हिमाचल यात्रा
पहला दिन : 1-2 अक्टूबर 2014
हिमाचल का एक एक गाँव , एक एक शहर या ये कहूँ कि हर जर्रा इतना खूबसूरत है कि मन करता है वहीँ पड़े रहो ! लेकिन आदमी की बड़ी जरुरत उसके पेट की भूख होती है और उसे शांत करना प्राथमिक कार्य होता है और विवाहित और बच्चे वाले आदमी के लिए तो और भी दस तरह की जिम्मेदारियां हो जाती हैं ! लेकिन इसके साथ ही बच्चों से मिलने वाली ख़ुशी भी आपको हमेशा प्रसन्नचित बनाये रखती है ! ये पंक्तियाँ असल में इसलिए लिख रहा हूँ क्यूँकि मैंने अगस्त में अकेले जाने के लिए जैसे ही रिजर्वेशन कराया तो बच्चों ने जिद पकड़ ली कि हम भी जाएंगे , अब इस चक्कर में पहले का रिजर्वेशन कैंसिल कराना पड़ा और जब दोबारा कराने बैठा तो छुट्टियों का हिसाब किताब गड़बड़ा रहा था इसलिए सब देखभाल के अक्टूबर के पहले सप्ताह में जाने का रिजर्वेशन कराने का सोच लिया ! 2 अक्टूबर से लेकर 6 अक्टूबर तक की छुट्टियां मिल रही थीं तो जाने के लिए 1 अक्टूबर की रात को निकला जा सकता था और जब गाज़ियाबाद से निकलकर पठानकोट जाने वाली ट्रेन में जगह देखी तो निराशा हाथ लगी ! कहीं कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी टिकेट मिलने की ! सभी ट्रेनों में भरी वेटिंग ! दिमाग ने फिर सही काम किया और पुरानी दिल्ली से रात में 10 बजकर 45 मिनट पर चलने वाली धौलाधार एक्सप्रेस ( 14035 ) में 1 अक्टूबर को 40 और 41 वेटिंग मिल गयी ! उम्मीद थी कन्फर्म हो जायेगी और लौटने का पक्का टिकट मिल गया ! भीड़ का अंदाज़ा था क्योंकि इतनी लम्बी छुट्टियां मिल रही थीं तो सबको ही जाना होगा , सबने ही प्लान बना लिया होगा !
1 अक्टूबर आते आते हमारा टिकट कन्फर्म हो चूका था , होना ही था ! शायद 200 , 300 वेटिंग भी कन्फर्म हो गयी होगी ! इसका एकमात्र कारण रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ! उन्होंने 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के दिन जो "स्वच्छ भारत अभियान " प्रारम्भ किया उसके चक्कर में सरकारी कर्मचारियों को ऑफिस जाना पड़ा और उस चक्कर में उनके प्लान बेकार हो गए होंगे और उन्होंने धड़ाधड़ अपनी टिकेट कैंसिल करा डालीं होंगी ! और इसका फायदा हम जैसे वेटिंग में लगे लोगों को मिल गया ! धन्यवाद मोदी जी , देश को साफ़ सुथरा बनाने की पहल के लिए और टिकट कन्फर्म कराने के लिए ।
1 तारिख को कॉलेज से हाफ डे लेकर घर निकल लिया। ऐसे ट्रेन तो रात को 10 बजकर 45 मिनट पर थी लेकिन जब आपके साथ में बच्चे हों तो समय से ही स्टेशन पहुंचना बेहतर होता है और यही सोचकर पुरानी दिल्ली स्टेशन पर हम 8 बजे ही पहुँच गए। गाडी अपने निर्धारित समय पर चल पड़ी !
धौलाधार,
हिमालय की दक्षिण हिस्से की रेंज है जो मैदानों से शुरू होकर कांगड़ा तक
जाती है और फिर पीर पंजाल से जुड़ जाती है ! धौलाधार को लैसर हिमालय या आउटर हिमालय भी कहते हैं ! धौलाधार पहाड़ियों की ऊंचाई 3500 मीटर से लेकर 6000 मीटर तक जाती है ! इस रेंज की सबसे ऊँचे चोटी कांगड़ा जिले में पड़ने वाली " हनुमान जी का टीबा " है जो 5639 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है , इसे वाइट माउंटेन भी कहते हैं ! धौलाधार रेंज में कई विश्व प्रसिद्ध चोटियाँ हैं जैसे धर्मशाला के नजदीक मुन ( 4610 मीटर ) , पवित्र मणिमहेश ( 6638 मीटर ) तैलंग दर्रा के पास गौर्जुन्दा (4946 मीटर ) , तोराल (4686 मीटर ) और राइफल हॉर्न ( 4400 मीटर ) इनमें प्रमुख हैं ! आज इतना ही, बाकी की यात्रा अगली पोस्ट में !
आइये फोटो देखते हैं :
ईद के लिए बकरे भी इधर उधर होते हैं |
टॉय ट्रेन की खिड़की से झाँकता मेरा बेटा पारी |
सुन्दर हिमाचल |
नैरो गेज लाइन |
ये बाण गंगा दिखाई दे रही है |
यात्रा आगे जारी है :
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