मथुरा - वृन्दावन जाना मेरे लिए ऐसा है जैसे मैं अपने घर जा रहा हूँ लेकिन घर के आसपास भी कभी कभी इतना कुछ छूट जाता है कि उसे देखने के लिए बार -बार जाना होता है। कुछ नहीं भी छूटे तब भी घर की रोटी का स्वाद लेते रहना चाहिए। वो ही स्वादिष्ट पेड़े , वही गिलास भर के मीठी चाय जिसमे पानी नाम मात्र के लिए डालते हैं लेकिन गाजियाबाद ने और आज की परिस्थितियों ने आदत बिगाड़ दी है। पेट मोटा हो गया है इसलिए ज्यादा मीठा नहीं खा पाता और अब काली चाय ज्यादा पसंद आती है। हमाये ब्रज में जब चाय बनती है तब एक बात जरूर बोली जांत है - पत्ती रोक कें , चीनी ठोक कें !! समझि तो गए ई हुंगे तुम और अगर समझ में न आई होय तो मौय पूछ लियों !! ठीक है सा !! राधे -राधे !! वृन्दावन चलते हैं ग़ाज़ियाबाद से !!
दिल्ली -गाजियाबाद से वृन्दावन आसानी से पहुंचा जा सकता है। बहुत सी ट्रेन , बस चलती ही रहती हैं। होटल भी बहुत सारे हैं और खाने के लिए भी सब तरह का खाना उपलब्ध है। अब सीधा बात करते हैं भगवान श्री कृष्ण की पवित्र और श्रद्धामयी नगरी वृन्दावन की घूमने वाली जगहों की !
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गाजियाबाद रेलवे स्टेशन |
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मथुरा रेलवे स्टेशन |
1. बांके बिहारी मंदिर : बांके बिहारी मंदिर वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था। हरिदासजी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मन्त्र दीक्षा ली तथा यमुना के समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यान-मग्न रहने लगे। जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई ! इस मूर्ति को मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते है।
2. प्रेम मंदिर : प्रेम मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। प्रेम मन्दिर का लोकार्पण 17 फरवरी 2012 को किया गया था जबकि शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को कृपालुजी महाराज द्वारा किया गया था। इतने कम समय में प्रेम मंदिर ने बहुत प्रसिद्धि पा ली है ! दो मंजिल के इस मंदिर में भूतल यानी ग्राउण्ड फ्लोर पर भगवान् श्री कृष्ण और राधा जी विराजमान हैं जबकि पहली मंजिल पर राम दरबार है ! प्रवेश द्वार के पास ही भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किये गए कालिया नाग के वध को प्रदर्शित किया गया है। शाम की अलग अलग रंगों की रौशनी में इस मंदिर को देखने का अनुभव जीवनपर्यन्त याद रखने वाला होता है !
3. रंगजी या रंगनाथ मंदिर : रंगजी मंदिर वृंदावन के कुछ उन गिने चुने मंदिरों में से एक है जो श्रेष्ठ द्रविड वास्तुशिल्प शैली में बना है। इसे 1851 में बनवाया गया था और इसमें मुख्य देवता के रूप में श्री रंगनाथ या रंगजी विराजमान हैं। ... यह मंदिर वृंदावन के बड़े और भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों में से एक है। रंगजी भगवान विष्णु के साकार रूप हैं। दक्षिण भारत के संत स्वामी रंगाचार्य महाराज ने करीब पांच सौ साल पहले वृंदावन को अपनी साधना स्थली के रूप में अंगीकार किया था। रामानुज संप्रदाय के आचार्यो ने वृंदावन में श्रीरंग मंदिर के नाम से आचार्य पीठ की स्थापना की। करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले उनके मथुरा निवासी शिष्यों राधाकृष्ण, सेठ गोविंद दास एवं सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने रंगजी मंदिर का निर्माण कराया। ब्रह्मोत्सव में श्री गोदारंगमन्नार भगवान स्वर्ण-रजत निर्मित रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकलते हैं। 60 फीट ऊंचा सोने का खंभा-ऊंचे परकोटे वाले मंदिर में सात परिक्रमा हैं तो पश्चिम द्वार पर सात मंजिली ऊंचा शिखर है। मंदिर की चतुर्थ परिक्रमा के विशाल प्रांगण में गरुड़ स्तम्भ (स्वर्ण स्तम्भ) है, जो कि 60 फीट ऊंचा है और पूरा स्वर्ण जड़ित है। इसी कारण इसे सोने के खंभे वाला मंदिर भी कहा जाता है। प्रांगण में दक्षिण भारतीय संस्कृति के प्रतीक गोपुरम एवं मण्डपम निर्मित हैं। सिंह दरवाजे की ओर का गोपुरम 6 कोष्ठ वाला है एवं पूर्व की ओर का गोपुरम 5 कोष्ठ का है। पूर्व दरवाजे से प्रवेश करते ही सामने 16 स्तंभों पर टिकी विशाल बारहद्वारी है।
4. शाह जी मन्दिर : यह मन्दिर वास्तुकला, चित्रकला तथा शानदार मूर्तिकला का अद्भुत समन्वय है। श्वेत संगमरमर के इस अत्यन्त आकर्षक मन्दिर की विशेषता है कि इसके खम्बे सर्पाकार में एक ही पत्थर की शिला से निर्मित हैं। पत्थर में जड़ाऊ काम के चित्र भी यहाँ अद्भुत हैं। इस मंदिर को स्थानीय लोग टेढ़े खम्भे वाले मंदिर के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के दाएं हाथ की तरफ ही एक और सुन्दर जगह है -निधि वन नाम से। शाह जी मंदिर जाएँ तो बंदरों का विशेष ध्यान रखिये ! वो आपके हाथ में दिखने वाली हर चीज को आपके हाथ से छीन के ले जा सकते हैं -चाहे वो आपका फ़ोन , पर्स , कैप यहाँ तक कि पानी की बोतल भी !
5. गोविन्द देव मंदिर : गोविन्द देव जी का मंदिर वृंदावन
में स्थित वैष्णव संप्रदाय
का मंदिर है। इसका निर्माण 1590
ई. में हुआ था। इस मंदिर के शिला लेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर
के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मानसिंह
ने बनवाया था। रूप गोस्वामी
एवं सनातन गोस्वामी
नामक दो वैष्णव गुरूऔं की देखरेख में मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख भी मिलता है। जेम्स फर्गूसन
, प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखा है कि यह मन्दिर भारत के मन्दिरों में बड़ा शानदार है। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है 'औरंगज़ेब
ने शाम को टहलते हुए, दक्षिण-पूर्व में दूर से दिखने वाली रौशनी के बारे जब पूछा तो पता चला कि यह चमक वृन्दावन
के वैभवशाली मंदिरों की है। औरंगज़ेब, मंदिर की चमक से परेशान था, समाधान के लिए उसने तुरंत कार्यवाही के रूप में सेना भेजी। मंदिर, जितना तोड़ा जा सकता था उतना तोड़ा गया और शेष पर मस्जिद की दीवार, गुम्बद आदि बनवा दिए। (सात मंज़िल थीं आज केवल चार ही मौजूद हैं)
6 . मदनमोहन मंदिर : मदन मोहन जी का मंदिर वृंदावन में स्थित एक वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण संभवतः 1590 से 1627 के बीच में मुल्तान निवासी श्री रामदास खत्री एवं कपूरी द्वारा करवाया गया था। इसी नाम से एक मंदिर कालीदह घाट के समीप शहर के दूसरी ओर ऊँचे टीले पर विद्यमान है।
7. कालीदह मंदिर :
8. इस्कॉन मंदिर ( अंग्रेज़ों का मंदिर ) : इस मंदिर की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभय चरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने की थी. आपको बता दें, ISKCON का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है. जिसे हिंदी में अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन कहा जाता है. इस मंदिर का पावन भजन "हरे रामा हरे रामा कृष्णा" है
9 पागल बाबा मंदिर : सब मंदिरों में एक मंदिर बहुत ज्यादा खास है और इस मंदिर का नाम है ‘पागल बाबा मंदिर’। आपको बता दें कि इस मंदिर का ‘पागल बाबा’ द्वारा कराया गया था और इस मंदिर को मॉडर्न वास्तुकला का उदाहरण भी माना जाता है। इस मंदिर के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि पौराणिक कथायों की माने तो बांके बिहारी का एक गरीब ब्राह्मण बहुत बड़ा भक्त था। एक बार उसने एक महाजन से कुछ रुपए उधार लिए थे और हर महीने उसे थोड़ा-थोड़ा करके चुकता रहता था। जब लास्ट किस्त रह गई तब महाजन ने उसे अदालती नोटिस भेज दिया कि अभी तक उसने उधार चुकता नहीं किया है इसलिए पूरी रकम ब्याज वापस करे।
ऐसे में ब्राह्मण बहुत परेशान हो गया था। उसने महाजन के पास जाकर बहुत सफाई दी लेकिन महाजन अपने दावे से टस से मस नहीं हुआ और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से यही कहा कि उसने सारा पैसा चुका दिया है और महाजन झूठ बोल रहा है। जज ने पूछा कोई गवाह है जिसके सामने तुम महाजन को पैसा देते थे। थोड़ी देर रुक कर और सोच कर ब्राह्मण ने कहा, “मेरे हिस्से की गवाही बांके बिहारी देंगे।“
ऐसे में अदालत ने गवाह का पता पूछा तो ब्राह्मण ने बताया, “बांके बिहारी वल्द वासुदेव, बांके बिहारी मंदिर वृंदावन।“ ऐसे में इस पते पर सम्मन जारी कर दिया गया। ब्राह्मण ने सम्मन को मूर्ति के सामने रखकर कहा, ‘‘बांके बिहारी आपको गवाही देने कचहरी आना है।'' इसके बाद यह हुआ कि गवाही के दिन सचमुच एक बूढ़ा आदमी जज के सामने खड़ा होकर बता गया कि पैसे देते समय मैं साथ होता था और साथ ही यह भी बता गया कि कब-कब रकम वापस की गई थी।
जब जज ने सेठ का बहीखाता देखा तो गवाही सच निकली। रकम दर्ज थी और नाम फर्जी डाला गया था। जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दे दिया। महाजन के मन में उथल-पुथल मच गई और उसने ब्राह्मण से पूछा कि वो बूढ़ा आदमी कौंन था। ब्राह्मण ने बताया कि वह तो सर्वत्र रहता है, गरीबों की मदद के लिए अपने आप आता है। इसके बाद जज साहब ब्राह्मण से बोले की यह आदमी कौन थे जो गवाही देकर चले गए? ब्राह्मण बोला “अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था। जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया।“
इतना सुनने के बाद जज ब्राह्मण के चरणों में लेट गए और बांके बिहारी का पता पूछा। इस सवाल के जवाब में ब्राह्मण ने यही कहा, “मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो तो हर जगह है।“ इसके बाद जज अपना घरबार और सारा काम-धंधा सब छोड़ ठाकुर को ढूंढने के लिए निकल गया और फकीर बन गया। जब वो बहुत साल बाद वृंदावन लौट कर आया तो लोग उसे पागल बाबा के नाम से जानने लगे। पागल बाबा मंदिर’ दस मंजिल का बना हुआ है और इस मंजिल के उपरी भाग से वृन्दावन को बखूबी निहारा जा सकता है।
इस मंदिर के निचले भाग में पूरे साल कठपुतली डांस आयोजित किया जाता है।
10. वैष्णो देवी मंदिर : जम्मू के वैष्णो देवी की तर्ज पर वृंदावन में बने इस मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है। लोगों के अनुसार आज भी इस मंदिर की रक्षा हनुमान जी करते हैं। इस मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति की ऊंचाई को लेकर इसका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
11. निधिवन : धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं।
6 टिप्पणियां:
सुंदर सचित्र जानकारी
बहुत सुंदर संकलन चित्रों और जानकारियों का
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वृन्दावन की बात ही निराली है योगी जी ....
मैं जितनी बार जाता हूँ एक नई ऊर्जा मिलती है ... जैसा भी है जो भी है पर आनंद कृष्णमय हो जाता है ...
सुन्दर चित्रों के साथ रोचक वर्णन आपका ... लाजवाब ...
वृंदावन की यादे ताजा कर दी आपने, योगी भाई। हमेशा की तरह बहुत सुंदर वर्णन एवं फोटोज।
बहुत सुंदर।
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