अगर आपको ये यात्रा वृतांत शुरू से पढ़ने का मन हो तो आप यहां
क्लिक करिये, पहले ही पोस्ट से पढ़ पाएंगे !
आज 17 जून 2016
है । हम सतोपंथ से वापस लौटकर लक्ष्मी वन तक आ गये थे कल शाम को । पैर में
कल बहुत दर्द था जो आज भी बना हुआ है । आज सच कहूं तो जल्दी से जल्दी
बद्रीनाथ पहुंच जाने का मन कर रहा है लेकिन उड़ के तो नहीं जा सकते ।
हालांकि एक हैलीकॉप्टर उड़ान भरता हुआ इधर हमारे ऊपर चक्कर मार के गया है
लेकिन वो हमारे लिये नहीं, सैनिकों के लिये रहा होगा । आज मन नहीं लग रहा ।
चलते हैं धीरे धीरे । आठ बजे निकल लिये यहां से । एक एक कदम गिन गिन के
चलता रहा, फिर से वो ही नजारे देखने को मिल रहे हैं लेकिन न वो पहले वाला
जोश है और न पहले वाली उत्सुकता । फिर से चमटोली बुग्याल पार कर लिया लेकिन
चुपके चुपके । थोड़ा मुडकर पीछे की तरफ उस गुफा को देखा जहां हमने बैठकर
पराठे खाये थे तीन दिन पहले । फिर से उस आदमी की दुकान दिखाई दी जहां हमारे
साथ गये पॉर्टरों ने चाय पी थी, और जहां से उनका एक साथी बीमार होने की वजह
से वापस लौट गया था ।
चलते चलते तेज ढलान पर उतर कर धन्नो ग्लेशियर
पार कर लिया । लेकिन ग्लेशियर आज उस दिन से भी ज्यादा खतरनाक नजर आ रहा है,
डर लग रहा है । गिरने के चांस ज्यादा हैं क्योंकि उतरते समय शरीर का पूरा
वजन पंजों पर आ जाता है जो नीचे की तरफ धकेलता है ।
मैं
ये देख रहा हूं कि सब लोग लगभग साथ ही चल रहे हैं । संदीप भाई भी अपनी
स्पीड को रोक कर चल रहे हैं । आनंद वन पार कर लिया है और अब बस मेरे लिये
एक जगह और है जिसे मैं अपने लिये खतरनाक मानकर चल रहा हूं । वो ही जगह जहां
जाते समय मेरा पैर फिसल गया था । लेकिन अभी वो जगह कुछ आगे है । तब तक
संदीप भाई और पॉर्टरों के साथ पैर फैलाकर थोड़ा आराम ले लेता हूं । अभी
दोपहर के बारह बजे हैं और बद्रीनाथ सिर्फ चार किलोमीटर दूर रह गया है ।
मतलब कोई जल्दी नहीं । बस पहुंचना ही तो है । संदीप भाई थैंक्यू, बडा वाला,
मेरा साथ निभाने के लिये । कमल भाई को तो थैंक्यू कह चुका हूं । आ गये
माता मूर्ति मंदिर । यानि
माणा , भारत का अंतिम गॉव सामने दिखाई दे रहा है
और वहां कोई मेला लगा हुआ है । पता लगा आज वहां उत्तराखण्ड के सीएम हरीश
रावत पहुंचने वाले हैं । अब सब साथ वाले आगे पीछे हो गये हैं, कुछ पुल पार
करके माणा ही चले गये हैं । मैं यहीं बैठ के उत्तराखण्ड की संस्कृति को
निहार लेना चाहता हूं , न हिम्मत बची है न ताकत । एक लोकल आदमी से पता किया
तो उसने बताया कि वहां " जेठ पुजै " नाम का कोई संस्कृतिक कार्यक्रम चल
रहा है । चलते हैं, धीरे धीरे । बद्रीनाथ का मंदिर वो रहा , दिखाई दे रहा
है । फिर से शीश झुकाता चलूं , भगवान के लिये जिसने मुझे इतनी हिम्मत और
शक्ति प्रदान की , जिसके चलते मैं इस यात्रा को सकुशल संपन्न कर पाया । जय
बद्री विशाल की । होटल पहुंचता हूं ।
तीन बजे
होटल के बाहर चाय पीकर चलूंगा । कहाँ तो प्लान था कि सतोपंथ के बाद हेमकुण्ड
भी जाऊंगा लेकिन पैर की मोच ने सब प्लान गडबड़ कर दिया और अब सुबह पहली बस
से हरिद्धार और फिर गाजियाबाद निकल जाऊंगा ।
बोलो बद्री विशाल की जय !!
नोट
: इस यात्रा को संपन्न कराने में मेरे साथ गये लोगों का बहुत सहयोग रहा
जिनके लिये मैं सदैव उनका आभारी रहूंगा । बीनू भाई जैसा मस्तमौला आदमी इसी
यात्रा में मिला , अमित भाई जैसे गुणी गुरू के संपर्क में रहकर कुछ सीखने
की कोशिश करी , सुशील जी कैलाशी, संजीव जी, सुमित नौटियाल भाई धन्यवाद एक
बेहतरीन यात्रा में साथ देने के लिये । कमल भाई पूरी यात्रा में साथ बने
रहने के लिये धन्यवाद । और एक बडा धन्यवाद गज्जू भाई और उनकी टीम को जिसके
सतत सहयोग से ही ये यात्रा सकुशल संपन्न हो सकी ।
इस यात्रा के कुछ सलेक्टिव फोटो
|
ये माणा में कोई सांस्कृतिक प्रोग्राम चल रहा है |
सतोपंथ यात्रा का आज औपचारिक समापन हो रहा है !! जय बद्री विशाल
इस
यात्रा के बाद बीच बीच में " New Delhi to Thiruvanathpuram by Passenger Train " की यात्रा कर आया हूँ ! ये यात्रा आपको पसंद
आएगी या नहीं , मैं नही जानता लेकिन मेरे जीवन की यादगार यात्रा होगी !
इसके माध्यम से आपको दिल्ली से लेकर त्रिवेंद्रम तक पड़ने वाले सभी छोटे बड़े
रेलवे स्टेशन के विषय में पढ़ने को मिलेगा और इसके साथ ही इस रुट पर आने
वाले सभी धार्मिक , दर्शनीय स्थलों की सैर सपाटा भी होती रहेगी ! तो हाथ
उठाइये , कौन कौन साथ रहेगा ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें