जीवन की इस अापाधापी और रोज़ रोज़ के तनाव से कुछ पल खुद के लिए निकाल लेना भी जरूरी होता है ! हमेशा काम करते रहेंगे तो अाप पूरी क्षमता से अपना काम नही कर पाएंगे , इसलिए जरूरी हो जाता है कि अाप थोड़ा सा ब्रेक ले लें और फिर से अपने काम में स्फूर्ति और जोष ले अायें !
हम कुछ लोगो का एक वहॉट्स ग्रुप है मुसाफिरनामा.... दोस्तों का जिसकी समय समय पर मीटिंग होती रहती हैं ! इसी ग्रुप की एक मीटिंग अप्रैल में दिल्ली में हुई थी और उसी में सतोपंथ जाने का प्रोग्राम बना , विचार ये था कि हम 15 जून को सतोपंथ पहुंचें और 16 जून को वहां से निकलें ! यानि हमारे पास पूरी एक रात होगी वहां के लिए और दिन का भी कुछ हिस्सा मिल रहा था ! सतोपंथ बद्रीनाथ से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर एक बेहद कठिन और दुर्गम ट्रेक करके जाना होता है ! क्योंकि मैं बद्रीनाथ पहले भी जा चुका हूँ और पिछले साल उसका यात्रा वृतान्त भी लिख चुका हूँ इसलिए इस यात्रा वृतान्त में , मैं अापको गाजियाबाद से बद्रीनाथ जाने तक का वृतान्त नही सुनाऊंगा ! इसलिए मैं अपना वृतान्त बद्रीनाथ पहुंचने के बाद से शुरू करूंगा ! अगर अाप चाहें तो उस यात्रा वृतान्त को पढ़ने के लिए यहाँ
क्लिक कर सकते हैं ! लेकिन एक बात जरूर लिखना चाहूंगा, वो ये कि अगर अाप यात्रा सीजन में सार्वजनिक व्हीकल से बद्रीनाथ जाना चाह रहे हैं तो हरिद्वार या ऋषिकेश से बस की सीट पहले से रिज़र्व करा लें , भीड़ बहुत होती है ! GMVN या विश्वनाथ सेवा की बस में बेहतर है ! इंटरनेट से इनका नंबर लीजिए और सीट बुक करा दीजिये ! तो अाइए बद्रीनाथ पहुंचते हैं ! इस यात्रा में मेरे साथ गुडगांव से अमित तिवारी , दिल्ली से बीनू कुकरेती , सचिन त्यागी, संदीप पंवार उर्फ जाट देवता और कमल कुमार सिंह , गाजियाबाद से मैं और संजीव त्यागी , पटियाला पंजाब से सुशील कुमार जी , उधमपुर से रमेश जी और ग्वालियर से विकास नारायण श्रीवास्तव शामिल थे जबकि अगले दिन श्रीनगर उत्तराखंड से सुमित नौटियाल भी हमारे साथ अ गए !
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सुबह 4:30 बजे हरिद्वार से निकलकर शाम 5 बजे हम बद्रीनाथ पहुंच पाये । होटल में पहुंच कर आराम किया और अगले दिन acclimatize होने के लिये बद्रीनाथ के ऊपर की पहाडी पर जाने का प्रोग्राम बनाया । इस पहाडी को चरण पादुका कहते हैं और इसी रास्ते पर आगे जाने पर नीलकंठ पर्वत के भी दर्शन होते हैं । यहॉ आपको उर्वशी कुण्ड तो नहीं दिखाई देगा लेकिन उस कुण्ड से आने वाले शानदार वॉटर फॉल जरूर देख सकते हैं । 3380 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये चरण पादुका भगवान विष्णु के कदम माने जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने प्रथम बार पृथ्वी पर यहीं अपने कदम रखे थे । ये चरण यहॉ स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं ।
अगले दिन यानि 12 जून को स्नान करके पहले बद्रीनाथ भगवान के दर्शन करने का विचार था लेकिन भीड़ को देखते हुये टाल दिया और सीधे acclimatize होने के लिये पहाडी की तरफ चल दिये । मैं और संजीव त्यागी जी साथ चल रहे थे । सबके पास स्टिक थी और मैं दुकानों की तरफ देखता हुआ चल रहा था कि कहीं मुझे भी लकडी की कोई स्टिक मिल जाये । इससे पहाड चढने में थोड़ा आसानी हो जाती है । बांये हाथ पर एक चाय की दुकान पर दो छडी टेबल के किनारे रखी दिखाई दे गईं । मैंने पूछा - भाई कितने की है ? इतना सुनते ही एक बुजुर्ग कडक कर बोले ये मेरी है ! ओह ! मैं चल दिया लेकिन फिर बोलो चाहिये तो ले जाओ , 10 रूपये की है । मैं तो ढूंढ ही रहा था, मुझे क्या दिक्कत हो सकती थी ।
बढिया सीमेंटेड रास्ता बना है लेकिन ये सिर्फ हनुमान मंदिर तक ही है फिर पगडंडी सी दिखाई देने लगती है । थोड़ा आगे जाकर हमारा ग्रुप स्वतह ही दो हिस्सों में बट गया । एक तरफ मैं , कमल कुमार और अमित तिवारी जी तथा दूसरी तरफ सचिन त्यागी जी, रमेश जी, सुशील जी, विकास नारायण दुूसरी पहाडी पर चले गये । बेहतरीन नजारों को देखते हुये बहुत आगे तक और बहुत ऊपर तक पहुंच गये । उधर वाले लोगों का पूरा विचार था कि नीलकंठ तक होकर आया जाये लेकिन मौसम बहुत खराब होने लगा था और वापस लौट कर आना पडा । हालांकि जल्दी ही मौसम सुधर भी गया लेकिन तब तक हम वापस उतर चुके थे और अब दोबारा जाने का कोई मतलब ही नहीं बनता था ।
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