मसरूर रॉक कट मंदिर
Date of Journey : Oct.2018
दशहरा की छुट्टियां और मौसम एकदम झक्कास ! कहीं न कहीं जाने का मन तो था और चार दिन की छुट्टियों का बेहतरीन उपयोग भी करना था । मथुरा - वृंदावन से लेकर विदिशा - भोपाल और ग्वालियर की बात चली लेकिन अंततः हिमाचल प्रदेश पर आकर सुई अटक गई और हिमाचल में भी कहीं और नहीं बल्कि वहीँ जहाँ हम पहले ही जा चुके थे यानि कांगड़ा । लेकिन कांगड़ा में वो जगहें देखने का प्लान बनाया जिन्हें पहले नहीं देख पाए थे और जो मन में बसे हुए थे । बहुत सारी ऐसी जगहें हैं लेकिन जाने से पहले ज्वाली के "बाथू की लड़ी " के मंदिरों को देखने जाना कैंसिल करना पड़ा क्योंकि वो अब पानी में डूब चुके थे और अब अप्रैल के आखिर में ही पानी से बाहर निकलेंगे । अब जो है और जितना है , उसी के अनुसार हमने अपनी यात्रा को प्लान किया ।
मुझे कांगड़ा जाने के लिए सबसे बेहतर ट्रेन 14035 धौलाधार एक्सप्रेस लगती है जो सराय रोहिला , दिल्ली से बुधवार की रात को 11 बजकर तीस मिनट पर निकलती है और सुबह आठ बजे के आसपास पठानकोट पहुँच जाती है । रात भर की जर्नी है और अगले दिन पठानकोट से कांगड़ा जाने वाली नैरो गेज की ट्रेन ले लो लेकिन इस बार पता नहीं क्या हुआ कि नैरो गेज वाली ट्रेन बंद थी इसलिए हमें रोड से जाना पड़ा । पहले ये ट्रेन दिल्ली जंक्शन से चलती थी तीन -चार साल पहले लेकिन अब सराय रोहिल्ला से चलने लगी है और ये हमारे जैसे गाज़ियाबादी प्राणी के लिए परेशानी करता है । खैर दिल्ली से निकलकर सही समय पर पठानकोट पहुँच गए थे । स्टेशन से बाहर निकलकर करीब आधा किलोमीटर दूर ही बस स्टैंड है जहाँ से हमें मसरूर रॉक टेम्पल जाना है । मैंने पहले कांगड़ा जाने और फिर वहां से नगरोटा सुरियाँ होते हुए मसरूर जाने का प्लान किया था लेकिन नैरो गेज वाली ट्रेन नहीं जा रही तो कांगड़ा क्यों जाना ? वैसे अगर आप पठानकोट से कांगड़ा -पालमपुर वाली नैरो गेज ट्रेन से जा रहे हैं तो बेहतर है कि नगरोटा सुरियां स्टेशन पर उतर कर बाहर से लुंज या रानीताल जाने वाली कोई बस ले लें या ऑटो हायर कर लें । यही सबसे सस्ता -बढ़िया और टिकाऊ तरीका है मसरूर रॉक टेम्पल पहुँचने का । और अगर नैरो गेज ट्रेन बंद है तो फिर जैसे हम गए वैसे जाइये या गूगल मैप आपके पॉकेट में है , कुछ भी करिये लेकिन कुछ भी हम नहीं कर सकते थे क्यूंकि हमारी यात्रा हमेशा ही सार्वजनिक परिवहन से होती है और हमें ये भी देखना होता है कि बस वगैरह मिलेगी या नहीं , कितने बजे तक मिल जायेगी क्योंकि अकेले होता तो कैसे भी कहीं भी चल दो लेकिन एक बीवी और दो मुसटण्डों को भी साथ लेकर चलना है ! सोचना पड़ जाता है मालिक !!
अब आज हम जहाँ जा रहे हैं उसके बारे में भी कुछ बात हो जानी चाहिए । बहुत पहले से मैं मसरूर रॉक टेम्पल के बारे में नहीं जानता था लेकिन ज्वाली में "बाथू की लड़ी " मंदिर सर्च करते -करते जब यहाँ के फोटो देखे तो मन ललचा गया और इस जगह के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी । आखिर आज यहाँ पहुँच गया । कांगड़ा से करीब 35 किलोमीटर दूर 8 वीं शताब्दी में चट्टान काटकर बनाये गए मसरूर रॉक कट मंदिर आज भी अनजान से हैं। धौलाधार की खूबसूरत पहाड़ियों की गोद में बने ये मंदिर भगवान शिव , विष्णु और देवी को समर्पित हैं और कहीं - हिंदुत्व के शौर्य को व्यक्त करते हुए प्रतीत होते हैं । नागरा स्थापत्य शैली में बना ये मंदिर प्रांगण ऐसा लगता है जैसे किसी ने आधा -अधूरा बनाकर छोड़ दिया हो और तब से ऐसा ही पड़ा हो। हालाँकि जानकार लोग बताते हैं कि समय -समय पर आये भूकंप ने इन्हें तबाह कर दिया जिसका प्रभाव अब भी देखने को मिल जाता है ।
इन मंदिरों को एक विशालकाय चट्टान ( Monolithic Rock ) से काटकर शिखर सहित बनाया गया था तथा इसके सामने ही एक कुण्ड भी बनाया गया था । कुण्ड हिन्दू मंदिरों का आवश्यक अंग माना गया है हालाँकि आज की स्थापत्य कला में कुण्ड देखने को नहीं मिलते , संभव है जगह की कमी एक वजह हो । शुरुआत में पूरा मसरूर रॉक मंदिर प्रांगण एक वर्गाकार प्लेटफार्म पर बनाया गया था लेकिन अब ऐसा कुछ नजर तो नहीं आया । मुख्य मंदिर के दोनों तरफ छोटे मंदिर बनाये गए थे जिन्हें मण्डला स्थापत्य कहा जाता है । इनमें मंडप नहीं बनाया जाता । इन मंदिरों को सबसे पहले सन 1913 में हेनरी शटलवर्थ दुनियां के सामने लेकर आये थे जिसके बाद ASI ने आगे का काम देखा।
Masrur temple: symmetry of design
At first, it seems an extravagant and confused mass of spires,
doorways and ornament. The perfect symmetry of the design,
all centering in the one supreme spire, immediately over the
small main cell, which together form the vimana,
can only be realized after a careful examination of each part
in relation to the other.
—Henry Shuttleworth, 1913
Courtesy : wikipedia
पठानकोट से कांगड़ा वाली बस से बत्ती मिल उतर गए । ये जगह बत्तीस मील ( 32 Miles ) है लेकिन पंजाबी लहजे में बिगड़ते -बिगड़ते बत्ती मिल हो गई । बत्ती मिल से आपको रानीताल और लुंज जाने वाली बस मिल जाती है , हालाँकि थोड़ा इंतज़ार करना पड़ सकता है । लुंज से तीन किलोमीटर और आगे एक पॉइंट हैं जहाँ से मसरूर दो किलोमीटर और है । लुंज से नगरोटा सुरियाँ -कांगड़ा वाली बस पकड़िए या कार हायर कर लीजिये । पीर बिन्दली वो जगह है जहाँ आपको बस उतारेगी , वहां कुछ कार खड़ी रहती हैं जो 250 -300 रूपये में जाना -आना कर देते हैं । मसरूर रोड से हटकर है इसलिए बहुत ज्यादा सार्वजनिक बस सेवा उपलब्ध नहीं है लेकिन दो या शायद तीन बस वहां तक जाती हैं।
मंदिर के प्रांगण के पास और अंदर चाय-नाश्ता मिल जाता है। गाडी खड़ी की भी पर्याप्त जगह है। तो अब और ज्यादा नहीं बस फोटो देखिये और प्रसन्न रहिये
मसरूर रॉक टेम्पल की मुख्य शहरों से दूरियां :
दिल्ली से - 465 KM
पठानकोट से - 83 KM
कांगड़ा से - 35 KM
धर्मशाला से - 45 KM
रानीताल से -23KM
पठानकोट बस स्टैंड पर जात यात्रा करके लौटते श्रद्धालु |
बत्ती मिल से दूरियां |
मसरूर मंदिर जाने के लिए यहाँ उतरिये |
मसरूर मंदिर |
सामने मुख्य मसरूर मंदिर |
राम -राम !! मिलते हैं जल्दी ही
8 टिप्पणियां:
वाह बहुत सुंदर लेख तुमने फोटोज़ तो पहले भी दिखा दी थी पर सफर का आनंद अब लिया तुमारे साथ👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼👍👍👍👍👍👍
पत्थरो को तराश कर मन्दिर बनाना हमारी हिन्दू संस्कृति का प्रमुख्य कार्य रहा होगा प्राचीन भारत मे, शानदार लोकेशन👌ऐसा लग रहा है मानो "गीत गाया पत्थरों ने"☺️
बहुत -बहुत धन्यवाद संगीता दी !! आते रहिएगा
बहुत -बहुत धन्यवाद दर्शन कौर बुआ जी !! आशीर्वाद बनाये रखियेगा
शानदार ,आप ही बढ़िया लेख देकर गुमनामी में रहने वाले ऐसे स्थान की जानकरी बराबर देते रहना चाहिये।
बहुत धन्यवाद KUMWAR MP SINGH सर जी !
मसरूर रॉक कट मंदिर पर आपका यह यात्रा ब्लॉग पढ़कर लगा, जैसे कि स्वयं में एक अद्वितीय और रोमांचक यात्रा।
मसरूर रॉक कट मंदिर की यात्रा ने मेरे दिल को छू लिया, यह स्थल ऐतिहासिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत मेल है।
Also Read my blog post: Most Famous Temples in Himachal Pradesh
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