आगरा से ग्वालियर पैसेंजर ट्रेन से यात्रा
Date of Journey : 03 December 2019
Date of Journey : 03 December 2019
सपना संजोना और उसे फिर हकीकत में बदलने के लिए संघर्ष करना , यही एक इंसान की फितरत होती है और यही उसे जीवन जीने के लिए पल -पल , क्षण -क्षण प्रेरित भी करता है। सपने अलग हो सकते हैं , संघर्ष अलग हो सकता है लेकिन सोच एक होती है -अपने सपने को हकीकत में बदलने की नियमित कोशिश करना।
सपना तो नहीं कहूंगा इसे लेकिन लिस्ट में जरूर शामिल किया हुआ है। ये है नई दिल्ली से तिरुवनंतपुरम तक केरला एक्सप्रेस ( 12626 ) के रूट को फॉलो करते हुए पैसेंजर से यात्रा करना। कठिन नहीं है ! कहने में जितना आसान है करने में उतना ही मुश्किल क्योंकि मेरे जैसे एक बहुत सामान्य व्यक्ति के लिए नौकरी और फॅमिली के बीच से समय चुराना पड़ता है , निकलता नहीं। मैं जब इस यात्रा को बनाने बैठा था तो 22 दिन लग रहे थे क्योंकि मेरा मकसद सिर्फ स्टेशन के फोटो लेना ही नहीं है , रास्ते में पड़ने वाले मुख्य स्थानों के साथ -साथ कम प्रसिद्ध जगहों की पहचान करना और उनको घूमना भी शामिल है। कुल 3033 किलोमीटर की इस यात्रा में अभी तक कुल 600 किलोमीटर की यात्रा संपन्न हो पाई है लेकिन विश्वास है कि होगी जरूर और ये मैंने देखा है जो मैं ठान लेता हूँ उसे करके ही रहता हूँ। हाँ , देर लगती है लेकिन उस काम को ईश्वर के आशीर्वाद से पूरा कर पाता हूँ। ज्यादा बड़े ख्वाब नहीं हैं मेरे ...
पिछली यात्रा में हम नई दिल्ली से मथुरा तक जा पहुंचे थे। आज आगरा छावनी से ग्वालियर जंक्शन तक चलते हैं। रोड से जाएंगे तो दूरी 120 किलोमीटर की है लेकिन ट्रेन से जाएंगे तो दूरी 2 किलोमीटर और कम हो जाती है और बचती है 118 किलोमीटर। आगरा छावनी से ग्वालियर जंक्शन तक अगर इन दोनों स्टेशन को शामिल करते हैं तो कुल 14 रेलवे स्टेशन मिलेंगे जिनमें से ज्यादातर स्टेशन ऐसे हैं जो बहुत छोटे हैं और मुझे भरोसा है आपने इनमें से कई के नाम भी नहीं सुने होंगे।
आगरा में जहाँ तक मैं जानता हूँ : आगरा छावनी , आगरा फोर्ट , राजा मण्डी , जमुनापार और बिल्लोचपुरा कुल पांच स्टेशन है। सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त स्टेशन आगरा कैंट (छावनी ) है जो दिल्ली -मुंबई के बिजी ट्रैक पर है और लगभग सभी ट्रेनें रूकती हैं यहां। मैं निजामुद्दीन से दक्षिण एक्सप्रेस से सुबह दो -ढाई बजे रात में ही आगरा कैंट पहुँच गया था जबकि आगरा कैंट से झाँसी की तरफ जाने वाली पैसेंजर ट्रेन सुबह 6 :05 निकलती है यानी मुझे करीब चार घण्टे स्टेशन और आसपास ही बिताने थे। दिसंबर की ठण्ड हो और भयंकर काली रात हो , चार घण्टे गुजारना भारी हो जाता है। सो भी नहीं सकता कि कहीं मैं सोता रह जाऊं और ट्रेन निकल जाए ! कई बार ऐसा हो भी चुका है पहले भी मेरे साथ इसलिए पक्का कर लिया था कि सोऊंगा नहीं। पूरी रात आँखों में ही जायेगी।
हालाँकि इसके बाद भी एक और ट्रेन हैं सात बजे के आसपास जो ग्वालियर तक जाती है लेकिन रितेश गुप्ता जी ने बताया था कि सर्दी शुरू होते ही ग्वालियर पैसेंजर का टाइम और उसका चलने का schedule गड़बड़ा जाता है। रितेश जी की बात सही होने के पूरे चांस थे क्यूंकि वो खुद आगरा से ही हैं। खैर रात के चार घण्टे चार कॉफ़ी पीते हुए गुजार ही दिए और निर्धारित समय से करीब आधा घंटे पहले ही ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लग गयी। मेरे लिए तो अच्छा ही हुआ !! अब मैं थोड़ा नींद खींच लूंगा क्यूंकि अभी तक ट्रेन के डिब्बे में मेरे सिवाय कोई नहीं है। पैर लम्बे करके पड़ गया लेकिन एक गड़बड़ हो गयी। ट्रेन कब चली और कब अगले स्टेशन भांडई को पार कर गई , पता ही नहीं चला। पूरी रात के जगे हुए इंसान की इतनी गलती तो माफ़ हो जानी चाहिए। एक ही स्टेशन निकला लेकिन स्टेशन जैसे ही निकला आँख खुल गयी। साढ़े छह बजे थे अभी। इसका मतलब हुआ कि मैं करीब एक घण्टे की नींद ले चुका था। अब फ्रेश था और पूरे दिन की घुमक्कड़ी के लिए तैयार था।
जाजौ करके एक स्टेशन आया था बीच में कहीं जिसका आधी खुली आँखों से फोटो ले लिए। साढ़े सात बजे के आसपास ट्रेन मनिया स्टेशन आकर रुक गई थी और चाय -चाय की आवाज़ आने लगी थी। ज्यादा बड़ा स्टेशन नहीं है मनिया लेकिन ठीक ठाक लोग ट्रेन में घुसने लगे थे। आँखों में नींद अभी तक बसी हुई थी इसलिए बाहर नहीं निकला और अंदर से ही फोटो लेकर फिर आँखें बंद कर लीं। खिड़की हल्की सी खुली हुई थी जिससे ठंडी ठंडी हवा आ रही थी जो माँ की लोरी जैसे सुलाने का प्रयत्न कर रही थी। धौलपुर पहुँचते पहुँचते सूरज की किरणें अपनी आभा फैला चुकी थीं और जैसे जैसे सूरज की किरणें आँखों पर पड़ रही थीं , आँखों के पट धीरे -धीरे खुलते जा आहे थे। धौलपुर भी घूमने लायक जगह है और अपनी लिस्ट में भी है लेकिन अभी तक संभव नहीं हो पाया है। बहुत मन है धौलपुर जंक्शन से सिरमथुरा जाने वाली छोटी लाइन पर यात्रा करने का। देखते हैं कब समय आता है।
ये जो धौलपुर से सिरमथुरा वाली छोटी लाइन है , छोटी लाइन यानि 2 फुट 6 इंच (762 mm ) वाली लाइन। इसे धौलपुर के महाराजा राम सिंह ने दिसंबर 1905 में बनवाना शुरू किया था और फरवरी 1908 में चालू हो गयी थी। अगर आज की बात करें तो 112 पुरानी इस लाइन पर यात्रा करने में अलग ही आनंद रहेगा। ब्रिटिश काल में बनी कुल 72 किलोमीटर लम्बी इस लाइन में मोहारी नाम का एक जंक्शन भी आता है। आनंद का फुलटू पैकेज !!
धौलपुर से निकलते निकलते ट्रेन लगभग फुल हो चुकी थी। अब मुझे भी सीट पर बैठने की कोई इच्छा नहीं थी इसलिए अपनी गर्म शॉल कंधे पर डालके दरवाज़े पर धूनी रमा ली। हेतमपुर और सिकरोदा नाम के स्टेशन निकलते चले गए और मुरैना पहुँच गए। इधर एक अच्छी चीज देखी। पहले जहां रेलवे फाटक होते थे वहां अब रेलवे लाइन के नीचे से रास्ते बना दिए गए हैं। अब हमारी तरफ यानि अलीगढ की तरफ भी ऐसे ही बनने लगे हैं जो एक बेहतर विकल्प है। जो रेलवे रूट ज्यादा व्यस्त होते हैं वहां फाटक के दोनों तरफ भयंकर भीड़ हो जाती है , उससे पार पाने के लिए ये एक बेहतरीन विकल्प है।
मैंने देखा है , मुरैना ज्यादातर लोगों की बकेट में नहीं होता लेकिन एक बार फिर से नेट सर्फ करिये और मुरैना को दोबारा से जानिये। आपको बेहतरीन जगहें मिलेंगी यहां घूमने की और ये भी कि एक दिन में आप भारतीय संस्कृति का खजाना देख लेंगे अगर मुरैना आते हैं तो। यहां आपको संसद भवन जैसी आकृति का चौंसठ योगिनी मंदिर देखने को मिलेगा , 180 मंदिरों का समूह "बटेश्वर " देखने को मिलेगा और एक पुराना किला भी देखने को मिलेगा। इसके अलावा आप कुंती को जहां कारण का वरदान मिला था सूर्य भगवान से , वो जगह भी आप देख सकते हैं। मेरी मुरैना की यात्रा को प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्र "दैनिक जागरण " ने यात्रा अंक में प्रकाशित भी किया था। अगर आपको मुरैना ने आकर्षित किया हो तो आप मुरैना पर लिखी मेरी पोस्ट भी देख सकते हैं।
मुरैना कोई बहुत बड़ा शहर नहीं है और न ज्यादा आधुनिक है। पहले लोग मुरैना को चम्बल से जोड़कर देखते थे लेकिन अब वक्त है इसकी परिभाषा को बदल देने का। अब इसे चौंसठ योगिनी वाला मुरैना , बटेश्वर मंदिरों वाला मुरैना कहिये जनाब। मुरैना से निकलते हैं तो सांक नाम का छोटा सा स्टेशन आता है। यहीं आसपास सांक नाम की नदी भी बहती है। स्टेशन का नाम भी शायद वहीँ से लिया गया है। अगला स्टेशन नूराबाद है। नूराबाद , हम अपनी पिछली यात्रा में गए थे जब बटेश्वर गए थे तब। छोटा सा कस्बा जैसा है और एक बहुत पुराना किला दिखा मुझे लेकिन वो खण्डहर हो चुका है इसलिए मैं कहूंगा कि उस पर समय व्यर्थ करने फायदा नहीं है।
अब बानमोर आ पहुंचे हैं। बानमोर को आप एक industrial जगह कह सकते हैं। ग्वालियर के आसपास दो indistrial एरिया डेवेलोप किये गए थे , एक मालनपुर और एक ये बानमोर। मालनपुर में मैं गया था एक जगह इंटरव्यू देने बहुत साल पहले। कंपनी का नाम याद नहीं आ रहा लेकिन वो कम्पनी टीवी के picture tube बनाती थी लेकिन अब वो टीवी ही आने बंद हो गए तो वो कंपनी भी शायद बंद हो गयी होगी। Hitech थी या कोई और ?याद नहीं आ रहा। ऐसे ही बानमोर में JK Tyres और Bridgestone Tyres की कम्पनियाँ थीं। अब क्या हाल है उनका ? मुझे नहीं मालुम ! किसी को कुछ पता हो तो जरूर बताइयेगा।
बानमोर से निकलने के बाद रायरू आता है। इस स्टेशन से बहुत पहले से परिचित हूँ मैं। झाँसी के अपने कॉलेज जाते हुए हमारी ट्रेन को कई बार रायरू पर ग्रीन सिग्नल नहीं मिलते थे इसलिए बहुत -बहुत देर तक वो यहाँ खड़ी हो जाती थी। एक परिचित स्टेशन से फिर से मुलाक़ात करते हुए अच्छा तो लगा ही , अपने उन यार दोस्तों की भी याद हो आई जिनके साथ अक्सर हॉस्टल से आते जाते इस रूट पर यात्रा किया करता था अपने कॉलेज के दिनों में।
बिरलानगर आ पहुंचे हैं अब। ग्वालियर का ही एक स्टेशन कह सकते हैं आप बिरला नगर को। आसपास बिरला ग्रुप की कंपनियां रही होंगी यहां जिनमें काम करने वालों की सुविधा के लिए ये स्टेशन बनाया गया होगा। नौ बजने में दस मिनट का समय शेष है अभी और मैं ग्वालियर स्टेशन पर उतर चुका हूँ। मेरी उम्मीदों से दस मिनट पहले ही ट्रेन ने मुझे ग्वालियर के अपने गंतव्य पहुंचा दिया है। आज की यात्रा यहीं तक है बस। आज पूरा ग्वालियर घूमना है जितना संभव होगा। बहुत कुछ है ग्वालियर में देखने और घूमने को , ऐतिहासिक से लेकर धार्मिक और सांस्कृतिक जगहें। आइये घूमते हैं और फिर कल आगे की यात्रा पर निकलेंगे ...
फिर मिलेंगे जल्दी ही एक और यात्रा के किस्से -कहानियां लेकर




















2 टिप्पणियां:
कितने ही नामों और स्टेशन के फोटो देख कर अच्छा लाग ... ये भी एक अंदाज़ है यात्रा का ... रोचक ...
धन्यवाद!!! बहुत अच्छा लगा ये सब पढ़कर।
एक टिप्पणी भेजें