रविवार, 5 नवंबर 2023

Balidan Stambh-Mubarak Mandi : Jammu

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26 June-2022

शाम होने में अभी कुछ देर बाकी थी ! शायद तीन या साढ़े तीन बजे होंगे जब मैं बहु बाग़ से बाहर निकला था।  जिस गेट से एंट्री लिया था उससे दूसरे वाले गेट पर बाहर निकला था , यहां सुखराम बिश्नोई जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! एंट्री गेट पर आपको चाय -पानी तक की भी कोई दुकान देखने तक को भी नहीं मिलती मगर इस वाले गेट पर न केवल दुकानें थीं बल्कि ऑटो / ई रिक्शा भी बहुत सारे खड़े थे ! 



सुखराम बिश्नोई भाई अपनी हॉस्पिटल ड्यूटी खत्म कर के सीधे यहीं आ गए थे अपनी बाइक से और इससे मेरा बहुत सा टाइम बच गया जिससे मैं ऐसी जगहों तक भी जा पाया जिनके बारे में मुझे पहले से पता नहीं था ! ऐसी ही एक जगह थी -जम्मू का बलिदान स्तम्भ ! 



बलिदान स्तंभ ,  जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित एक स्मारक है । इसका निर्माण उन सैनिकों और पुलिसकर्मियों के वीरतापूर्ण कार्यों को याद करने के लिए किया गया था जो सीमाओं की संप्रभुता की रक्षा के लिए और जम्मू-कश्मीर में चल रहे विद्रोह के दौरान मारे गए थे । देश में अपनी तरह का पहला निर्माण भारतीय सेना द्वारा 2009 में 13 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। यह एक सैनिक की बंदूक के आकार में साठ मीटर ऊंचा है। देश भर के 52 स्तंभों पर 4877 शहीदों के नाम अंकित हैं। कुछ स्तंभ कारगिल युद्ध में शहीद हुए 543 सैनिकों को समर्पित हैं। इन शहीदों में से 71 जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों से थे। बाद में, जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के दौरान मारे गए सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के 15,000 कर्मियों को स्मारक में सम्मानित किया गया। 




स्तंभ का आकार 
संगीन राइफल जैसा है। स्तंभ की ऊंचाई आधार से लगभग 60 मीटर है और सूर्य की किरणें इसके किनारों से छनकर आती हैं। आधार पर एक शाश्वत ज्योति है, शहीद की लौ को राइफल के बट के भीतर रखा जाता है। स्मारक का डिज़ाइन 5.56 मिमी इंसास राइफल के इर्द-गिर्द घूमता है । प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ 6 मीटर लंबी इंसास गोलियां खड़ी की गई हैं। यह स्मारक विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के भीतर युद्ध और आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान शहीद हुए सैनिकों को समर्पित है। इसमें 1947-1948 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1962 का भारत-चीन युद्ध , 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1999 का कारगिल युद्ध और 1990 के बाद से आतंकवाद विरोधी अभियान शामिल हैं। ये नाम स्मारक की परिधि के चारों ओर बने स्तंभों और अमर जवान ज्योति के आसपास की दीवारों पर भी अंकित हैं। परिधि के आधे हिस्से में परमवीर चक्र और अशोक चक्र पुरस्कार विजेताओं के भित्ति चित्र हैं


जितनी सुन्दर और ऐतिहासिक ये जगह है उस हिसाब से यहाँ हमें उतने लोग नहीं दिखाई दिए।  बाद में जब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स में इस बात का जिक्र किया तो पता चला कि ज्यादातर लोगों को इस जगह का पता ही नहीं है , यहाँ तक कि जम्मू के स्थानीय लोग भी इस जगह से अनभिज्ञ हैं ! 

           

अगर आप कभी जम्मू से कटरा या जम्मू से उधमपुर वाली ट्रेन से गए हों तो आपको इस पर लगी राइफल स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन आप इसको तभी पहचान पाएंगे जब आप यहाँ कभी गए हों ! सर्दियों में शाम पांच बजे तक और गर्मी के मौसम में छह बजे तक खुले रहने वाले बलिदान स्तम्भ का कोई टिकट नहीं लगता है ! 
हमे लगभग पांच बज चुके थे और अब यहाँ बलिदान स्तम्भ पर देखने के लिए कुछ खास बचा नहीं था इसलिए बिश्नोई भाई ने अपनी बाइक कहीं और जाने के लिए तेजी से दौड़ा दी। मेने उनसे पुछा भी - अब कहाँ ? तोह बोले -योगी भाई आपको बहुत जबरदस्त जगह दिखाऊंगा जो बिलकुल आपके मतलब की है। 

उन्होंने बाइक इधर उधर घूमते हुए अमर पैलेस पर जाके रोक दी। अमर पैलेस डोगरा राजाओं के समय में एक महल हुआ करता था जो अब होटल में परिवर्तित हो चुका है।  यहाँ हमारे लिए करने को कुछ था नहीं तो बहार से एक - दो फोटो लिए और चलते बने। 


अगला पड़ाव मुबारक मंडी था। मुबारक मंडी डोगरा राजाओं के समय का सचिवालय कहा जा सकता है। यहाँ आपको डोगरा राजाओं के समय के विदेश मंत्रालय , रक्षामंत्रालय  जैसी बिल्डिंग देखने को मिल जाएँगी। यहाँ विदेश मंत्रालय वाले भवन में एक म्यूजियम भी है मगर जब वहां पहुंचा तब तक वह बंद हो चुका था। 



आसपास की अधिकांश बिल्डिंग यूरोपियन स्टाइल में बनी हुई है जिनका अब जीर्णोद्धार किया जा रहा है। उम्मीद कर सकते है कि यहाँ फिर से वही पुराना रूप और गौरव दिखाई देगा !




पास में ही रानी चरक का खण्डहरनुमा महल भी है जो बहुत आकर्षित करता है ! बिलकुल गिरने की हालत में एक पहाड़ी पर खड़ा ये महल , मेरे लिए जम्मू का सबसे बड़ा आकर्षण था ! पहाड़ी तक जाकर इस महल में घुसने की न तो इजाजत थी और न उतना समय था हमारे पास इसलिए नीचे से ही फोटो लिए और अपनी अगली और आखिरी मंजिल की तरफ बढ़ गए! आखिरी मंजिल -जामवंत गुफा! मगर उसकी बात अगली पोस्ट में करेंगे..... 




7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, अच्छी जानकारी दी हैं ध्न्यावाद

Madhav Kumar ने कहा…

बहुत बढ़िया यात्रा वृतांत

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

मैंने तीनो जगह नही देखी ।जबकि आपने बताया था ।क्योंकि मेरे पास भी टाइम नही था।पर जामवंत गुफा जरूर देखी थी और हर की पौड़ी भी।

बेनामी ने कहा…

जी

राजेश सहरावत ने कहा…

शानदार गुरु जी

सुशांत सिंघल ने कहा…

आप सच में ही साधुवाद के पात्र हैं जो ऐसी गुमनाम सी मगर अत्यंत महत्वपूर्ण जगह पर प्रयासपूर्वक पहुंचते हैं और उनका परिचय हम सब को भी देते हैं!
मैं अब तक तीन बार जम्मू गया हूं पर मुझे सिर्फ अंतिम खंडहरनुमा महल तो दिखाई दिया था, पर और जगहों का कोई ज्ञान नहीं था! इस जानकारी को हम तक पहुंचने के लिए आपका विशेष आभार!
आज जबकि पाठकगण फेसबुक, इंस्टाग्राम तक ही सीमित रह जाते हैं और ऐसे यात्रा ब्लॉग तक जाने से चूक जाते हैं, मेरे जैसे ब्लॉगर ब्लॉग लिखने लायक उत्साह अनुभव नहीं करते पर आपने फिर भी इस मशाल को प्रज्वलित रखा है, कृपया इसे बुझने न दें! ये ब्लॉग अत्यंत महत्वपूर्ण हैं!