गुरुवार, 14 मई 2015

मीरा मंदिर : चित्तौड़गढ़


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विजय स्तम्भ और गोमुख मंदिर के बाद अब अगला पड़ाव बिल्कुल पास में ही स्थित मीरा मंदिर था। मीरा यानि मीराबाई , भगवान श्री कृष्णा की अनन्य भक्त थीं। मंदिर तक जाने से पहले आइये थोड़ा सा मीरा बाई का इतिहास पढ़ते जाते हैं जिससे उन्हें और उनके भक्त रूप को समझने में आसानी रहे और समझ में भी आ सके।


मीराबाई एक राजपूत राजकुमारी थीं जिनका जन्म राजस्थान के मेड़ता में 1498 ईसवी में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के यहाँ हुआ था। बचपन से ही मीरा बाई भगवान की भक्ति में रमने लग गयी थीं और उनकी आवाज भी बहुत सुरीली थी। जब भी वो भगवन के भजन गाती तो राजा का दरबार भी उन्हें सुनने लग जाता था। एक दिन उनके घर के सामने से एक बारात निकल रही थी , दूल्हे को देखकर मीरा ने माँ से पूछा , माँ मेरा दूल्हा कौन होगा , माँ ने ऐसे ही कह दिया , ये बंशी वाला तेरा दूल्हा होगा ! और तब से भगवान को अपना सब कुछ मान बैठी। समय आने पर उनका विवाह चित्तोड़ के राजा भोज राज से कर दिया गया लेकिन वो भगवान को ही अपना पति मान चुकी थीं इसलिए इस विवाह में उनकी कोई रूचि नही रही फलस्वरूप उन्हें कोई संतान भी नही हुई। 1521 में राजा भोज राज की मृत्यु हो गयी तो उसके बाद उनके ससुर राणा सांगा ने उनकी हिफाज़त की। कालांतर में मीरा बाई की भक्ति और भी बढ़ती गयी और वो घर से बाहर निकलकर सत्संग में जाने लगीं। ये देखकर उनके देवर विक्रमादित्य और ननद उदा बाई को नागवार गुजरने लगा और उन्होंने मीरा बाई को कई बार मारने की कोशिश करी। उदा बाई ने मीरा को कई दिन तक भूखे प्यासे एक कमरे में बंद रखा जिससे वो स्वतः ही दम तोड़ दे लेकिन कहते हैं भगवान रोज़ उनके लिए खाना लाते और उसके बाद मीरा भगवान के भजन गाया करती। विक्रमादित्य ने मीरा को मारने के जितने भी प्रयास किये भगवान श्री कृष्णा ने वो सब असफल कर दिए ! राजस्थानी भाषा में ये लोक गीत देखिये :

                शूल सेज राणा नै भेजी, दीज्यो मीरां सुलाय/सांझ भई मिरां सोवन लागी, मानों फूल बिछाय'


मीरा बाई वृन्दावन होते हुए अपने आखिरी दिनों में द्वारका चली गयी। 1546 ईस्वी में जब राणा उदय सिंह चित्तोड़ के राजा बने तो उन्होंने मीरा बाई को वापस बुलाने के लिए ब्राह्मणों को द्वारका भेजा लेकिन मीरा बाई ने आने से मना कर दिया और एक रात मंदिर में गुजारने देने की अनुमति मांगी। कहते हैं उस रात के बाद मीरा बाई अंतर्ध्यान हो गयीं और ऐसा कहा जाता है कि वो भगवान श्री कृष्णा की मूर्ति में ही समा गयी।


ये जो वर्तमान मीरा मंदिर है चित्तौड़गढ़ का , इसे मीरा बाई के ससुर राणा सांगा ने उनके लिए ही बनवाया था ताकि वो भगवान की भक्ति कर सकें। इस मंदिर के पास में ही विष्णु मंदिर है जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था और इसे कुम्भा मंदिर कहते हैं। इसके पास में ही मीरा मंदिर है और एक मंदिर है जिसे कुम्भा श्याम मंदिर कहते हैं। राजपुताना स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना इन मंदिरों में देखने को मिलता है। मीरा मंदिर में चार मंडप हैं जो मंदिर को घेरे हुए हैं। अंदर आपको भगवान श्री कृष्णा और मीरा बाई की सुन्दर तस्वीरें देखने को मिलती हैं !

तो आइये इंतज़ार किस बात का , दर्शन करते जाइए ! कुछ फोटो इंटरनेट से भी लिए गए हैं !
 
 






ये मैकेनिकली बजता है आरती के समय ! सच में काम करता या नहीं मालुम नही
जय श्री कृष्णा
महिला पुजारी ! किताबें भी बेच लेती हैं मंदिर में










मीरा मंदिर के सामने ही है जैन श्वेताम्बर मंदिर ! बाहर से ही फोटो खींच लिए , अंदर नही गया था !
मीरा मंदिर के सामने ही है जैन श्वेताम्बर मंदिर ! बाहर से ही फोटो खींच लिए , अंदर नही गया था !   
 
 
                                                                                                          
 
                                                                                                                यात्रा जारी रहेगी :

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