अब आज 13 जून की बात करते हैं ! सचिन त्यागी जी और रमेश जी के सतोपंथ न जा पाने के बाद अब हम 9 लोग थे सतोपंथ जाने वालों में , और 5 पोर्टर , कुल मिलाकर हो गए 14 लोग ! सामान बांधने लगे हैं लोग ! गज्जू भाई भी आ पहुंचे हैं अपने लोगों को लेकर !
पहले पेट पूजा करके चला जाए , आलू पराठे खाते हैं ! आलू पराठा विथ अचार एण्ड चाय ! मैं एक ही पराठा खा पाया , सुबह सुबह ज्यादा कुछ नहीं खा पाता ! 2-2 पराठे के हिसाब से पैक करा लिए यानि कुल 28 पराठे ! कम से कम आज दोपहर तक तो खाना नहीं बनाना पड़ेगा ! आइये सतोपंथ यात्रा शुरू करते हैं !
मेरे पास स्टिक तो है लेकिन बारिश से बचने का कोई जुगाड़ नहीं है तो पहले फोंचू ( वन पीस ) ले लिया जाए , कुल 30 रूपये का है ! बद्रीनाथ मंदिर के पास से निकलना होगा क्योंकि
माणा वाला रास्ता इस सीजन में बंद है ! कारण ये है कि पहले जो यात्रा माणा , वसुधारा होते हुए हुई होती थी वो अब बद्रीनाथ , माता मूर्ति मंदिर होते हुए होगी ! माणा से आगे अलकनंदा नदी को पार करने के लिए लोग जिस " धानो " ग्लेशियर का उपयोग करते थे वो इस वक्त टूटा पड़ा है , गला हुआ है इसलिए रास्ता बदल गया है अन्यथा आप जो भी सतोपंथ का ब्लॉग पढ़ेंगे , उसमें ज्यादातर यात्राएं माणा के ही रास्ते से पूरी की गयी हैं !
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बद्रीनाथ मंदिर के बाहर से हाथ जोड़कर आशीर्वाद लिया और चल दिए अपनी मंजिल पर ! भीड़ अच्छी खासी है दर्शन करने वालों की और लम्बी सी लाइन लगी हुई है ! अलकनंदा के किनारे किनारे रास्ता है , सीमेंटेड रास्ता है अभी तक और ये सीमेंटेड रास्ता माता मूर्ति मंदिर तक जाता है ! माता मूर्ति मंदिर , भगवान् नर नारायण की माता जी को समर्पित है ! इससे पहले एक नाग देवता को समर्पित मंदिर रास्ते में मिलता है और फिर ITBP का ट्रेनिंग कैंप है ! दूसरी दिशा में माणा दिखाई देने लगता है ! भारत का अंतिम गांव ! नाग देवता मंदिर से आगे फ़ोन के सिग्नल मिलना बंद हो जाते हैं , कम से कम मेरे फ़ोन के तो नहीं आये , Vodfone का पोस्ट पेड नंबर है भाई मेरे पास ! पहला आराम यहीं लिया ! आगे बढ़ते हैं तो अलकनंदा और भी गहरी लगने लगती है ! छोटी सी पगडण्डी पर चलना है , अगर फिसले तो सीधे अलकनंदा के पानी में , जिन्दा नहीं। ... आप खुद समझदार हैं ! सीधे हाथ पर अलकनंदा बह रही है और उल्टे हाथ पर ऊँचे ऊँचे पहाड़ , लेकिन नजर उठा कर देख नहीं सकता , क्या पता पैर फिसल गया तो ? आज की मंजिल लक्ष्मी वन है !
माता मूर्ति मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर भयंकर मुश्किल जगह आ गयी ! रास्ते पर रेत जैसा है और नीचे की तरफ ढलान भी है , कठिन है ! बाएं हाथ की तरफ घास है थोड़ी सी , उसे पकड़कर रास्ता पार कर लिया ! सोचिये , अगर कैसे भी वो घास उखड कर मेरे हाथ में आ जाती तो ? अभी तो शुरुआत है योगी बेटा , आगे आगे देखते जाओ ! बीनू भाई आगे खड़े खड़े शायद यही सोच रहे हैं , लेकिन वो मेरा इंतज़ार भी कर रहे हैं कि मैं सुरक्षित पार होकर उनके साथ चलता चलूँ ! अभी अलकनंदा साथ चलेगी धानो ग्लेशियर तक ! बद्रीनाथ से लक्ष्मी वन करीब 8-10 किलोमीटर की दूरी पर होगा , आज वहां तक पहुंचना है ! महाभारत के प्रसंग से देखें तो लक्ष्मी वन में ही नकुल ने अपना शरीर छोड़ा था ! लेकिन अभी हम पहले "आनंद वन " पहुँच रहे हैं ! आनंद वन को पहिचान पाना थोड़ा मुश्किल सा हो जाता है अगर आप इस रास्ते से बिल्कुल अपरिचित हैं तो , क्योंकि यहां बस बाएं हाथ पर आपको कुछ छोटी छोटी ऊंचाई वाले पेड़ दिख जाते हैं , जिन्हें झाड़ियां कहना ज्यादा उचित होगा ! हाँ लेकिन रास्ता बहुत कठिन है , एक बार ऊपर चढ़ो 3-4 मीटर फिर नीचे उतरो ! उतरने में हालत खराब ! मैं तो बैठ कर पार कर पाया ! जो जो इस फील्ड के महारथी थे वो तेज तेज निकल लिये जैसे जाट देवता, अमित तिवारी और बीनू बाबा । मैं और कमल कुमार सिंह ही सबसे पीछे रह गये और ऐसे पीछे रहे कि लक्ष्मी वन भी सबसे बाद में ही पहुंच पाये ।
आनंद वन तो पार कर लिया लेकिन आगे जो ग्लेशियर दिखाई दे रहा है वो और भी खतरनाक लग रहा है । ये धानू ग्लेशियर है, पहले जब माणा की तरफ से यात्रा होती थी तब इसी ग्लेशियर को पार करके अलकनंदा नदी को पार करके इधर आते थे, अब हम अलकनंदा को बद्रीनाथ पर ही पार कर आये हैं और तब से इसी किनारे पर चल रहे हैं । दोबारा पार करने की जरूरत नहीं पडेगी लेकिन इस ग्लेशियर के एक तरफ से तो जाना ही पड़ेगा । टूटा हुआ ग्लेशियर बहुत भयानक लग रहा है । दूर से फोटो खींच रहे हैं सब । लेकिन हमें ग्लेशियर का जो हिस्सा पार करना है वो कच्चा है यानि बर्फ बहुत हल्की हल्की सी है और इस पर फिसलन भी बहुत लग रही है । जाना तो होगा ही । चौथा महारथी सुमित नौटियाल भी आगे निकल चुका है । हमसे आगे सिर्फ संजीव त्यागी, सुशील जी और विकास नारायण ही दिख रहे हैं । ग्लेशियर पार करने के बाद एकदम से तिरछे से रास्ते से सीधा चढाई दिख रही है । वो चढाई चढ चुकने के बाद बढिया रास्ता आ जाता है । लेकिन पहले कुछ आराम ले लिया जाये । यहाँ जाट देवता आराम फरमा रहे हैं या ये कहा जाए हम लोगों का इंतज़ार कर रहे हैं , पहले से ही । अमित भाई के दर्शन अब लक्ष्मी वन तक नहीं हो पाने के । कितना तेज और लगातार चल लेता है यार ये आदमी । आदमी गलत बना दिया भगवान ने इन दोनों को , घोडा बनाने वाला होगा गलती से इंसान बना गया । दोनों मतलब अमित भाई और जाट देवता । बीनू बाबा और सुमित भी गजब के चलने वाले हैं ।
रास्ता आसान हो गया है और आगे थोडी दूरी पर भेड चराने वाले भी दिख रहे हैं । लेकिन भेड़ अभी भी दूर ही हैं । एक एक करके सब निकल लिये बस मैं और कमल भाई अकेले रह गये हैं । पैरों ने चलने से मना कर दिया है और हम चुपचाप उन्हें समझा रहे हैं कि थोड़ा और थोड़ा और । लेकिन हम जानते हैं कि अभी भी लक्ष्मी वन दूर ही है । कमल भाई को बुखार भी हो रहा है, एक टेबलेट ले ली है अभी तो । और एक हमारे पास स्पेशल दवाई भी है जिसे कमल भाई माणा से लेकर आये हैं । नाम नहीं बता सकता यार यहाँ। पर्सनल में पूछ लेना अगर जरूरत पडे तो । एक एक घूंट ले ली । ताकत सी आने लगी है ।
हमारे पॉर्टर हमसे आगे जा चुके हैं और हम दोनों हैं कि चार कदम चलते हैं और फिर रूक जाते हैं । इससे थकान और भी ज्यादा हो रही है लेकिन कर क्या सकते हैं ? एक दुकान सी दिख रही है आगे । तिरपाल लगी है और कुछ लोग बैठे भी हैं उधर । भेड़ वालों की दुकान है शायद । वहीं हमारे वाले पॉर्टर और कुछ अन्य लोग भी बैठे हैं । एक पॉर्टर घास पर लेटा पडा है । हम भी पड गये । उस पॉर्टर को भी बुखार हो गया है और उसे वापस जाना पडेगा । लेकिन मैंने उसे भी बुखार की एक टेबलेट पकडा दी । हालांकि इसका कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ । वो वापस ही लौटेगा । बेचारा बुझे मन से वापस लौट रहा है । लेकिन स्वास्थ्य पहले है ।
अब एक और आदमी कम हो गया है । 14 लोग चले थे बद्रीनाथ से लेकिन पहला पडाव आने से पहले ही एक और कम हो गया है और अब कुल 13 लोग चल रहे हैं । रास्ता आसान और स्पष्ट बना हुआ है । भेड़ वालों का अपना इलाका है । वो यहीं रह कर भेड चराते होंगे और रात इसी दुकान में बिता लेते होंगे । दो तीन कुत्ते भी इनके साथ हैं लेकिन कुत्ते अभी सोये पडे हैं, शायद ये नाइट शिफ्ट की डयूटी करते होंगे ।
बुझे मन से मैं और कमल भाई उठकर चल दिये । सच कह रहा हूं मन बिल्कुल नहीं हो रहा था आगे चलने को , जी कर रहा था कि यहीं पडे रहें । गुनगुनी धूप सेकते रहें लेकिन जाना ही पड़ेगा । थोड़ा और आगे जाकर अलकनंदा के दूसरे किनारे की तरफ वसुधारा फॉल दिखाई देने लगा था और इस तरफ 8-10 लाइन से लगे टैण्ट दिख रहे थे इसका मतलब हम " चमटोली " बुग्याल के पास पहुंच रहे हैं । चमटोली बुग्याल पर ITBP के टैण्ट हमेशा लगे रहते हैं । इन्हें मैने पिछले साल वसुधारा तक की यात्रा में भी देखा था लेकिन तब मैं अलकनंदा के उस पार था और आज इस पार हूं । हालांकि इस
वसुधारा फॉल ने हमें इस यात्रा में बहुत धोखा दिया । आगे बताऊंगा ।
एक हल्की सी चढाई दिख रही है । चढते हैं उसे भी । चढाई जैसे ही चढी तो कई लोगों को देखकर बांछें खिल गईं । बीनू बाबा, संजीव त्यागी जी, सुमित नौटियाल वहीं बैठे थे । हमें तो बहाना चाहिये था रूकने का और मैं और कमल भाई टूटे पेड की तरह गिर पडे । थोड़ा सा बैठकर पैर चौडाने की कोशिश करनी चाही तो मेरे पीछे से चर्र की आवाज आई, देखा तो कैपरी बीच में से फट चुकी थी । वो तो खैर कोई बात नहीं, ये कौन सा शहर है जो कोई देख लेगा ? पूरा मैदान खुला है यहीं लोअर बदल लेते हैं । एक एक घूंट बद्री विशाल का प्रसाद भी ग्रहण कर लिया जाये । ताकत मिलेगी ।
एक एक करके सब निकल लिये, फिर से बस मैं और कमल भाई ही रह गये हैं । दो बेचारे ......... थकान के मारे !! कमल भाई का तो मुझे नहीं पता लेकिन मैं सबको एक एक कर जब चमटोली बुग्याल का मैदान पार कर फिर चढाई चढ के, दूसरी तरफ उतरते हुये देख रहा था तो यही सोच रहा था यार भगवान ने इन लोगों को कितनी ताकत दे रखी है ? आखिर हम भी धीरे धीरे ही सही, चमटोली बुग्याल के मैदान को पार करके उस चढाई पर पहुंच गये जहाँ से अब लक्ष्मी वन तक जाना है । चमटोली बुग्याल पर भी कुछ लोगों ने आज रूकने का अपना ठिकाना बनाया है लेकिन हमें लक्ष्मी वन तक जाना है । हम वहीं रूकेंगे । लक्ष्मी वन पर रूकने का फायदा ये है कि वहाँ बढिया सी एक गुफा भी है जिसमें खाना आराम से बनाया जा सकता है और पॉर्टर रात को रूक भी सकते हैं । दूसरी बात ये कि वहाँ बहुत बडा सा खुला मैदान भी है टैण्ट लगाने को । हालांकि चमटोली पर भी खुला मैदान है और पीछे की तरफ दो गुफा भी हैं लेकिन कैसे भी अगर बारिश हो गई तो चमटोली बुग्याल में पानी जरूर भर जायेगा । इस मामले में लक्ष्मी वन बेहतर विकल्प है । बाकी जैसे आपको उचित लगे ।
मैं और कमल भाई चमटोली बुग्याल से आगे वाली चढाई पर हैं और हल्की हल्की बारिश आने लगी है ऐसे में कदम खुद ब खुद ही तेज चलने लगते हैं । सामने चमटोली के पीछे वाली दूसरी गुफा में अमित भाई के अलावा सब लोग बैठे दिखाई दे रहे हैं । हम भी वहाँ पहुंच गये । यहाँ सबने दो दो पराठे पेट मे उतार लिये । थोड़ा आराम फरमाया और फिर चल दिये अपनी मंजिल की ओर । अब चढाई उतराई तो है ही रास्ते में , उसके अलावा बडे बडे पत्थर भी हैं जिन्हें बोल्डर कहते हैं जानने वाले । तो अब पूरा रास्ता बोल्डर से भरा हुआ मिलेगा । जैसे ही ये पहाड खत्म होता है दूर से ही लक्ष्मी वन के वो भोजपत्र के वृक्ष दिखाई देने लगते हैं जिनके कारण इस जगह का नाम लक्ष्मी वन पडा । और हाँ वसुधारा फॉल अभी तक दिख रहा है, तभी तो मैंने ऊपर कहा कि वसुधारा फॉल ने बडा धोखा दिया ।
लक्ष्मी वन पहुंच ही गये जैसे तैसे और अब आज आगे नहीं जाना हमें । दिल को और पांवों को कितना सुकून मिला ये कोई उस वक्त हमसे पूछता । आज यहीं अपना डेरा लगेगा । दोपहर बाद के 3 बजे हैं इस समय । हमने बद्रीनाथ से सुबह 9 बजे अपनी यात्रा शुरू करी थी और अब तीन बजे यहाँ पहुंचे हैं यानि करीब 10 किलोमीटर चलने में हमें 6 घण्टे लग गये । अमित भाई बहुत पहले ही लगभग हमसे दो घण्टे पहले ही यहाँ पहुंच गये थे और वो आगे कुछ दूर जाकर वापस भी आ गये । उधर गुफा में पॉर्टरों ने अपना खाना बनाने का काम शुरू कर दिया है । और इधर जिंदगी में पहली रात ऐसे पहाड़ों के बीच खुले में बीतेगी । टैण्ट के अन्दर , पहली रात । इस रात का इंतजार न जाने कब से था और आज जब ये रात आई है तो इसका रोमांच मुझे चरम सीमा तक आनंदित कर रहा है । आई रात ..............ख्वाबों वाली ।
आज इतना ही । कल फिर चलेंगे आगे , गिरते पडते , हांफते सुस्ताते । और हाँ , वो धोखेबाज वसुधारा फॉल अब भी दिखाई दे रहा है । चाय पी लेते हैं पहले , उसके बाद लक्ष्मी वन के भोजपत्र के वृक्ष देखने चलेंगे, लेकिन उसकी कथा कल सुनाई जायेगी ।
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