पेज

रविवार, 24 दिसंबर 2023

Kala Dera Mandir: Manwal Jammu -Kashmir

 जम्मू सीरीज को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं !


काला डेरा मंदिर मनवाल

Date : 28 June 2022

मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के बाद वापस लौटने का समय हो गया था।  मानसर लेक के बराबर में एक रास्ता जम्मू से आता  हुआ दिख रहा था , ये शायद कुछ् शॉर्ट होगा मगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं दिख रहा था इस रोड पर। केवल प्राइवेट वाहन या कुछ ट्रक ही आते -जाते दिख रहे थे।  हालाँकि मुझे भी इस रास्ते से अभी जम्मू नहीं लौटना था मगर चाय -समोसा खाते हुए एक दुकान पर बैठकर आते -जाते वाहनों को देखता रहा।  


मुझे वापस मनवाल ही लौटना था।  अभी दोपहर के दो बजे थे और मनवाल से जम्मू की ट्रेन का समय लगभग साढ़े पांच बजे का था।  मानसर से मनवाल 30 -35 किलोमीटर दूर था मगर मेरी मुश्किल दूरी नहीं समय की थी।  मनवाल टाउन से कुछ पहले कुछ पुराने मंदिरों का एक बोर्ड लगा दिखाई दिया था , मुझे उन मंदिरों तक पहुंचना था और फिर ट्रेन भी पकड़नी थी।  मुझे न अभी तक उन मंदिरों का नाम पता था न उनकी मनवाल टाउन से दूरी का कोई आईडिया था। 


वापस आने में ज्यादा देर नहीं लगी।  सुरिंसर से मानसर तक के लिए एक कार से लिफ्ट मिल गई और जैसे ही उस कार से उतरा , मुश्किल से पांच मिनट के अंदर मनवाल के लिए बस भी आ गई।  टिकट लेते हुए उस भाई से बता दिया था कि भाई एक जगह मंदिरों का कुछ बोर्ड जैसा लगा है वहां उतार देना , मगर मालुम नहीं वो भूल गया या उस मेरी बात समझ नहीं आई थी , वो बस को फुल स्पीड में चलाता हुआ आगे निकल गया।  मुझे फिर से वो बोर्ड दिखा तो मैं एक तरह से चिल्लाया -रोकियो भाई ! रोकियो ..तब उसे याद आया कि मैंने उसे -कुछ बोला भी था ! 



मैं 50 कदम लौटा ! बोर्ड मुझे अपने राइट साइड में दिखा था और मुझे बस ने लेफ्ट साइड में उतारा था।  भारत में लेफ्ट साइड ड्राइविंग ही है तो निश्चित सी बात है कि बस लेफ्ट में ही चल रही थी।  मैं रोड क्रॉस कर के उधर जाता , उससे पहले एक कोल्डड्रिंक पीने का मन हो रहा था।  जून का महीना अपने आखिरी पड़ाव में था तो स्वाभाविक है कि भयंकर गर्मी थी।  कुछ कदम और चला दुकान की तरफ तो वहां दुकान के बराबर में ही एक धुंधला सा बॉर्ड लगा था -पढ़ने की कोशिश की तो समझ आया ! काले रंग के बोर्ड पर सफ़ेद अक्षरों में हिंदी में लिखा था -काला डेरा मंदिर ! कोल्डड्रिंक जिस दुकान से ली थी उसी आदमी से पूछा -इधर क्या है ? बहुत पुराने मंदिर हैं ! नींद में खलल डाल दिया था शायद मैंने उसकी ....वो कोल्डड्रिंक की बोतल पकड़ा के ऐसे सो गया फिर से जैसे जन्म जन्मांतर से न सोया हो ! 


तू सोता रह भाई ! मैं बराबर में ही बने एक गेट से अंदर प्रवेश कर गया।  रास्ता एक लम्बी -खाली गली जैसा था जिसके एक तरफ घर बने थे और दूसरी तरफ खाली जगह पड़ी थी जिसके चारों तरफ कंटीले तार लगे थे।  करीब 200 मीटर चलने के बाद मैं एक ऐसी जगह पहुँच चुका था जिसका मैंने पहले न कभी नाम सुना था न वो मेरे इस बार के किसी प्रोग्राम में शामिल थी।  आया तो था मानसर और सुरिंसर लेक देखने के लिए मगर ये तो आनंद आ गया ! एक और नई जगह देखने को मिल गई।  



सामने एक चारपाई पर केयरटेकर फैले पड़े थे पेड़ की छाँव मे।  उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि जून की भरी गर्मी में दोपहर की चिलचिलाती धूप  में कोई बांगड़बिल्ला इधर आ धमकेगा !  मुझे देखकर उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और फिर अपनी उसी सपनीली दुनियां में खो गए / शायद सो गए ! 


मैं आज जिस जगह को आपको दिखाने और बताने जा रहा हूँ उस जगह के बारे में आपने न कभी पहले सुना होगा न शायद पढ़ा होगा।  हम में से ज्यादातर लोग ऐसी जगह जाना पसंद करते हैं जो भीड़भाड़ से भरी रहती हैं , जिनका विज्ञापन आप हर रोज़ देखते हैं या ज्यादा चमकती हैं और जिन जगहों के फोटो अच्छे आते हैं मगर मुझे पसंद हैं ऐसी भी जगहें जो बहुत पुरानी होती हैं , बहुत सुन्दर भले न हों लेकिन इतिहास समेटे हुए हों।  इनमे से ही एक जगह हैं काला डेरा के शिव मंदिर ! जम्मू -उधमपुर के बीच पड़ने वाले छोटे से टाउन मनवाल के पास स्थित ये मंदिर 10 वीं या शायद 11 वीं शताब्दी के बने हुए हैं जिन्हें डोगरा शासकों ने बनवाया था।  काला डेरा का मतलब होता है काले पत्थर के बने मंदिर।  



आसपास अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ है जिससे यहाँ पहुंचकर बोरियत महसूस नहीं होती।  शुरुआत में ही आकर्षित करते स्ट्रक्चर हैं जिनके खम्भे बहुत ही सुन्दर और डिज़ाइनदार हैं। मेरा विश्वास है कि आप निराश नहीं होंगे।  थोड़ा आगे चलकर मुख्य मंदिर नजर आता है जिसको एक प्लेटफार्म पर इस तरह से बनाया गया है जिससे श्रदालुओं को आने और दर्शन कर के निकलने में परेशानी न हो।  मंडप हालाँकि छोटा है और गर्भगृह में शिवलिंग विराजमान हैं।  मंदिर के सामने विराजित नंदी को किसी ने नुकसान पहुँचाया हुआ है।  


अब यहाँ जितना घूमना था वो घूम चुका हूँ और मोबाइल की घडी चार बजते हुए दिखा रही है।  मुझे अभी यहीं पास में एक और ऐसी ही अनजानी सी जगह भी जाना है इसलिए यहाँ से निकलने का समय आ पहुंचा है।  अगली पोस्ट में आपको एक और बेहतरीन जगह लेकर जाऊँगा। .. आते रहिएगा  


शनिवार, 2 दिसंबर 2023

Mansar and Surinsar Lake : Places to visit in Jammu and Udhampur

जम्मू सीरीज को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं : 

मानसर एवं सुरिंसर लेक : जम्मू -उधमपुर 

Date : 27 June 2022

रेमण्ड के मालिक दूसरे बुजुर्गों की तरह ही लावारिस सडकों पर घूमते देखे गए ! ये बड़ी खबर थी मगर ये एहसास भी दे रही थी कि पैसा ही हमेशा ख़ुशी नहीं देता , इसके साथ और भी चीजों की जरूरत होती है , जैसे शौक ! एक कोई ऐसा शौक बगल में दबाए रखिये जो आपको खुश भी रखे और खाली वक्त में आपके साथ -साथ समय बिता सके।  घुमक्कड़ी ऐसा ही एक शौक है ! बनाए रखिये ! 


मुझे आज तीसरा दिन था जम्मू पहुंचे हुए! अब तक जम्मू के अलग -अलग जगहों के अलावा उधमपुर के क्रिमची मंदिरों तक हो आया था।  आज भी उसी रूट पर निकलना था मतलब उधमपुर की ओर मगर आज उधमपुर तक नहीं , सिर्फ मनवाल टाउन तक ही जाना था ! ट्रेन भी वही थी कल वाली , और ट्रेन का समय भी वही था जम्मू से सुबह सात बजकर 55 मिनट का। 


मैं आज निकल रहा हूँ मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के लिए।  हिमालय की लेक खूब घूमी हैं मैंने अपने अलग -अलग ट्रैक में , आज मैदानी लेक घूम के आते हैं।  मानसर लेक तो थोड़ी प्रसिद्ध है मगर सुरिंसर लेक तक बाहर से आये लोग कम ही पहुँचते हैं।  हालाँकि दोनों की दूरियों में बहुत अंतर् नहीं है मगर सुरिंसर लेक पर्यटकों के दिल में अपनी उतनी  जगह नहीं बना पाई जितनी मानसर लेक की है।  


मानसर लेक जम्मू से करीब 50  किलोमीटर की दूरी पर है जिसकी लम्बाई करीब 1.5 किलोमीटर और चौड़ाई 0.84 किलोमीटर है।  पहले मैं मनवाल स्टेशन पहुँच गया और स्टेशन से टेम्पो से मनवाल टाउन के बस स्टैंड पर।  यहाँ से मानसर लेक के लिए सीधे बस मिल जाती हैं और मुश्किल से 40 -45 मिनट ही लगे मानसर लेक तक पहुँचने में।  


पहले कुछ चाय-पानी कर लें फिर चलते हैं मानसर के लिए ! रोड के किनारे पर रोड से थोड़ा नीचे हटकर दुकानें हैं और दुकानों के पीछे ही है मानसर लेक ! 

मान्यता :
मानसर लेक को महाभारत के साथ जोड़ा जाता है।  ऐसा कहा जाता है कि यहाँ अर्जुन और उलूपी के पुत्र बब्रुवाहन का राज हुआ करता था और जब अर्जुन ने अश्वमेध यज्ञ के लिए अपना घोड़ा छोड़ा तो उस घोड़े को बब्रुवाहन ने पकड़ लिया।  जिस जगह पर बब्रुवाहन ने अर्जुन के घोड़े को पकड़ा था वो जगह खूं गाँव है , जो कि धार , उधमपुर के पास है।  आप लोगों को ये पता होगा कि अर्जुन और उनके पुत्र बब्रुवाहन के बीच में युद्ध हुआ और अपनी माँ से किये वायदे को पूरा करने के लिए बब्रुवाहन ने अर्जुन को मार दिया।  मगर जब बब्रुवाहन को पता चला कि अर्जुन ही उनके पिता थे  तब बब्रुवाहन ने उनको पुनः जीवित करने के लिए शेषनाग से मणि लाने के लिए अपने बाण से सुरंग बना दी जिसको -सुरंगसर नाम दिया गया और इस सुरंग के दूसरे छोर से वो मणि लेकर वापस आए।  जिस छोर से वो निकले थे उस छोर को ही मानसर लेक कहा जाता है।  


इस लेक के एक किनारे पर मंदिर हैं और बाकी में आप बोटिंग कर सकते हैं।  हालाँकि मैं जब वहां पहुंचा तो कोई भी न तो टूरिस्ट था न बोट चलाने वाला कोई था।  संभव है जून का महीना था इसलिए गर्मी की वजह से लोग न आये हों मगर हाँ , बजट कई सारी कड़ी थीं और अच्छी हालात में थीं इसलिए माना जा सकता है कि यहाँ बोटिंग होती होगी।  


मगर जितना इस लेक का नाम सुना था उस स्तर पर ये बिलकुल नहीं उतरती। किनारे एकदम गंदे पड़े हैं और लेक के चारों तरफ के रास्ते टूटे पड़े हैं।  मैं Specially इस लेक को देखने जाने के लिए आपसे बिलकुल नहीं कहूंगा मगर हाँ , अगर आप जम्मू गए हैं तो थोड़ा समय निकालकर यहाँ जा सकते हैं।  


जितना देखना था इस लेक को देख लिया और अब यहाँ से 15 किलोमीटर दूर एक और लेक के लिए निकलना था।  अब यहाँ तक आ ही गया था तो सुरिंसर लेक को भी देख लिया जाए।  वापस रोड पर आ गया और किसी बस /जीप का इंतज़ार करने लगा मगर आधा घण्टा इंतज़ार करने में गुजर गया।  यहाँ अलग -अलग जगहों की यहां से दूरियां बताने वाला एक बोर्ड लगा था जिसमें पटनीटॉप का भी नाम था। मगर पटनीटॉप का मुझे कोई अट्रैक्शन कभी नहीं रहा इसलिए उधर जाने का या सोचने का मन नहीं था।  


एक मर्सिडीज ट्रक आ गया ! हाथ दिया तो रुक गया और मैं जा बैठा उसमें। आज पहली बार मर्सिडीज के ट्रक में बैठने का मौका मिला था।  ज्यादा बड़ा और ज्यादा आरामदायक लगा ! थोड़ी देर भाई से स्टीयरिंग भी संभाली जहाँ रोड एकदम सीधा था वहीँ पर।  आधा घंटा भी नहीं लगा होगा सुरिंसर लेक पहुँचने में।  ट्रक से उतर के पहले मैंने और ड्राइवर भाई ने एक -एक कोल्डड्रिंक से गला तर किया।  उसके बाद वो भाई कहीं आगे निकल गए और मैं निकल गया सुरिंसर लेक देखने के लिए।  


सुरिंसर लेक ,मानसर की टविन लेक बताई जाती है मगर उससे छोटी , ज्यादा गन्दी और कम प्रसिद्ध है।  अगर आप जम्मू से एक शार्ट रूट पकड़ेंगे तो पहले सुरिंसर लेक आती है फिर मानसर लेक।  सुरिंसर लेक के पास से ही ये रास्ता गुजरता हुआ दिखाई देता है।  हाँ ,यहाँ मुझे बहुत सारी मछलियां जरूर दिखाई दीं और उनको  देख -देखकर ही मन लगाता रहा।  


अब वापस लौटने का समय आ पहुंचा है।  वापस उसी रास्ते से मनवाल पहुँचता हूँ जहां से आया था मगर मनवाल से आते हुए एक गजब का बोर्ड दिखा था ,मन वहीँ अटका हुआ था।  लौटते हुए इन बोर्ड को स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए मैंने खिड़की वाली सीट हथिया ली। और जैसे ही वो बॉर्ड दिखाई दिए , मैं चिल्लाया ! रोकियो भाई ...उतार दो मुझे यहीं ! अब आगे की बात अगली पोस्ट में करेंगे। ...  




रविवार, 26 नवंबर 2023

Krimchi temples: Udhampur

जम्मू सीरीज को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं : 

क्रिमची मंदिर (पांडव मंदिर): उधमपुर


27 June-2022

अनायासेन मरणं विनादैन्येन जीवनं । 

देहि मे कृपया शम्भो त्वयि भक्तिं अचन्चलं ॥ 

भगवान शिव से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी मृत्यु अचानक हो जाए , जीवन बिना किसी रोग -बीमारी के गुजर जाए ! बस इतनी कृपा बनाए रखिए ! 

आज 27 जून 2022 है ! मैं अकेला ही जम्मू के रेलवे स्टेशन के पास ही 150 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से सरस्वती भवन की डॉर्मिटोरी में रुका हुआ हूँ।  सुबह के सात बजे हैं , चाय मिल गई है और अब मुझे जल्दी ही नहाधोकर स्टेशन निकलना होगा ! 

सरस्वती भवन के बाथरूम भले कॉमन हैं मगर साफ़ सुथरे हैं और ज्यादा भीड़भाड़ नहीं रहती।  हर एक फ्लोर पर दो कोनों में बाथरूम बने हैं जिनमे 7-8 टॉयलेट्स और तीन बाथरूम हैं। 

 

स्टेशन पर भी बहुत भीड़ नहीं है , टिकट वेंडिंग मशीन (TVM ) से टिकट मिल गया , मुश्किल से पांच मिनट लगे होंगे।  फिर से टाइम देखा ! अभी 7 बजकर 42 मिनट हुए हैं और ट्रेन का टाइम 7 बजकर 55  का है , ब्रेड पकोड़ा और एक कप चाय खेंच लेते हैं , फिर चलेंगे ! हमारे यहाँ कहावत है कि -घर खीर तो बाहर खीर ! मतलब कि जब कहीं निकलो तो कुछ खा -पीकर निकलो ! पता नहीं बाहर कुछ मिले न मिले ! 


जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से निकल चुका हूँ ! जम्मू तवी स्टेशन पर जो बोर्ड लगा है -वो चार भाषाओँ में है ! सभी जगह तीन भाषाओँ में ही होता है -हिंदी , अंग्रेजी और उस स्टेट की स्थानीय भाषा ! मगर यहां चार भाषाएं हैं -हिंदी , अंग्रेजी , उर्दू और  चौथी डोगरी !  ट्रेन बजालता स्टेशन पहुँचने वाली है और यहां जब आ रहे थे तब बलिदान स्तम्भ की रायफल ट्रेन से दिखाई दे रही थी।  बलिदान स्तम्भ मैं आप लोगों को पहले ही दिखा चुका हूँ।  आप चाहें तो फिर से पढ़ सकते हैं , इसके नाम पर क्लिक करिये बस ! 


इतना सब हो गया ! मगर अभी तक मैंने आप लोगों को ये नहीं बताया कि मैं जा कहाँ रहा हूँ सुबह -सुबह ही ? अब बता देता हूँ -मैं उधमपुर जा रहा हूँ ! हांजी -जम्मू के पास वाला ही उधमपुर ! आप कहेंगे -वहां क्यों जा रहा हूँ ? मैं फिर बताऊंगा आपको -मैं वहां क्रिमची मंदिर देखने जा रहा हूँ जिनको पांडव मंदिर भी बोलते हैं ! अब ठीक है ? 


आपको बताते -बताते मैं संगर स्टेशन पहुँच चूका हूँ।  जिस ट्रेन से उधमपुर जा रहा हूँ वो पठानकोट से सुबह सवा चार (4 :15) बजे चलती है और जम्मू सुबह के 7 बजकर 55 मिनट पर पहुँचती है।  बताया था पहले भी ! 


लो जी मनवाल स्टेशन आ गया ! छोटा मगर अच्छा स्टेशन है , स्टेशन के नाम में कुछ -कुछ पंजाबी भाषा का प्रभाव दिख रहा है।  जम्मू से उधमपुर कुल 55 किलोमीटर ही है , और ये स्टेशन शायद दोनों तरफ से बीच में ही होगा ! मनवाल बहुत काम आएगा आगे -आगे ! ध्यान रखना पड़ेगा इस स्टेशन को।  


क्रिमची मंदिर जाने से पहले उधमपुर निवासी आदरणीय रोमेश शर्मा जी के यहाँ पहुंचना है।  उनसे फेसबुक / व्हाट्स एप्प से मेल मुलाकात हुई थी फिर एक बार दिल्ली में प्रत्यक्ष मुलाकात भी हुई और फिर साथ में सतोपंथ -स्वर्गारोहिणी ट्रेक पर बद्रीनाथ तक साथ गए थे।  उनका साथ मिलेगा तो क्रिमची मंदिरों को और बढ़िया से घूम पाऊंगा।  रामनगर जे एण्ड के स्टेशन आ गया है।  रामनगर के साथ  जे एण्ड के जोड़कर अच्छा किया है , अलग पहचान मिल गई है ! अब बस आखिरी स्टेशन उधमपुर है।  अब तक कई सुरंगों से होते हुए निकलकर आये हैं हम , और अब आसपास बहुत ही खूबसूरत नज़ारे दिख रहे हैं।  पहाड़ों पर हरियाली छाई हुई है , छोटी-गहरी खाइयों को देखते हुए जब ट्रेन नदी पर बने एक पुल को पार करती है तो जबरदस्त दृश्य नजर आने लगता है। आपको उधर जाने का मौका मिले तो इस पल को छोड़िएगा मत।  


उधमपुर आ गया।  ट्रेन में  चलते हुए मुझे आज भी छोटे बच्चे की तरह का रोमांच होता है ! नए -नए स्टेशन ! नए -नए लैंडस्केप ! नए -नए लोग ! मुझे आज भी बहुत आकर्षित करते हैं।  



सुबह के नौ बजे के आसपास का समय है।  एक कप चाय बनती है यहाँ भी ! चाय पीकर उधमपुर के बोर्ड के साथ फोटो लेने  के लिए बढ़ा ही था कि आसमान में गड़गड़ाहट होने लगी।  फाइटर जेट की आवाज थी ये ! बाद में पता चला कि उधमपुर में कहीं एयरफोर्स स्टेशन है।  


चाय पीने के चक्कर में गड़बड़ हो गई यार ! असल में उधमपुर का रेलवे स्टेशन शहर से दूर है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट केवल तभी मिलता है जब कोई ट्रेन आती है ! अब ट्रेन को आये हुए 20 -25 मिनट हो चुके हैं और जिसे जाना था , वो जा चुका है।  अब मैं अकेला ही था यहाँ।  थ्री व्हीलर वाले से बात करी -कितने पैसे ? 150 रूपये ! ज्यादा हैं ! सामान नहीं था मेरे पास कोई भी , सब कुछ जम्मू के सरस्वती भवन में लॉक था।  हम पैदल -पैदल आगे बढ़ चले।  

थोड़ी देर में उधर यानि अपोजिट साइड से आते हुए एक ऑटो मिल गया ! कितना ? 100 रुपए ! ना भाई 80 दूंगा ! चलिए .. बैठिये ! रोमेश जी से लगातार सम्पर्क में था , उन्होंने जहाँ कहा,  उतर गया ! कुछ ही देर में वो अपना स्कूटर लेकर उपस्थित हो गए।  


गर्मी अपने पूरे जोश में थी।  सुबह के 10 या साढ़े दस बजे होंगे मगर गर्मी से बुरा हाल हुआ पड़ा था।  उधमपुर को पटनी टॉप के पास होने का कोई ख़ास फायदा नहीं मिल रहा था।  रोमेश जी के यहाँ नाश्ता कर के हम लगभग 12 बजे के आसपास क्रिमची मंदिरों की तरफ निकल चुके थे।  रोमेश जी धीरे मगर अच्छी ड्राइविंग करते हैं।  

उधमपुर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क्रिमची (पांडव ) मंदिर , क्रिमची गाँव के बाहरी छोर पर बिरुनाला नदी के किनारे पर सात मंदिरों के समूह के रूप में  स्थित हैं !  मंदिरों के इस समूह को स्थानीय तौर पर पांडव मंदिर के नाम से जाना जाता है।


इतिहास 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान किया गया था।मंदिरों का निर्माण चरणों में किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर संख्या 6 और 7 कई सदियों पहले क्षतिग्रस्त हो गए थे। 


स्थानीय मान्यता है कि वे महाभारत युद्ध के नायकों, या स्वर्गीय पांडव राजवंश के समय से चले आ रहे हैं, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में शासन किया था ( अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा अनुमान लगाया गया था )। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा कीचक को क्रिमची शहर और राज्य का निर्माता कहा जाता था। यह भी कहा जाता है कि निर्वासन में पांडव लंबे समय तक वहां रहे थे। चूंकि मंदिरों का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था, इसलिए ये मंदिर परिसर इंडो-ग्रीक वास्तुकला की गहराई को दर्शाते हैं। 


मंदिर पहुँचने के रास्ते में करीब 100 मीटर का रास्ता एकदम नीचे उतरता है।  हालाँकि रोमेश जी अच्छे ड्राइवर हैं इसलिए बहुत मुश्किल नहीं हुई।  शायद टिकट लगा था इसका या मुफ्त था ... भूल गया मैं ! लेकिन वहां जो व्यक्ति बैठा था उनका नाम गौरव था और वो यूपी के बिजनौर से हैं।  अच्छी दोस्ती हो गई उनसे कुछ ही देर में।  

सीढ़ियां चढ़ते ही एक प्लेटफार्म दीखता है और उससे आगे एक अकेला मंदिर जो इस प्लेटफार्म से नीचे है बाकी सभी प्लेटफार्म पर ही हैं।  पहले आपको प्लेटफार्म के नीचे वाले मंदिर पर ले चलता हूँ।  


इन मंदिरों को सीमेंट की बजाय मिट्टी -गारे से जोड़ -जोड़कर बनाया गया है , हालाँकि अब जब और जहाँ भी रेनोवेशन का काम होता है अब सीमेंट से ही होता है और सीमेंट भी उतना ही कि हाथ से उखड़ जाए ! निश्चित सी बात है कि सरकारी काम है और सरकारी लोग जिसके लिए कुख्यात होते हैं , उन्होंने अपना कौशल यहाँ भी दिखाया है।  मुझे नहीं समझ आता कि अगर उन्होंने इस काम में 2 -4 लाख बना भी लिए होंगे तो उससे कौन से वो अम्बानी -अडानी बन जाने वाले हैं ! 



नीचे वाले मंदिर का शिखर टूट चुका है और अब बस गिरना शेष है।  यहाँ इन मंदिरों में से सिर्फ एक ही मंदिर में पूजा पाठ होता है।  बाकी मंदिर बस ढाँचे के रूप में खड़े हैं मगर हाँ , आसपास की हरियाली बहुत व्यवस्थित है और अच्छी लगती है।  



बीच का कॉरिडोर बहुत ही सुन्दर स्तम्भों से बनाया हुआ है , आप एक बार जीभर के देखने के लिए रुकने को मजबूर हो सकते हैं। आठवीं -नौवीं शताब्दी के मंदिरों के स्तम्भों पर इतनी महीन कलाकारी वास्तव में इन्हीं मंदिरों को ही नहीं बल्कि हमारे सभी देवालयों को आकर्षक बनाती हैं। 




इस मंदिर काम्प्लेक्स के एक किनारे पर टॉयलेट बने हुए हैं और साफ़ सुथरे हैं।  

इस मंदिर प्रांगण को खूब अच्छी तरह से घूम के बाहर निकल आये।  गौरव भाई ने इन मंदिरों की एक बुकलेट भी दी थी मगर वो अब कहीं गुम हो गई है।  बाहर ही रोमेश जी की गाडी खड़ी थी।  मंदिर के बाहर ही गाड़ियां खड़ी  करने की खूब सारी जगह उपलब्ध है और अभी हाल -फिलहाल पार्किंग फ्री है।  आगे का मुझे नहीं मालूम  , क्या होगा !


लौटते हुए थोड़ी देर चाय -कोल्डड्रिंक के लिए क्रिमची गाँव की एक दुकान पर रुक गए। उसी दुकान के बराबर में सब्जी की दुकान भी थी जहां मुझे  सब्जी देखने को मिली -रोमेश जी से पूछा तो उन्होंने उसका नाम कड़म बताया।  कड़म को गांठ गोभी भी कहा जाता है और ये सब्जी कश्मीर क्षेत्र में खूब प्रचलित है।  मुझे उत्सुक देखकर रोमेश जी ने उस सब्जी को खरीद लिया , बोले -योगी जी चलिए आज आपको यही सब्जी खिलाते हैं।  

घर पहुँचने के कुछ देर बाद ही शानदार खाना सामने था जिसमें कड़म की सब्जी भी शामिल थी।  रोमेश जी की धर्मपत्नी स्कूल की प्रिंसिपल हैं मगर आज वो स्कूल से जल्दी आ गई थीं।  फिर से लिख रहा हूँ , बहुत ही शानदार खाना था और कड़म की सब्जी पहली बार खाई थी तो उसकी तारीफ तो बनती ही है।  


जून का महीना था तो स्वाभाविक है कि गर्मी होगी ही! खाना खाने के बाद थोड़ी देर आराम किया और सूरज की तपिश थोड़ी कम होने के बाद वापस अपने दड़बे , जम्मू के सरस्वती भवन की तरफ लौट चले उसी ट्रेन से जिससे जम्मू से उधमपुर गए थे।  

खाना खाते हुए रोमेश जी से जम्मू -उधमपुर के आसपास की घूमने लायक जगहों के विषय में बात हो रही थी तब उन्होंने मनसर और सुरिंसर लेक के बारे में तो बताया ही , एक और जगह बताई जिनका मैंने नाम भी नहीं सुना था।  ये थे काला डोरा मंदिर ! रोमेश जी भी कभी इधर नहीं आए इसलिए उन्हें exact लोकेशन तो मालुम नहीं थी लेकिन इतना अंदाजा था कि मनवाल के आसपास ही कहीं हैं।  मुझे अगले दिन सुरिंसर और मानसर लेक जाना ही था तो.... बाकी मेरा होमवर्क था।  

अगले दिन की बात अगली पोस्ट में लिखूंगा मगर ध्यान रखियेगा , अगली पोस्ट क्रिमची मंदिरों से भी पुराने और गुमनाम जगहों के बारे में अपनी बात लेकर आऊंगा।  आते रहिएगा ......
--


सोमवार, 20 नवंबर 2023

Places to visit in Jammu : Jamwant Gufa

जम्मू सीरीज को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं : 

जामवंत गुफा ,जम्मू 

26 June-2022



मुबारक मण्डी हेरिटेज से वापस लौट रहे थे , बिश्नोई जी बोले कि चलिए एक और जगह दिखा के लाता हूँ।  मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीर खो है ! जामवंत की गुफाएं भी कहते हैं इस जगह को ! तो अब हम पीर खो नहीं बल्कि जामवंत गुफा ही लिखेंगे आगे।  इस गुफा में कई पीरों, फकीरों, और ऋषियों ने तपस्या की,  इस कारण से इसका नाम पीर खोह् पड़  गया। डोगरी भाषा में इसे खोह् गुफा भी बोलते है।



कहते है कि श्री राम -रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब  विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।

उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो। इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था।



एक कथा के अनुसार राजा सत्यजीत ने सुर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को प्रकाश मणि प्रसाद के रूप में दे दी। राजा का भाई मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने मणि धारण कर ली। इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर मणि प्राप्त की। कृष्ण से हारने के बाद ये मणि जामवंत ने कृष्ण को दे दी।


यहीं से कृष्ण और जामवंत फिर से मिले। जामवंत ने कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया यहीं पर जामवंत ने कृष्ण के समक्ष अपने पुत्री सत्य भामां से विवाह का अनुरोध किया और दहेज स्वरूप प्रकाश मणि दी।


ये तो हो गई इस जगह से जुडी कहानी ! अब मंदिर में चलते हैं ! सीढ़ियों से जैसे ही ऊपर पहुँचते हैं एक बड़ा सा हॉल दीखता है और उस हॉल में से ही कहीं नीचे की तरफ सीढ़ियां जाती हैं।  छोटी -छोटी सीढ़ियां उतरते हुए कभी कभी ऐसा लगता है जैसे सिर अभी टकरा जाएगा मगर जैसे ही आप नीचे उतर जाते हैं , छोटे मगर बहुत ही सुन्दर मंदिर बने हुए हैं।  यही गुफा मंदिर हैं ! फोटो या वीडियो लेना सख्त मना है मगर मैंने अनुरोध किया तो मुझे एक फोटो लेने की अनुमति मिल गई ! 



मंदिर प्रांगण  उतरे तो बराबर में ही एक सुन्दर पार्क है और इस पार्क के एक कोने पर रोप वे का स्टेशन भी है।  पता किया तो बताया गया कि ये रोप वे जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक जाती है और फिर महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक जाती है।  उस वक्त यानि कि जून -2022 में ,  इसका किराया जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक 150 रुपए था और इतना ही महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक का था मगर आप एक साथ आने जाने का करेंगे तो ये 500 रूपये प्रति व्यक्ति हो जाता है।  


मैं हालाँकि इस रोप वे में बैठा नहीं था मगर कल्पना करें तो जब ये तवी नदी और बहु गार्डन के ऊपर से होकर गुजरती होगी , अद्भुत दृश्य देखने को मिलता होगा।  मुझे जानकारी नहीं थी तब और न उतना समय बचा था क्योंकि ये शाम छह बजे तक ही मिलती है और सुबह 11 बजे शुरू होती है।  आपको मौका मिले तो जरूर आनंद लीजियेगा , अच्छा लगेगा ! 

थक चुका था मैं ! सुबह लगभग आठ बजे से ही घूमता फिर रहा था तो पार्क में एक जगह मैं और बिश्नोई भाई , कोल्डड्रिंक और चिप्स लेकर बैठ गए ! अन्धेरा होने में अभी कुछ देर बाकी थी मगर जैसे ही हल्का सा अँधेरा घिरने लगा , पार्क के एक कोने में लगी भगवान शिव की मूर्ति और उसके आसपास लगे फव्वारे चमक उठे।  शिव की मूर्ति से निकलती जलधारा , माँ गंगा का रूप व्यक्त करती हुई प्रतीत होती हैं।  


जैसे -जैसे शाम घिरने लग रही थी , भीड़ बढ़ती जा रही थी।  ये ज्यादातर स्थानीय लोग थे जो अपने बच्चों के साथ पिकनिक मनाने आ रहे थे।  

अब ऐसा कुछ जम्मू शहर में रह नहीं गया था जो मेरी लिस्ट में रहा हो और देख न पाया होऊं ! बल्कि जितना सोचा था उससे ज्यादा , बहुत ज्यादा देखने और घूमने का मौका मिल गया और ये सब संभव हुआ मित्र सूखराम बिश्नोई जी की वजह से ! धन्यवाद भाई जी !! 


बिश्नोई भाई ने मुझे सरस्वती भवन छोड़ दिया।  खाना खाकर अब बस सो जाना है क्यूंकि कल उधमपुर जाऊँगा और आपको एक ऐसी जगह 
दिखाऊंगा  जो बहुत ऐतिहासिक है... प्राचीन है.... विशिष्ट है... मगर जिसके विषय में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है... आते रहिएगा !!