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मानसर एवं सुरिंसर लेक : जम्मू -उधमपुर
Date : 27 June 2022
रेमण्ड के मालिक दूसरे बुजुर्गों की तरह ही लावारिस सडकों पर घूमते देखे गए ! ये बड़ी खबर थी मगर ये एहसास भी दे रही थी कि पैसा ही हमेशा ख़ुशी नहीं देता , इसके साथ और भी चीजों की जरूरत होती है , जैसे शौक ! एक कोई ऐसा शौक बगल में दबाए रखिये जो आपको खुश भी रखे और खाली वक्त में आपके साथ -साथ समय बिता सके। घुमक्कड़ी ऐसा ही एक शौक है ! बनाए रखिये !
मुझे आज तीसरा दिन था जम्मू पहुंचे हुए! अब तक जम्मू के अलग -अलग जगहों के अलावा उधमपुर के क्रिमची मंदिरों तक हो आया था। आज भी उसी रूट पर निकलना था मतलब उधमपुर की ओर मगर आज उधमपुर तक नहीं , सिर्फ मनवाल टाउन तक ही जाना था ! ट्रेन भी वही थी कल वाली , और ट्रेन का समय भी वही था जम्मू से सुबह सात बजकर 55 मिनट का।
मैं आज निकल रहा हूँ मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के लिए। हिमालय की लेक खूब घूमी हैं मैंने अपने अलग -अलग ट्रैक में , आज मैदानी लेक घूम के आते हैं। मानसर लेक तो थोड़ी प्रसिद्ध है मगर सुरिंसर लेक तक बाहर से आये लोग कम ही पहुँचते हैं। हालाँकि दोनों की दूरियों में बहुत अंतर् नहीं है मगर सुरिंसर लेक पर्यटकों के दिल में अपनी उतनी जगह नहीं बना पाई जितनी मानसर लेक की है।
मानसर लेक जम्मू से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है जिसकी लम्बाई करीब 1.5 किलोमीटर और चौड़ाई 0.84 किलोमीटर है। पहले मैं मनवाल स्टेशन पहुँच गया और स्टेशन से टेम्पो से मनवाल टाउन के बस स्टैंड पर। यहाँ से मानसर लेक के लिए सीधे बस मिल जाती हैं और मुश्किल से 40 -45 मिनट ही लगे मानसर लेक तक पहुँचने में।
पहले कुछ चाय-पानी कर लें फिर चलते हैं मानसर के लिए ! रोड के किनारे पर रोड से थोड़ा नीचे हटकर दुकानें हैं और दुकानों के पीछे ही है मानसर लेक !
मान्यता :
मानसर लेक को महाभारत के साथ जोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ अर्जुन और उलूपी के पुत्र बब्रुवाहन का राज हुआ करता था और जब अर्जुन ने अश्वमेध यज्ञ के लिए अपना घोड़ा छोड़ा तो उस घोड़े को बब्रुवाहन ने पकड़ लिया। जिस जगह पर बब्रुवाहन ने अर्जुन के घोड़े को पकड़ा था वो जगह खूं गाँव है , जो कि धार , उधमपुर के पास है। आप लोगों को ये पता होगा कि अर्जुन और उनके पुत्र बब्रुवाहन के बीच में युद्ध हुआ और अपनी माँ से किये वायदे को पूरा करने के लिए बब्रुवाहन ने अर्जुन को मार दिया। मगर जब बब्रुवाहन को पता चला कि अर्जुन ही उनके पिता थे तब बब्रुवाहन ने उनको पुनः जीवित करने के लिए शेषनाग से मणि लाने के लिए अपने बाण से सुरंग बना दी जिसको -सुरंगसर नाम दिया गया और इस सुरंग के दूसरे छोर से वो मणि लेकर वापस आए। जिस छोर से वो निकले थे उस छोर को ही मानसर लेक कहा जाता है।
इस लेक के एक किनारे पर मंदिर हैं और बाकी में आप बोटिंग कर सकते हैं। हालाँकि मैं जब वहां पहुंचा तो कोई भी न तो टूरिस्ट था न बोट चलाने वाला कोई था। संभव है जून का महीना था इसलिए गर्मी की वजह से लोग न आये हों मगर हाँ , बजट कई सारी कड़ी थीं और अच्छी हालात में थीं इसलिए माना जा सकता है कि यहाँ बोटिंग होती होगी।
मगर जितना इस लेक का नाम सुना था उस स्तर पर ये बिलकुल नहीं उतरती। किनारे एकदम गंदे पड़े हैं और लेक के चारों तरफ के रास्ते टूटे पड़े हैं। मैं Specially इस लेक को देखने जाने के लिए आपसे बिलकुल नहीं कहूंगा मगर हाँ , अगर आप जम्मू गए हैं तो थोड़ा समय निकालकर यहाँ जा सकते हैं।
जितना देखना था इस लेक को देख लिया और अब यहाँ से 15 किलोमीटर दूर एक और लेक के लिए निकलना था। अब यहाँ तक आ ही गया था तो सुरिंसर लेक को भी देख लिया जाए। वापस रोड पर आ गया और किसी बस /जीप का इंतज़ार करने लगा मगर आधा घण्टा इंतज़ार करने में गुजर गया। यहाँ अलग -अलग जगहों की यहां से दूरियां बताने वाला एक बोर्ड लगा था जिसमें पटनीटॉप का भी नाम था। मगर पटनीटॉप का मुझे कोई अट्रैक्शन कभी नहीं रहा इसलिए उधर जाने का या सोचने का मन नहीं था।
एक मर्सिडीज ट्रक आ गया ! हाथ दिया तो रुक गया और मैं जा बैठा उसमें। आज पहली बार मर्सिडीज के ट्रक में बैठने का मौका मिला था। ज्यादा बड़ा और ज्यादा आरामदायक लगा ! थोड़ी देर भाई से स्टीयरिंग भी संभाली जहाँ रोड एकदम सीधा था वहीँ पर। आधा घंटा भी नहीं लगा होगा सुरिंसर लेक पहुँचने में। ट्रक से उतर के पहले मैंने और ड्राइवर भाई ने एक -एक कोल्डड्रिंक से गला तर किया। उसके बाद वो भाई कहीं आगे निकल गए और मैं निकल गया सुरिंसर लेक देखने के लिए।
सुरिंसर लेक ,मानसर की टविन लेक बताई जाती है मगर उससे छोटी , ज्यादा गन्दी और कम प्रसिद्ध है। अगर आप जम्मू से एक शार्ट रूट पकड़ेंगे तो पहले सुरिंसर लेक आती है फिर मानसर लेक। सुरिंसर लेक के पास से ही ये रास्ता गुजरता हुआ दिखाई देता है। हाँ ,यहाँ मुझे बहुत सारी मछलियां जरूर दिखाई दीं और उनको देख -देखकर ही मन लगाता रहा।
अब वापस लौटने का समय आ पहुंचा है। वापस उसी रास्ते से मनवाल पहुँचता हूँ जहां से आया था मगर मनवाल से आते हुए एक गजब का बोर्ड दिखा था ,मन वहीँ अटका हुआ था। लौटते हुए इन बोर्ड को स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए मैंने खिड़की वाली सीट हथिया ली। और जैसे ही वो बॉर्ड दिखाई दिए , मैं चिल्लाया ! रोकियो भाई ...उतार दो मुझे यहीं ! अब आगे की बात अगली पोस्ट में करेंगे। ...