गाँधी मैदान : पटना
अप्रैल के दूसरे या तीसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्व विधालय ( अब डॉ ए.पी.जे.अब्दुल कलाम यूनिवर्सिटी ) , लखनऊ का एंट्रैंस एग्जाम होता है और उसमें हमें दूर दूर अपने कॉलेज के विज्ञापन के लिए जाना होता है ! इस विज्ञापन में हम पहले से होर्डिंग्स वगैरह लगवाते हैं और एग्जाम वाले दिन उस शहर में पम्पलेट्स बंटवाते हैं ! इस बार फिर से गया जाने को कहा गया , लेकिन गया मैं पिछले साल ही गया था इसलिए इस बार कहीं और जाने का सोचा , तो जगह मिली पटना ! पटना भी ठीक ही रहेगा ! लौटते हुए बनारस होता हुआ आऊंगा ! कह - सुन के गया के बदले पटना करवाया ! लेकिन इस चक्कर में पटना की कोई सीधी ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया , वेटिंग का कोई फायदा नहीं था क्योंकि AC में वेटिंग मुश्किल से ही कन्फर्म होती है ! हाँ , स्लीपर में चांस ज्यादा होते हैं कन्फर्म होने के ! तो पहले काशी विश्वनाथ से बनारस और फिर बनारस से पटना का टिकट पक्का किया !
16 अप्रैल की सुबह 6 बजे के आसपास बनारस स्टेशन पर थे ! अगली ट्रेन हमारी पटना के लिए 9 बजे थी ! थोड़ा इंतज़ार करना था ! गया जाने वाले लोग भी हमारे साथ थे , लेकिन वो ट्रेन आने के 10 मिनट के अंदर गंगा स्नान को निकल लिए और मैं बाहर चाय पीने ! बनारस की गर्मी का एहसास तो ट्रेन से उतरते ही हो गया था ! स्टेशन के बाहर निकले तो पूरा रुतबा देखने को , महसूस करने को मिला बनारस की गर्मी का ! चलिए , ट्रेन आ गयी है अब बनारस से पटना चलते हैं !
पटना स्टेशन पर हमारे पास इतने सारे पैकेट , इतना सामान देखकर दो -तीन जीआरपी के लोग आ गए और लगेज की पर्ची मांगने लगे , जैसे तैसे उन्हें मनाया ! वो लोग सच में समझदार और भले लोग निकले ! लेकिन जैसे ही कुली ने पूरा सामान स्टेशन से बाहर निकाल कर रखा एक पुलिस वाला आ गया और 200 रूपये मांगने लगा। मैंने पूछा तुम्हें क्या मतलब , हाँ ये पूछ सकते हो कि क्या सामान है ? ये नहीं कि कितना सामान है ! बोला - मैं जीआरपी से हूँ ! मुझे हँसी आ गयी और मैंने एकदम से उसके मुंह पर ही कह दिया कि तुम जीआरपी से नहीं स्टेट पुलिस से हो और 10 -20 रूपये के लिए चक्कर मार रहे हो ! जब उसका वश हम पर नहीं चला तो जिस ऑटो में हमें जाना था उसको रोक के खड़ा हो गया ! मेरे साथ गए उमेश चन्द शर्मा जी उसे साइड में ले जाकर बात करी और शर्मा जी फिर हमारे पास आये कि वो 100 रूपये में तैयार हो गया है , लेकिन हम उसे एक भी रुपया नहीं देना चाहते थे ! वो फिर खड़ा हो गया ! मुझे पता नहीं क्या सूझी और मैं उसका हाथ पकड़कर बोला - आप जीआरपी से हो न ? आओ चलो मेरे साथ जीआरपी थाने ! उसे न जाना था न वो गया । आखिर शर्मा जी उसे 50 रूपये दे के आये तब कहीं उसने रास्ता छोड़ा ! हे भगवान् !
पटना में ऐसे बहुत कुछ नहीं है देखने को , लेकिन अगर आप वहां हैं तो गांधी सेतु , गांधी मैदान , गोलघर , स्टेशन के पास का हनुमान मंदिर तो देखना ही चाहिए ! मुझे NIT पटना से लौटकर सबसे पहले गांधी मैदान दिखाई दिया तो ऑटो से वहीँ उतर गया ! गांधी मैदान भारत के राजनीतिक इतिहास में बहुत महत्त्व रखता है ! ऐसा कहते हैं कि जिसने गांधी मैदान में रैली नहीं की , उसे नेता नहीं माना जाता ! पवित्र गंगा के किनारे पर बना ये मैदान आज़ादी से पहले पटना लॉन्स के रूप में विख्यात था जहां कभी चम्पारण और भारत छोडो आंदलोन की नींव रखी गयी। इसी गांधी मैदान से खुद गांधी जी , डॉ राजेंद्र प्रसाद , ए. एन. सिन्हा और जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं ने लोगों में आज़ादी के लिए जोश जगाया था ! जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ अपने आंदोलन को यहीं से शुरू किया और आज उसी आंदोलन की पौध बिहार और भारत को लूटने में व्यस्त है ! खैर ये राजनीतिक बात है , ज्यादा लम्बी नहीं खींचूंगा !
इस गांधी मैदान में विश्व की सबसे ऊँची गांधी प्रतिमा लगी हुई है ! इस 70 फुट ऊँची कांस्य ( Bronze ) की प्रतिमा का अनावरण तब के और अब के बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 15 फरवरी 2013 में किया था ! अच्छा हाँ , एक बात बताना भूल गया ! इस मैदान को पटना लॉन्स से बदलकर गांधी मैदान का नाम देने की कहानी बड़ी रोचक है ! पटना लॉन्स में आज़ादी से पहले केवल अँगरेज़ और भारत के गणमान्य ( elite ) लोग ही प्रवेश कर सकते थे , आम भारतीयों के लिए कोई जगह नहीं थी ! लेकिन महात्मा गांधी ने जब चम्पारण सत्याग्रह के समय पटना लॉन्स में ही रैली रखी तो आम भारतीय भी वहां पहुंचे और फिर उसके बाद इस मैदान का नाम गांधी मैदान हो गया ! विश्व के और देशों में लगी गांधी प्रतिमाओं के विषय में अगर पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक करिये !गांधी मैदान के ही बिलकुल पास में गोलघर भी है और इसके पास एक चौराहे को कारगिल चौराहे का नाम दिया गया है ! इस चौराहे पर सैनिक की बन्दूक उलटी करके लगाई हुई है और वहां , कारगिल लड़ाई में शहीद हुए बिहार के वीर सिपाहियों के नाम अंकित किये हुए हैं ! अच्छा लगा ये प्रयास !
गोलघर (Golghar ) :
गोलघर असल में एक अन्न भण्डार ( Granary ) है जिसे कैप्टन जॉन गर्स्टीन ने 1786 ईस्वी में अन्न भण्डारण के लिए बनवाया था ! वारेन हास्टिंग जब भारत का गवर्नर जनरल था तब उसने भारत में ब्रिटिश आर्मी के लिए अन्न भण्डार के लिए एक छत्ता रुपी ( beehive ) कोठरी बनाने का आदेश दिया जिसे कैप्टन जॉन गर्स्टीन ने स्वीकार किया और इसका निर्माण पूर्ण किया ! इस गोलघर की चौड़ाई 125 मीटर और ऊंचाई 29 मीटर है ! लेकिन चौड़ाई से बेहतर इसका व्यास (diameter ) कहना ज्यादा उचित होगा ! इस बिना खम्बे के घर को देखकर लगता है कि ये वास्तव में स्तूप के आकर में बनाया गया है ! इसमें दो तरफ सीढ़ियां हैं ! एक तरफ कुल 145 सीढ़ी हैं जो इसकी गोलाई के साथ साथ ऊपर को जाती हैं ! इन सीढ़ियों को गेंहूं आदि बोरी में भरकर ऊपर ले जाने के लिए बनाया गया था , एक तरफ से मजदूर बोरी लेकर जाएगा , उसे ऊपर टॉप पर बने छेद ( Hole ) में से गिराएगा और दूसरी तरफ से नीचे उतरेगा ! ये सिस्टम रहा होगा ! लेकिन इस समय उसकी मरम्मत हो रही है , साज संवार का काम चल रहा था इसलिए मैं जिधर से चढ़ा उधर से ही उतर के आया !
तो बस इतना ही देख पाया पटना में ! मन था कि गांधी सेतु भी जाऊँगा लेकिन दोपहर में तेज गर्मी की वजह से वापस होटल के अपने कमरे में आ गया और एयरकंडीशनर की ठंडी हवा और थकान ने न जाने कब आँखों में नींद घुसा डाली , पता ही नहीं पड़ा ! चलो खैर , फिर कभी ! लेकिन अब पटना से वाराणसी चलेंगे पैसेंजर ट्रेन से ! तब तक राम राम !!
अप्रैल के दूसरे या तीसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्व विधालय ( अब डॉ ए.पी.जे.अब्दुल कलाम यूनिवर्सिटी ) , लखनऊ का एंट्रैंस एग्जाम होता है और उसमें हमें दूर दूर अपने कॉलेज के विज्ञापन के लिए जाना होता है ! इस विज्ञापन में हम पहले से होर्डिंग्स वगैरह लगवाते हैं और एग्जाम वाले दिन उस शहर में पम्पलेट्स बंटवाते हैं ! इस बार फिर से गया जाने को कहा गया , लेकिन गया मैं पिछले साल ही गया था इसलिए इस बार कहीं और जाने का सोचा , तो जगह मिली पटना ! पटना भी ठीक ही रहेगा ! लौटते हुए बनारस होता हुआ आऊंगा ! कह - सुन के गया के बदले पटना करवाया ! लेकिन इस चक्कर में पटना की कोई सीधी ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया , वेटिंग का कोई फायदा नहीं था क्योंकि AC में वेटिंग मुश्किल से ही कन्फर्म होती है ! हाँ , स्लीपर में चांस ज्यादा होते हैं कन्फर्म होने के ! तो पहले काशी विश्वनाथ से बनारस और फिर बनारस से पटना का टिकट पक्का किया !
16 अप्रैल की सुबह 6 बजे के आसपास बनारस स्टेशन पर थे ! अगली ट्रेन हमारी पटना के लिए 9 बजे थी ! थोड़ा इंतज़ार करना था ! गया जाने वाले लोग भी हमारे साथ थे , लेकिन वो ट्रेन आने के 10 मिनट के अंदर गंगा स्नान को निकल लिए और मैं बाहर चाय पीने ! बनारस की गर्मी का एहसास तो ट्रेन से उतरते ही हो गया था ! स्टेशन के बाहर निकले तो पूरा रुतबा देखने को , महसूस करने को मिला बनारस की गर्मी का ! चलिए , ट्रेन आ गयी है अब बनारस से पटना चलते हैं !
पटना स्टेशन पर हमारे पास इतने सारे पैकेट , इतना सामान देखकर दो -तीन जीआरपी के लोग आ गए और लगेज की पर्ची मांगने लगे , जैसे तैसे उन्हें मनाया ! वो लोग सच में समझदार और भले लोग निकले ! लेकिन जैसे ही कुली ने पूरा सामान स्टेशन से बाहर निकाल कर रखा एक पुलिस वाला आ गया और 200 रूपये मांगने लगा। मैंने पूछा तुम्हें क्या मतलब , हाँ ये पूछ सकते हो कि क्या सामान है ? ये नहीं कि कितना सामान है ! बोला - मैं जीआरपी से हूँ ! मुझे हँसी आ गयी और मैंने एकदम से उसके मुंह पर ही कह दिया कि तुम जीआरपी से नहीं स्टेट पुलिस से हो और 10 -20 रूपये के लिए चक्कर मार रहे हो ! जब उसका वश हम पर नहीं चला तो जिस ऑटो में हमें जाना था उसको रोक के खड़ा हो गया ! मेरे साथ गए उमेश चन्द शर्मा जी उसे साइड में ले जाकर बात करी और शर्मा जी फिर हमारे पास आये कि वो 100 रूपये में तैयार हो गया है , लेकिन हम उसे एक भी रुपया नहीं देना चाहते थे ! वो फिर खड़ा हो गया ! मुझे पता नहीं क्या सूझी और मैं उसका हाथ पकड़कर बोला - आप जीआरपी से हो न ? आओ चलो मेरे साथ जीआरपी थाने ! उसे न जाना था न वो गया । आखिर शर्मा जी उसे 50 रूपये दे के आये तब कहीं उसने रास्ता छोड़ा ! हे भगवान् !
पटना में ऐसे बहुत कुछ नहीं है देखने को , लेकिन अगर आप वहां हैं तो गांधी सेतु , गांधी मैदान , गोलघर , स्टेशन के पास का हनुमान मंदिर तो देखना ही चाहिए ! मुझे NIT पटना से लौटकर सबसे पहले गांधी मैदान दिखाई दिया तो ऑटो से वहीँ उतर गया ! गांधी मैदान भारत के राजनीतिक इतिहास में बहुत महत्त्व रखता है ! ऐसा कहते हैं कि जिसने गांधी मैदान में रैली नहीं की , उसे नेता नहीं माना जाता ! पवित्र गंगा के किनारे पर बना ये मैदान आज़ादी से पहले पटना लॉन्स के रूप में विख्यात था जहां कभी चम्पारण और भारत छोडो आंदलोन की नींव रखी गयी। इसी गांधी मैदान से खुद गांधी जी , डॉ राजेंद्र प्रसाद , ए. एन. सिन्हा और जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं ने लोगों में आज़ादी के लिए जोश जगाया था ! जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ अपने आंदोलन को यहीं से शुरू किया और आज उसी आंदोलन की पौध बिहार और भारत को लूटने में व्यस्त है ! खैर ये राजनीतिक बात है , ज्यादा लम्बी नहीं खींचूंगा !
इस गांधी मैदान में विश्व की सबसे ऊँची गांधी प्रतिमा लगी हुई है ! इस 70 फुट ऊँची कांस्य ( Bronze ) की प्रतिमा का अनावरण तब के और अब के बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 15 फरवरी 2013 में किया था ! अच्छा हाँ , एक बात बताना भूल गया ! इस मैदान को पटना लॉन्स से बदलकर गांधी मैदान का नाम देने की कहानी बड़ी रोचक है ! पटना लॉन्स में आज़ादी से पहले केवल अँगरेज़ और भारत के गणमान्य ( elite ) लोग ही प्रवेश कर सकते थे , आम भारतीयों के लिए कोई जगह नहीं थी ! लेकिन महात्मा गांधी ने जब चम्पारण सत्याग्रह के समय पटना लॉन्स में ही रैली रखी तो आम भारतीय भी वहां पहुंचे और फिर उसके बाद इस मैदान का नाम गांधी मैदान हो गया ! विश्व के और देशों में लगी गांधी प्रतिमाओं के विषय में अगर पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक करिये !गांधी मैदान के ही बिलकुल पास में गोलघर भी है और इसके पास एक चौराहे को कारगिल चौराहे का नाम दिया गया है ! इस चौराहे पर सैनिक की बन्दूक उलटी करके लगाई हुई है और वहां , कारगिल लड़ाई में शहीद हुए बिहार के वीर सिपाहियों के नाम अंकित किये हुए हैं ! अच्छा लगा ये प्रयास !
गोलघर (Golghar ) :
गोलघर असल में एक अन्न भण्डार ( Granary ) है जिसे कैप्टन जॉन गर्स्टीन ने 1786 ईस्वी में अन्न भण्डारण के लिए बनवाया था ! वारेन हास्टिंग जब भारत का गवर्नर जनरल था तब उसने भारत में ब्रिटिश आर्मी के लिए अन्न भण्डार के लिए एक छत्ता रुपी ( beehive ) कोठरी बनाने का आदेश दिया जिसे कैप्टन जॉन गर्स्टीन ने स्वीकार किया और इसका निर्माण पूर्ण किया ! इस गोलघर की चौड़ाई 125 मीटर और ऊंचाई 29 मीटर है ! लेकिन चौड़ाई से बेहतर इसका व्यास (diameter ) कहना ज्यादा उचित होगा ! इस बिना खम्बे के घर को देखकर लगता है कि ये वास्तव में स्तूप के आकर में बनाया गया है ! इसमें दो तरफ सीढ़ियां हैं ! एक तरफ कुल 145 सीढ़ी हैं जो इसकी गोलाई के साथ साथ ऊपर को जाती हैं ! इन सीढ़ियों को गेंहूं आदि बोरी में भरकर ऊपर ले जाने के लिए बनाया गया था , एक तरफ से मजदूर बोरी लेकर जाएगा , उसे ऊपर टॉप पर बने छेद ( Hole ) में से गिराएगा और दूसरी तरफ से नीचे उतरेगा ! ये सिस्टम रहा होगा ! लेकिन इस समय उसकी मरम्मत हो रही है , साज संवार का काम चल रहा था इसलिए मैं जिधर से चढ़ा उधर से ही उतर के आया !
तो बस इतना ही देख पाया पटना में ! मन था कि गांधी सेतु भी जाऊँगा लेकिन दोपहर में तेज गर्मी की वजह से वापस होटल के अपने कमरे में आ गया और एयरकंडीशनर की ठंडी हवा और थकान ने न जाने कब आँखों में नींद घुसा डाली , पता ही नहीं पड़ा ! चलो खैर , फिर कभी ! लेकिन अब पटना से वाराणसी चलेंगे पैसेंजर ट्रेन से ! तब तक राम राम !!
ये चित्र गर्व का एहसास कराता है |
गांधी मैदान में लगी विश्व की सबसे ऊँची गांधी प्रतिमा |
कुल 145 सीढ़ियां हैं गोलघर में एक तरफ |
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