मंगलवार, 19 सितंबर 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Pandav Sera to Nandikund ( Day 5)

इस ट्रैक को शुरू से पढ़ने और पूरा शेड्यूल ( Itinerary ) जानने के लिए इच्छुक हैं तो आप यहां क्लिक कर सकते हैं !!


............पाण्डवसेरा पहुँचने के बाद बारिश लगभग तीन बजे रुक गई थी , और ये बारिश रुकी वैसे ही हम सबने सब कुछ सुखाने डाल दिया इधर -उधर के पत्थरों पर , और एक पत्थर पर खुद लंबलेट हो गया ! थोड़ी देर बाद मंदिर के दर्शन कर आये ! रात आई , सो गए ! पहाड़ों में वैसे भी रात जल्दी आ जाती है , गांवों में भी रात जल्दी आती है , शहरों में रात 11 -12 बजे होती है लेकिन पहाड़ों में शाम घिरते ही रात अपना घूंघट हटा देती है ! जंगली पालक को तोड़ मरोड़कर अपना टैण्ट लगाने की जगह बनाई ! रात भर बारिश होती रही लेकिन सात बजे के आसपास बंद हो गई , मतलब इंद्र देवता प्रसन्न हैं हमसे और उनका सन्देश साफ़ है , आगे बढ़ो ! वैसे इंद्र हमसे नाराज भी क्यों होने लगे ? कौन सा हम सतोपंथ से उनकी अप्सराओं को अपने साथ बुला लाये ! वैसे वो भी अजीब किस्सा है , सतोपंथ जाने से पहले सभी ने अपनी अपनी अप्सराओं को चुन लिया था , उर्वशी मेरी , मेनका मेरी !! खैर , आज हाल -फिलहाल सामने की ऊँची पहाड़ी हमारा थर्मामीटर चेक करने को तैयार है !! आज 22 जून है और साल 2017 !! राम राम आप सभी को !!


खेत्रपाल या क्षेत्रपाल एक समतल मैदान है जिसके सामने मधु गंगा जलधारा बहती रहती है ! यहां से नंदीकुंड का रास्ता अगर नहीं भी मालूम है तो कोई दिक्कत नहीं , नदी के उद्गम को फॉलो करते जाइये , नंदीकुंड पहुँच जाएंगे ! वैसे इतना आसान भी नहीं जितना कहना और यहां लिखना है :) , चढ़ाई चढ़ते वक्त क्या हालत होती है ये उस आदमी से पूछिए जो 15 किलो वज़न पीठ पर लादकर चल रहा है !! खेत्रपाल से इस पहाड़ी तक आने के लिए एक तेज जलधारा पार करनी होती है , एकदम स्वच्छ और धवल श्वेत ! लकड़ी का एक पुल बनाया हुआ है ! यहीं हमारे ग्रुप के सबसे सभ्य और भद्र सदस्य और ग्रुप लीडर अमित तिवारी जी ने दैनिक नित्य कर्म संपन्न किये , अरे नहीं वो वाले नहीं :) , ब्रश किया और मुंह धोया !! हम सब समझदार और पहाड़ों की इज्जत करने वाले , सफाई पसंद आदमी हैं , विशेषकर अमित भाई ! ये बस हलकी फुल्की बात कर रहा था मैं ! लेकिन जबरदस्त जगह है और यहां पहुँचने तक अलग अलग तरह के फूल , वनस्पति दिखाई पड़ती है ! एक भुट्टा सा मिला , भगवान जाने क्या है ? आप बताना !!

आज कम चलना है,  लगभग सात किलोमीटर लेकिन चढ़ाई बहुत है ! आज पाण्डवसेरा से करीब एक किलोमीटर पहले खेत्रपाल में टैण्ट लगा था ! पाण्डवसेरा 3900 मीटर की ऊंचाई पर है तो नंदीकुंड 4440 मीटर , यानि सात किलोमीटर की दूरी पर 540 मीटर ऊपर पहुंचना है ! पाण्डवसेरा के सामने ही एक ऊँची सी पहाड़ी है जिस पर कोई रास्ता नहीं है बस पत्थर ही पत्थर हैं यानि बोल्डर ! बोल्डर को आप विशालकाय पत्थर या भीम पत्थर कह सकते हैं ! लगभग 70 -80 डिग्री की चढ़ाई होगी और ये चढ़ाई लगातार 3 -4 किलोमीटर तक चलती रहती है ! फिर थोड़ा उतराई है लेकिन इस उतराई में चारों तरफ बर्फ फैली हुई है और हमें बर्फ पर ही चलना होता है ! खतरे वाली कोई बात नहीं क्योंकि सारा क्षेत्र समतल ही है ! जैसे ही ये समतल जगह खत्म होती है , एक बहुत ही सुन्दर फॉल मिलता है ! बिल्कुल ऐसा जैसे आपने अपने घर में ड्राइंग हॉल में लगी "सीनरी " में देखा होगा ! चार -पांच स्टेप्स का है ये फॉल ! बहुत शानदार और बहुत खूबसूरत ! वीडियो भी बनाया था इसका और फेसबुक पर भी शेयर किया था , करीब 1500 लोगों ने देखा और प्रशंसा भी मिली !! हम तो भैया छोटी छोटी बातों से ही खुश हो जाते हैं ! छोटा आदमी , छोटी बात , छोटी छोटी खुशियां !!

इस फॉल के बराबर से ही हाइट शुरू हो रही है और करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद आपके सामने का परिदृश्य बिल्कुल बदल जाता है ! सामने एक पूरा बर्फीला पहाड़ है और उसकी बर्फ पर ही चलते जाना है ! पहली बार जीवन में इतनी बर्फ पर चल रहा हूँ , हालाँकि बाद में इससे भी ज्यादा बर्फ मिलेगी किसी और दिन ! मैं क्योंकि सबसे पीछे हूँ इसलिए जो मुझसे आगे गए हैं उनके पैरों को देखकर , उनको फॉलो करते हुए चल रहा हूँ ! वैसे पोर्टरों ने बताया था कि अगर हम जून की जगह सितम्बर में जाएँ तो यहां बर्फ नहीं मिलेगी ! पहाड़ की आधी गोलाई जैसे ही खत्म होती है , आप जीवन में पहली बार इतने विशाल हिमकुण्ड को देख रहे होते हैं ! आप ख़ुशी से चिल्लाना चाहते हैं लेकिन आपका गाइड / पॉर्टर आपको रोक देता है ! वो बताता है -सर यहां चिल्लाना मना है ! देवता गुस्सा हो जाते हैं ! मेरे लिए उसकी भावनाओं और उसकी परम्पराओं को मानना न केवल जरुरी है बल्कि मेरा कर्तव्य भी है ! ये नन्दीकुंड है !! हमारे इस ट्रैक का महत्वपूर्ण पॉइंट ! ज्यादातर लोग यहीं तक आते हैं और इसी को देखकर वापस इसी रास्ते से लौट आते हैं ! लेकिन हमें अभी और आगे जाना है , आप कह सकते हैं कि अभी हम अपने ट्रैक के आधे रास्ते में हैं ! नंदीकुंड , जहां से मधुगंगा निकलती है !!

पाण्डवसेरा से हम सुबह 8 बजे चले थे और यहां करीब 12 :30 बजे पहुँच गए ! सामने इतने बड़े "सेमी फ्रोज़न " कुण्ड को देखकर मन आह्लादित हो रहा था और मैं बस इतना ही कह सका - अप्रतिम सौंदर्य !! प्रकृति का अदभुत , अनमोल तोहफा है दुनिया को !! पानी है , नीला सा रंग है लेकिन बर्फ तैर रही है ! स्नान तो करूँगा ! एक ही डुबकी लगाईं और ठण्ड के मारे कंपकंपी छूटने लगी ! लेकिन आज इन्द्र देव ने पूरी कृपा दिखाई है हमारे ऊपर ! मौसम पूरे दिन साफ़ और गर्म बना रहा ! नहाने के बाद यहां बने एक छोटे से मंदिर में प्रार्थना की ! यहां इस मंदिर के पास बहुत पुराने हथियार यानि तलवार रखी हैं ! कोई कहता है कि ये राजा मांधाता और उनकी सेना के हैं , कोई कहता है पांडवों के हैं ! सच क्या है , मुझे नहीं मालूम ! आपको पता हो तो कृपया बताएं ! एक तलवार तो 10 -12 किलो से ज्यादा की होगी ! शायद और भी ज्यादा भारी हो , क्योंकि मैं उसे दोनों हाथों से भी बहुत मुश्किल से उठा पाया था !

मौसम बहुत ठंडा है यहां नंदीकुंड में , अभी दोपहर के तीन बजे हैं और हाथ में गर्मागर्म चाय का गिलास है , लेकिन फिर भी ठण्ड लग रही है ! अभी का टेम्परेचर अमित भाई की डिवाइस 5 डिग्री बता रही थी , इसका मतलब रात को पक्का माइनस में जाएगा और कुल्फी जम जायेगी ! इतनी भी चिंता नहीं करनी , स्लीपिंग बैग है अपने पास ! लेकिन इस ट्रैक का ये सबसे कठिन और सबसे ठण्डा दिन होने वाला है !! क्योंकि कल से हम एक बार 5500 मीटर की ऊंचाई चढ़कर उतरते ही जाएंगे ! तो आज के लिए हमारे लिए , विशेषकर मेरे लिए प्रार्थना करिये क्योंकि मैं ही ऐसा हूँ यहां जो पहली बार इतनी ऊंचाई तक आया हूँ ! अनुभवहीन !! अपने आप को थोड़ा व्यस्त रखने और हाथ पाँव चलाये रखने के लिए इधर -उधर घूमता रहा ! यहां से चौखम्भा चोटी एकदम साफ़ दिखाई दे रही थी , उसके चार में से तीन खम्भे बिल्कुल साफ़ तौर पर दिखाई दे रहे थे और फोटो खींचते -खींचते सामने की पहाड़ी पर गिरी बर्फ को लगातार देखे जा रहा था , क्योंकि कल यहीं से होकर जाना है और इसकी ऊंचाई और इस पर पड़ी हुई बर्फ देखकर शरीर में छुरछुरी सी उठ रही है , लेकिन मेरा भगवान मेरे साथ है , आज भी और सदैव ! अमित भाई के सानिध्य में रहकर कोई भी ऊंचाई नापी जा सकती है , बस उनके टैण्ट में मत सोना :) !

अच्छा तो अब कल मिलते हैं :

वास्तव में ये है पाण्डवसेरा , कल जहां हम रुके थे उस जगह को खेत्रपाल कहते हैं
वास्तव में ये है पाण्डवसेरा , कल जहां हम रुके थे उस जगह को खेत्रपाल कहते हैं
स्वच्छ , धवल -सफ़ेद जल धारा !!
श्रीकांत पुल से पार होने के लिए पहले औरों को आजमा लेना चाहते हैं :)



बायीं पहाड़ी पर चढ़ना है हमें
मेरी दुनिया , मेरा जीवन , मेरा लक्ष्य




ये क्या है ??





                               मुहब्बत हुई क्या किसी से ? और फिर उसे किसी और के साथ देख लिया ? क्यों इतना उदास है ? चल , उठ !                                           तुझसे भी किसी को आस है!!








वाह !! क्या खूबसूरत फॉल है


इन्हें ही फॉलो करना होगा
पीछे मेरा सपना -नंदीकुंड

नंदीकुंड( Nandikund)


नंदीकुंड (Nandikund)


लगती तो हैं कि ये तलवारें बहुत पुरानी हैं
चाय​ !! गरम -चाय

शानदार और बिल्कुल साफ चौखम्भा चोटी


                                                                          अभी और आगे जाएंगे , आते रहिएगा:

4 टिप्‍पणियां:

जवाहर लाल सिंह ने कहा…

आदरणीय योगी जी, आपका जवाब नहीं। ईश्वर में अटूट विश्वास, हिम्मत और धैर्य ही आप के पथ को आसान बनाता है। रुचिकर शैली में सार्थक लेखन! साथ ही चित्रों को सजीव रूप में प्ररस्तुतिकरण! अभिनंदन! बार बार। आप इसी तरह लिंक साझा करते रहें। जय श्री राम!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

क्या नन्दीकुंड उस विशाल बर्फ के सागर को कहते है। आश्चर्य जनक यात्रा।

Yogi Saraswat ने कहा…

हांजी बुआ ! जून में बर्फ में रहता है लेकिन सितम्बर -अक्टूबर में एकदम हरा -नीला पानी दिखता है यहाँ जो अद्भुत दीखता है।  बहुत धन्यवाद् बुआ 

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद आदरणीय सिंह साब !! आते रहिएगा