लेक सिटी उदयपुर : मोती मगरी
दिनांक : 22 जनवरी 2015
उत्तराखंड और हिमाचल को जैसे हम देव भूमि कहते हैं उसी तरह राजस्थान को
वीरों की भूमि कहा जाता है ! उत्तर प्रदेश को क्या कहा जाता है ? मुझे नहीं
मालुम !! इसी राजस्थान का मेवाड़ इलाका विश्व भर में अपने वीरों और उनकी
वीरताओं की कहानियों से भरा हुआ है ! मेवाड़ का मूल नाम मेधपाट हुआ करता था
जो कालांतर में मेवाड़ हो गया और इस राज्य के देवता भगवन शिव हुआ करते थे
जिन्हें एकलिंगनाथ बोला जाता था , इसीलिए कभी कभी भगवन शिव को मेवाड़ में
मेधपाटेश्वर भी कहा जाता है ! वर्तमान में मेवाड़ का क्षेत्रफल यूँ राजस्थान
से लेकर गुजरात और इधर हरियाणा तक फैला है लेकिन मुख्य रूप से राजस्थान के
चित्तौड़गढ़ , भीलवाड़ा , राजसमन्द और उदयपुर मिलाकर मेवाड़ बनाते हैं ! इसी
मेवाड़ की धरती को नमन करने का मन वर्षों से दिल में था जो अब जाकर पूरा
हुआ ! नए साल के अवसर पर जिस कॉलेज में मैं काम करता हूँ उसने अपने उन
कर्मचारियों के लिए जिन्हें पांच साल या ज्यादा हो गए हैं , एक उपहार दिया
जिसमें पांच दिन की छुट्टी और परिवार के साथ कहीं घूमने फिरने का खर्च
शामिल था ! मुझे भी यहां सात साल हो गए हैं, मैं भी इसका हकदार था और
मैंने बिलकुल भी देर नहीं लगाईं अपना प्रोग्राम बनाने में !
21 जनवरी के लिए हजरत निजामुद्दीन स्टेशन , दिल्ली से उदयपुर तक मेवाड़
एक्सप्रेस ( 12963 ) में आरक्षण कराया और 26 जनवरी को उसी ट्रैन से वापसी
का भी !
राजस्थान की तरफ जाने वाली ट्रेनों की एक विशेषता है कि आपको
यात्रा वाले दिन से 3-4 दिन पहले तक भी कन्फर्म टिकेट मिल जाएगा जबकि बिहार
, बंगाल की तरफ जाने वाली ट्रेन देखें तो 3-4 महीने पहले भी शायद कन्फर्म
टिकेट न मिले ! तो 21 जनवरी को तय समय शाम को 7 :00 बजे गाडी रवाना हो गयी !
2-3 बार पहले भी इस ट्रेन से चंदेरिया तक जाने का अवसर प्राप्त हुआ है
लेकिन इस बार अंतिम स्टेशन उदयपुर तक जाना था ! मथुरा , भरतपुर निकलते
निकलते नींद आ गयी और आँख खुली अपने पुराने जाने पहिचाने स्टेशन चंदेरिया
पर ! चित्तौड़गढ़ से बिलकुल पहले का स्टेशन है चंदेरिया ! यहां बिरला के दो
बड़े सीमेंट कारखाने BCW ( बिरला सीमेंट वर्क्स ) और CCW ( चेतक सीमेंट
वर्क्स) हैं जिनमें से एक में मेरे बहनोई कार्यरत हैं ! उस वक्त सुबह के
लगभग चार बजे होंगे , बारिश हो रही थी और जनवरी के महीने में अगर बारिश हो
जाए तो सर्दी का क्या हाल होता है , आप जानते हैं ! जल्दी से फिर वापस आकर
कम्बल में घुस गया और उदयपुर के साफ़ सुथरे स्टेशन पर ही जाकर अपने डिब्बे
में से बाहर निकला ! राजस्थान में भी गजब की ठण्ड होती है यार !
स्टेशन से ऑटो कर सीधे होटल और फिर उसी ऑटो वाले को कह दिया कि भाई एक घंटे
बाद फिर से आ जाना , उदयपुर के दर्शनीय स्थल दिखाने के लिए ! कुल 12 जगह
दिखाने की बात थी और किराया तय हुआ 600 रूपया ! सुबह 9 बजे से शाम लगभग 7
बजे तक , ज्यादा नहीं था !
सबसे पहले उसने मोती मगरी ले जाने का तय किया ! क्यूंकि सुबह से बस एक कप
चाय ही पी थी , रास्ते में उससे कहीं नाश्ता कराने के लिए कहा तो उसने नगर
निगम के सामने अपना औरो रोक दिया , बोला सर - यहां बढ़िया नाश्ता मिल जाएगा
आपको ! चार कचौड़ी और दो मिर्ची बड़ा ! मिर्ची बड़ा , एक फुट लम्बी हरी मिर्च
के ऊपर बेसन लपेट कर बनाते हैं ! लेकिन मिर्ची बस नाम की , बिलकुल भी
तीखापन नही ! इसीलिए शायद उसने उस पैकेट में आठ दस ऐसी ही मिर्च और भी रख
दी होंगी ! कचर कचर गाजर की तरह खाते जाओ ! इसका नाम मिर्च न होकर हरी गाजर
होना चाहिए था !
आइये मोती मगरी की सैर करते हैं और इसी रास्ते पर पड़ने वाले उदयपुर नगर
निगम के अरावली पार्क को भी देखते चलते हैं :
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दोनों बेटे : हर्षित और पारितोष |
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महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा |
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महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा |
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महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की अंतिम सांस का मार्मिक दृश्य |
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महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा |
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महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा |
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मोती मगरी से उदयपुर का विहंगम दृश्य |
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हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप के सेनापति रहे हकीम खां सूर की प्रतिमा |
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मोती मगरी के सामने भामाशाह की प्रतिमा |
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मोती मगरी के सामने भामाशाह की प्रतिमा |
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