रविवार, 4 जून 2023

Bahu Fort Jammu

 जम्मू कश्मीर यात्रा 

फिर से एक और यात्रा पर निकला था लेकिन लिखने में बहुत देर हुई है , क्षमा चाहता हूँ आप सभी से ! लेकिन आपको इस यात्रा में कुछ जानी पहचानी और कुछ ऐसी जगहें दिखाने वाला हूँ जिन्हें आपने पहले कभी नहीं देखा होगा ! आपने शायद उनके बारे में कभी सुना भी नहीं होगा  ! 


मैं जून 2022 में एक लम्बी और शानदार जम्मू कश्मीर यात्रा पर निकला था , कुल 14 दिन की यात्रा के लिए ! इस यात्रा में से पांच दिन मैं जम्मू में ही रहा और आसपास की कुछ जानी -कुछ अनजानी जगहों तक भी पहुंचा।  



तारीख थी 25 जून 2022 , और मैं जिंदगी में दूसरी बार जम्मू रेलवे स्टेशन उतर चुका था।  सुबह के 8 या साढ़े आठ ही बजे होंगे। मेरा बैग कपड़ों से एकदम ठसाठस भरा था , गर्मी के भी कपडे थे और गर्म कपडे भी थे।  न न , जम्मू में जून में सर्दी नहीं पड़ती ! सर्दी पड़ती है अमरनाथ की यात्रा में ! मेरे बैग में अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन भी था पहले ही दिन का।  पहला दिन -पहला शो ! अमरनाथ यात्रा की बात बाद में करेंगे पहले जम्मू की बात कर लेते हैं।  


तो जम्मू पहुँच गया जी।  मैंने सोचा -अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन तो है ही मेरे पास तो भगवती नगर में ही जाकर रुकता हूँ।  पूरा तामझाम लेकर भगवती नगर पहुंचा तो बोले भैया अभी यहाँ कुछ नहीं है , 30 जून से यात्रा है तो 29 को ही आइये।  बैग फिर से पीठ पर लटकाया और पैदल पैदल वापस लौटने लगा कि कुछ मिल जाए E-रिक्शा वगैरह।  पास में ही एक मंदिर दिखा तो वहां पहुंचा।  रुकने की ख़ास व्यवस्था नहीं थी मगर चाय -पूड़ी और सब्जी मिल गई वहां।  वहां से निकला तो धीरे -धीरे चलने लगा ... कोई गर्ल्स कॉलेज था जिसकी दीवारों पर बहुत बेहतरीन पेंटिंग बनाई हुई थी।  कुछ फोटो लिए और अपना रास्ता पकड़ लिया।  लौट के स्टेशन पर आया तो पता चला -एकदम पास में ही वैष्णो देवी धाम के तीन रेस्ट हाउस हैं ! वैष्णवी , सरस्वती और कालिका धाम ! मुझे सरस्वती में 150 रूपये में AC डॉरमिटरी मिल गई।  आनंद आ गया ! इतना सस्ता और स्टेशन के एकदम पास ! 



मैं इस इरादे से गया था कि अमरनाथ यात्रा से लौट के , कश्मीर घूमते हुए हिमाचल में ट्रैकिंग भी करूँगा।  इसी उद्देश्य से स्लीपिंग बैग और टेंट भी लेकर गया था।  वजन ज्यादा लगने लगा था तो बाद में , जोधपुर के रहने वाले और जम्मू में पोस्टेड मित्र सुखाराम बिश्नोई जी के पास ये सामान छोड़ दिया।  पहला दिन था जम्मू में ! घूमने को बहुत था इधर लेकिन शुरू कहाँ से करूँ ? एकदम नहाधोकर फ्रेश हुए और निकल पड़े बहु फोर्ट देखने।  फोर्ट के आसपास की दीवारों पर भी सुन्दर कृतियां उकेरी हुई हैं जो जम्मू की पहचान को व्यक्त करती हुई दिखती हैं।  




आगे बढ़ें -इससे पहले कुछ इस किले का इतिहास भी जान लेंगे तो और अच्छा है ! 

बहू किला जम्मू के सबसे पुराने किलों में से एक है, जिसे राजा बाहुलोचन ने लगभग 3000 साल पहले बनवाया था और बाद में 19 वीं शताब्दी में किंग्स ऑफ डोगरा राजवंश द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस किले का धार्मिक महत्व भी है,क्योंकि यहां काली माता का भी एक सुन्दर मंदिर है जिन्हें स्थानीय  लोग  “बावली वाली माता” कहकर पुकारते हैं। 





इस किले का संबंध बहू लोचन और राजा जम्बू लोचन से है, दोनों राजा अग्निगर्भ द्वितीय के पुत्र थे जो सूर्यवंशी वंश के थे। अग्निगर्भ के 18 पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र, बहू को जम्मू शहर के विकास के साथ-साथ किले के लिए भी श्रेय दिया गया है। इस किले की प्रागैतिहासिक संरचना कई वर्षों पहले से एक सुसज्जित संरचना में बदल गई। ऑटार देव जो शासक कपूर देव के पोते थे, ने 1585 में इसी स्थान पर इस किले का पुनर्निर्माण कराया। कई वर्षों तक यह किला समय-समय पर ध्वस्त और पुनर्निर्माण करता रहता है, लेकिन अंतिम वर्तमान संरचना 19 वीं शताब्दी में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा बनाई गई थी। इस किले को फिर से अपने शासन की अवधि के दौरान महाराजा रणबीर सिंह द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। 



ऐसा कहा जाता है कि एक दिन जब राजा शिकार पर थे, उन्होंने एक असामान्य दृश्य देखा- एक बाघ और एक बकरी बाघ पर हमला किए बिना तवी नदी का पानी पी रहे थे! इसे ईश्वरीय संकेत मानते हुए। राजा ने तब यहां इस किले के साथ अपनी राजधानी स्थापित की थी। किला एक ऊंची पठारी भूमि है, जो तवी नदी के बाईं ओर है।





किले की वास्तुकला स्पष्ट रूप से डोगरा शासकों के भव्यता को दर्शाती है। बहू किले के चारों ओर एक बगीचा है। इसे बाग-ए-बहू कहा जाता है और यह एक बहुत अच्छी तरह से Maintained garden है जिसमें सुंदर फूलों के बिस्तर, फव्वारे और उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा भूमिगत मछलीघर यानी Aquarium भी है।

बाग़ और एक्वेरियम जाने के लिए अलग -अलग टिकट लगता है।  शायद 25 या 30 रूपये का टिकट था।  मैंने गार्डन घूमना तय किया और जा पहुंचा एक बेहद  खूबसूरत बाग़ देखने।  करीब दो घण्टे लग गए , शायद और भी घूमता थोड़ा बहुत लेकिन फ़ोन की रिंग बजने लगी थी।  दूसरे गेट पर मित्र सुखाराम बिश्नोई इंतज़ार कर रहे थे।  उनसे पहली बार मिलना हो रहा था , हालाँकि हम सोशल मीडिया के माध्यम से कई सालों से परिचित थे।  

अगली जगह निकलेंगे अब और सच मानिये वो जगह अनूठी भी है , सुन्दर भी है और शायद आपने उसके बारे में सुना भी नहीं होगा ! मिलते हैं जल्दी ही 

3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खूबसूरत चित्रों से सजी एक और खूबसूरत यात्रा ....

ISRO INDIA ने कहा…

https://gujratisro.blogspot.com/2023/09/2.html

सुशांत सिंघल ने कहा…

मुझे आपके ब्लॉग पढ़ना बहुत अच्छा लगता है और जम्मू को आपकी निगाह से देखने और समझने में तो बहुत आनंद आने वाला है! बहुत उत्सुकता से इस श्रृंखला की अगली पोस्ट की ओर बढ़ रहा हूं! मैं किले में मंदिर और बाग ए बहू देखने गया था पर आज तक उसका वृत्तांत नहीं लिखा! अब मुझे भी उत्साह अनुभव हो रहा है!