गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Nandikund to Vinayak Pass ( Day 6)

इस ट्रैक को शुरू से पढ़ने और पूरा शेड्यूल ( Itinerary ) जानने के लिए इच्छुक हैं तो आप यहां क्लिक कर सकते हैं !!

आज 23 तारिख है , 23 जून 2017 ! कल शाम यहाँ नन्दीकुंड में जबरदस्त ठण्ड रही ! शाम 8 बजे तापमापी तीन डिग्री का तापमान बता रहा था तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि रात में माइनस पहुँच गया होगा ! सारे गर्म कपड़े पहन के स्लीपिंग बैग में घुस गया , आ ! आजा ठण्ड ! अब कैसे , कहाँ से आएगी !! सुबह जगे तो ठण्ड से दांत किटकिटा रहे थे और टैंट के ऊपर बर्फ जमी हुई थी !

नन्दीकुंड से थोड़ा पीछे की ओर जाने पर चौखंभा की तीन चोटियां बिल्कुल धवल रूप में दिखाई दे रही थीं जैसे अभी दूध का स्नान करके अपने प्रिय से मिलने को तैयार हो रही हों ! वैसे प्रिय मैं भी हो सकता हूँ :) चौथी चोटी नहीं दिखी , दिख भी नहीं सकती थी , 3 -D व्यू थोड़े ही दिखाई दे रहा था लेकिन जो और जितना देख पाया अपनी प्रियतमा को , बहुत सुन्दर और प्यारी लगी ! अब उम्र होने लगी है तो आदमी ऐसी ही चीजों को प्रेयसी बनाने लग जाता है ! असली प्रेयसी का पता बीवी को लग गया तो सारी घुमक्कड़ी एक पल में हवा -हवाई कर देगी :)

सुबह साढ़े सात बजे मैगी और चाय लेकर सामने दिख रहे घीया विनायक पास को पार करने निकल पड़े ! निकलने से पहले एक बार फिर भगवान को नमन करके अब तक की सुरक्षित यात्रा के लिए आभार किया और आगे की यात्रा के लिए आशीर्वाद लिया ! आज शुरू से ही बर्फ पर चलना था और बर्फ सॉलिड थी लेकिन अच्छी बात ये कि अभी ज्यादा ऊंचाई नहीं है ! आगे जो रास्ता दिख रहा है वो दम फुलाने के लिए काफी है ! नन्दीकुंड से करीब 100 मीटर चलने के बाद बर्फ की मोटी चादर पर 45 डिग्री के आसपास के ढलान पर चढ़ना है , बर्फ भी ताज़ी नहीं है सॉलिड है और सॉलिड बर्फ पर पाँव मजबूती से जम नहीं पाता और अगर कैसे भी संतुलन गड़बड़ाया तो नीचे जाकर ही रुकेंगे , हालाँकि बहुत ज्यादा नुकसान की सम्भावना नहीं है लेकिन हाथ पैर टूट सकते हैं ! कभी ऐसी स्थिति आ जाए तो पांव की एड़ी और हाथों की हथेलियों को जमाकर रखना चाहिए जिससे आप बीच में रुक जाएँ ! मैं विशेषज्ञ नहीं हूँ , इसलिए और लोगों की सलाह पर भी गौर करते रहिये !

भगवान का नाम लेते -लेते सुरक्षित घिया विनायक पास पहुँच गए ! घीया विनायक पास 5300 मीटर ऊंचाई पर है , कम -ज्यादा हो सकता है !! घिया विनायक पास उत्तराखंड की इधर की मद्महेश्वर घाटी को उधर की उर्गम घाटी से जोड़ता है ! उत्तराखंड या कहें गढ़वाल के लोग इसे " विनायक राजा " भी कहते हैं ! ... तो अभी तक हम नन्दीकुंड की 4440 मीटर की ऊंचाई से लगभग 5300 मीटर की ऊंचाई तक आ पहुंचे हैं और इस ऊंचाई में बस बर्फ ही बर्फ रही है और बर्फ पर ही हमारा रास्ता रहा है ! दो दिन से इंद्र देव भी प्रसन्न हैं हमसे , शायद उन्हें डर रहा होगा कि ये नालायक मेरी अप्सराओं पर बुरी नजर रखते हैं :) खैर दो दिन से मौसम एकदम साफ़ है और इसी साफ़ मौसम की वजह से ही हम चौखम्भा को इतना बेहतरीन रूप में देख पाए !! घिया विनायक पास पर खूब फोटो -शोटो लिए और नीचे की तरफ आगे चल दिए ! आज हमारा लक्ष्य नन्दीकुंड से 12 किलोमीटर दूर मानपाई बुग्याल है और वहीँ आज हमें अपने टैण्ट लगाने हैं !

विनायक पास चढ़ना जितना कठिन था , वहां से उतरना उससे भी कठिन ! विनायक पास से जैसे ही नीचे उतरे , करीब 10 मीटर तक तो बोल्डर थे और उसके बाद फिर वही बर्फ का साम्राज्य , और वो भी दो -चार मीटर नहीं बल्कि लगभग 500 मीटर तक ! यहां भी slope 40 -45 डिग्री रहा होगा ! मैं पैर जमा -जमा के ही चल रहा था लेकिन पता नहीं क्या हुआ और मैं फिसलता चला गया ! हालाँकि फिसलने की रफ़्तार तेज़ होती उससे पहले ही मैंने पैर की एड़ी जमा दी और 4 -5 मीटर फिसलने के बाद रुक गया लेकिन पीछे से सारा गीला गीला हो गया ! होता है !

आज जैसा मैंने ऊपर लिखा , पहले हम नन्दीकुंड की 4440 मीटर की ऊंचाई से 5300 मीटर ऊँचे विनायक पास गए और अब हमें फिर से उतरकर 3800 मीटर पर मानपाई बुग्याल तक जाना है ! लेकिन रास्ता सिर्फ ऐसा नहीं है कि आप लगातार उतरते ही जाओगे , कहीं कहीं आपको उतरना पड़ेगा तो कहीं चढ़ना पड़ेगा , और ये थकान का एक बड़ा कारण है ट्रैकिंग में ! .... विनायक पास से उतरने के बाद वन विभाग के रास्ते के कुछ निशान मिलने लगते हैं ! हालाँकि बोल्डर्स के बीच रास्ता नहीं बनाया जा सकता तो बड़े -बड़े पत्थरों के ऊपर दो तीन छोटे छोटे पत्थर रखकर रास्ते का निशान बना देते हैं , जहां बोल्डर एरिया खत्म होता है वहां एक फैला हुआ सा तालाब है , तालाब कहना गलत होगा , आप ये समझ लो कि वहां पानी भरा रहता है और वहीँ एक छोटा सा मंदिर है ! इस जगह को वैतरणी कहते हैं ! मंदिर में अगरबत्ती जलाई और भगवान का आशीर्वाद लिया ! यहां भी कुछ पुरानी तलवार और बहुत सारी पीतल की घंटियां राखी हैं !

यहां से आगे एकदम बढ़िया रास्ता है दो -तीन फुट चौड़ा ! अब ऐसा लग रहा है जैसे दोबारा से "इंसानों की दुनियां " में लौट आये हैं ! थोड़ा आगे बढ़ते हैं करीब एक किलोमीटर तो आपको शानदार बुग्याल दिखाई देता है लेकिन ये समतल जगह नहीं है , बरमा बुग्याल है ! बरमा बुग्याल के नीचे एक " ग्रीन रिज़ " है और जहां ये रिज़ खत्म होती है वहां एक मंदिर बना है जिसे " केली विनायक " कहते हैं ! ... रास्ता बिल्कुल भी भटकने वाला नहीं है ! बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देता है और आगे नीचे ही नीचे उतरता है ! रास्ते के दोनों तरफ तरह तरह के फूल दखते रहते हैं , ऐसे -ऐसे फूल जो अब से पहले मैंने तो कभी नहीं देखे ! रास्ता नीचे एक नदी तक उतरता है , नदी क्या है ! एक बड़ी सी धार है जिसे पार करना सच में मुश्किल है ! कोई पुल नहीं है इसलिए बहती हुई तेज़ धार को पत्थरों पर पाँव रखकर बहुत सावधानी से पार करना होता होता है अन्यथा मेरी तरह चिकने पत्थर से गिर जाओगे और चोट खा बैठोगे ! मेरा घुटना तो बच गया लेकिन लोअर घुटने से बिल्कुल फट गई ! थैंक गॉड ! गलती मेरी ही थी , मैंने धारा पार करने से पहले जूते नहीं उतारे थे जबकि दूसरे किनारे पर दूर खड़े अमित भाई बार बार इशारा कर रहे थे कि जूते उतार के पार कर !! बिना अपने मरे स्वर्ग नहीं दिखता :) ! इसका नुक्सान ये हुआ कि जूते भी गीले हो गए और आगे का ट्रैक गीले जूतों में ही करना पड़ेगा ! हुई है वही जो राम रचि राखा !!

रास्ते में दो -तीन जगह 2013 की भयानक प्राकृतिक आपदा निशान मिलते हैं तब कुछ अंदाज़ा कि कितना भयावह मंजर रहा होगा ! कुछ सूखी हुई धार को पार करके आये जिनमें अब बस बड़े -बड़े पत्थर हैं ! यहां के बाद जैसे ही आप फिर से पहाड़ पर चढ़ना शुरू करते हैं , बुरांश का जंगल मिलने लगता है ! बुरांश का जंगल पीछे काछनी धार वाले रास्ते में भी मिला था लेकिन उसमें फूल नहीं थे या सूखे हुए थे ! आपसे कहा था कि आगे जरूर दिखाऊंगा आपको बुरांश के फूल ! तो ये वादा पूरा हो रहा है ! जी भर के देखिये !! अब बहुत सारे बुरांश के जंगल मिल रहे हैं जिनमें फूल भी अपने पूरे यौवन पर हैं ! अब इस पहाड़ से नीचे उतरकर एक धारा पार करनी है और फिर बुरांश के जंगल के बीच के रास्ते से ऊपर चढ़ते जाना है ! रास्ता तैयार किया हुआ है ! बस पहाड़ की गोलाई में चलते जाइये और एक , दो , तीन पहाड़ पार करते हुए , नीचे ऊपर चढ़ते -उतरते आपको दूर से एक छोटा सा मंदिर और उस पर लगी हुई झण्डी दिखेगी ! लो जी , मानपाई बुग्याल ! बहुत हरा भरा और विशाल बुग्याल ! आज यहीं टैण्ट लगेगा !!



मंजिल मिल ही जायेगी ! तू चल तो सही , तू उठ तो सही !!





घिया विनायक पास की ओर , बढ़ते कदम








घिया विनायक पास की ओर , बढ़ते कदम






घिया विनायक पास  !! पहुँच गए


घिया विनायक पास से उतरते ही ऐसा नजारा मिलता है !!




वैतरणी पहुँच गए हैं !! अगरबत्ती जलाकर भगवान का आशीर्वाद ले लें
वैतरणी पहुँच गए हैं !!





कैली विनायक मंदिर
​मानपाई​ बुग्याल !! एक झलक
​मानपाई​ बुग्याल !! एक झलक



 ​फिर मिलते हैं !! जल्दी ही:

2 टिप्‍पणियां:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

इतनी बर्फ में चलना कितना मुश्किल है।

नवीन जोंटी सजवाण ने कहा…

भाई साहब बहुत सुन्दर.... यात्रा वृत्तांत है....
बर्फ में चलने के लिए अलग से गम बूट रखे थे क्या??