मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

Maheshwar : The Land of Maharani Ahilyabai

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          Date of Journey : 07 Dec.2019 
          
महेश्वर : मध्य प्रदेश

उज्जैन पहुँचते -पहुँचते तीन बज गए थे दोपहर के और मेरे जो मित्र लोग थे हमारे GDS ग्रुप के , वो मंदिर में दर्शन की लाइन में लगे थे। संपर्क मुश्किल हो रहा था क्यूंकि फ़ोन सभी के बाहर ही रखवा लिए जाते हैं। GDS -जानते तो होंगे आप ? घुमक्कड़ी दिल से , हमारा एक फेसबुक ग्रुप है जिसके 50 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। और बात चली है तो ये भी बताता जाऊं कि GDS परिवार का ये वार्षिक मिलन समारोह था जिसमें हम सभी मित्रों को भारत के कोने -कोने से महेश्वर पहुंचना था। सही पहचाना आपने - पवित्र नर्मदा के किनारे बसा महारानी अहिल्याबाई का शहर महेश्वर जिसके नाम में ही पवित्र होने का संकेत मिलता है !! GDS परिवार का ये मिलन , चौथा मिलन था। जबकि इससे पहले , ओरछा में 2016 में पहला समारोह हुआ , 2017 में रांसी (उत्तराखंड ) में दूसरा और 2018 में जैसलमेर में तीसरा मिलन हो चूका था। ये चौथा मिलन समारोह था 2019 का ! आप कल्पना करिये - आप ऐसे लोगों से मिलते हैं जो भारत के अलग -अलग दिशाओं , अलग -अलग प्रांतों और शहरों से आते हैं और एक परिवार के नाम से , एक छत के नीचे ऐसे मिलते हैं जैसे पिछले जन्म के कोई सगे सम्बन्धी रहे हों। अद्भुत ग्रुप है GDS और मैं इस ग्रुप के साथ जुड़कर स्वयं को सम्मानित और गौरवान्वित महसूस करता हूँ। 

 आज का दिन अच्छा था। उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन के लिए हमेशा लम्बी लाइन लगती है लेकिन मैं मुश्किल से 20 मिनट में दर्शन करके बाहर आ चुका था। जय महाकाल !! 

आज 7 दिसंबर 2019 है !! मैंने थोड़ा आगे जाकर उज्जैन के बाहर अपनी टीम की बस को आखिर पकड़ ही लिया और पकड़ा भी कहाँ ? खाना खाते हुए एक होटल पर। खैर अब इंदौर के लिए प्रस्थान कर चुके थे और बस सरसराती हुई इंदौर की तरफ उडी जा रही थी जहाँ ग्रुप के ही दो तीन परिवार इंतज़ार में थे। डॉ सुमित शर्मा और GDS के संस्थापक माननीय भालसे परिवार ने जो स्वागत किया उसने हम सभी को अभिभूत कर दिया।  

रात के एक बजे के आसपास महेश्वर की सीमा में प्रवेश कर गए थे। सभी लगभग निद्रा वाली अवस्था में थे और अपने गंतव्य तक पहुँचते पहुँचते रजाई उठाकर लंबलेट हो चुके थे। मैं अपने लिए रजाई और गद्दा ढूंढ ही रहा था कि मुंबई से पधारे विनोद गुप्ता जी , मेरी आँखों के सामने से रजाई गद्दे को उठा ले गए। उनकी भी मजबूरी थी। पत्नी और दो बच्चे थे उनके साथ और अगर पत्नी की सेवा न करते इस वक्त तो भारी पड़ सकता था। मैंने भी आखिर कहीं से अपना इंतेज़ाम कर ही लिया। ठण्ड वाली रात थी , सिकुड़ना नहीं था। 

अगली सुबह एक नई जगह की खुशबू से सराबोर थी। ऐसे जल्दी नहीं जाग पाता हूँ लेकिन उस दिन पता नहीं क्यों और कैसे आँखें जल्दी खुल गईं ! बाहर निकल के देखा कि कहीं चाय -वाय का इंतेज़ाम है क्या ? लेकिन सब सिकुड़े हुए से गहरी नींद में थे -चाय की तो क्या बात करें ! ये आदत मेरी वाइफ की बिगाड़ी हुई है , मेरी कोई गलती नहीं ! वो खुद जल्दी जग जाती है और चाय बना लेती है फिर मुझे जगाती है , यहाँ भी उसी आदत के कारण चाय की प्यास लगी थी लेकिन यहाँ कौन इतना जल्दी चाय पिलाता मुझे ? यहाँ कौन है तेरा....... मुसाफिर 


कोई न कोई तो इस दुनियां में है जो आपका भी ध्यान रखेगा। निकल चले नर्मदा घाट की ओर। दुकानें सजी हैं मंदिर के सामने ही। ज्यादातर प्रसाद की हैं लेकिन चाय ? मिल गई मिल गई ! अहा ....ऐसे लगा जैसे प्राणों को यमराज से फिर मांग लाया होऊं ....कुछ देर के लिए ! 

बहुत ही छोटा कप मिला चाय का .....  दो घूँट मारे और चाय खत्म , फिर एक और ली .. फिर एक और ली ! तीन कप चाय पीने के बाद कुछ लगा पेट को और बोला -हाँ ! मालिक , अब ज़रा कुछ संतुष्टि मिली !! मेरा पेट भी मेरे साथ ही रहता है ज्यादातर.. . यात्रा में भी ... भावनाओं में भी। ये मेरी बात मान लेता है और मैं इसकी .. लेकिन आजकल ये अपने साइज से कुछ बड़ा हो गया है ज्यादा खा खा के।



सुबह -सुबह का अदभुत नजारा देख रही थीं मेरी आँखें और स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हुए आपस मैं बातें कर रही थीं दोनों जुड़वाँ बहनें और मैं .......चुपके से कनखियों से उनका वार्तालाप सुने जा रहा था।  भारत के सबसे पवित्र नदियों में से एक नर्मदा का किनारा हो , कल कल करती जलधारा हो , हाथ में चाय का कप हो और सामने दूर .....क्षितिज में प्रकृति अपने अनन्य रूप में आभा बिखेरने को उतावली हुई जा रही हो तो ऐसे में कौन ना बैरागी हो जाएगा ? कैमरे का शटर खोल के जीवन के इन क्षणों को कैद कर लेना भी तो जरुरी है जिससे जब मैं बुजुर्ग हो जाऊँगा तब कम से कम इन्हें देखकर अपने अकेलेपन का साथी तो बना सकूंगा अपनी इन यादों को !! .....बाकी बातें कल करेंगे 











धन्यवाद् !!

10 टिप्‍पणियां:

Abhishek pandey ने कहा…

नदियों में से एक नर्मदा का किनारा हो ,
कल कल करती जलधारा हो ,
हाथ में चाय का प्याला हो,
सामने क्षितिज में प्रकृति का अपना आभा हो,
तो ऐसे में क्यों ना मन बैरागी हो ?

harshatravelpage ने कहा…

Bahut sunder

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छा संस्मरण कमाल के कमरे के साथ ...
लाजवाब फोटो ...

Sanjay Kumar Garg ने कहा…

Nice Yogi Ji, Bahut hard work karte he aap. ham to keval ghar par bethkar likhte hen

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद् पाण्डेय जी !!

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद् आपका हर्ष जी 

Yogi Saraswat ने कहा…

अनेक अनेक आभार आपका दिगंबर जी !!

Yogi Saraswat ने कहा…

धन्यवाद् संजय जी !! बस आपका समर्थन मिलता रहे .. 

Progkstudy ने कहा…

Very informative article

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Dharmendra Verma ने कहा…

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