गोविंदघाट की रात बड़ी ठण्डी थी लेकिन हम भी गुरूद्वारे से लंगर छककर, रजाई ओढ़ के सोये पड़े रहे। सुबह -सुबह पांच बजे ही पवन चौहान जी के मोबाइल की घण्टी घरघराने लगी थी, मैंने सोचा -कि अलार्म होगा ! लेकिन पवन भाई ने फ़ोन उठाया और बात करने लगे ... बात करते करते उनके चेहरे के हाव भाव बदलते रहे। तब तक हम सभी चारों लोग जो इस कमरे में थे, जाग चुके थे। फ़ोन डिसकनेक्ट हुआ तो पवन भाई बोले - योगी भाई मैं ट्रेक पर नहीं जा पाऊंगा ! मेरे चाचा जी के बेटे की डेथ हो गई है कल ... ओह ! भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें !!
हमें पवन भाई के लिए भी बहुत दुःख हो रहा था जो 10 दिन पहले ही गुवाहाटी से चलकर दिल्ली पहुँच गए थे और काकभुशुण्डि जाने के लिए बहुत उत्सुक थे लेकिन नियति है !! कोई क्या कर सकता है ? उन्हें भारी मन से जोशीमठ की तरफ जाने वाली पहली ही जीप पकड़ने को कहकर उनका सामान पैक कर दिया !! होई है वही जो राम रचि राखा ....
अब हम कुल 7 लोग रह गए। सात हम और सात ही पॉर्टर ! खर्चा भी थोड़ा बढ़ जाएगा ट्रैक का , खैर चलता है ! पवन भाई बस निकलने ही वाले थे कि उनका फ़ोन फिर बजा, इस बार मेरे लिए कॉल था ... उधर पंकज भाई थे फ़ोन पर ! पंकज मेहता - द ट्रैवलर ! मेरा नंबर शायद नेटवर्क में नहीं होगा इसलिए पवन भाई को लगा दिया - नेटवर्क की समस्या उनके फ़ोन में भी थी लेकिन इतना समझ आ गया कि वो भी इस ट्रेक पर हमारे साथ आ रहे हैं ! ये मेरे लिए और ग्रुप के लिए एक बेहद ही ख़ास खबर थी क्यूंकि मैं पंकज भाई का बहुत बड़ा वाला फैन रहा हूँ। एक बार तो मैं और हरजिंदर भाई , पंकज के साथ मनाली से कारगिल होते हुए लद्दाख तक का प्लान कर चुके थे लेकिन कभी -कभी सबकुछ अपने मन का नहीं होता ....तो पंकज भाई के आने की खबर ने एक नया उत्साह भर दिया था।
इधर पवन भाई निकल रहे थे और उधर पंकज जी अपने एक और मित्र के साथ गोविंदघाट पहुँच रहे थे। मुलाकात हुई उनकी भी और अन्ततः पंकज भाई करीब 9 बजे के आसपास हमे मिल गए।
नाश्ता करने के बाद हमारी टीम को पुलना गाँव तक जीप से जाना था जो गोविंदघाट से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर होगा। लगातार जीप भर -भर के निकल रही थीं . . ज्यादातर यंग एज के लड़के -लड़कियां ट्रैकिंग पैंट और जैकेट पहनकर पीठ पर बैग लटकाये चले आ रहे हैं। सभी की आँखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ है ! असल में ये रास्ता वैली ऑफ़ फ्लॉवर (फूलों की घाटी ) और हेमकुंड साहिब के लिए भी जाता है मगर इस वक्त अभी तक हेमकुण्ड साहिब के दर्शन तो बंद हैं तो फिर ये सब ? कहाँ जा रहे हैं ! निश्चित ही वैली ऑफ़ फ्लॉवर वाले लोग हैं ये !! इस ट्रेक पर महिलाओं की इतनी बड़ी संख्या देखकर मैंने और हरजिंदर भाई ने इस ट्रेक का नया नामकरण किया था - वैली ऑफ़ फीमेल्स !!
पुलना में जीप से उतरने के बाद अब भ्यूंडार गाँव की तरफ चलते जाना है , हमें भी और वैली ऑफ़ फीमेल्स सॉरी सॉरी वैली ऑफ़ फ्लॉवर्स वालों को भी। भ्यूंडार से हमारा रास्ता अलग हो जाएगा लेकिन पुलना से निकलते ही इन वैली ऑफ़ फ्लॉवर जाने वालों की पोल खुलने लगी थी .. महिलाओं के अपने पर्सनल बैग बेचारे पतियों के हाथ में थे और लड़कियों के बैग ... लिखने की जरूरत नहीं !! पानी की बोतल भी अब उन्हें भारी लगने लगी थी और साथ चल रहा लड़का जैसे उनका असिस्टेंट और फोटोग्राफर बन गया हो ! खैर , ये दौर भी यादगार होता है और जीवनभर के लिए मीठी -मीठी यादें छोड़ जाता है। मित्रों के साथ घूमना अलग अंदाज़ देता है !!
पंकज भाई और एक मित्र तो 9 बजे के आसपास ही गोविंदघाट पहुँच गए थे लेकिन अभी पंकज भाई के दो मित्र और आने वाले थे। मतलब अब हम कुल 11 जने हो जाएंगे ट्रैक पर जाने वाले और 7 पॉर्टर होंगे तो कुल 18 लोग होंगे। पंकज भाई और उनके मित्र गोविंदघाट में ही रुके रहे , अपने दो और मित्रों को साथ लेने के लिए और बाकी सब दो अलग अलग जीप से पुलना पहुँच के आगे बढ़ चुके थे। इन रास्तों पर 2007 में एक बार पहले भी आ चूका हूँ अपनी धर्मपत्नी के साथ। तब हेमकुंड साहिब गए थे हम दोनों लेकिन पता नहीं क्यों , रास्ते जाने पहचाने से नहीं लग रहे थे। बड़ा बदलाव आ गया है 2013 की आपदा के बाद।
बहुत ही खूबसूरत रास्ते हैं , जंगलों से होते हुए और पत्थरों को जोड़ जोड़कर इस तरह का रास्ता बना दिया है कि किसी को रात में चलते हुए भी भटकने का अंदेशा न रहे। भ्यूंडार तक शानदार वाटर फॉल्स और मनमोहक हरियाली को देखते हुए हम सब 12 बजे के आसपास भ्यूंडार गाँव पहुँच के चाय पी रहे थे और कुछ मित्र अपना मोबाइल फ़ोन भी चार्जिंग में लगाए पड़े थे। उनमे मैं भी एक था ! जिस दुकान में हम चाय खींच रहे थे वहीँ एक साहब Satellite Phone लेकर बैठे थे , सभी ने 2 -2 मिनट बात कर ली अपने घर। हम सभी के फ़ोन के नेटवर्क लगभग गायब हो चुके थे। दो बार चाय पी चुके और यहाँ बैठे बैठे हमे दो घंटे से ज्यादा हो चुके थे लेकिन पीछे से न पॉर्टर आये अभी तक न पंकज भाई और उनके मित्र। सोचा चलो धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं , वो लोग सब गढ़वाली हैं , हमें पकड़ लेंगे।
भ्यूंडार गाँव पार कर गए और फिर उस जगह एक दुकान में लस्सी पीने बैठ गए जो दो नदियों के संगम पर है। ये जो संगम है दो नदियों का.... इसमें एक है काकभुशुण्डि नदी जो हाथी पर्वत से निकलती है और दूसरी है लक्ष्मण गंगा या पुष्पावती नदी जो फूलों की घाटी से निकलती है। हमे क्यूंकि काकभुशुण्डि जाना है तो काकभुशुण्डि नदी को ही फॉलो करना होगा। इस जगह से सीधे हाथ पर काकभुशुण्डि नदी दिखाई देने लगती है और शुरुआत में एक जंगल से होकर रास्ता जाता है। अगर नदी का किनारा सही अवस्था में है तो आप किनारे-किनारे भी जा सकते हैं।
संगम से एकदम सामने वाला रास्ता पुष्पावती नदी के साथ-साथ हेमकुंड साहिब और घांघरिया की तरफ चला जाता है। हमारा यही लास्ट पॉइंट था जहाँ बैठ के हम पंकज भाई वगैरह का इंतज़ार करते रहे और जैसे ही वो तीन बजे के करीब हमारे पास पहुंचे , हमने फर्स्ट गियर डाल के भगवान भोलेनाथ का नाम लेकर अपनी गड्डी स्टार्ट कर दी , मतबल काकभुशुण्डि की तरफ का रास्ता पकड़ लिया ! समझा करो यार। ..समत्ते ई नहीं हो आप ....
फाइनल लिस्ट फिर बदल गई है एक बार और अब यही फाइनल रहेगी........ देखिये एक बार :
1. योगी सारस्वत
2 . हरजिंदर सिंह
3. डॉ अजय त्यागी
4 . कुलवंत सिंह
5 . हनुमान जी गौतम
6 . सुशील कुमार
7. मणि त्रिपाठी जी
8. पंकज मेहता
9. बद्रीनाथ डोभाल
10. पुरुषोत्तम कंवर
11. कमलेश मैखुरी मैखुरी
शुरुआत में , जैसा मैंने ऊपर लिखा कि जंगल से होकर रास्ता है। ऐसा रास्ता नहीं है कि आप चलते ही जाओ लेकिन हाँ , जंगल इतना घना नहीं है इसलिए किसी जंगली जानवर का डर नहीं रहता। करीब एक -डेढ़ घण्टा जंगल में चलने के बाद फिर से नदी के पाट पर उतर गए और पाट क्या एकदम खुला मैदान सा सामने था जहाँ छोटे -छोटे पत्थर और बालू -कंकड़ी ही दिखाई दे रहे थे। यहाँ नदी बस जल की एक बड़ी सी धारा बन के बह रही थी। थोड़ा आराम किया तो गाइड से पता चला कि यहाँ किसी अँगरेज़ ने तप किया था इसलिए इस जगह को अँगरेज़ गुफा कहते हैं।
जब ये रास्ता भ्यूंडार गांव क्रॉस कर के काकभुशुण्डि नदी के किनारे -किनारे होकर था तब इस रास्ते मे जंगल के एकदम नीचे रुकने की एक जगह हुआ करती थी जिसे -रूपढूंगी बोलते हैं । रूपढूंगी में एक टिन की हट हुआ करती थी जो अब बहुत जर्जर अवस्था मे है । अंग्रेज गुफा से ही हम इस देख पाए पीछे की तरफ ।
अंग्रेज गुफा जंगल खत्म होते ही मिल जाती है लेकिन अब वहां गुफा जैसा कुछ नहीं है । वास्तव में यहां कोई गुफा थी भी नही कभी ...एक अंग्रेज जो शायद इटली का रहने वाला था वो यहां एक बड़े से पत्थर पर बैठकर तपस्या में लीन रहा करता था जिससे इस जगह का नाम अंग्रेज गुफा पड़ गया । रहने-खाने का उसने अपना कोई ठिकाना बनाया हुआ होगा जो समय के साथ इन पत्थरों में मिल गया ।
नदी हमारी विपरीत दिशा से बहती हुई आ रही है और हमारे दाएं अपने धवल श्वेत रूप में लगातार बहती हुई बहुत ही सुंदर दिख रही है जैसे कोई नवयौवना अपने मे ही खोई हुई ...चंचलता से इठलाती हुई सी चली जा रही हो । नदी के जल में गंदगी का कोई नामोनिशान नही है ...यही नदी है जो हाथी पर्वत से निकल कर काकभुशुण्डि का नाम धर लेती है और फिर भ्यूंडार में जा के , फूलों की घाटी से निकलने वाली पुष्पावती नदी में मिल जाती है ।
मुश्किल से आधा घण्टा ही नदी के पट पर चले होंगे ...कि फिर पट छोड़कर ऊपर की ओर जंगल मे घुसना पड़ा । बेहतरीन और अनजान से फूल खिले हैं हर तरफ ...सफेद ..पीले ...नीले...लाल लेकिन हम में से कोई भी इनका नाम नहीं जानता । जंगल घना है अब, पहले वाले के मुकाबले। कारण शायद ये रहा होगा कि वो भ्यूंडार गांव के एकदम नजदीक था और ये थोड़ा दूर तो लोग लकड़ियां काटने यहां तक नहीं आते होंगे ...हालांकि ये जंगल भी उसी जंगल का अगला हिस्सा है जो हमें शुरुआत में ही मिला था।
गाइड ने एक जगह रुककर एक बड़ा और खड़ा पत्थर दिखाया -यहां भी एक अंग्रेज ने तपस्या की थी ...इस जगह को भी अंग्रेज गुफा कहा जाता है। लेकिन ये घने जंगल मे है और निश्चित रूप से ये वाला अंग्रेज, उस नीचे वाले अंग्रेज से ज्यादा हिम्मत वाला रहा होगा।
कहीं -कहीं पगडंडी दिख जाती है तो अगले 100-200 मीटर का रास्ता तय हो जाता है उसी के सहारे। रास्तों में बहुत बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है जिसमे कुछ छोटी हाइट वाले मित्र बिल्कुल ही छुप से गए हैं जबकि कुलवंत भाई , हरजिंदर भाई , हनुमान जी और कुछ कुछ मेरे जैसे लोगों की बस गर्दन चमक रही है ...हम में से जो आगे चल रहे हैं वो पहले अपनी स्टिक से रास्ता बनाते हैं फिर सब एक लाइन से एक दूसरे के पीछे चलते जा रहे हैं । जोश हाई है ...पहला ही दिन है बेटा अभी
साढ़े पांच बजे हैं और हमें एक ऐसी जगह मिल गई है जहां हम कुछ टेंट नीचे और कुछ ऊपर लगा सकते हैं। लेकिन पंकज भाई हमसे आगे जाकर थोड़ी दूर तक नजर मार के आये हैं तो उन्हें एक और जगह दिख रही है जो ज्यादा बड़ी है और खुला मैदान सा है। हम अपने झोले -डंडे फिर से उठा लेते हैं और अपने से भी बड़ी-बड़ी घास में से होते हुए अंततः आज हम अपने गंतव्य कागी या कार्ग़ी (Kaagi or Kargi) तक पहुंच गए हैं। यहां वन विभाग का बनाया हुआ एक कमरा है जिसमें कीचड़ भरी हुई है ..आसपास घास है जिसे समतल करके टेण्ट लगाने शुरू कर दिए हैं। उधर दूसरी तरफ चाय और फिर खाना तैयार हो रहा है।
रात को खाने से पहले मैँ सबके टेण्ट में होता हुआ , सबके हालचाल लेता हुआ पंकज मेहता जी और उनके मित्रों के साथ गप्प लगाने के लिए उनके टेण्ट में घुस जाता हूँ। वहीं हरजिंदर भाई और डॉक्टर साब को भी बुला लेता हूँ। हरजिंदर भाई और मैँ रजनीतिक विचारधारा में नदी के दो छोर हैं ...लेकिन हम दोनों बहुत प्यारे मित्र हैं। मैँ ट्रैकिंग में उनका साथ मिलने पर बहुत आश्वस्त हो जाता हूँ कि अब कोई दिक्कत नहीं ...पंकज भाई का परिचय में पहले ही लिख चुका हूँ। ये दुनिया ऐसी ही है ..हम गप्पएँ लगा रहे हैं और बाकी टेण्ट के निवासी खर्राटे मार रहे हैं। 12 बजने को हैं रात के ...पंकज का मन अब भी नहीं है सोने का लेकिन उनके मित्र शायद सोने के इच्छुक हैं इसलिए मैं हरजिंदर को इशारा करता हूँ और हम दोनों बाहर आकर अपने अपने टेण्ट में घुस जाते हैं ....
4 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ऐसा लगता है कि खुद यात्रा पर आए हैं।
काक भसुंडी ...
सच में यात्रा का वर्णन अच्छा है और चित्रों ने तो समा बाँध दिया ...
वक्त जैस थम गया ...
वाह वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति
वाह कारवाँ हो गया इकट्ठा
बढ़िया शुरुआत
भ्यूंडार अंग्रेज के गुफा वाला तप और आपके रात के 12 बजे तक के गप्पे
अब ट्रेक शुरू होगा कल से
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