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वसुधारा फॉल पहुँचते पहुँचते बुरी हालत हो गयी लेकिन वहां पहुंचकर जो आनद मिला उसे शायद कभी शब्दों में बयान न किया जा सके। कुल मिलाकर उस वक्त वहां हमसे पहले छह लोग थे। एक परमानेंट वाले बाबा , एक चलते फिरते बाबा और चार लोग और जिनमें दो महिलाएं थीं ! उन चार लोगों में से दो लोग अपनी मॉउंटेनीरिंग में काम आने वाली स्टिक और बड़ा सा कैमरा लेकर बैठे थे। थोड़ी दूर थे वो हमसे ! हम जाते ही परमानेंट वाले बाबा के आश्रम में पहुँच गए। असल में SLET के छात्र मुझसे पहले पहुँच गए थे और वो बाबा के आश्रम के बाहर चाय पी रहे थे। मैं पहुंचा तो मुझे भी गिलास भर के चाय दी। मैंने चाय देखते ही कहा -अरे ये तो बिलकुल पिंक है !! बाबा गुस्सा हो गए ! हम्म बहुत बड़े अँगरेज़ हो ? गुलाबी नही कह सकते !! खैर उन बाबा ने ही बाद में बताया कि इसमें शंखपुष्पी और जाने क्या क्या मिलाया हुआ है इसलिए गुलाबी हो गयी है ! इतनी बर्फ में चाय मिल जाए तो मजा ही अलग है ! परमानेंट बाबा इसलिए कहा क्योंकि वो वहां दिसंबर तक रहते हैं और फिर वापिस नीचे आ जाते हैं बाकी लोग , बाकी बाबा चलते फिरते रहते हैं ! SLET के छात्र इधर उधर घूमते रहे और मैं अकेला बाबा के पास बैठा रहा ! बाबा ने पूछा उम्र क्या हो गयी ? मैंने मोबाइल पकड़ रखा था और उसमें कुछ देख रहा था , बाबा बोले - मोबाइल में अपनी उम्र देख रहे हो ? मजेदार बाबा !!
वहीँ एक और बाबा मिले जिन्हे मैंने चलते फिरते बाबा लिखा है ! ये असल में तीन चार दिन से यहां थे और दो दिन से भूखे थे ! किसी ने इन्हे चार पराठे खिला दिए और इनका मन तृप्त हो गया ! फोटो में दिखेंगे आपको ! बाबा से फुर्सत पाकर अब इधर उधर के फोटो लेने शुरू किये और धीरे धीरे उन लोगों के पास पहुँच गया जो इधर बहुत देर से आराम फरमा रहे थे और अपने कैमरे को ट्राइपॉड पर रखकर बस बैठे बैठे ही फोटो खींचे जा रहे थे ! ओह , ग्लव्स भी हैं ! पूरी तैयारी के साथ आये हैं लेकिन वसुधारा फॉल के पास तक नही जा रहे ? हिम्मत नही हो रही !! वसुधारा फॉल को कोई कोई वसुंधरा फॉल भी कहते हैं ! हालाँकि मैं सिर्फ वसुधारा फॉल तक ही गया लेकिन इसके लगभग पांच किलोमीटर आगे अलकापुरी है जो धन के देवता कुबेर का निवास स्थान माना जाता है ! यहां से सतोपंथ और बलाकुन चोटियां स्पष्ट दिखाई देती हैं ! सतोपंथ वो जगह है जहां पांडवों ने मोक्ष प्राप्त किया था ! पांडव इसी रास्ते से स्वर्ग के लिए गए थे और उनके प्रस्थान के रास्ते को स्वर्गरोहिणी कहा जाता है !
वसुधारा फॉल पर उस महिला की मौत की खबर ने सबको सतर्क कर दिया था या ये कहूँ कि सबको डरा दिया था। इसलिए कच्ची बर्फ पर चलकर फॉल तक जाने की कोई हिम्मत नही दिखा पा रहा था ! SLET के छात्र भी एक साथ बैठे जाने क्या रणनीति बना रहे थे और इतने में मैंने अपने आपको वहां जाने के लिए प्रोत्साहित कर लिया ! भगवान का नाम लिया और पहला कदम बढ़ा दिया ! 445 फुट यानि लगभग 145 मीटर ऊँचे फॉल को देखने का लोभ छोड़ ही नही पा रहा था ! वहां जो रास्ता था वो ये बता रहा था कि लोग मुझसे पहले वहाँ गए हैं लेकिन वो शायद सुबह गए होंगे और दोपहर बाद बर्फ और भी कमजोर हो जाती है इसलिए खतरा और भी ज्यादा था ! बीच रास्ते में पता नही कैसे बर्फ मेरे जूतों में घुस गयी ! लेकिन अगर यहाँ जूता खोलूंगा तो संतुलन गड़बड़ा जाएगा , पांच मिनट में ही पैर एक तरह से गल सा गया ! उधर जाकर ही बर्फ निकाली ! बर्फ कहाँ वो तो अब पानी बन चुकी थी ! फॉल के बिलकुल जड़ में खड़े होकर फोटो लेने का मजा ही कुछ अलग था लेकिन यहां तक पहुँचने के लिए कितनी बार भगवान को याद कर लिया होगा ! एक जगह बिलकुल खाली खाली जगह सी दिखी ! दूर से हाथ मारा -बर्फ पूरी टूट गयी ! बच गया ! कहीं पैर पड़ जाता तो लेने के देने पड़ जाते ! ज्यादा हिम्मत वाले लोग उस फॉल के नीचे नहाकर भी आते हैं लेकिन मैं इतना हिम्मत वाला नही था या फिर फैमिली की फ़िक्र !! पीछे मुड़कर देखा -SLET के छात्र अलविदा कहने को हाथ उठा रहे थे और मैं अभी उनसे बहुत दूर था ! उन्होंने वहां तक आने की हिम्मत नही दिखाई ! सही किया !!
उधर
एक वीडियो बनाया ! कई सारे फोटो खींचे और चल दिया ! मैं अभी वापिस पहुंचा
था कि उन चार में से एक मेरे पास आया ? डर नही लगा आपको ? मैं कैसे कहता कि
नही लगा ? बहुत डर लगा था लेकिन हिम्मत से और भगवान की कृपा से संभव हो
पाया ! वो केरल के रहने वाले थे ! धीरे धीरे करके एक ने हिम्मत दिखाई और जब
वो उस पार पहुँच गया तब दूसरा स्टार्ट हुआ ! मैं उन्हें देखते हुए वापिस
आकर एक जगह बैठ गया ! भगवान को धन्यवाद दिया और अपने खींचे हुए फोटो देखने लगा !!
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145 फुट की ऊंचाई से गिरता वसुधारा फॉल |
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145 फुट की ऊंचाई से गिरता वसुधारा फॉल ! थोड़ा और पास |
1 टिप्पणी:
बद्रीनाथ से स्वर्गारोहिनी तक जाने में कितना समय लगता है कृपया बताएं
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