शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

Gurudwara Bandi Chhod : Gwalior

इस यात्रा को शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

Date of Journey : 03 Dec.2019 


पिछली पोस्ट का आखिरी फोटो देखेंगे तो उसके सामने एक खाली जगह और उसके आगे एक प्लेटफार्म जैसा दिखेगा। दोबारा लगाऊंगा उस पिक्चर को। ये जो खाली जगह और प्लेटफार्म है ये Light & Sound Show के लिए है। यहां हिंदी और अंग्रेजी में लाइट एंड साउंड शो होता है रात को 7: 30 बजे से जिसमें महानायक अमिताभ बच्चन की आवाज श्रोताओं को मुग्ध कर देती है। निश्चित बात है कि उसका टिकट लगता है। 


थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो कई सारे खम्भे दीखते हैं। चौरासी खम्भे बताते हैं लेकिन इतिहास अनुसार 80 खम्भे हैं जिसका जिक्र गुरु हरगोबिंद सिंह जी की कहानी में भी मिलता है -अस्सी खम्भे के रूप में। इन खम्भों को पता नहीं क्यों बनाया गया ? लेकिन इनका पैटर्न बहुत शानदार है। इनके आखिर में एक बावली है जिसे किले के लिए बनवाया गया था जिससे पानी की सप्लाई लगातार मिलती रहे फोर्ट को ! लेकिन जहांगीर ने इसका दूसरा ही फायदा उठाया। कहते हैं उसने गुरु हरगोबिंद जी और अनेक राजाओ को यहां बंदी बनाकर रखा था। गुरु हरगोबिंद सिंह जी , जो छठवें गुरु हैं , उन्हें सन 1606 में गुरु की गद्दी पर बिठाया गया था और तब उनकी उम्र क्या थी ? जानते हैं ! मात्र 11 वर्ष ! और 14 वर्ष की उम्र में जहांगीर ने उनकी ताकत , उनकी हिम्मत से डरकर उन्हें ग्वालियर में बंदी बना लिया।

उनको छोड़ने के साल पर इतिहासकारों में मतभेद हैं लेकिन इतना जरूर है कि उन्हें जिस जगह छोड़ा गया उसे बंदी छोड़ गुरुद्वारा कहा गया और उनके साथ कई और राजाओं को भी मुक्त किया गया। गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से मना कर दिया था और शर्त लगाईं थी कि उनके साथ बंदी रहे राजाओं को साथ छोड़ा जाएगा तभी वो भी मुक्त होंगे। असली लीडर ये होता है ! राजाओं की संख्या 52 बताते हैं जानने वाले।

मजेदार किस्सा है। गुरु हरगोबिंद सिंह जी को मुक्त करने के लिए जहांगीर ने अपने मंत्री वज़ीर खान को तीन बार उनके पास भेजा लेकिन गुरु जी अकेले वहां से नहीं जाना चाहते थे। आखिर चौथी मुलाक़ात में ये तय हुआ कि जो राजा , गुरु जी के वस्त्र को पकड़कर बाहर आएंगे वो मुक्त होंगे। जहांगीर असल में राजपूत राजाओं को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था लेकिन उस वक्त की परिस्थितियां कुछ इस तरह की बन गईं कि उसे ये शर्त लगानी पड़ी। सभी राजा , जो गुरु हरगोबिंद सिंह जी के साथ बंदी बने हुए थे , वो सब गुरु हरगोबिंद जी के चौंगे (गाउन ) का एक हिस्सा पकड़कर जेल से बाहर निकल आये और मुक्त हुए। 

हर वर्ष दीपावली के साथ ही बंदीछोड़ दिवस भी मनाया जाता है। सिख सम्प्रदाय में इस दिवस की बहुत मान्यता है क्यूंकि ये माना जाता है कि इसी दिन गुरु हरगोबिंद सिंह जी जेल से बाहर आये थे। गर्व है भारत को ऐसे आध्यात्मिक और समाज के नगीने पर !! मिलेंगे जल्दी ही......


ग्वालियर के जानकार लोग समझाएं ये क्या है ? 
अस्सी खम्भे का प्रवेश द्वार .......आकर्षित करता है 



ये अस्सी खम्भे के पीछे का हिस्सा है जहां सिक्योरिटी वाले ने जाने को रोक दिया 
अस्सी खम्भे ......गिने तो नहीं मैंने 
अस्सी खम्भे ........आपने गिने हैं कभी ?



ये है वो बावली जिससे फोर्ट को पानी की सप्लाई होती थी।  बहुत बड़ी है फोटो पूरा नहीं आ सका 
यही है क्या वो ग्वालपा ऋषि का सरोवर ? जिनके नाम पर इस शहर कानाम ग्वालियर पड़ा 



क्या खूबसूरत रास्ता है बंदीछोड़ गुरुद्वारा जाने का 




 बंदीछोड़ गुरुद्वारा 

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किले से भी ज्यादा गुरु की महिमा है इस गुरुद्वारे में ... इतिहास ऐसे ही महान देश के वीरों ने बनाया है ....
बहुत ही अच्छे फोटो और प्रणाम है मेरा गुरुद्वार में ...

pushpendra dwivedi ने कहा…

उत्कृष्ट लेखन का बेहतरीन उदाहरण , आपका लेख पढ़कर मन को प्रशन्नता प्राप्त हुयी

Anagha Yatin ने कहा…

I have never come across a post on Gwalior till date. This one is the first and you have captured the essence of the city so well. Good mix of the photos and the description kept me glued till the end. I loved the 8o pillar pic as well as that of the huge well! Interesting city, I must say.
Thanks for your enrichment.
-A new story 'A Sequestered Torn' is now available at https://canvaswithrainbow.com/a-sequestered-thorn/

Jyoti Dehliwal ने कहा…

योगी भाई, आज बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देखी। वहीं चीरपरिचित अंदाज में यात्रा वृतांत पढ़ना सुखद रहा।

सुशांत सिंघल ने कहा…

वाह! मैंने उरवाई द्वार से पैदल चलते - चलते किले में प्रवेश किया था तो मुझे सड़क के बाईं ओर ये खंभे वाला एक भवन दिखाई दिया था। उस समय सोचा कि वापसी में देखूंगा पर वापसी में मैं पूर्वी मार्ग से (गुजरी महल वाले) बाहर निकल आया और ये भवन देखना रह गया। बाद में मैं सोच रहा था कि आखिर उस भवन में क्या था, उसका क्या नाम था? आज आपका ये ब्लॉग पढ़ कर मेरी जिज्ञासा शांत हुई जिसके लिये आपका आभार !