मंगलवार, 7 मार्च 2017

Kakanmath Temple : Morena

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एक दिन में इतना कुछ देखने को मिल पाना मतलब दिल्ली से मुरैना आना सफल हुआ ! सोचा नहीं था कि लगभग "अनदेखी " सी जगहें इतनी खूबसूरत होंगी ! मितावली के "चौंसठ योगिनी मंदिर " को देखकर घूमकर नीचे उतर लिए ! सौ सीढियां उतर कर आना भी आसान नही होता वो भी भूखे पेट ! खा तो लिया था पहले कुछ , लेकिन वो सब कहाँ गया , पता ही नही चला ! अमित भाई और नीरज जी आगे चलते हुए गाँव के बाहर के "चौराहे" पर एकमात्र दुकान पर चाय का "आर्डर " दे चुके थे , कुछ और भी मिल गया खाने को ! रुकना असल में एक बहाना था कि कुछ आगे जाने को मिल जाए , मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ कि अगर आपको "पडावली " या " मितावली " मंदिर देखने जाने की इच्छा है तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की उम्मीद बिल्कुल भी मत करिये , कुछ नहीं चलता , कुछ नहीं मिलता ! हाँ , कभी कभी भूले भटके कोई ट्रेक्टर , टेम्पो मिल जाए तो अच्छी बात है ! तो हम भी चाय सुडकते सुडकते सोच रहे थे , काश ! कुछ आ जाए ! जिसमे हम बैठ के अगली मंजिल तक जा सकें ! पैदल बहुत चल लिए आज ! आया , आया , एक टेम्पो आ रहा है दूर से , लेकिन वो उसी साइड से आ रहा है जिस साइड हमें जाना है ! चाय वाला आश्वासन दे रहा है कि ये ही चला जाएगा लौट के ! आप लोग यहीं बैठे रहिये ! वो आया , चाय वाले के साथ हमने और वहां जो चार पांच लोग थे , लगभग सभी ने हाथ हिलाकर उसे तुरंत ही वापस लौटने का इशारा किया , और वो स्वीकृति का संकेत देते हुए आगे बढ़ गया ! आएगा , अभी पांच मिनट में !

आ गया ! अब हम आठ किलोमीटर दूर सिहानिया कस्बे में स्थित "ककनमठ "मंदिर जाना चाह रहे हैं ! ज़रा टैम्पो वाले से बातचीत देखिये :

मैं : ककनमठ चलेंगे ?

टेम्पो वाला : जी , चलूंगा

मैं : कितना ?
टेम्पो वाला : जो चाहो दे देना !

मैं : अरे नहीं ! पहले तय हो जाए तो बढ़िया है
टेम्पो वाला : चचा ( दूसरे आदमी की तरफ इशारा करते हुए ) बताओ

चचा : तू ही बता दे ?
टेम्पो वाला : बता दो तुम्ही

चचा : (हमसे ) आप तीन लोग हैं , 1200 रूपये दे देना !

अमित भाई और नीरज भाई ने बिना कुछ कहे अपने बैग उठा लिए , मैं समझ गया कि बात नही बनने वाली !

चचा : कुछ तो कहो !

मैं : 400 रूपये देंगे !
टेम्पो वाला : नहीं , नहीं ! चलो आप 1000 रूपये दे देना !

मैं : नहीं भाई !

और मैं भी पीछे पीछे पैदल चल निकला ! थोड़ी देर में वो टेम्पो लेकर आया , 600 रूपये लगेंगे , कहो तो चलें ? ना भाई ! और अमित भाई ने इशारा कर दिया GPS में देखकर कि पास में ही है ! फिर से पैदल !!


धीरे -धीरे पैदल चलते हुए करीब एक डेढ़ किलोमीटर चल लिए , कोई आवाज आती तो मैं और नीरज भाई कातर आँखों से , ललचाई नजरों से उसे देखने के लिए खड़े हो जाते , इस उम्मीद में कि ये हमें बिठाकर ले जाएगा ! वो पास आता , बाइक या कार होती और फुर्र से बराबर में से निकल जाती ! हम ऐसे है रह जाते ! लेकिन दुनिया में भले आदमी भी हैं अभी ! एक पिकप गाडी आई , शायद भैंस छोड़कर आई है ! उसने रोक लिया और हम उसकी ट्रॉली में "विराजमान " हो गए ! तीन -चार किलोमीटर पर आकर उतार दिया उसने ! कोई बात नहीं यहाँ नहर के किनारे तीन -चार ऑटो लगे हुए हैं ! 250 रूपये में ऑटो कर लिया "ककनमठ मंदिर " तक के लिए ! रास्ता बहुत बेकार है , सिंगल सड़क है और वो भी टूटी -फूटी ! पहुँच रहे हैं "ककनमठ " !

ककनमठ मंदिर( Kakanmath Temple Story) :
ककनमठ मंदिर की असली कहानी पढ़ने से पहले ज़रा हमारे ग्वालियर के रहने वाले और वर्तमान में नॉएडा में रह रहे हमारे मित्र "एकलव्य जी भार्गव " की सुनाई कहानी बतानी जरुरी है , जो भले सही हो या न हो लेकिन रोचक जरूर है ! वो कहते हैं कि इस मंदिर को जिन्नों ने बनाया था और वो भी एक ही रात में और जैसे ही दिन निकला , जिन्न इसे अधूरा बना हुआ छोड़कर भाग गए ! आगे दिए गए इस मंदिर के फोटो इस बात को प्रमाणित भी करते हैं कि इंसान ने कभी इस तरह का मंदिर और कहीं नही बनाया है !


अब आते हैं वास्तविक कहानी पर ! वास्तविक मतलब जो इतिहासकार बताते हैं , हालाँकि एकलव्य जी को भी इतिहास की अच्छी जानकारी है ! सुहानियां , जिसे पहले सिंफनिया कहते थे , से करीब दो किलोमीटर दूर बावड़ीपुरा गांव के खेतों के बीच बने इस मंदिर को कच्छपघाट ( कछवाहा ) राजा "कीर्तिराज " ने 11 वीं शताब्दी में बनवाया था ! उस समय में सुहानियां इन राजाओं की राजधानी हुआ करता था ! मूलरूप से भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को खजुराहो मंदिरों की बनावट के आधार पर अपनी रानी "ककनवती " के अनुरोध पर बनाया था ! इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस मंदिर को बनाने के लिए किसी भी प्रकार का सीमेंट या गारा प्रयोग नही किया गया है ! किसी भी तरह के एडहेसिव (Adhesive ) के बिना बनाया गया शायद ये दुनिया का पहला और एकमात्र मंदिर होगा !


तो कैसी लगी आपको इस अजनबी , अनजाने लेकिन खूबसूरत और अपनी विशिष्ट संरचना ( special , unique structure ) वाले मंदिर की कहानी ? आगे और भी कुछ मिलेगा : 

It has 150 Mtr height


Waiting to be erect
Waiting to be erect

Shikhar , Looking for its place


Will Enhance beauty of a Temple

No Adhesive like cement is used to Built it in 11th Century

No Adhesive like cement is used to Built it in 11th Century













जारी रहेगी  :

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

धन्यवाद!!! बहुत अच्छी जानकारी है।