सोमवार, 30 दिसंबर 2013

द्रोण सिटी ............. दनकौर

महाभारत काल की कथा सबको पता है कि जब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर विद्या सिखाने के लिए मना कर दिया तब एकलव्य ने गुरु द्रोण की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसके समक्ष ही , उस प्रतिमा को साक्षात् गुरु मानकर तीर चलाने की शिक्षा ली ! पिछले दिनों मुझे उसी गुरु द्रोण की नगरी दनकौर जाने का अवसर प्राप्त हुआ ! शनिवार और रविवार दो दिन की कॉलेज की छुट्टी थी तो सोचा मौसम भी अच्छा है , देख कर आया जाए !

दनकौर बहुत छोटा सा क़स्बा है ! दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर और ग्रेटर नॉएडा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा ये क़स्बा आम भारतीय कस्बों जैसा ही शांत दीखता है ! ग्रेटर नॉएडा और नॉएडा उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जनपद में आते हैं और दनकौर भी इसी जनपद में है ! जाने के लिए आप ग्रेटर नॉएडा के परी चौक से कासना होते हुए जा सकते हैं या फिर अगर अपना व्हीकल है तो आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रेसवे से  जाना ज्यादा बेहतर है । एक्सप्रेसवे से गलगोटिया यूनिवर्सिटी के सामने से कट लीजिये और बस कुछ ही दूर दनकौर पहुँच जाइये । दनकौर ऐसा स्थान है जहां आप 2 घंटे में ही पूरा क़स्बा आराम से देख लेंगे ।

असल में ये द्रोण सिटी नहीं है , यहाँ एकलव्य ने मूर्ती की स्थापना करके गुरु द्रोण को साक्षात् मानकर धनुर विद्या सीखी थी इसलिए मुझे लगता है इसका नाम एकलव्य सिटी होना चाहिए था लेकिन द्रोण सिटी ही कहते हैं ! इस कसबे को पर्यटन स्थल बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे श्री  पंकज कौशिक कहते हैं कि असल में जब एकलव्य यहाँ शिक्षारत था तब एक बार गुरु द्रोण अपने शिष्यों के साथ इधर से निकल रहे थे , उनके रास्ते में एक कुत्ता उन पर भौंक रहा था ।  एकलव्य वहीँ कहीं जंगल में था ,  वो गुरु द्रोण को पहिचानता था , उसे ये देखकर बहुत गुस्सा आया कि एक कुत्ता उसके गुरु पर भौंक रहा है तो उसने अपने बाणों से उस कुत्ते का मुंह भर दिया जिससे उस कुत्ते का मुंह खुला का खुला रह गया । इसी मान्यता को सिद्ध करता हुआ एक गाँव भी है पास में जिसका नाम है मुँहफाड़ । उसी घटना के बाद गुरु द्रोण को एकलव्य और उसकी धनुर विद्द्या के विषय में पता चला ।

दनकौर में गुरु द्रोण को समर्पित एक खूबसूरत मंदिर है जहां गुरु द्रोणाचार्य की वो मूर्ति भी है जो एकलव्य ने बनाई थी लेकिन ये मूर्ति मिट्टी की नहीं पत्थर की है ! मंदिर परिसर में ही एकलव्य पार्क भी है जो रखरखाव की उपेक्षा झेल रहा है । हालाँकि उसके दरवाजे बंद रहते  हैं लेकिन फिर भी एक कोशिश करी कि कुछ फ़ोटो ले लिए जाएँ ! मेरे साथ मेरा साथी राजेश रमन भी था और मेरा स्टूडेंट कुशाग्र कौशिक भी था । कुशाग्र दनकौर का ही है इसलिए उसे पहले ही सूचित कर दिया था जिससे वो हमारी कुछ मदद कर सके और उसने सच में पूरी मदद करी । धन्यवाद कुशाग्र
दनकौर में एक पीर बाबा की मज़ार है , जैसा कि कुशाग्र ने बताया कि उर्स के समय यहाँ बाहर के देशों तक से भी जायरीन आते हैं और जो मन्नत इस पीर पर मांगी जाती है पूरी होती है । मेरी कोई मन्नत ही नहीं है तो क्या मांगता ? खैर ! अगर आप दिल्ली या आस पास से हैं तो कुछ घंटे का सफ़र तय करके यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है ! और अगर आपके पास समय है तो थोड़ी ही दूर यानि करीब 10 -12 किलोमीटर की दूरी पर रावण के पिता द्वारा स्थापित शिवलिंग भी है जहां एक मंदिर भी है ! इस गाँव का नाम बिसरख है !



आइये फोटो देखते हैं :



एकलव्य द्वारा बनाई गयी गुरु द्रोण की मूर्ति

गुरु द्रोण की मूर्ति 

गुरु द्रोण की आरती

गुरु द्रोण का मंदिर

मंदिर परिसर में लगी एकलव्य की प्रतिमा




ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी


बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव मंदिर

बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव लिंग





दनकौर में स्थित एक सुन्दर मजार

       







            

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

पौढ़ी पौढ़ी चढ़ता जा , जय माता दी कहता जा

हमेशा से मन में एक बात लेकर बैठा था कि अपने ट्रेवलिंग ब्लॉग कि शुरुआत किसी धार्मिक स्थान के यात्रा विवरण से करूँगा ! ये बात हकीकत में साकार हुई नवम्बर महीने की 10 तारीख को ! माता वैष्णो देवी के दर्शन के रूप में ! 9 नवम्बर की रात को 11 बजे गाजियाबाद स्टेशन पहुँच गया था अपने पूरे परिवार और मितगणों के साथ ! 12 बजकर २० मिनट पर जम्मू स्पेशल ट्रैन में आरक्षण था ! ट्रैन लगभग सही समय पर गाजियाबाद आ पहुंची ! लेट होने का सवाल इसलिए नहीं था क्यूंकि ये ट्रैन आनंद विहार से ही खुलती है जो ज्यादा दूर नहीं है गाजियाबाद से ! अगले दिन की सुबह हो चली थी और सभी लोग पेट भरके खाना खाकर आये थे लेकिन न जाने क्यों सबको ट्रैन में बैठते ही भूख लग गयी और परांठे खोल लिए , मैंने भी ! किसी ने पूड़ी भी निकल रखी थी ! बढ़िया तरह से पेट भर गया कहा जाए कि ओवर लोड हो गया ! सब अपनी अपनी सीट पर फ़ैल गए ! और फिर लुधियाना में जाकर ही आँख खुली ! लुधियाना में चाय -नाश्ता लेकर मेरा ठिकाना तो टॉयलेट के पास वाला दरवाजा बन गया और मैं पंजाब देखते हुए जम्मू कश्मीर में प्रवेश कर गया ! रावी नदी लगभग सूखी पड़ी हुई थी ,जहां तक मुझे याद है रावी से ही जम्मू कश्मीर शुरू होता है ! बहुत खूबसूरत लगता है पंजाब और कश्मीर ! लहलहाते खेत हों या खेतों कि जुताई करते ट्रेक्टर ! मेरे देश की जान हैं ये ! बहुत खूबसूरत ! फिल्लौर ,पंजाब से निकलकर ये ट्रेन मुझे लगता है एकदम बैलगाड़ी बन जाती है ! इसीलिए जहां हमें दोपहर को 12 बजे तक जम्मू पहुँच जाना चाहिए था इसे वहाँ पहुँचने में लगभग 3 बज गए , यानि तीन घंटे लेट !

 

विचार ये था कि पहले जम्मू के दर्शनीय स्थलों को देखा जाए लेकिन प्रभात ने कहा कि भैया लौटकर देखेंगे और मेरी पत्नी लाता ने भी उसकी हाँ में हाँ मिला दी तो जाहिर है मैं अकेला क्या कर सकता था ! हालाँकि हैम बाद में भी उन जगहों को नहीं देख पाये ! जम्मू रेलवे स्टेशन से निकलकर थोडा नीचे ही कटरा जाने वाली बस और टैक्सी उपलब्ध रहती हैं ! वहाँ से 75 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से बस में बैठे और करीब सवा दो घंटे में कटरा पहुँच गए ! बस जम्मू से कटरा के रास्ते में एक जगह चाय नाश्ते के लिए जरुर रूकती है ! जम्मू रेलवे स्टेशन से निकलकर जब हैम प्लान बना रहे थे तब एक बढ़िया सी घटना पेश आई ! हमारे साथ ग्रुप लीडर के रूप में चल रहे शर्मा जी हालाँकि पुलिस में नहीं हैं लेकिन पुलिस मैन जैसे कद काठी और रुतबा रखते हैं ! जब उनकी बेटी और मेरी पत्नी ने कहा कि उन्हें शौच जाना है तो वो जगह कि तलाश होने लगी सार्वजनिक शौचालय देखा गया , वो 7-7 रुपये मांग रहा था ! शर्मा जी उसके पास गए और उससे बोले कि अगर तू खाली शौच करके दिखा दे (अगर पेशाब न करे ) तो मैं तुझे पचास रुपये दूंगा ! वो बेचारा घबरा गया और मुफ्त में सब कुछ करने दिया ! हहहआआआ ! अपना अपना रुतबा ,अपनी अपनी सोच !

 

कटरा में तीन परिवारों को तीन अलग अलग कमरे लेने थे ! होटल वाले से बात हुई , 600 रुपये का एक कमरा ! गर्म पानी की सुविधा ! सामान रखने की सुविधा ! बढ़िया था लेकिन शर्मा जी ने पता नहीं क्या तरकीब बिठाई कि वो 600 रूपये वाला कमरा हमें 400 रुपये में ही मिल गया और एक एक कप चाय उसके साथ मुफ्त ! शर्मा जी जुगाड़ू तो हैं ! लेकिन ये याद रखिये कटरा में मोल भाव बहुत काम आता है ! होटल में अपना सामान रखकर खाना खाकर बस फ़ैल गए अपने अपने बिस्तर में ! ठण्ड बहुत ज्यादा तो नहीं थी लेकिन थी ! कम्बल के लायक ही ! अगली सुबह माता अर्धकुंवारी के दर्शन की योजना बनी और सुबह ही सुबह चढ़ाई चढ़ने की योजना बनी ! काउंटर पर पहुंचे ! पहले सुना था कि एक ग्रुप में 50 लोगों को भेजते हैं और कोई एक ही व्यक्ति वहाँ जाकर पर्ची बनवा लेता था लेकिन इस बार तीन वर्ष से ऊपर के हर व्यक्ति का अलग से टिकट बन रहा था और उसे व्यक्तिगत रूप से वहाँ होना होता था क्यूंकि उसकी फ़ोटो ली जाती थी ! ये जानकारी शायद आपके काम आये ! हाँ अर्धकुंवारी पर अभी वाही चल रहा है कि एक ग्रुप में वो 50 लोगों को भेजते हैं ! शर्मा जी अर्धकंवरी पर जल्दी पहुँच गए थे इसलिए उन्होंने करीब १०:३० बजे अपना नंबर लगा दिया था ! बाकी लोग देर से पहुंचे और सबसे बाद में मैं पहुंचा क्योंकि मेरे साथ दो छोटे छोटे ( ५साल और ३ साल ) बच्चे थे ! अर्धकुंवारी पर भीड़ भाड़ बहुत थी लेकिन ठण्ड का नामोनिशान नहीं था ! वही नवम्बर वाली सर्दी ! वहाँ सरकारी खान पान सेवा केंद्र है , चाय 5 रुपये की खूब सारी मिल जाती है ! बाहर 8 या 10 रुपये की मिलती है और वो भी बहुत कम ! लेकिन खाने में थोड़ी समस्या है ! सरकारी यानि श्री माता वैष्णो श्राइन बोर्ड के खान पान केंद्र में कढ़ी चावल , राजमा चावल या बड़ी बड़ी पूड़ी ही मिल पाती हैं ! दूध मिल जाता है जिससे बच्चों का काम चल जाता है ! बाहर पकोड़ी , समोसे , चाउमिन वगैरह मिल जाती है ! जेब में दाम चाहिए सब मिल जाता है लेकिन थोडा सा महंगा ! जैसे 10 रुपये की फ्रूटी 20 रुपये में मिलती है ! कोई नहीं, इतना तो बनता है ! हमें यानि हमारे ग्रुप को 126 वाँ नंबर मिला अर्धकुंवारी के दर्शन के लिए, लेकिन 4 बजे जैसे ही 120 वें ग्रुप का नम्बार आया ,दर्शन रोक दिए गए ! 4 बजे से साढ़े सात बजे तक दर्शन रोक दिए गए , बताया गया आरती का समय है ! आखिर हमें 8 बजे प्रवेश मिला और करीब 10 बजे के आसपास दर्शन हुए ! दर्शन , मतलब एक छोटी सी गुफा में से पार निकलना होता है ! बताया गया कि ये गुफा ही पवित्र स्थान है ! कहानी नहीं लिखूंगा ! दर्शन पश्चात खाना खाकर सीधे भवन की ओर प्रस्थान करने की योजना बनी और रात में करीब 11 बजे भवन (माता वैष्णो देवी के स्थल को भवन कहते हैं ) की ओर प्रस्थान कर दिया ! बच्चों ने पूरा साथ दिया ! पैदल पैदल चलते रहे ! हालाँकि घोड़े -खच्चर और पिट्ठू उपलब्ध थे किन्तु मान्यता के अनुरूर पैदल ही यात्रा करना आवश्यक था ! अब बैटरी वाली गाड़ियां भी उपलब्ध हैं अर्धकुंवारी से भवन तक ! लेकिन कटरा से अर्धकामवारी की चढ़ाई जितना कठिन है उसकी तुलना में अर्धकुंवारी से भवन तक की चढ़ाई कम , आसान और सरल है ! दो घंटे भी नहीं लगे होंगे हमें भवन तक जाने में ! 1 बज रहा होगा , कम्बल मिलना मुश्किल था ! लेकिन शर्मा जी ने सब जुगाड़ कर दिया ! पहले ही कह चूका हूँ बहुत केयरिंग और जुगाड़ू हैं वो ! 

 

अर्धकुंवारी और भवन पर जितना चाहो आप कम्बल ले सकते हैं बस आपको वहाँ 100 रूपये प्रति कम्बल के हिसाब से पैसा जमा करना होता है जो सुबह कम्बल वापिस करने के साथ ही वापिस मिल जाता है ! अच्छी सुविधा है ! भवन पर ही सोने की बढ़िया जगह मिल गयी ! निश्चित हुआ कि सुबह नहा धोकर दर्शन करेंगे ! हाँ ! वैष्णो देवी के भवन पर भी श्राइन बोर्ड वालों ने खाने पीने की बढ़िया सुविधा करी हुई है ! 24 घंटे की सुविधा !


अगली सुबह बहुत ठन्डे पानी से नहाना पड़ा ! हालाँकि मैं नवम्बर आते ही ठण्डे पानी से नहाने से तालुक तोड़ देता हूँ और गर्म पानी शुरू कर लेता हूँ लेकिन पूजा पाठ के मामले में ये जिद छोड़ देनी पड़ती है ! बहुत ठंडा पानी था ,राम राम ! रोम रोम खड़ा हो गया ! सबसे बाद में नहाया मैं ! नहाने के लिए बढ़िया व्यवस्था है , महिलाओं की अलग और पुरुषों की अलग ! नहा धोकर जूते चप्पल लॉकर में रखे और दर्शन करने वाली लाइन में लग गए ! जल्दी ही नंबर आ गया ! ये दर्शन अर्धकुंवारी माता के दर्शनों से आसान रहे और सुन्दर भी ! सुना था भीड़ भाड़ वाले दिनों में आदमी पिंडियों को देख भी नहीं पाता और चलता कर देते हैं लेकिन माता की कृपा रही कि बहुत सुन्दर और स्पष्ट दर्शन कर पाये हम ! 

 


जय माता की !


दर्शनों के पश्चात भैरों बाबा के दर्शन के लिए और ऊपर जाना था ! साथ चल रहे प्रभात और प्रशांत ने बताया कि भैया सीढ़ियों से चढ़ना कठिन तो है लेकिन जल्दी पहुँच जायेंगे ! सीढ़ियां ही पकड़ लीं ! एकदम खडी चढ़ाई दिखती है ! बच्चे साथ हों तो और भी मुश्किल ! लेकिन माता रानी की कृपा , देखिये सब जय माता की ! कहते कहते भैरों बाबा के मंदिर तक पहुच ही गए ! वहाँ भीड़ बहुत कम थी और ऐसा लग रहा था जैसे भवन पर जाने वालों में से सिर्फ कुछ ही लोग यहाँ तक आये हों ! दर्शन सुलभ और आसान रहे ! ये 12 नवम्बर हो चला था ! शर्मा जी का आदेश आया कि आज ही वापिस अर्धकुंवारी रुकेंगे ! दोपहर के 12 बजे होंगे अभी ! मैंने पूछा -क्या हम आज ही कटरा चल सकते हैं ? फिर सुबह सुबह जम्मू और शाम को ट्रेन पकड़कर गाजियाबाद ! मेरे दिमाग में जम्मू घूमने का प्लान चल रहा था लेकिन मेरा विचार किसी को पसंद नहीं आया ! सब थके हुए थे और अर्धकुंवारी से आगे नहीं बढ़ना चाह रहे थे ! भैरों बाबा की तरफ से अर्धकुंवारी तक उतराई है ! रास्ते में एक दो बढ़िया दूकान हैं जिन्हें आप रेस्टॉरेंट कह सकते हैं ! भैरों बाबा से शुरू करके हम बस वहीँ रुके और कुछ खाया पिया ! वहाँ से चले तो थोड़ी नीचे ही सांझी छत है जहां तक कटरा से हेलीकाप्टर सेवा उपलब्ध है ! हर 10 मिनट में एक हेलीकाप्टर उड़ान भरता हुआ दीखता है ! सांझी छत विश्राम करने के लिए भी बहुत बेहतर जगह है हालाकिं ये हेलीपेड से कुछ दूर है लेकिन बहुत सुन्दर जगह है ! हमने करीब एक घंटे तक वहाँ डेरा जमाये रखा ! बढ़िया , आरामदायक धुप लग रही थी वहाँ और आसपास के दृश्य भी अति सुन्दर हैं ! फ़ोटो लेने लायक ! सांझी छत पर ही माता वैष्णो श्राइन बोर्ड का एक रेस्टोरेंट है जहां आपको वही सब कड़ी चावल , राजमा चावल , चाय आदि मिल जायेगी !

 


सांझी छत से उतरते समय बहुत सी सीढ़ियां पड़ती हैं ! उनकी संख्या अधिकतर स्थानों पर लिखी हुई है जैसे 68 सीढ़ियां , 526 सीढ़ियां आदि आदि ! ये सीढ़ियां चढ़ते समय तो बहुत कष्टदायक लगती हैं किन्तु उतरते समय बहुत आसान और शॉर्टकट लगती हैं ! बहुत जल्दी जल्दी ही नीचे पहुंचा देती हैं ! लेकिन बुजुर्ग लोगों को ख़ास ध्यान रखना चाहिए ! सीढ़िया चढ़ते समय भी और उतरते समय भी ! जय माता दी , जय माता दी करते कहते आखिर हम 4 या साढ़े चार बजे के आसपास वापिस अर्धकुंवारी पहुँच गए थे ! अर्धकुंवारी पर एक जगह है शारदा भवन , 100 -100 रुपये में डोरमेटरी मिल जाती है यानि हर आदमी को 100 रुपये में एक एक बैड मिल जाता है सोने के लिए । इसी की जरुरत थी हमें उस वक्त ! इतनी थकान थी कि पड़ते ही सो लिया मैं तो ! पत्नी ने जगाया कि कुछ खा तो लो ! 8 बजे थोड़ी दूर स्थित श्राइन बोर्ड के खान पान केंद्र में गया और रोज की तरह वो ही कढ़ी चावल खैंच आया दो प्लेट ! लौटकर आया तो बीवी नाराज ! मेरे लिए क्यूँ नहीं लाये ? मैंने कहा अपने आप खा आओ ! वो गुस्सा हो गयी ! लेकिन थोड़ी देर ही गुस्सा , रही मान गयी ! मानना ही था ! मैं झुक गया था और वापिस उसके लिए कढ़ी चावल लेने चला गया ! साथ में दौनों बच्चों को भी कर दिया ! बच्चों ने मैगी खानी थी , वो मिली नहीं तो चाउमिन का विचार आया ! 40 रूपये कि एक प्लेट ! मुझे मालुम था एक प्लेट में दौनों का ! उसे बोला ,बिना सॉस और मिर्च कि चाउमिन बना दे ! उसने कह दिया नीचे बेसमेंट में चले जाओ , वहाँ कह देना ,वो बना देगा ! नीचे पहुंचे तो लगा बिलकुल ही धरातल में आ गए हैं शायद ! उसने बच्चों के हिसाब से बिना मिर्च मसला डाले चाउमिन बना दी ! जब बच्चे खा चुके और चलने को तैयार हुए तो वो मुझे पूछने लग गया , दौनों बच्चे जुड़वां हैं क्या ? मैंने कहा नहीं , डेढ़ -दो साल का अंतर है ! हाँ ,बड़ा बीटा शरीर से कुछ हल्का है इसलिए लग रहा होगा ! मैंने चलते चलते बच्चों को बोला बीटा , अंकल को थैंक्यू बोलो ! बड़ा तो बोल आया , जब छोटे ने देखा तो वो भी भाग कर आया और थैंक्यू बोलकर भाग आया ! वो आदमी हमारी टेबल के पास आया और उसने दौनों बच्चों को टेबल पर खड़ा कर एक फ़ोटो निकल ली अपने मोबाइल में और फिर कुछ देर बाद एक पर्ची मेरे हाथ में थमाते हुए बोला इसे आप ऊपर काउंटर पर दे देना ! उसमें लिखा था स्टाफ ! ऊपर जाकर वो पर्ची काउंटर पर दी तो मुझे मेरे दिए हुए 40 रुपये वापस मिल गए ! बच्चों का प्यार ! जय हो

 

अगली सुबह अर्धकुंवारी से कटरा ही पहुंचना था , शरीर थक हुआ भी था आराम से आँख खुली ! आठ बजे ! शायद 9 बजे हैम निकले होंगे कटरा के लिए ! 11 बजे कटरा बड़े आराम से पहुँच गए ! लोगों को खरीद दारी भी करनी थी , प्रसाद वगैरह ! महिलाओं को अपने स्टॉल , शॉल , कड़े , चूड़ी ,सिंदूर जाने क्या का लेना था ! भगवान् जाने ! ये सब चीजें हर जगह मिलती हैं लेकिन न जाने क्यूँ कटरा से ही खरीदना जरुरी था ? हाँ एक बात भूल गया ! कटरा में बहने वाली बाण गंगा नदी के ठन्डे ठन्डे पानी में सिर्फ मैं ही नहाया ! बड़ी बात ! दिसंबर जनवरी कि ठण्ड में 8 -8 दिन मुँह चुपड़कर कॉलेज आने वाला बाँदा इतने ठन्डे पानी में नहाया ! और फिर गुलशन कुमार के भंडारे में भी भोजन किया ! पहली बार मैकेनिकल रोटी मेकर भी देखा ! खैर ! सब सामान और प्रसाद खरीदकर कटरा से तीन बजे बस पकड़ी और पांच बजे हम जम्मू रेलवे स्टेशन पर थे ! छह बजे का समय था ट्रैन का ! जम्मू स्पेशल ! एकदम गन्दी और बकवास ट्रैन ! न साफ़ सुथरी और न टाइम पर चलने वाली ! इसे सुबह 6 बजे ग़ज़िआबाद पहुँचना था लेकिन पहुंची 10 बजे ! अगर कोई मजबूरी न हो तो इस ट्रैन से यात्रा न करें !

 

जय माता की !

 

                                    मेरा बड़ा बेटा हर्षित





                                                                छोटा बेटा पारितोष


                   कटरा की तरफ से चढ़ाई करते समय शुरू में ही पड़ता है ये मंदिर ! सुन्दर है ! दौनो भाई साथ साथ


                                                   अर्धकुंवारी पर दर्शन का इंतज़ार 

              गर्मी थी ! इस बन्दर का मन हुआ होगा की कुछ तूफानी हो जाए तो छीन ली किसी की कोल्ड ड्रिंक 



                                  अच्छा तो अब चलते हैं वापस


जल्दी  ही आप अमृतसर की यात्रा का विवरण पढ़ेंगे ! तब तक राम राम ....................

सोमवार, 1 जुलाई 2013

चलते – चलते

तेरी आरजू , तेरी जुस्तजू , तेरा इंतज़ार
ओह ! हमें कितना काम है आजकल ।



एक जेल में और एक ‘ बेल’ में
नेताओं का कितना नाम है आजकल ॥



छत पर एक झंडा लगा लिया जाए
पार्टियों के झंडे का क्या दाम है आजकल ?



काम से फुर्सत पाकर तुझे ही ढूँढता हूँ
तेरी जुल्फों के तले ही मेरी सुबहे-शाम है आजकल ॥



चलो इन उसूलों को कूड़े में डाल दें
इस मुल्क में सोच गुलाम है आजकल ॥



हुकूमत से कोई उम्मीद लगाना छोड़ दो
चोरों के हाथ में मुल्क का निजाम है आजकल ॥



अदीब-ओ-अमन के पैरोकार कहाँ गए
निठल्लों के हाथ में कलाम है आजकल ॥



अब छोड़ दी जाएँ ‘ योगी ‘ ज़मीर -ओ- ईमान की बातें
हिन्द में बस ताकत को सलाम है आजकल ॥