शनिवार, 2 मई 2020

Teli Mandir : Gwalior

Date of Journey : 03 Dec.2019

तेली का मंदिरग्वालियर
जो चीज जितनी अच्छी होती है उतनी ही मुश्किल भी। आप इसे उल्टा भी कह सकते हैं -जो जितनी मुश्किल होती है उसको पाने का जज़्बा भी उतना ही आनंद देता है।  सात -आठ साल पहले की बात है -हमारे कॉलेज के डायरेक्टर साब थे एक , डॉ जी एस यादवा ! आईआईटी से आये थे , बहुत ही ज्यादा कड़क .  एक फॅमिली गेट टुगेदर था कॉलेज के एम्प्लॉय का उसी में कुछ कहते हुए उन्होंने एक बात कही थी - सामान्य काम जरूर करते रहिये लेकिन वो काम जरूर करिये जिसे कोई नहीं करता या जो आपको बहुत कठिन लगता है।  दूसरी वाली बात पकड़ ली -जो काम कठिन लगे , उसे एक बार करने की कोशिश कर लेनी चाहिए।  कर ली -उर्दू सीखी ! टेढ़े -मेढ़े अक्षरों को जोड़ना सीखा।  जापानी सीखी - शब्दों को पिक्चर में व्यक्त करना सीखा ! ट्रैकिंग की और अभी भी जारी है। ... हाँ ! ऐसा कुछ नहीं किया जिसे कोई और न कर पाए ! 


एक ही दिन था ग्वालियर के लिए और वो भी करीब 10 बजे से शुरू हुआ था इसलिए दिन के घण्टे ही ज्यादा सही है लिखना।  केवल सुबह दस बजे से शाम के अँधेरे तक का समय था जिसमें अब तक गूजरी महल , ग्वालियर फोर्ट , चतुर्भुज मंदिर , सास-बहु मंदिर और जैन मूर्तियों के अद्भुत दर्शन कर चुका था।  Productivity अच्छी थी लेकिन अभी शाम की लालिमा आसमान से झाँकने लगे उससे पहले मैं जितना ज्यादा संभव हो पाए , उतना ग्वालियर देख लेना चाहता था।  चलते हैं ग्वालियर के एक और खूबसूरत नगीने की ओर : तेली मंदिर 

तेली का मंदिर ​भी ​ग्वालियर किले​ के परिसर ​में ​ही ​स्थित है।  यह एक बड़ी संरचना है जिसकी ऊंचाई करीब 100 फुट है।  इसकी छत की वास्तुकला द्राविड़ीयन शैली की है जबकि नक्काशियां और मूर्तियाँ उत्तर भारतीय शैली की बताते हैं। इसकी वास्तुशैली हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का सम्मिश्रण है। यह ग्वालियर के किले के परिसर का सबसे पुराना स्मारक है जिसका निर्माण 11 वीं या 8 वीं शताब्दी में हुआ था। ​किसने बनवाया ? पक्का कह पाना मुश्किल है !

 यह मन्दिर भगवान विष्णुशिव और मातृका को समर्पित है। इसका निर्माण काल विभिन्न विद्वानों द्वारा 8वीं शताब्दी से लेकर 9वीं शताब्दी के आरम्भिक काल के बीच में माना जाता है। मंदिर के अंदर देवियों, सांपों, प्रेमी युगलों और गरुड़ की मूर्तियां हैं जिनकी वास्तुकला और शैली आपको मंत्र मुग्ध कर देगी। इस मंदिर की एक और ख़ास बात है कहा जाता है कि गुलामी के समय इस मंदिर का इस्तेमाल अंग्रेज अफसर कॉफ़ी शॉप और सोडा फैक्ट्री के रूप में करते थे। 



'तेली मंदिर' के नाम के पीछे कई कहानियां भी प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार इसका निर्माण तेलंगाना की राजकुमारी ने करवाया था इसलिए इसका नाम तेली मंदिर पड़ गया। एक अन्य कहानी के अनुसार मंदिर का निर्माण तेल या व्यापार करने वाले लोगों ने मिलकर करवाया था इसलिए मंदिर का नाम तेली मंदिर पड़ गया।



 प्रवेश द्वार के एक तरफ कछुए पर यमुना व दूसरी तरफ मकर पर विराजमान गंगा की मानवाकृतियां हैं । आर्य द्रविड़ शैली युक्त इस मंदिर का वास्तुशिल्प अद्वितीय है । मंदिर के शिखर के दोनों ओर चैत्य गवाक्ष बने हैं तथा मंदिर के अग्रभाग में ऊपर की ओर मध्य में गरूढ़ नाग की पूंछ पकड़े अंकित है ।


उत्तर भारतीय अलंकरण से युक्त इस मंदिर का स्थापत्य दक्षिण द्रविड़ शैली का है । वर्तमान में इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है पर दरअसल यह एक विष्णु मंदिर था । कुछ इतिहासकार इसे शैव मंदिर मानते हैं । सन 1231 में यवन आक्रमणकारी इल्तुमिश द्वारा मंदिर के अधिकांश हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया था । तब 1881–1883 ई. के बीच अंग्रेज हुकमरानों ने मंदिर के पुरातात्विक महत्व को समझते हुये मेजर कीथ के निर्देशन में किले पर स्थित अन्य मंदिरों, मान महल(मंदिर) के साथ-साथ तेली का मंदिर का भी ​पुनर्द्धार  करवाया था । मेजर कीथ ने इधर-उधर पड़े भग्नावशेषों को संजोकर तेली मंदिर के समक्ष विशाल आकर्षक द्वार भी बनवा दिया ।




ग्वालियर यात्रा जारी रहेगी : 

5 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

बढ़िया जगह है। आपने अच्छा लिखा है
Sachin3304.blogspot.in

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बौद्ध काल की कला और उसके इतिहास को बिखेरते तेली मंदिर की अच्छी जानकारी साझा की है आपने ...
जाना पड़ेगा ग्वालियर ...

magiceye ने कहा…

Nice photo essay.

Ritesh Gupta ने कहा…

बढ़िया योगी भाई, मंदिर का टिकिट तो हमारे पास भी था, पर छोड़ना पड़ा समय की कमी के चलते ।

पर आपने बहुत ही अच्छा लिखा, आपने काफी जानकारी इस तेली मन्दिर के बारे में इस ब्लॉग में सँजोई ।

👌 धन्यवाद

Girjesh Lodhi ने कहा…

स्वागत है आपका ग्वालियर में ..
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