तेरी आरजू , तेरी जुस्तजू , तेरा इंतज़ार
ओह ! हमें कितना काम है आजकल ।
एक जेल में और एक ‘ बेल’ में
नेताओं का कितना नाम है आजकल ॥
छत पर एक झंडा लगा लिया जाए
पार्टियों के झंडे का क्या दाम है आजकल ?
काम से फुर्सत पाकर तुझे ही ढूँढता हूँ
तेरी जुल्फों के तले ही मेरी सुबहे-शाम है आजकल ॥
चलो इन उसूलों को कूड़े में डाल दें
इस मुल्क में सोच गुलाम है आजकल ॥
हुकूमत से कोई उम्मीद लगाना छोड़ दो
चोरों के हाथ में मुल्क का निजाम है आजकल ॥
अदीब-ओ-अमन के पैरोकार कहाँ गए
निठल्लों के हाथ में कलाम है आजकल ॥
अब छोड़ दी जाएँ ‘ योगी ‘ ज़मीर -ओ- ईमान की बातें
हिन्द में बस ताकत को सलाम है आजकल ॥
4 टिप्पणियां:
bahut acchi ghazal hai .......
पहला शेर
त्तेरी आरजू , तेरी जुस्तजू , तेरा इंतज़ार
ओह ! हमें कितना काम है आजकल ।
बेहद खूबसूरत बन पड़ा है।हालांकि बाकी शेर भी बेहतर हैं पर पहले शेर के से जज्बात उनमें नहीं हैं।उनका मिजाज अलग है।बधाई।
aabhaar aapka
aabhaar sonam ji
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