपके पीछे की तरफ से फोटो लेने पहुंचा , पता नहीं उसे कैसे आहट आ गई और वो उड़ गई ! बहुत ही सुन्दर और प्यारी बर्ड होती है मोनाल , लेकिन मैं फोटो नहीं ले पाया उसकी ! अफ़सोस !

मैगी खाकर निकल लिए ! चाय का तो मैं कीड़ा हूँ , दो कप खैंची और करीब आठ बजे शुरू हो गए अपनी मंजिल काछनी धार की तरफ ! सबसे पहले मैं ही निकलता हूँ और सबसे आखिर में पहुँचता हूँ ! अमित भाई मुझे पहले निकाल देते हैं और आधा घंटे में ही वो मुझसे आगे निकल जाते हैं , फिर मैं उन्हें सिर्फ अगले destination पर ही मिल पाता हूँ :)


आज हमें बूढ़ा मध्यमहेश्वर से काछनी धार तक का सफर तय करना है करीब 9-10 किलोमीटर और 3400 मीटर की ऊंचाई से 4200 मीटर ऊंचाई तक ! मैं एक बात बता दूँ यहां , ज्यादातर लोग जो ये ट्रैक करते हैं वो काछनी धार आने के लिए मद्महेश्वर से शुरू करते हैं लेकिन हमने बूढ़ा मद्महेश्वर से शुरू किया ! मद्महेश्वर से रास्ता बना हुआ है लेकिन बूढ़ा मद्महेश्वर से या तो आप वापस नीचे आओ या फिर सामने वाली पहाड़ी पर मुश्किल चढ़ाई चढ़कर नया रास्ता बनाओ ! हमने दूसरा रास्ता चुना और बिना किसी रास्ते के पहाड़ के किनारे - किनारे घास पकड़कर करीब 2 -2.5 किलोमीटर चलते रहे ! इस बीच कई जगह ऐसा लगा कि पैर फिसला तो गए एकदम नीचे खाई में और फिर हमारी हड्डियां भी साबुत न मिलें , लेकिन भगवान की कृपा से ऐसा कुछ नहीं हुआ,  सकुशल मद्महेश्वर वाले रास्ते "रिठाना " नाम की जगह पर पहुँच गए ! यहां से भी दूर कहीं मद्महेश्वर मंदिर दिख रहा था !


करीब दो फुट चौड़े रास्ते को जैसे - तैसे वन विभाग वालों ने बनाया हुआ है ! जिस जगह हम ऊपर पहाड़ से आकर इस रास्ते पर आये उससे करीब 10 मीटर आगे ही हेलीकॉप्टर या शायद प्लेन के कुछ टुकड़े पड़े हैं जो आगे भी मिलते हैं ! कोई हेलीकॉप्टर या प्लेन यहां 1990 के आसपास crash हो गया था जिसके टुकड़े इधर -उधर फैले पड़े हैं ! कौन सा हेलीकॉप्टर था या प्लेन था , अगली पोस्ट में बताऊंगा !


रास्ता हालाँकि "मार्क्ड " है लेकिन बहुत कठिन चढ़ाई वाला है ! पैरों की जान निकल रही थी और अभी आधा रास्ता ही तय हुआ था , उस पर चारों तरफ से बादल घिर आये ! भयंकर तेज बारिश होने लगी और मैं अकेला ! इस वक्त मुझे बादल बहुत डरावने लग रहे थे ! मैं चिल्लाने लगा - कोई है क्या ? कोई है क्या ? मुझे डर ये भी था कि मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ या नहीं !! तीन चार बार चिल्लाने पर पीछे कहीं से आवाज़ आई -बारिश हो रही है रुक जाओ ! मैंने बस इतना ही पूछा -
ये काछनी का ही रास्ता है ? हाँ ! ओके ! इतना हौसला बहुत था मेरे लिए ! मैंने समझा वो कोई बकरी वाला है लेकिन बाद में पता चला  कि वो तो अपना ही पॉर्टर दिनेश था :) जो बारिश से बचकर एक गुफा में घुसा पड़ा था !

बारिश से चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा हो गया था ! श्रीकांत और बाकी पॉर्टर एक गुफा में घुसे हुए थे , मैं भी वहीँ पहुँच गया ! आखिर जब करीब 12 बजे बारिश रुकी तो फिर चलना शुरू कर दिया और अंततः तीन बजे के आसपास काछनी धार पहुँच गए ! हमें जहां टैण्ट लगाना था वो जगह खाली नहीं मिली ! वहां पनपतिया ट्रैक से लौट रहा कोई ग्रुप पहले से मौजूद था जिसमें 24 -25 लोग थे ! कोई विदेशी लोग पनपतिया जैसा कठिन ट्रैक करके आ रहे थे ! शायद अगले कुछ सालों में हम भी यहां जाने का प्रयास करें ! इन विदेशियों ने जितनी भी जगह थी , पूरी पर कब्ज़ा किया हुआ था ! आखिर हमें थोड़ा और नीचे करीब आधा किलोमीटर दूर अपने टैण्ट लगाने पड़े ! खाया -पिया ! सो गए !! :) 



कल रात अपना ठिकाना "बूढ़ा मध्यमहेश्वर " में था




अभी इन पहाड़ों की शिशु अवस्था है , दोपहर तक पूरे यौवन में आ जायेंगे
ये जो सामने धार देख रहे हैं ? इसी पर होकर जाना है



प्लेन जो 1990 में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था , उसके पार्ट्स इधर उधर फैले पड़े हैं

अनजान सी मंजिलों की तरफ......





प्रकृति अपने बच्चों का हमेशा स्वागत करती है और बदले में बस इतना चाहती है कि उसकी मर्यादा बनाये रखी जाए


वन विभाग ने ये काम तो बढ़िया किया है , पानी मिल जाता है











                                                                                                         
                                                                                                     ट्रैकिंग आगे जारी रहेगी :

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Nanu Chatti to Budha Madhmaheshwar (Day 2)

If you Want to read this series from the very first post may please click here.


It was a beautiful morning at Nanu Chatti and the views of the Himalayan peaks from this point were amazing and were providing a tender feeling as you look straight to those. After having tea with Parantha in breakfast, we started our next leg journey at about 8:30 AM. Our next point was Budha Madhyamaheshwar after having a darshan of Madhyamaheshwar and offered our prayers. The distance of Madhyamheshwar from Nanu Chatti is about 8 km and the next distance from Madhyamaheshwar to Budha Madhyamaheshwar is about 3km, so we had to trek about 11 km that day.

That day was 19 June -2017 and the previous day was 18 June. It was Champions Trophy’s final match played between India & Pakistan but unfortunately, India lost that match which made us really sad as we are one of the biggest fans of Indian cricket team but the Himalayan peaks views relieved us from that stress.

Nanu Chatti is at 2200 m from MSL , Madhyamaheshwar is at 3150 Mtr while Budha Madhyamaheshwar is at 3400 m, so if you would calculate this height and distance, you would find that we had to reach 1200 m in the distance of 11 kilometers , means almost 100 m / km which is not too tough for a trekker. There is a temporary settlement “Mokamba Chatti” about 2 km ahead from Nanu Chatti. There were one-two shops to eat and yes you could stay there at night at very reasonable prices. These settlements were run by women. Another stay point was after 3 km after this, called as “Kun Chatti”. Here was “Shikhar Prince Hotel” which provided all the basic needs to eat and stay.

It was 11 AM when I reached there at Kun Chatti. After having tea and 20 min rest, I started my trekking again and after about 30 minutes, it was a deep jungle, a thick jungle. I was alone and feeling scared. I was praying to God for a human being to be with me as it was dark all over and you could imagine my mental status state at that time. I was moving fast… very fast… as I wanted to move out as earlier as possible from that thick forest. Luckily I met 2-3 young boys who were coming from the opposite side and when they said –You almost have reached Madhyamaheshwar, I took a sigh of relief. It was about 1:00 PM.

Madhyamheshwar is a temple like Kedarnath but not so much popular as Kedarnath. Madhyamaheshwar is solely dedicated to Lord Shiva and is counted as one of the Five Kedars of Uttarakhand. It looked very beautiful and sacred. After having Darshan in the temple and having Prasad we moved to our that day’s final destination “Budha Madhyamaheshwar “ which was about 3 km from here and was about 250 higher than that point. We were on the way as the drizzling had started. We hurriedly pitched our tents but rain was started pouring heavy. So we got stuck for about 3 hrs in our tents but when the rain was finally over, we were able to see a clear sky and the beautiful views of Himalayan peaks “Chaukhambha” and the “ Mandani Sisters“.

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नानू चट्टी की सुबह खुशबू दे रही थी और सामने की पहाड़ियां श्रृंगार कर अपने यौवन को और भी गहरा रंग दे रही थीं ! चाय -पराठा लेकर साढ़े आठ- नौ बजे निकल चले अगली मंजिल की ओर ! अगली मंजिल मध्यमहेश्वर मंदिर होते हुए बूढा मध्यमहेश्वर पहुँचने की थी ! नानू चट्टी से मध्यमहेश्वर करीब 8 किलोमीटर और फिर वहां से बूढ़ा मध्यमहेश्वर ढाई - तीन किलोमीटर होगा । मतलब आज लगभग 10 किलोमीटर चलना है । ठीक है , चलते हैं ।
मैं जब गाजियाबाद से निकलने को था तो अपने कैमरे को फुल चार्ज करके ले जाना चाहता था लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि कैमरा शार्ट सर्किट हो गया,  मतलब खराब हो गया तो रांसी से भट्ट साब का कैमरा लिया लेकिन उनका कैमरा सोनी का पी & एस कैमरा था जो पावर बैंक से चार्ज नहीं होता । लिमिटेड यूज किया फिर भी तीन दिन में बोल गया :)  इस ट्रैक में मैंने हर रोज़ शाम के समय टैण्ट में पूरे दिन की कहानी लिखी थी , आइये पहले वो पढ़ते हैं :

आज दिनांक 19 जून है और हम सुबह करीब 9 बजे नानू चट्टी से चलना शुरू हुए ! इससे पहले नाश्ता के समय एक बुरी खबर मिली कि कल चैम्पियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया है ! कल ही अंदाजा हो गया था कि हार जायेंगे ! नानू चट्टी में जहां हम रुके थे , वहां एक आदमी के पास फिलिप्स का रेडियो था , उसी पर कमेंटरी सुन रहे थे लेकिन जब भारत के 6 विकेट आउट हो गए तो हम वहां से उठकर चले आये और अपने टैण्ट में आकर घुस गए !

नानू चट्टी 2200 मीटर की ऊंचाई पर है और मद्महेश्वर 3150 मीटर तथा बूढा मध्यमहेश्वर बिल्कुल 3400 मीटर की ऊंचाई पर ! ऐसे देखें तो 1200 मीटर की ऊंचाई चढ़नी है !

सुबह जब चले तो थोड़ी दूर सबके साथ चलता रहा लेकिन , जैसा हमेशा होता है , आखिर में पहुँचते पहुँचते सबसे पीछे हो जाता हूँ ! नानू चट्टी से करीब 2 किलोमीटर आगे मोकाम्बा चट्टी है जहां चाय - खाना -रहना हो जाता है ! एक घर है वहां ! सास - बहू मिलकर सब संभाल लेती हैं ! यहीं अमित भाई और श्रीकांत ने तो दूध लिया लेकिन हम तो हमेशा अपना प्रिय पेय चाय ही पिएंगे :) मोकाम्बा चट्टी से करीब 2  किलोमीटर आगे कुन चट्टी नाम की जगह है जहां शिखर प्रिंस होटल है और यहां भी चाय -खाना -रहना हो जाता है ! अलग अलग रेट लिखे हैं सब चीज के ! चाय -10 रुपया , मैग्गी -30 रूपये और रहना 50 रुपया प्रति व्यक्ति ! कुन चट्टी से मद्महेश्वर 3 किलोमीटर और आगे है और रास्ता पूरा जंगल से है ! मैं नानू चट्टी से सुबह करीब 9 बजे शुरू करके करीब 11 बजे कुन चट्टी पहुँच गया था ! वहां से 11 : 20 बजे फिर चल दिया और करीब एक बजे तक अकेला ही चलता रहा ! न इधर से कोई आया और न उधर से ! इस घने जंगल में सच कहूं तो मुझे डर लगने लगा था लेकिन रास्ता बना हुआ है तो वन्य जीव यहां नहीं होते , होते होंगे तो दिखाई नहीं दिया ! कुछ देर बाद जब ऊपर की तरफ से चार लड़के नीचे आते हुए दिखाई दिए तो मन को हिम्मत और प्रसन्नता दोनों मिले ! उनसे पूछा - अभी मध्यमहेश्वर कितना दूर है ? बोले -बस पांच मिनट ! हालाँकि मुझे दस मिनट लग गए और ठीक एक बजकर 10 मिनट पर मैं भगवान शिव के चरणों में पहुँच चुका था ! मैं मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने खड़े होकर , हाथ जोड़कर अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा था ! अमित भाई और श्रीकांत 12 बजे ही वहां पहुंच गए थे ! मैंने दर्शन किये , पूजा पाठ किया और अपने पिता , परिवार और दोस्तों के लिए प्रार्थना की ! मंदिर अत्यंत ही सुन्दर है !!


मद्महेश्वर मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूर और 250 मीटर और ऊपर बूढ़ा मद्महेश्वर है , वहीँ जाना है हमें लेकिन उससे पहले एक एक हो जाए , समझ गए न क्या हो जाए ? अरे वही चाय यार !! चाय पीकर , बच्चों के साथ बैट- बॉल में हाथ आजमाए लेकिन नालायकों ने बैटिंग नहीं दी , बस फील्डिंग कराते रहे ! ऊँ हूँ , मैं नहीं खेल रहा ! मैं तो जा रहा हूँ बूढ़ा मध्यमहेश्वर ! मौसम साफ़ था लेकिन 100 मीटर चढ़ते चढ़ते बारिश शुरू हो गई जो जल्दी ही बंद हो गई लेकिन कुछ देर बाद फिर से बूंदा बांदी शुरू होने लगी ! हल्की बारिश के बीच ही बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने हाथ जोड़ गया , क्योंकि बादलों का रूप देखकर लग रहा था कि तेज़ बारिश आने की संभावना है ! बूढ़ा मध्यमहेश्वर से थोड़ा आगे जाकर बायीं तरफ मैदान है और हमें वहीँ आज अपना टैण्ट लगाना है ! यहां लोहे के दो पाइप लम्बाई में खड़े करके कुछ चिन्ह बनाया गया है , क्या है ? क्यों है ? नहीं मालूम !!

ठीक चार बजे हमने टैण्ट लगा दिए , लेकिन जैसे ही टैण्ट लगाए , झमाझम बारिश शुरू हो गई जो अब तक जारी है और अभी 5 बजकर 45 मिनट हो रहे हैं ! हम टैण्ट में ही घुसे पड़े हैं ,बाहर निकलने का कोई चांस नजर नहीं आ रहा ! भूख लगी है लेकिन पोर्टर कुछ बना ही नहीं सकता ! एक पारले - ग का बिस्कुट का पैकेट बैग में पड़ा था , मेरे नहीं श्रीकांत के :) , और उसे हम दोनों ने मिलकर उड़ा दिया ! 

थोड़ी देर के लिए जैसे ही बारिश रुकी तो निकल गए बाहर फोटो खींचने के लिए ! यहां से चौखम्बा और मंदानी सिस्टर्स बहुत बढ़िया तो नहीं लेकिन ठीक ठाक दिखाई दे रही थी लेकिन बुग्याल जबरदस्त लगे !! एकदम ग्रीन !! फिर से बारिश !! कब रुकेगी और कब कुछ खाने को मिलेगा !! मैं ये डायरी टैण्ट में पड़ा -पड़ा ही लिख रहा हूँ और बाहर जबरदस्त बारिश हो रही है !!

भगवान मध्यमहेश्वर की कहानी लिखना चाहता हूँ लेकिन आज की पोस्ट बड़ी होती जा रही है इसलिए मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी अगली पोस्ट में लिखूंगा !! रात को 9 बजे के आसपास बारिश रुक गई थी और खाना -वाना खाकर रात को 11 बजे तक आग तापते रहे ! सूखी लकड़ियां खूब मिल जाती हैं और आसपास मवेशी भी खूब चरते हुए दिखा देते हैं !!



बाकी बात अगली पोस्ट में  :

यही द्रश्य मुझे बार बार आकर्षित करते हैं 
  







जय श्री मध्यमहेश्वर 






ये असली फूल नहीं हैं :)



बूढ़ा मध्यमहेश्वर से नीचे की तरफ दिखाई देता मध्यमहेश्वर मंदिर
किसी ने इसे " कोबरा लिली " बताया( Somebody says , It is Cobra Lilly )


बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर ( बारिश शुरू होने लगी थी ) This is Budha Madhyamaheshwar Temple , about 2.5 Km ahead to Madhyamaheshwar Mandir






















 मद्महेश्वर यात्रा का वर्णन दैनिक जागरण समाचार पत्र 25 सितम्बर 2017 को यात्रा एडिशन में पब्लिश हो गया ! लिंक नीचे है

http://epaper.jagran.com/epaper/24-sep-2017-4-Delhi-City-Page-1.html



                                                                                                     ट्रैकिंग आगे जारी रहेगी: