मोती मगरी में अपना
तो टिकट लगता ही है , जिस वाहन से जाते हैं उसको अंदर ले जाने का भी टिकट
लेना पड़ जाता है ! लेकिन अन्दर पहुंचकर आप इस के विषय में भूल जाते हैं और
वहां से मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्यों में इतना डूब जाते हैं कि याद ही
नहीं रहता कि हमने इसके लिए अलग से पैसे दिए हैं ! वैसे ऐसा कोई प्रतिबन्ध
नहीं है कि आप वाहन से ही अंदर जाएँ , मुख्य गेट के पास ही से मोती मगरी
हिल तक के लिए सीढ़ियां बानी हुई हैं जिनके माध्यम से आप ऊपर जा सकते हैं और
अपनी फिटनेस भी जांच सकते हैं ! मोती मगरी के ही बिल्कुल पास फ़तेह सागर झील
है ! 1680 ईस्वी में मेवाड़ के राजा महाराणा फ़तेह सिंह के नाम पर बनी इस
झील के लगभग मध्य में नेहरू पार्क नाम से एक पार्क है जहां तक आप सिर्फ नौका से ही
पहुँच सकते हैं और पक्की बात है कि इसके लिए भी आपको टिकट लेना पड़ेगा ! हर
15 मिनट के अंतराल पर एक नौका इस किनारे से निकलती है , ये समय और भी
ज्यादा हो सकता है अगर पर्याप्त सवारियां नहीं मिलती हैं तो ! नेहरू पार्क
में ऐसा कुछ भी नहीं है , जिसकी प्रशंसा करी जाए लेकिन आदमी वहां तक गया है
तो सोचता है , देखते ही चलते हैं ! इतना खर्च कर रहे हैं तो थोड़ा और सही !
और इसी चक्कर में वो अंदर तक भी हो ही आता है ! लेकिन इसके ही साथ इसमें
दो आइसलैंड और भी हैं ! एक है वाटर जेट फाउंटेन और दूसरा उदयपुर सोलर
ऑब्जर्वेटरी ! ये दोनों देखने लायक हैं ! फ़तेह सागर झील उदयपुर की चार
झीलों - पिछोला झील , उदय सागर झील , और धेबार झील में से एक है ! साफ़
सुथरी है !
वास्तव में फ़तेह सागर लेक का निर्माण महाराणा जय सिंह ने 1687
में शुरू कराया था लेकिन उनका निर्माण बाढ़ में बह गया और फिर सन 1889 के
आसपास महाराणा फ़तेह सिंह जी ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के पुत्र ड्यूक
ऑफ़ कनॉट की यात्रा को यादगार बनाने के लिए देवली झील के किनारे कनॉट डैम
बनवाया जिसे बाद में बड़ा करके झील में परिवर्तित कर दिया गया और फिर इस
झील को फतह सागर झील नाम दिया गया ! ये वही कनॉट थे जिनके नाम पर दिल्ली का
प्रसिद्द कनॉट प्लेस है।
कभी कभी दो जाने पहिचाने चेहरे कहाँ और कैसे मिल जाते हैं , अंदाजा लगाना ज़रा मुश्किल है ! इधर इस किनारे से बोट चलने में थोड़ा समय बाकी था तो अपनी फैमिली के साथ मैं बस ऐसे ही रोड साइड घूम रहा था ! किसी ने आवाज़ लगाईं -सारस्वत ! यहाँ मुझे इस नाम से कौन बुला सकता है ? मैं पीछे मुड़कर देखता उससे पहले ही वो मेरे कंधे पर हाथ मार चुका था ! राजू चौधरी ! मेरा मित्र ! झाँसी में डिप्लोमा करते समय हम हॉस्टल में साथ
रहे हैं ! राजकीय पॉलिटेक्निक झाँसी के दिन , वो तीन साल , याद आ गए पल भर
में ! हालाँकि राजू मेरे बेस्ट फ्रैंड में कभी शामिल नहीं रहा और उसकी
ब्रांच भी इलेक्ट्रॉनिक्स थी और मेरी मैकेनिकल (हथोड़ा छाप ), लेकिन साथ पढ़े लोग हमेशा मित्र होते हैं और जब पंद्रह साल बाद मिलते हैं तो बेस्ट से भी ज्यादा बेस्ट लगते हैं ! हालाँकि डिप्लोमा के बाद डिग्री भी हो गयी और एम.टेक. भी !
लेकिन जो आनंद डिप्लोमा के उन तीन साल में आया वो दोबारा फिर कभी नहीं आ
सका । हॉस्टल की यादें फिर कभी साझा करूँगा ! आज बस इतना ही !
फतह सागर झील के ही बिलकुल पास में एक संग्रहालय है जिसे वीर भवन कहा जाता है ! इस संग्रहालय में महाराणा प्रताप और उनके वंशजों और मेवाड़ के अनेक वीरों और योद्धों में शहीद हुए भील नायकों की आदमकद तस्वीरें लगी हैं ! यहां आप मेवाड़ के उस समय के लोगों की देशभक्ति के साक्षात दर्शन कर सकते हैं ! हमेशा पूजा पाठ और कर्मकांडों में व्यस्त रहने वाले ब्राह्मणों तक ने देश की रक्षा के लिए तलवार उठाने में गुरेज नहीं किया था ! दो मंजिल के इस संग्रहालय में आपको उस समय के कुम्भलगढ़ और चित्तौड़गढ़ के दुर्ग के मॉडल देखने को मिलते हैं जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उस वक्त मेवाड़ कितना विस्तृत , कितना धनी और कितना वीर हुआ करता था !
आइये कुछ फोटो देखते हैं :
मोती मगरी हिल पर बनी प्याऊ और जमना लाल बजाज की प्रतिमा |
वीर भवन , फतह सागर लेक के बिल्कुल पास ही है |
कुम्भलगढ़ फोर्ट का मॉडल |
और ये दाँत दिखाता पुराना मित्र राजू चौधरी |
फतह सागर का शानदार नजारा ! बीच में नेहरू पार्क दिख रहा है |
नेहरू पार्क |
नेहरू पार्क |
नेहरू पार्क में लगी एक कलाकृति |
ये कौन सा वृक्ष है ? |
नेहरू पार्क से दिखाई देता लक्ष्मी विलास |
यात्रा जारी है , पढ़ते रहिये :
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