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क्रिमची मंदिर (पांडव मंदिर): उधमपुर
अनायासेन मरणं विनादैन्येन जीवनं ।
देहि मे कृपया शम्भो त्वयि भक्तिं अचन्चलं ॥
भगवान शिव से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी मृत्यु अचानक हो जाए , जीवन बिना किसी रोग -बीमारी के गुजर जाए ! बस इतनी कृपा बनाए रखिए !
आज 27 जून 2022 है ! मैं अकेला ही जम्मू के रेलवे स्टेशन के पास ही 150 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से सरस्वती भवन की डॉर्मिटोरी में रुका हुआ हूँ। सुबह के सात बजे हैं , चाय मिल गई है और अब मुझे जल्दी ही नहाधोकर स्टेशन निकलना होगा !
सरस्वती भवन के बाथरूम भले कॉमन हैं मगर साफ़ सुथरे हैं और ज्यादा भीड़भाड़ नहीं रहती। हर एक फ्लोर पर दो कोनों में बाथरूम बने हैं जिनमे 7-8 टॉयलेट्स और तीन बाथरूम हैं।
Youtube Video link : https://www.youtube.com/watch?v=iM7hfM6AQ28&t=5s
स्टेशन पर भी बहुत भीड़ नहीं है , टिकट वेंडिंग मशीन (TVM ) से टिकट मिल गया , मुश्किल से पांच मिनट लगे होंगे। फिर से टाइम देखा ! अभी 7 बजकर 42 मिनट हुए हैं और ट्रेन का टाइम 7 बजकर 55 का है , ब्रेड पकोड़ा और एक कप चाय खेंच लेते हैं , फिर चलेंगे ! हमारे यहाँ कहावत है कि -घर खीर तो बाहर खीर ! मतलब कि जब कहीं निकलो तो कुछ खा -पीकर निकलो ! पता नहीं बाहर कुछ मिले न मिले !
जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से निकल चुका हूँ ! जम्मू तवी स्टेशन पर जो बोर्ड लगा है -वो चार भाषाओँ में है ! सभी जगह तीन भाषाओँ में ही होता है -हिंदी , अंग्रेजी और उस स्टेट की स्थानीय भाषा ! मगर यहां चार भाषाएं हैं -हिंदी , अंग्रेजी , उर्दू और चौथी डोगरी ! ट्रेन बजालता स्टेशन पहुँचने वाली है और यहां जब आ रहे थे तब बलिदान स्तम्भ की रायफल ट्रेन से दिखाई दे रही थी। बलिदान स्तम्भ मैं आप लोगों को पहले ही दिखा चुका हूँ। आप चाहें तो फिर से पढ़ सकते हैं , इसके नाम पर क्लिक करिये बस !
इतना सब हो गया ! मगर अभी तक मैंने आप लोगों को ये नहीं बताया कि मैं जा कहाँ रहा हूँ सुबह -सुबह ही ? अब बता देता हूँ -मैं उधमपुर जा रहा हूँ ! हांजी -जम्मू के पास वाला ही उधमपुर ! आप कहेंगे -वहां क्यों जा रहा हूँ ? मैं फिर बताऊंगा आपको -मैं वहां क्रिमची मंदिर देखने जा रहा हूँ जिनको पांडव मंदिर भी बोलते हैं ! अब ठीक है ?
आपको बताते -बताते मैं संगर स्टेशन पहुँच चूका हूँ। जिस ट्रेन से उधमपुर जा रहा हूँ वो पठानकोट से सुबह सवा चार (4 :15) बजे चलती है और जम्मू सुबह के 7 बजकर 55 मिनट पर पहुँचती है। बताया था पहले भी !
लो जी मनवाल स्टेशन आ गया ! छोटा मगर अच्छा स्टेशन है , स्टेशन के नाम में कुछ -कुछ पंजाबी भाषा का प्रभाव दिख रहा है। जम्मू से उधमपुर कुल 55 किलोमीटर ही है , और ये स्टेशन शायद दोनों तरफ से बीच में ही होगा ! मनवाल बहुत काम आएगा आगे -आगे ! ध्यान रखना पड़ेगा इस स्टेशन को।
क्रिमची मंदिर जाने से पहले उधमपुर निवासी आदरणीय रोमेश शर्मा जी के यहाँ पहुंचना है। उनसे फेसबुक / व्हाट्स एप्प से मेल मुलाकात हुई थी फिर एक बार दिल्ली में प्रत्यक्ष मुलाकात भी हुई और फिर साथ में सतोपंथ -स्वर्गारोहिणी ट्रेक पर बद्रीनाथ तक साथ गए थे। उनका साथ मिलेगा तो क्रिमची मंदिरों को और बढ़िया से घूम पाऊंगा। रामनगर जे एण्ड के स्टेशन आ गया है। रामनगर के साथ जे एण्ड के जोड़कर अच्छा किया है , अलग पहचान मिल गई है ! अब बस आखिरी स्टेशन उधमपुर है। अब तक कई सुरंगों से होते हुए निकलकर आये हैं हम , और अब आसपास बहुत ही खूबसूरत नज़ारे दिख रहे हैं। पहाड़ों पर हरियाली छाई हुई है , छोटी-गहरी खाइयों को देखते हुए जब ट्रेन नदी पर बने एक पुल को पार करती है तो जबरदस्त दृश्य नजर आने लगता है। आपको उधर जाने का मौका मिले तो इस पल को छोड़िएगा मत।
उधमपुर आ गया। ट्रेन में चलते हुए मुझे आज भी छोटे बच्चे की तरह का रोमांच होता है ! नए -नए स्टेशन ! नए -नए लैंडस्केप ! नए -नए लोग ! मुझे आज भी बहुत आकर्षित करते हैं।
सुबह के नौ बजे के आसपास का समय है। एक कप चाय बनती है यहाँ भी ! चाय पीकर उधमपुर के बोर्ड के साथ फोटो लेने के लिए बढ़ा ही था कि आसमान में गड़गड़ाहट होने लगी। फाइटर जेट की आवाज थी ये ! बाद में पता चला कि उधमपुर में कहीं एयरफोर्स स्टेशन है।
चाय पीने के चक्कर में गड़बड़ हो गई यार ! असल में उधमपुर का रेलवे स्टेशन शहर से दूर है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट केवल तभी मिलता है जब कोई ट्रेन आती है ! अब ट्रेन को आये हुए 20 -25 मिनट हो चुके हैं और जिसे जाना था , वो जा चुका है। अब मैं अकेला ही था यहाँ। थ्री व्हीलर वाले से बात करी -कितने पैसे ? 150 रूपये ! ज्यादा हैं ! सामान नहीं था मेरे पास कोई भी , सब कुछ जम्मू के सरस्वती भवन में लॉक था। हम पैदल -पैदल आगे बढ़ चले।
थोड़ी देर में उधर यानि अपोजिट साइड से आते हुए एक ऑटो मिल गया ! कितना ? 100 रुपए ! ना भाई 80 दूंगा ! चलिए .. बैठिये ! रोमेश जी से लगातार सम्पर्क में था , उन्होंने जहाँ कहा, उतर गया ! कुछ ही देर में वो अपना स्कूटर लेकर उपस्थित हो गए।
गर्मी अपने पूरे जोश में थी। सुबह के 10 या साढ़े दस बजे होंगे मगर गर्मी से बुरा हाल हुआ पड़ा था। उधमपुर को पटनी टॉप के पास होने का कोई ख़ास फायदा नहीं मिल रहा था। रोमेश जी के यहाँ नाश्ता कर के हम लगभग 12 बजे के आसपास क्रिमची मंदिरों की तरफ निकल चुके थे। रोमेश जी धीरे मगर अच्छी ड्राइविंग करते हैं।
उधमपुर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क्रिमची (पांडव ) मंदिर , क्रिमची गाँव के बाहरी छोर पर बिरुनाला नदी के किनारे पर सात मंदिरों के समूह के रूप में स्थित हैं ! मंदिरों के इस समूह को स्थानीय तौर पर पांडव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इतिहास
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान किया गया था।मंदिरों का निर्माण चरणों में किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर संख्या 6 और 7 कई सदियों पहले क्षतिग्रस्त हो गए थे।
स्थानीय मान्यता है कि वे महाभारत युद्ध के नायकों, या स्वर्गीय पांडव राजवंश के समय से चले आ रहे हैं, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में शासन किया था ( अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा अनुमान लगाया गया था )। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा कीचक को क्रिमची शहर और राज्य का निर्माता कहा जाता था। यह भी कहा जाता है कि निर्वासन में पांडव लंबे समय तक वहां रहे थे। चूंकि मंदिरों का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था, इसलिए ये मंदिर परिसर इंडो-ग्रीक वास्तुकला की गहराई को दर्शाते हैं।
मंदिर पहुँचने के रास्ते में करीब 100 मीटर का रास्ता एकदम नीचे उतरता है। हालाँकि रोमेश जी अच्छे ड्राइवर हैं इसलिए बहुत मुश्किल नहीं हुई। शायद टिकट लगा था इसका या मुफ्त था ... भूल गया मैं ! लेकिन वहां जो व्यक्ति बैठा था उनका नाम गौरव था और वो यूपी के बिजनौर से हैं। अच्छी दोस्ती हो गई उनसे कुछ ही देर में।
सीढ़ियां चढ़ते ही एक प्लेटफार्म दीखता है और उससे आगे एक अकेला मंदिर जो इस प्लेटफार्म से नीचे है बाकी सभी प्लेटफार्म पर ही हैं। पहले आपको प्लेटफार्म के नीचे वाले मंदिर पर ले चलता हूँ।
इन मंदिरों को सीमेंट की बजाय मिट्टी -गारे से जोड़ -जोड़कर बनाया गया है , हालाँकि अब जब और जहाँ भी रेनोवेशन का काम होता है अब सीमेंट से ही होता है और सीमेंट भी उतना ही कि हाथ से उखड़ जाए ! निश्चित सी बात है कि सरकारी काम है और सरकारी लोग जिसके लिए कुख्यात होते हैं , उन्होंने अपना कौशल यहाँ भी दिखाया है। मुझे नहीं समझ आता कि अगर उन्होंने इस काम में 2 -4 लाख बना भी लिए होंगे तो उससे कौन से वो अम्बानी -अडानी बन जाने वाले हैं !
नीचे वाले मंदिर का शिखर टूट चुका है और अब बस गिरना शेष है। यहाँ इन मंदिरों में से सिर्फ एक ही मंदिर में पूजा पाठ होता है। बाकी मंदिर बस ढाँचे के रूप में खड़े हैं मगर हाँ , आसपास की हरियाली बहुत व्यवस्थित है और अच्छी लगती है।
बीच का कॉरिडोर बहुत ही सुन्दर स्तम्भों से बनाया हुआ है , आप एक बार जीभर के देखने के लिए रुकने को मजबूर हो सकते हैं। आठवीं -नौवीं शताब्दी के मंदिरों के स्तम्भों पर इतनी महीन कलाकारी वास्तव में इन्हीं मंदिरों को ही नहीं बल्कि हमारे सभी देवालयों को आकर्षक बनाती हैं।
इस मंदिर काम्प्लेक्स के एक किनारे पर टॉयलेट बने हुए हैं और साफ़ सुथरे हैं।
इस मंदिर प्रांगण को खूब अच्छी तरह से घूम के बाहर निकल आये। गौरव भाई ने इन मंदिरों की एक बुकलेट भी दी थी मगर वो अब कहीं गुम हो गई है। बाहर ही रोमेश जी की गाडी खड़ी थी। मंदिर के बाहर ही गाड़ियां खड़ी करने की खूब सारी जगह उपलब्ध है और अभी हाल -फिलहाल पार्किंग फ्री है। आगे का मुझे नहीं मालूम , क्या होगा !
लौटते हुए थोड़ी देर चाय -कोल्डड्रिंक के लिए क्रिमची गाँव की एक दुकान पर रुक गए। उसी दुकान के बराबर में सब्जी की दुकान भी थी जहां मुझे सब्जी देखने को मिली -रोमेश जी से पूछा तो उन्होंने उसका नाम कड़म बताया। कड़म को गांठ गोभी भी कहा जाता है और ये सब्जी कश्मीर क्षेत्र में खूब प्रचलित है। मुझे उत्सुक देखकर रोमेश जी ने उस सब्जी को खरीद लिया , बोले -योगी जी चलिए आज आपको यही सब्जी खिलाते हैं।
घर पहुँचने के कुछ देर बाद ही शानदार खाना सामने था जिसमें कड़म की सब्जी भी शामिल थी। रोमेश जी की धर्मपत्नी स्कूल की प्रिंसिपल हैं मगर आज वो स्कूल से जल्दी आ गई थीं। फिर से लिख रहा हूँ , बहुत ही शानदार खाना था और कड़म की सब्जी पहली बार खाई थी तो उसकी तारीफ तो बनती ही है।
जून का महीना था तो स्वाभाविक है कि गर्मी होगी ही! खाना खाने के बाद थोड़ी देर आराम किया और सूरज की तपिश थोड़ी कम होने के बाद वापस अपने दड़बे , जम्मू के सरस्वती भवन की तरफ लौट चले उसी ट्रेन से जिससे जम्मू से उधमपुर गए थे।
खाना खाते हुए रोमेश जी से जम्मू -उधमपुर के आसपास की घूमने लायक जगहों के विषय में बात हो रही थी तब उन्होंने मनसर और सुरिंसर लेक के बारे में तो बताया ही , एक और जगह बताई जिनका मैंने नाम भी नहीं सुना था। ये थे काला डोरा मंदिर ! रोमेश जी भी कभी इधर नहीं आए इसलिए उन्हें exact लोकेशन तो मालुम नहीं थी लेकिन इतना अंदाजा था कि मनवाल के आसपास ही कहीं हैं। मुझे अगले दिन सुरिंसर और मानसर लेक जाना ही था तो.... बाकी मेरा होमवर्क था।
अगले दिन की बात अगली पोस्ट में लिखूंगा मगर ध्यान रखियेगा , अगली पोस्ट क्रिमची मंदिरों से भी पुराने और गुमनाम जगहों के बारे में अपनी बात लेकर आऊंगा। आते रहिएगा ......
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1 टिप्पणी:
बहुत अच्छे से बताया आपने भाईसाब । ऐसा लगा की मैं खुद ही वहां घूम रहा हूं
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