सोमवार, 6 अप्रैल 2015

हल्दीघाटी : चेतक समाधी

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हल्दी घाटी के युद्ध के बाद ये क्षेत्र कभी बिल्कुल वीरान रहा होगा लेकिन वहां सरकार ने मेमोरियल बनाकर और इत्र की छोटी छोटी फैक्ट्रियां खोलकर उस जगह को एकदम बढ़िया कर दिया है। हालाँकि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों की सी शांति और माहौल में एक मायूसी जरूर नजर आती है। नाथद्वारा की तरफ से जाते हुए ऐसा बिल्कुल भी नही लगता कि हम एक ऐतिहासिक जगह को देखने जा रहे हैं , न ज्यादा भीड़ भाड़ न वाहनों की ज्यादा आवाजाही। हाँ , खमनोर पर कुछ सन्नाटा टूटता है। और फिर थोड़ी बाद चलती हुई सी रोड मिलती है , सड़क के दोनों तरफ सजी इत्र की दुकानें रास्ते को जीवंत बनाती हैं। और जब हल्दीघाटी पहुँचते हैं तो एक अलग आभास होता है। 

हल्दीघाटी से बाहर आकर ऊँट की सवारी करी जा सकती है। एक बात ध्यान देने की है : अगर आप ने कभी गांव या गाँव की जिंदगी नहीं देखी है तो आपको यहां ग्रामीण जिंदगी के दर्शन बखूबी मिलेंगे। वहां ग्रामीण जिंदगी के विभिन्न रूपों को बेहतरीन तरीके से मूर्तियों और कलाकृतियों के सहारे समझाने , दिखाने की कोशिश करी गयी है। हल्दी घाटी से लौटकर महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का समाधी स्थल है , ये वो ही जगह है जहां चेतक ने दम तोड़ा था। हालाँकि वास्तविक नाला अब नही है लेकिन कुछ कल्पना भी आपको करनी पड़ जाती है ऐसी जगह।


आज ज्यादा कुछ नही है लिखने के लिए। हल्दी घाटी लौटकर नाथद्वारा में श्रीनाथ जी भगवान के दर्शन किये और फिर वापस उदयपुर। नाथद्वारा की कहानी आपको पहले ही बता चुका हूँ ! उदयपुर इसलिए , क्योंकि हमने अपना सब सामन वहीँ के होटल में रख छोड़ा था। अब कल चित्तौड़गढ़ के लिए निकलेंगे।

आइये फोटो देखते चलें :


भारत का ग्रामीण परिवेश
इसे रहट कहते हैं ! पहले इसी से खेतों की सिचाईं होती थी
जय शिव शंकर
ये गौधन
काम करते करते टोपी उतर गयी
क्या अब भी मुफ्त का माल मिलता है ?
राधे राधे
इसे कोल्हू या क्रशर कहते हैं

ये सच का ही कोल्हू है
ऊंट की सवारी हो जाए

ऊंट की सवारी हो जाए
हल्दी घाटी के बाहर
हल्दी घाटी के बाहर

फैमिली आपको मानसिक ताकत देती है

अब असली वाले ऊंट की सवारी हो जाए वो तो मूर्ति था पहले वाला
अब असली वाले ऊंट की सवारी हो जाए वो तो मूर्ति था पहले वाला
महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि


महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का समाधि स्थल
ये भाईसाब मिटटी खोद रहे हैं हल्दी में मिलाने के लिए ! मेरे हाथ में कैमरा देखते ही मुंह फेर लिया था बन्दे ने लेकिन डर नाम की चीज नही


आपने ब्लोअर पर बनी चाय पी  है ? और  कब से नही पी ! खमनोर में मिल जायेगी

ऐसे स्वागत द्वार आपको राजस्थान में बहुत मिलेंगे

हमारे यहां इसे नागफनी कहते हैं ! यहां ये मेंडबन्दी  का काम कर रही है
हमारे यहां इसे नागफनी कहते हैं ! यहां ये मेंडबन्दी  का काम कर रही है


चेतक स्मारक

नकली बैलों के साथ हर्षित , बड़ा बेटा ! असली से तो बहुत डर लगता है !!

1 टिप्पणी:

young india ने कहा…

ये हल्दी में मिलाने को मिट्टी नही खोद रहे , इस मिट्टी को लोग यादगार के रूप में अपने साथ ले जाते है , साथ में इस मिट्टी की पूजा की जाती हैं