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सोमवार, 1 जुलाई 2013

चलते – चलते

तेरी आरजू , तेरी जुस्तजू , तेरा इंतज़ार
ओह ! हमें कितना काम है आजकल ।



एक जेल में और एक ‘ बेल’ में
नेताओं का कितना नाम है आजकल ॥



छत पर एक झंडा लगा लिया जाए
पार्टियों के झंडे का क्या दाम है आजकल ?



काम से फुर्सत पाकर तुझे ही ढूँढता हूँ
तेरी जुल्फों के तले ही मेरी सुबहे-शाम है आजकल ॥



चलो इन उसूलों को कूड़े में डाल दें
इस मुल्क में सोच गुलाम है आजकल ॥



हुकूमत से कोई उम्मीद लगाना छोड़ दो
चोरों के हाथ में मुल्क का निजाम है आजकल ॥



अदीब-ओ-अमन के पैरोकार कहाँ गए
निठल्लों के हाथ में कलाम है आजकल ॥



अब छोड़ दी जाएँ ‘ योगी ‘ ज़मीर -ओ- ईमान की बातें
हिन्द में बस ताकत को सलाम है आजकल ॥



4 टिप्‍पणियां:

  1. पहला शेर
    त्तेरी आरजू , तेरी जुस्तजू , तेरा इंतज़ार
    ओह ! हमें कितना काम है आजकल ।
    बेहद खूबसूरत बन पड़ा है।हालांकि बाकी शेर भी बेहतर हैं पर पहले शेर के से जज्बात उनमें नहीं हैं।उनका मिजाज अलग है।बधाई।

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