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सतोपंथ ! जब से इसके विषय में पढ़ा , जाना , समझा तब से सपनों में बसा था , आज इस पवित्र ताल पर पहुंचकर मन को जो प्रसन्नता मिली , उसे केवल महसूस किया जा सकता था , लिखना शायद मुश्किल होगा ! दोपहर बाद के साढ़े तीन का समय हो रहा है ! एकदम से भीड़ सी दिख रही है यहां , कई सारे तम्बू लगे पड़े हैं ! हरियाली भी दिखी , एक नहीं दो -तीन ! उनके साथ बहुत सारे पोर्टर हैं जो मशीन लाद लाद कर लाये हैं ! हरियाली से बस इतना ही पूछ पाया - फ्रॉम वेयर यू आर ? न्यूज़ीलैण्ड ! इतने में उसका नाश्ता आ गया तो मैं चल दिया कि कहीं हरियाली ये न समझ ले कि मैं उससे चिपकने की कोशिश कर रहा हूँ ! खैर वो मशीन ग्लेशियरों का अध्ययन करने की मशीन थीं और वो हरियाली भूगर्भ वैज्ञानिक ! जल्दी ही तामझाम समेट लिया उन लोगों ने और आगे की तरफ बढ़ गए , आगे मतलब स्वर्गारोहिणी की तरफ ! आज की रात भी सूखी गुजरेगी ! कोई नही ! ओह , और लोगों ने भी अपना टंडीला इकठ्ठा करना शुरू कर दिया है , इसका मतलब आज सतोपंथ पर हम ही रहेंगे , हाँ अमन बाबा तो हमेशा ही यहां रहते हैं !
अमन बाबा की भी बात कर लें कुछ ? आपने 2016 से पहले के जितने भी सतोपंथ के ब्लॉग या आर्टिकल पढ़े होंगे उनमें आपने पढ़ा होगा कि वहां एक "मौनी " बाबा भी रहते हैं जो किसी से बात नही करते लेकिन अब उन मौनी बाबा की जगह पर एक नौजवान बाबा "अमन बाबा " सतोपंथ पर रहते हैं , और उसी "महल " में रहते हैं जहां मौनी बाबा रहते थे ! हमारे सतोपंथ पहुँचने से पहले अमित तिवारी जी अमन बाबा से मुलाक़ात कर आये थे और शायद वो सन्देश भी अमन बाबा को दे दिया था जो अमन बाबा की माँ ने भिजवाया था ! सन्देश ये था कि अमन बाबा की कहीं सरकारी नौकरी लग गयी है ! हम भी अमन बाबा के "महल " में होकर आये ! महल इसलिए कहा कि ऐसी दुर्गम जगह पर उन्होंने रहने का जो स्थान बना रखा है अत्यंत साफ़ सुथरा और व्यवस्थित है ! बाहर वाला "कमरा " आने जाने वाले दर्शनार्थीयों के लिए है जबकि अंदर वाला ' कमरा " बैडरूम का काम करता होगा ! एकदम साफ़ सुथरा और सजा हुआ बैडरूम !
अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं , अमन बाबा के चक्कर में कहाँ पहुँच गए ? तो जी , हमारे पहुँचने से पहले सभी पॉर्टर और ज्यादातर साथ वाले लोग सतोपंथ पहुँच गए थे और जो झंडी तक पहुँचता वो जोर से चिल्लाता जैसे कोई अजूबा देख लिया हो ? हाँ , अजूबा ही तो था जो सामने त्रिकोण दिख रहा था सतोपंथ ताल के रूप में ! जब तक हम पहुंचे , गज्जू भाई एंड पार्टी ने मस्त गर्मागर्म सूप बनाकर तैयार कर दिया ! दो गिलास खेंच दिए ! मजा आ गया ! अब तम्बू गाढ़ लेते हैं , गढ़ गया तंबू भी ! बम्बू नही है हमारे पास इसलिए वो गाना " हम तो तंबू में बम्बू लगाय बैठे .. ....... गाने का कोई फायदा नही ! नहाने चलते हैं , तीन दिन से नहाया नही और इस पवित्र ताल में स्नान करना स्वयं में फलदायक रहेगा ! तो हो जा बेटा योगी तैयार , ठण्डे बर्फीले से पानी में डुबकी लगाने को ! लो जी , तैयार और मार ली 5 -7 डुबकी ! सारे पाप धुल गए लेकिन सच कहूँ तो ज्यादा पाप नही किये अभी तक !
कुछ खा पीकर इस पवित्र ताल की परिक्रमा को चलते हैं ! पहले कौन गया , कौन गया ? याद नही आ रहा ! शायद अमित भाई निकले थे , फिर विचित्र आत्मा विकास नारायण श्रीवास्तव फिर बीनू भाई , जाट देवता संदीप भाई , सुमित नौडियाल , सुशील जी और फिर मैं ! किनारे किनारे चलते हुए दूसरे कोने पर जा पहुंचे जहां से टूटे हुए ग्लेशियर बिल्कुल साफ़ दिख रहे थे , हालाँकि रास्ते में ग्लेशियर टूटने की आवाज़ें खूब आती रही लेकिन पिछले 2 -3 घंटे से सब शांत है , कहीं तूफ़ान से पहले की सघन शांति तो नही ? परिक्रमा ख़त्म होने से पहले हल्की हल्की बारिश होने लगी थी तो एक जगह पत्थर की ओट लेकर छुप गए ! लेकिन जैसे ही थोड़ा ऊपर की तरफ पहुंचे तो बारिश फिर से आ गयी और इस बार तेज थी ! बड़े बड़े पत्थर , कोई रास्ता नही , एक गुफा में जैसे तैसे सरक सरक के घुस गए ! आधा घण्टा वहीँ बीत गया ! ये भी अच्छी जगह है रात बिताने को ! वापस धीरे धीरे करके उस जगह पहुंचे जहां आज गज्जू भाई ने अपना कब्जा जमा रखा है ! ये कभी कोई आश्रम रहा होगा , लेकिन आज इसमें हमारा किचन बना हुआ है और जाट देवता तथा सुमित भाई ने भी अपना डेरा यहीं डाल लिया है आज की रात !
मैं भी कुछ देर इसी फाइव स्टार होटल में पड़ जाता हूँ ! मैं वहां घंटे भर के आसपास रुका होऊंगा लेकिन इस घण्टे भर में दो बार गिलास भर भर के चाय खेंच गया ! मौजा ही मौजा ! अपने घर , यानि अपने तम्बू में लौट चलते हैं ! रात के 10 बजे हैं , बीनू भाई की तबियत खराब सी हो रही है , बाकी न जाने क्या बेच के सो रहे हैं ! पता नही आज कोई लाद खेलेगा कि नही ! सुबह कुछ लोगों को स्वर्गारोहिणी की यात्रा करने जाना है , जहां वो चंद्रताल , सूर्यकुंड और विष्णुकुंड तक जाने का प्लान बनाये हुए हैं ! कल की कल देखेंगे, अभी तो सोने चलते हैं इस बियाबान में , जहां आज हम लोगों के अलावा और कोई नही , हैं तो सिर्फ सोये हुए पहाड़ , शांत -चिरशांत सा प्रतीत होता सतोपंथ और सामने करीब 3 किलोमीटर दूर स्वर्ग के द्वार तक पहुंचाने वाली सीढियां यानि स्वर्गारोहिणी !
तो कल मिलते हैं फिर से :
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सतोपंथ पर एक छोटा सा मंदिर भी है |
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पूरी टीम ! न न इसमें मैं और विकास नही हैं |
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विकास इसमें भी नही है ! बाएं से संजीव त्यागी , सुमित नौटियाल , कमल कुमार
सिंह , मैं (योगी ), अमित तिवारी , जाट देवता , सुशील कैलाशी , बीनू
कुकरेती आगे लाल लाल |
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पवित्र सतोपंथ का पवित्र जल |
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पीली चौंच का कौवा |
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