कल शाम हम राजखरक से करीब दो किलोमीटर पहले ही रुक गए थे , अब आगे निकलते हैं ! आज 7 सितम्बर है और 2021 वां वर्ष चल रहा है।
आज सुबह का स्वागत बारिश ने किया हमारा और हम टैण्ट में पड़े -पड़े इसके खत्म होने के इंतज़ार करते रहे। दस बजे के आसपास बारिश बंद हुई तो नाश्ता -पानी लेकर करीब पौने बारह बजे अपने बैग कंधे पर उठाये और अगली मंजिल की तरफ पांवों को बढ़ने दिया। रास्ता एकदम स्पष्ट है और यहाँ अब आपको Treeline नहीं मिलेगी। छोटी -छोटी झाड़ियाँ नजर आएँगी। करीब आधा घण्टा चलने के बाद एक खड़ा -पीला पत्थर दिखाई देगा। ये एकदम हेमकुण्ड का Back है लेकिन यहाँ से हेमकुण्ड जाने का कोई रास्ता नहीं है , इसलिए कोशिश भी मत करियेगा उधर निकलने की। हिमालय में खो सकते हैं इसलिए यहाँ खो -खो मत खेलिए और बने हुए रास्तों पर चलते जाइये। अगर रास्ता नहीं मिल रहा तो अपने मित्रों का इंतज़ार करिये , गाइड का इंतज़ार करिये अन्यथा जहाँ आप भूगोल नापने आये हैं , आप इतिहास बन जाएंगे।
राजखरक एक मैदान सा है जिसके निचले भाग में काकभुशुण्डि नदी अपने हल्के हल्के वेग में शांत रूप में बहती हुई मिलती है और ऊपर एक मंदिर में लगी हुई झण्डी भी लहराती हुई दिखेगी। वन विभाग ने पत्थरों को जोड़कर बेहतरीन रास्ता बनाया है यहाँ। हाँ , बीच में छोटी -छोटी जलधाराएं मिलती रहेंगी लेकिन आसान है इन्हें क्रॉस करना।।। इसलिए अभी तक तो एकदम मजा आ रहा है चलते -चलते। बाएं हाथ पर हेमकुंड साहिब के बैक वाले पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ एकदम हरियाली से लबालब पर्वत श्रृंखला जिनके नीचे काकभुशुण्डि नदी बह रही है।
राजखडक़ पार करते -करते डेढ़ बज गया। जैसे ही इसे पार किया सामने एक ऐसी जगह आई जो एकदम सफ़ेद है , बर्फ से नहीं , पहाड़ी कंक्रीट और बजरी से। इसपर कई तरफ से जलधाराएं बहकर आई हुई दिखती हैं जिससे ऐसा लगता है जैसे गाड़ियां ऊपर की तरफ गई हों और उनके पहियों के निशान यहाँ बन गए हों , लेकिन नहीं ! ये डांग खड़क है शायद ! हमें इस रास्ते पर ऊपर की तरफ नहीं जाना बल्कि राजखड़क खत्म होने के बाद जो जलधारा दिख रही है उसे पार कर के इस जलधारा के बहाव के साथ ही चलना होगा थोड़ी दूर तक। मैं फिर से लिख रहा हूँ इस बात को -राजखडक तक हम काकभुशुण्डि नदी के प्रवाह के विपरीत चलते हैं और फिर इस नदी को क्रॉस कर के कुछ दूर तक इसके प्रवाह के साथ -साथ चलते हैं तब तक , जब तक कि ये नदी राजखरक के पास से Turn नहीं लेती और जहाँ से नदी राजखडक और सिमरटोली की तरफ मुड़ती है , वहां से हमें ऊपर की तरफ चढ़ते जाना है।
यहाँ से ऊपर की तरफ जब आप चलते जाते हैं तो नदी में गिरती हुई एक भयंकर जलधारा मिलेगी। ये जलधारा ही वास्तव में काकभुशुण्डि नदी है जो नीचे की तरफ बह रही है और नीचे जाकर राजखडक के पास , डांग खड़क से निकली जलधारा इसमें आकर मिल जाती है। वही जलधारा जिसे हम अभी क्रॉस करके आये हैं। यहाँ काकभुशुण्डि का वेग और इसके गिरने की आवाज भयंकर हैं और दिलों में खौफ ला देती हैं। हम पांच लोग इसके किनारे पर खड़े हैं ये सोचने के लिए कि ये जलधारा हमें पार तो नहीं करनी ? ऊपर कुछ दूर हमारे और मित्र बैठे हैं लेकिन उनकी नजर अभी तक हमारे ऊपर नहीं पड़ी है। पीछे से गाइड और कुछ पॉर्टर आ गए हैं और उनके निर्देशानुसार हमें इस जलधारा को पार नहीं करना है। इसी किनारे ऊपर की ओर चढते जाना है। कठिन चढ़ाई है लेकिन रिस्क नहीं है इसलिए फोटोग्राफी करते -करते आराम से चलते जा रहे हैं। इसके चक्कर में गाइड और हमसे पहले ऊपर की पहाड़ी पर पहुंचे मित्र अब हमारी आँखों से ओझल हो गए हैं , लेकिन चिंता वाली कोई बात नहीं। रास्ता नहीं है लेकिन दाएं हाथ पर वही जलधारा है और बाएं हाथ पर पहाड़ी है इसलिए रास्ता यही है।
कुछ बड़े प्यारे और रंग -बिरंगे फूल दिख रहे हैं बीच बीच में और भेड़ -बकरियों का मल भी दिख जाता है कहीं -कहीं। इसका मतलब गडरिये अपनी भेड़ -बकरियों को यहाँ तक ले आते हैं चराने के लिए और इस बात से ये भी प्रमाणित होता है कि हम सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। अब ये नदी रुपी जलधारा को पार करना होगा लेकिन अब इसे पार करना थोड़ा आसान होगा क्यूंकि चौड़ाई कम हो गई है हालाँकि वेग भयंकर है। गाइड और दो पॉर्टर सामने खड़े हैं -जैसे ही कुछ ऊंच नीच होती है तो तुरंत हाथ पकड़ के खींचा जा सके। मैं सुरक्षित क्रॉस कर गया लेकिन जूतों में पानी पहुँच गया है और आप जानते हैं , ऐसी जलधाराओं का पानी बर्फ से भी ज्यादा ठण्डा लगता है। अब तक मौसम भी अच्छा है और सब सुरक्षित एवं स्वस्थ हैं। सब इस जलधारा को क्रॉस कर के आराम फरमा रहे हैं।
अभी तीन के आसपास का समय हुआ है। काकभुशुण्डि नदी जलधारा को क्रॉस कर के नीचे उतर गए हैं। हम आगे बढ़ने लगे तो कोहरा चढ़ आया इसलिए शॉर्टकट लेने का विचार छोड़ दिया। ये शॉर्टकट वास्तव में ही शॉर्टकट नहीं बल्कि धार के नीचे से एक रास्ता था लेकिन कोहरा जैसे ही आया , हमारे गाइड ने शॉर्टकट लेने से मना कर के धार पर चलने का निर्णय लिया। धार एकदम पतली थी और जितना आगे बढ़ते , आगे उतना ही और नजर आने लगती और ऊँची। जैसे -जैसे आगे बढ़ते ये धार और खतरनाक , और ऊँची नजर आने लगती। एक जगह हमें केवल एक ही पैर आगे रखने की जगह मिल पाई जिसने हमें अंदर तक हिला दिया। अच्छा था कि हवा नहीं थी , बारिश नहीं थी लेकिन कोहरे की वजह से पांच -छह मीटर से ज्यादा का रास्ता नहीं दिख पा रहा था। हमारे मित्र जो आगे निकल के आगे खड़े थे , वो दूर से बस ऐसे दिख रहे थे जैसे कोई हिलती -डुलती आकृति पहाड़ पर नजर आ रहे थे।
थोड़ी देर के लिए कोहरा छटा तो धार के ऊपर से "मछली ताल " की एक झलक दिखाई दे गई। हम उस वक्त करीब 4270 मीटर की ऊंचाई पर चल रहे थे और हम से लगभग 90 -100 मीटर नीचे हरे रंग के पानी वाला मछली ताल कुछ पल के लिए नजर आया लेकिन फिर से कोहरा आ गया और ताल छुप गया। हम आगे चलते गए ..
अभी हमें आगे बढ़ते जाना था। इसी धार पर जब और आगे बढ़े तो नीचे उतर के एक ग्लेशियर के किनारे -किनारे चलकर सामने वाली पहाड़ी पर पहुंचना था। अब कोहरा छंट गया था लेकिन मछली ताल नजर नहीं आ पाया। लोकेशन बदल रही थी और नज़ारे भी बदल रहे थे। इस पहाड़ी पर गोल -गोल चलते हुए इसकी परिधि नाप कर एक वॉटर स्ट्रीम को पार कर के जैसे ही ऊपर पहुंचे , एक बेहद सुन्दर जगह हमारा इंतज़ार कर रही थी जहाँ से मछली ताल एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था।
मछली ताल बहुत ही खूबसूरत जगह है। हालांकि रुकने के लिए ज्यादा जगह नहीं है लेकिन फिर भी जितना मुझे अंदाजा लगा , उसके हिसाब से दस टैण्ट लगाए जा सकते हैं। हमारे भी सात टैण्ट आराम से लग गए थे और दो -तीन टैण्ट की जगह और दिखाई दे रही थी। भयंकर ठण्ड थी यहाँ और ठण्ड होनी भी चाहिए थी क्योंकि ये जगह लगभग 4500 मीटर की ऊंचाई पर है। थोड़ी देर के लिए सूरज निकला तो पहाड़ों की चोटियां चांदी के जैसी चमक उठीं लेकिन बस कुछ पल के लिए ही। शायद ये हाथी पर्वत ही रहा होगा लेकिन पूरा नहीं दिखा इसलिए सिर्फ अंदाजा ही है। लेकिन आसपास का जो नजारा था वो बहुत ही सुन्दर , बहुत ही आकर्षक था। शायद अब तक के तीन दिनों में मिला सबसे सुन्दर स्थान। कुछ लोग पहले यहाँ कभी रुके होंगे क्यूंकि यहाँ अधजली कुछ लकड़ियां पड़ी थीं।
अभी किचन टैण्ट तैयार हो रहा था , पंकज भाई इधर -उधर Explore कर रहे थे और मैं जूते निकाल रहा था। चप्पल पहने ही थे कि पंकज भाई थोड़ा ऊपर से आवाज लगाने लगे -योगी भाई ! आओ , आपको ब्रह्मकमल दिखाता हूँ! मैंने अभी तक किसी ट्रेक में ब्रह्मकमल नहीं देखे , या आप कह सकते हैं मुझे देखने को नहीं मिले ! मैं एक तरह से दौड़ लिया ब्रह्मकमल देखने को ! पहली बार देखने को और फिर तो उसे छूकर देखा , इधर से देखा , उधर से देखा , नीचे से देखा , ऊपर से देखा ! एंगल बदल -बदल के देखा !
ब्रह्मकमल का अर्थ ही है 'ब्रह्मा का कमल' कहते हैं और उनके नाम ही इसका नाम रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि केवल भग्यशाली लोग ही इस फूल को खिलते हुए देख पाते हैं और जो ऐसा देख लेता है, उसे सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। फूल को खिलने में 2 घंटे का समय लगता है। फूल मानसून के मध्य के महीनों के दौरान खिलता है। मैंने और पंकज भाई ने मन बनाया था कि हम मध्यरात्रि में इसे खिलता हुआ देखेंगे लेकिन रात की ठण्ड और दिन भर की थकान ने कभी इतनी रात को टैण्ट से बाहर निकलने ही नहीं दिया।
उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प माना जाता है ब्रह्मकमल जिसका अंग्रेजी नाम Saussurea obvallata है और ये करीब 3500 से 4800 मीटर की हिमालय की ऊंचाइयों में देखने को मिलेगा। इसके अंदर काले -काले से बीज होते हैं और खुशबु बहुत अच्छी तो नहीं कहूंगा लेकिन विचित्र सी , कुछ अलग सी होती है लेकिन हाँ ! देखने में बहुत ही आकर्षक और सुन्दर लगता है। एक फुट की ऊंचाई के इसके पौधे में नीचे हल्के हरे / नीले रंग का गोल तना होता है और ऊपर ब्रह्मकल पुष्प खिलता है। ब्रह्मकमल पुष्प का ऊपरी भाग थोड़ा Purple रंग का और बाकी हिस्सा Yellowish -Green होता है। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि ये जुलाई से सितम्बर मध्य तक ही देखने को मिलता है और हिमालय के / उत्तराखंड के हर ट्रेक में नहीं मिलता।
आज हमारे पास थोड़ा समय था और मौसम भी एकदम साफ़ था हालाँकि ठण्ड भी भयानक थी और दूर पहाड़ियों पर कोहरा दिख रहा था लेकिन यहाँ मछली ताल के ऊपर सब एकदम मंगलमय था। खूब फोटोग्राफी की , खूब मस्ती की और एक -एक गिलास वेजिटेबल सूप ने शरीर को एक तरह से नई ऊर्जा दे दी तो फिर से आसपास की जगहों को एक्स्प्लोर करने लगे!
आज हरजिंदर भाई ने मुझसे पहली बार Diamox की टेबलेट मांगी है और उनका स्वास्थ्य भी बहुत बेहतर नहीं दिख रहा। वो मेरे साथ आदि कैलाश के ट्रेक में भी थे इसलिए उन्हें बहुत बेहतर जानता भी हूँ और पहचानता भी हूँ। वो एक बेहतरीन ट्रेक्कर हैं , बहुत शानदार चलने वाले और अगर उनको परेशानी हुई है तो आप काकभुशुण्डि ट्रैक की कठिनाई को और बेहतर समझ पाएंगे। आज कुलवंत भाई ने जबरदस्त फोटोग्राफी की है और इस जगह की खूबसूरती को दिखाने में अपनी पूरी मेहनत लगा दी है। आठ बज गए हैं , हमने खाना खा लिया है जबकि हनुमान जी और त्रिपाठी जी दूध और कुछ ड्राई फ्रूट्स खाकर सो गए हैं। मैं , सुशील भाई और डॉक्टर अजय त्यागी जी गप्प लगाते -लगाते अंततः दस बजे के आसपास अपने -अपने स्लीपिंग बैग में मुंह घुसाए सो गए हैं।
कल मिलते हैं फिर से ..