Sati Anusuiya Mandir & Gupt Godavari Caves
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आगे अभी चित्रकूट धाम की यात्रा जारी रहेगी :
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..............................तो मरफा जाना कैंसिल हो गया ! कभी कभी होता है कि जो हम चाहते हैं वो नहीं हो पाता , तो क्या हुआ ? हम अनसुइया मंदिर चलते हैं , वहां के लिए तो ऑटो / टेम्पो मिल ही जाते हैं ! मैं हालाँकि स्फटिक शिला से रोड पर आ गया था लेकिन अगर सती अनसुइया आश्रम की बात करें तो ये रामघाट से करीब 16 किलोमीटर दूर होगा और वहीँ से सती अनसुइया के लिए ऑटो टेम्पो मिल जाते हैं ! कउनु चिंता की बात नहीं ! मंदिर चलने से पहले महासती अनसुइया देवी के विषय में बात कर लेते हैं :
सती अनसुइया को सतीत्व का एक रोल मॉडल कहना ज्यादा उचित होगा ! सती , जैसा कि नाम से परिलक्षित होता है , सदैव पतिव्रता रहीं ! अनुसुइया देवी सप्त ऋषियों में से एक ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी थीं। तीनों देवता ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपनी पत्नियों के सामने देवी अनसुइया के पतिव्रता धर्म का बखान करते रहते थे और नारद मुनि भी उनकी तारीफ करते थे तो जैसा कि स्वाभाविक है , तीनों देवियों को ईर्ष्या होती थी। तीनों देवियों ने ब्रह्मा , विष्णु और शिव को देवी अनसुइया की परीक्षा लेने के लिए दबाव बनाया और पत्नी के दबाव के आगे कौन टिक पाया है ? जो ये भगवान टिक पाते ! वैसे बड़ी रोचक बात है कि जो पूरी दुनिया को उँगलियों के इशारे पर नचाते हैं वो त्रिदेव , अपनी पत्नियों के इशारे पर नाचते हैं तो फिर हम तो सामान्य और साधारण इंसान ठहरे :)
तो जी बात ये तय हुई कि त्रिदेव पृथ्वी पर जाएंगे और देवी अनसुइया के आश्रम के सामने भिक्षा मांगेंगे , वो उस समय वहां जाएंगे जब अत्रि मुनि आश्रम में न हों और देवी अनसुइया से निवस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहेंगे। इसे निर्वाण कहा जाता है। योजनानुसार तीनों देवता वहां पहुंचे और देवी अनसुइया से नि:वस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहा। देवी अनसुइया भिक्षा देने से मना भी नहीं कर सकती थीं और पतिव्रता होने की वजह से निः वस्त्र भी नहीं हो सकती थीं। अजीब मुश्किल थी उनके सामने , फिर उन्होंने कुछ देर सोचा और अंदर से अपने पति अत्रि ऋषि के पैर धोने का जल (चरणामृत ) लेकर बाहर आईं और उसमें से कुछ बूँदें अंजुली ( हाथ ) में लेकर उन तीनों भिक्षुओं के ऊपर छिड़क दिया। देखते ही देखते वो तीनों भिक्षु , बालक रूप में परिवर्तित हो गए और इसी बीच देवी अनसुइया के स्तनों में दूध उतर आया । देवी अनसुइया ने तीनों बच्चों को दूध पिलाया जिससे उन्हें निःवस्त्र रूप में भिक्षा भी मिल गई और देवी अनसुइया का सतीत्व भी बना रहा। कुछ देर बाद महर्षि अत्रि स्नान से वापस आये तो देवी अनसुइया ने उन्हें पूरी बात बताई । देवी अनसुइया की बातें सुनकर और तीनों बालकों को देखकर अत्रि मुनि मंद मंद मुस्कराने लगे। वो इस सबसे पहले से ही परिचित थे और वो जानते थे कि ये तीनों बच्चे वास्तव में कौन हैं !! महर्षि अत्रि ने अपने कमंडल में से जल की कुछ बूँदें लीं और उन तीनों बालकों पर छिड़क दीं , तीनों बच्चे एक में परिवर्तित हो गए और उस एक बच्चे को नाम मिला दत्तात्रेय ! भगवान दत्तात्रेय !!
माता अनसुइया के मंदिर के सामने ही मंदाकिनी नदी बहती है और जब यहाँ दिल्ली -नॉएडा में अप्रैल के महीने में यमुना भी सूखी -सूखी सी नजर आने लगती है , मंदाकिनी अपने पूरे यौवन पर थी। मैं इस किनारे था लेकिन दूसरा किनारा बहुत सुन्दर लग रहा था , जाने का मन था लेकिन न तो आसपास कोई पुल दिखा और कहीं दूर जाकर पुल ढूंढने का समय नहीं था। ये एक ऐसी जगह है जहां बैठे - बैठे आप घण्टों गुजार सकते हैं , लेकिन अपने साथ समय की समस्या थी तो चल दिए और चल कहाँ दिए ? गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने !! आप भी साथ ही चल रहे हो न ? तो आ जाओ चलते हैं और इस रास्ते में आपको मंदाकिनी नदी की भी कहानी सुनाता जाता हूँ : समय आराम से पास हो जाएगा। आखिर अभी लगभग 10 किलोमीटर दूर और जाना है और रोड से हटकर रास्ता भी बहुत बढ़िया नहीं हैं। सही रहेगा न ?
तो जी बात ये तय हुई कि त्रिदेव पृथ्वी पर जाएंगे और देवी अनसुइया के आश्रम के सामने भिक्षा मांगेंगे , वो उस समय वहां जाएंगे जब अत्रि मुनि आश्रम में न हों और देवी अनसुइया से निवस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहेंगे। इसे निर्वाण कहा जाता है। योजनानुसार तीनों देवता वहां पहुंचे और देवी अनसुइया से नि:वस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहा। देवी अनसुइया भिक्षा देने से मना भी नहीं कर सकती थीं और पतिव्रता होने की वजह से निः वस्त्र भी नहीं हो सकती थीं। अजीब मुश्किल थी उनके सामने , फिर उन्होंने कुछ देर सोचा और अंदर से अपने पति अत्रि ऋषि के पैर धोने का जल (चरणामृत ) लेकर बाहर आईं और उसमें से कुछ बूँदें अंजुली ( हाथ ) में लेकर उन तीनों भिक्षुओं के ऊपर छिड़क दिया। देखते ही देखते वो तीनों भिक्षु , बालक रूप में परिवर्तित हो गए और इसी बीच देवी अनसुइया के स्तनों में दूध उतर आया । देवी अनसुइया ने तीनों बच्चों को दूध पिलाया जिससे उन्हें निःवस्त्र रूप में भिक्षा भी मिल गई और देवी अनसुइया का सतीत्व भी बना रहा। कुछ देर बाद महर्षि अत्रि स्नान से वापस आये तो देवी अनसुइया ने उन्हें पूरी बात बताई । देवी अनसुइया की बातें सुनकर और तीनों बालकों को देखकर अत्रि मुनि मंद मंद मुस्कराने लगे। वो इस सबसे पहले से ही परिचित थे और वो जानते थे कि ये तीनों बच्चे वास्तव में कौन हैं !! महर्षि अत्रि ने अपने कमंडल में से जल की कुछ बूँदें लीं और उन तीनों बालकों पर छिड़क दीं , तीनों बच्चे एक में परिवर्तित हो गए और उस एक बच्चे को नाम मिला दत्तात्रेय ! भगवान दत्तात्रेय !!
माता अनसुइया के मंदिर के सामने ही मंदाकिनी नदी बहती है और जब यहाँ दिल्ली -नॉएडा में अप्रैल के महीने में यमुना भी सूखी -सूखी सी नजर आने लगती है , मंदाकिनी अपने पूरे यौवन पर थी। मैं इस किनारे था लेकिन दूसरा किनारा बहुत सुन्दर लग रहा था , जाने का मन था लेकिन न तो आसपास कोई पुल दिखा और कहीं दूर जाकर पुल ढूंढने का समय नहीं था। ये एक ऐसी जगह है जहां बैठे - बैठे आप घण्टों गुजार सकते हैं , लेकिन अपने साथ समय की समस्या थी तो चल दिए और चल कहाँ दिए ? गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने !! आप भी साथ ही चल रहे हो न ? तो आ जाओ चलते हैं और इस रास्ते में आपको मंदाकिनी नदी की भी कहानी सुनाता जाता हूँ : समय आराम से पास हो जाएगा। आखिर अभी लगभग 10 किलोमीटर दूर और जाना है और रोड से हटकर रास्ता भी बहुत बढ़िया नहीं हैं। सही रहेगा न ?
इधर एक बार बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई और अकाल पड़ने लगा तो महर्षि अत्रि मुनि ने अपने सभी शिष्यों को उनके घर भेज दिया और खुद तपस्या में लीन हो गए। अब देवी अनसुइया क्या करतीं ? उनकी तो दुनिया ही महर्षि अत्रि थे और महर्षि साधना में लीन हो गए तो देवी अनसुइया अपने पति यानि महर्षि अत्रि की परिक्रमा करने लगीं। ये साधना और परिक्रमा सात वर्षों तक चलती रही। इस सबको त्रिदेव देख रहे थे। अंततः एक दिन महर्षि अत्रि ने अपनी आँखें खोली और माता अनसुइया से गंगाजल माँगा। क्योंकि माता अनसुइया भी परिक्रमा में लीन थीं तो आश्रम में पानी नहीं था , इसलिए वो अपना बर्तन उठाकर बाहर दूर कहीं से पानी लाने के लिए निकल पड़ीं। भगवान शिव ये सब देख रहे थे तो वो माँ गंगा के साथ देवी अनसुइया से रास्ते में मिले और उनकी इतनी भक्ति से प्रभावित होकर वरदान मांगने के लिए कहा। देवी अनसुइया को क्या चाहिए था बस पानी , तो उन्होंने बर्तन भर पानी मांग लिया वरदान में। उनकी इस सह्रदयता को देखकर माँ गंगा ने देवी अनसुइया से कहा - देवी आपने जो महर्षि की परिक्रमा करते हुए ॐ नाम लेकर जो इतने पुण्य कमाए हैं उनमें से अगर आप मुझे एक वर्ष का पुण्य दे दें तो मुझे जिन लोगों ने दूषित किया है , मेरे सब पाप धुल जाएंगे। माता अनसुइया ने अपने सब पुण्य माँ गंगा को दे दिए और ऐसा पाकर माँ गंगा ने निश्चय किया कि वो मन्दाकिनी के रूप में यहां प्रवाहित होंगी। तो इस तरह मन्दाकिनी का उद्गम हुआ चित्रकूट में।
जितनी देर में आपने ये कहानी सुनी , हम आ पहुंचे हैं गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने। दो गुफाएं हैं यहां , एक बड़ी एक छोटी। जो पहली है वो बड़ी है और शायद वो ही मुख्य भी है। ऐसा माना जाता है कि गोदावरी नदी यहां से एक धारा के रूप में निकलती है और थोड़ी सी देर बहने के बाद यहीं दूसरी गुफा में गुप्त हो जाती है और फिर त्रियंबकेश्वर नासिक में निकलती है। शायद इसीलिए इसे गुप्त गोदावरी कहते हैं। पहली गुफा का रास्ता बहुत पतला सा है और सिर्फ एक ही व्यक्ति टेढ़ा -मेढ़ा होकर जैसे तैसे अंदर गुफा में जा पाता है और जब आप अंदर पहुँचते हैं तो एक खुला मैदान सा मिलता है। गुफा में प्रकाश की खूब बढ़िया व्यवस्था है हालाँकि फोटो साफ़ नहीं आते। यहीं सीता कुंड भी है और थोड़ा आगे जाकर खटखटा चोर भी लटका हुआ है। खटखटा चोर , नाम तो सुना होगा आपने ? ये वो राक्षस था जो सीता जी के कपडे चुरा ले गया था जब सीता जी स्नान कर रही थीं। लक्ष्मण जी को गुस्सा आया और उन्होंने उसे लटका दिया। वो यहीं लटका पड़ा है मूर्ति के रूप में।
दूसरी गुफा में चलते हैं जो बिल्कुल पास में ही है ! इसका लुक कुछ अलग है पहली वाली से। पहली वाली में शुरुआत में रास्ता एकदम संकरा है और गुफा एकदम खुली -फैली हुई है जबकि दूसरी गुफा का प्रवेश खूब चौड़ा है और लास्ट में जाते -जाते एकदम सिकुड़ता जाता है और अंतिम छोर पर पहुंचकर कुछ मूर्तियां रखी हैं , जहां दो तिलकधारी बैठे होते हैं , वो आपको तिलक तभी लगाएंगे जब आप दक्षिणा चढ़ाएंगे , तो स्वाभाविक बात है कि मुझे तिलक नहीं लगाया गया। यहां लगभग 10 मीटर तक अकेला ही आदमी निकल सकता है और प्रवेश द्वार से लेकर यहां अंतिम पग तक पानी भरा है। बीच में एक जगह तो घुटनों तक पानी था जिसमें से मैं धीरे -धीरे निकलने लगा लेकिन पैरों के नीचे कोई नुकीला पत्थर आ गया और पाँव बुरी तरह से जख़्मी हो गया। खून ही खून हो गया आसपास। वहां ISCKON के भी बहुत सारे लोग आये हुए थे , उनमें से ही किसी ने बाहर आकर पैरों में दवाई -पट्टी करी। अब और हिम्मत नहीं है , थोड़ा आराम कर लेता हूँ फिर आगे चलेंगे :
जितनी देर में आपने ये कहानी सुनी , हम आ पहुंचे हैं गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने। दो गुफाएं हैं यहां , एक बड़ी एक छोटी। जो पहली है वो बड़ी है और शायद वो ही मुख्य भी है। ऐसा माना जाता है कि गोदावरी नदी यहां से एक धारा के रूप में निकलती है और थोड़ी सी देर बहने के बाद यहीं दूसरी गुफा में गुप्त हो जाती है और फिर त्रियंबकेश्वर नासिक में निकलती है। शायद इसीलिए इसे गुप्त गोदावरी कहते हैं। पहली गुफा का रास्ता बहुत पतला सा है और सिर्फ एक ही व्यक्ति टेढ़ा -मेढ़ा होकर जैसे तैसे अंदर गुफा में जा पाता है और जब आप अंदर पहुँचते हैं तो एक खुला मैदान सा मिलता है। गुफा में प्रकाश की खूब बढ़िया व्यवस्था है हालाँकि फोटो साफ़ नहीं आते। यहीं सीता कुंड भी है और थोड़ा आगे जाकर खटखटा चोर भी लटका हुआ है। खटखटा चोर , नाम तो सुना होगा आपने ? ये वो राक्षस था जो सीता जी के कपडे चुरा ले गया था जब सीता जी स्नान कर रही थीं। लक्ष्मण जी को गुस्सा आया और उन्होंने उसे लटका दिया। वो यहीं लटका पड़ा है मूर्ति के रूप में।
दूसरी गुफा में चलते हैं जो बिल्कुल पास में ही है ! इसका लुक कुछ अलग है पहली वाली से। पहली वाली में शुरुआत में रास्ता एकदम संकरा है और गुफा एकदम खुली -फैली हुई है जबकि दूसरी गुफा का प्रवेश खूब चौड़ा है और लास्ट में जाते -जाते एकदम सिकुड़ता जाता है और अंतिम छोर पर पहुंचकर कुछ मूर्तियां रखी हैं , जहां दो तिलकधारी बैठे होते हैं , वो आपको तिलक तभी लगाएंगे जब आप दक्षिणा चढ़ाएंगे , तो स्वाभाविक बात है कि मुझे तिलक नहीं लगाया गया। यहां लगभग 10 मीटर तक अकेला ही आदमी निकल सकता है और प्रवेश द्वार से लेकर यहां अंतिम पग तक पानी भरा है। बीच में एक जगह तो घुटनों तक पानी था जिसमें से मैं धीरे -धीरे निकलने लगा लेकिन पैरों के नीचे कोई नुकीला पत्थर आ गया और पाँव बुरी तरह से जख़्मी हो गया। खून ही खून हो गया आसपास। वहां ISCKON के भी बहुत सारे लोग आये हुए थे , उनमें से ही किसी ने बाहर आकर पैरों में दवाई -पट्टी करी। अब और हिम्मत नहीं है , थोड़ा आराम कर लेता हूँ फिर आगे चलेंगे :
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