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हाथी नहीं मिले ! मिलने भी नहीं थे ! बारिश हो रही थी और ऐसे में या हाथी मिलते ? आमेर से अमर सागर जा पहुंचे , रजत शर्मा ने इसे बताया था कि यहाँ जरूर जाना , less explored जगह है ! लेकिन मुझे पसंद नहीं आई ! लौट चलते हैं जल महल की तरफ ! वापस आमेर के सामने पहुंचे और जल महल पहुंचे ! पहली बार पता लगा कि जयपुर में , मतलब राजस्थान में महिलाओं के लिए बस टिकट के किराए में छूट मिलती है ! शायद 20 प्रतिशत की ! बारिश जरूर रुक गई है लेकिन बादल बार बार गरज गरज कर ये उद्घोषणा कर रहे हैं कि हम कभी भी धमक सकते हैं , ज्यादा मौज न मनाओ !
आज फिर करीब 20 साल बाद यहां आया हूँ और तब में और आज में यहाँ बहुत परिवर्तन आ चुका है ! पहले कोई बॉउंड्री वाल नहीं थी और इसके किनारे पर जाना आसान था लेकिन अब बंदिशें बहुत हैं और आसपास बहुत सारी खाने पीने की दुकान भी लग गई हैं ! पिकनिक स्पॉट हो गया है अब ! इस महल की खासियत ये है कि तपते रैगिस्तान के बीच बसे इस महल में गरमी नहीं लगती, क्योंकि इसके कई तल पानी के अंदर बनाए गए हैं। इस महल से पहाड़ और झील का ख़ूबसूरत नज़ारा भी देखा जा सकता है। चांदनी रात में झील के पानी में इस महल का नजारा बेहद आकर्षक होता है। जलमहल अब पक्षी अभ्यारण के रूप में भी विकसित हो रहा है। जल महल के नर्सरी में 1 लाख से ज्यादा वृक्ष लगे हुए हैं। दिन रात 40 माली पेड़ पौधों की देखभाल में लगे रहते हैं। यह नर्सरी राजस्थान का सबसे उंचे पेड़ों वाला नर्सरी है। यहां अरावली प्लांट, ऑरनामेंटल प्लांट, शर्ब, हेज और क्रिपर की हजारों विभिन्नताएँ मौजूद हैं। यहाँ के 150 वर्ष पुराने पेड़ों को ट्रांसप्लांट कर नया जीवन दिया गया है। हर साल यहां डेट पाम, चाइना पाम और बुगनबेलिया जैसे शो प्लांट को ट्रांसप्लांट किया जाता है !
जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील के मध्य स्थित इस महल का निर्माण सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ के बाद अपनी रानियों और पंडित के साथ स्नान के लिए करवाया था। इस महल के निर्माण से पहले जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया था । इसका निर्माण 1799 में हुआ था। इसके निर्माण के लिए राजपूत शैली से तैयार की गई नौकाओं की मदद ली गई थी। राजा इस महल को अपनी रानी के साथ ख़ास वक्त बिताने के लिए इस्तेमाल करते थे। वे इसका प्रयोग राजसी उत्सवों पर भी करते थे ।
इतिहास हो गया , अब और क्या रह गया ? कुछ नहीं शायद , क्योंकि इसमें अंदर जाने नहीं देते , देते भी होंगे तो बड़े बड़े लोग जाते होंगे , हमें कौन जाने देगा ? हम ठहरे आम न न , सामान्य आदमी ! तो अब जंतर मंतर चल रहे हैं लेकिन बारिश ने जबरदस्त बदला लेने का मन बनाया हुआ है ! ये 26 जनवरी का दिन है और भीग जाने के बाद क्या हालत हुई होगी , आप खुद समझ सकते हैं ! तो उसी हालत में एक बस में बैठे और जंतर मंतर जाने से पहले एक चाय पकोड़े की दूकान में घुस गए , बहाना चाय का था लेकिन वास्तव में बच्चों के कपडे बदलने थे ! येन केन प्रकारेण जंतर मंतर पहुँच गए हैं और अब आप अब तक की यानि जल महल की और जंतर मंतर की फोटू देखिये ! वैसे जंतर मंतर जैसी जगहें हमें भारतीय और हिन्दू होने पर गर्व करने का एक अवसर प्रदान करती हैं कि हमारे पूर्वज कितने विद्धान और खोजी थे लेकिन उन्हें किन्हीं कारणों से इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया , जिसके वो योग्य थे ! बड़ा बेटा हर्षित , जयपुर जाने से पहले जंतर मंतर की जानकारी जुटा चुका था और उसके दिमाग में बस "दुनिया का सबसे बड़ा sun Dial " देखने का भूत सवार था ! छोटे को कुछ लेना देना नहीं इन सब बातों से , उसके लिए वो ही सत्य है जो उसके भाई ने कहा ! माँ -बाप मैडम गलत हो सकते हैं लेकिन बड़ा भाई गलत नहीं हो सकता ! खुद पिट सकता है लेकिन बड़े भाई को नहीं पिटने दे सकता , हाँ , खुद उससे लड़े तो चलेगा !! तो अगर आप जयपुर में हैं और आपके छोटे छोटे बच्चे साथ में हैं तो जंतर मंतर जरूर जाइये और हाँ , थोड़ा पढ़ कर जाइये क्योंकि ये छोटे छोटे बच्चे बहुत सवाल पूछते हैं ( अच्छा लगता है ) !! तो जी , मिलते हैं इधर उधर जाते हुए जैसलमेर में :
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आज बादलों से जंग जारी है |
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महाराजा की शाही सवारी |
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महाराजा की शाही सवारी: महाराजा विराजमान हैं |
मिलते हैं जल्दी ही:
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