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भगवान बुद्ध को समर्पित और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइटों में गिना जाने वाला महाबोधि मंदिर ठीक उसी वृक्ष के पास बना है जिसके नीचे कभी भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसके चारों कोनों पर छोटी छोटी चोटियां हैं और बिल्कुल केंद्र में सबसे ऊँची चोटी है जो 55 मीटर ऊँची है। कहते हैं इस मंदिर को सम्राट अशोक ने 206 बी.सी में बनवाया था। इस मंदिर के साथ ही साथ यहां की हर जगह अपने आप में एक कहानी लिए हुए हैं। थोड़ा समय लीजिये पढ़ने के लिए , ज्ञान प्राप्त होगा ! लेकिन गौतम बुद्ध वाला ज्ञान नही !!
गौतम बुद्ध ने यहाँ कुल सात सप्ताह बिताये जिनका विवरण इस तरह से मिलता है :
प्रथम सप्ताह : बोधि वृक्ष ( पीपल का पेड़ ) के नीचे गुजारा जहां उन्हें तीसरे दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई।
दूसरा सप्ताह : इस सप्ताह भगवान बुद्ध पेड़ के पास बिना पलक झपकाये खड़े रहे और निरंतर बोधि वृक्ष की तरफ देखते रहे। इस जगह को नाम मिला - अनिमेष लोचन स्तूप।
तीसरा सप्ताह : ऐसा कहा जाता है कि इस सप्ताह में भगवान बुद्ध अनिमेष लोचन से बोधिवृक्ष तक लगातार चलते रहे और जहां जहां उनके कदम पड़े वहां कमल खिल गए। इस जगह को रत्नचकर्मा या संकामाना ( Cankamana) कहते हैं।
चौथा सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में स्थित रतनगर चैत्य में व्यतीत किया।
पांचवां सप्ताह : इस सप्ताह भगवान बुद्ध ने अजपाला निगोध वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों के प्रश्नों के उत्तर दिए थे। लेकिन अब वो वृक्ष नही है , उसकी जगह पर एक पिलर बना दिया गया है।
छठा सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने कमल तालाब के पास व्यतीत किया। कहाँ है ? ये मुझे नही दिखा !
सातवाँ सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने राज्यत्न वृक्ष के नीचे व्यतीत किया।
ज्ञान की प्राप्ति तो हो गयी अब चलिए ज़रा अंदर चलते हैं। अभी अभी हम भूटान और बांग्ला देश की मोनेस्ट्री देख कर आये हैं। जिस मुख्य रोड पर बांग्ला देश की मोनेस्ट्री है उसी पर और आगे चलते जाएँ तो महाबोधि मंदिर दिखने लगता है। भीड़ बहुत ज्यादा होती है लेकिन इतनी नही कि धक्कामुक्की की नौबत आये। बड़े बड़े दो गेट बने हैं और बहुत चौड़ा रास्ता है। एकदम सुन्दर जगह। बिहार में इतनी शानदार सड़क , अचम्भा है। अपने मोबाइल फोन , जूते चप्पल सब यहीं रख जाएँ नही तो हमारी तरह वापस आना पड़ेगा दोबारा रखने के लिए। कैमरे का टिकट लेना पड़ता है जो कम से कम 100 रूपये का है। कैमरा छुपाकर मत ले जाना , पकडे जाओगे। दो दो जगह जबरदस्त चेकिंग होती है। एक बार वहां विस्फोट भी हो चुका है , अच्छा रहा किसी की मौत नही हुई थी।
अंदर भगवान की एक बहुत ही सुन्दर मूर्ति है। लाइन में लगते हुए दर्शन
करते जाइए लेकिन मुझे थोड़ी सी जगह मिली और मैंने लाइन से कल्टी मार दी और
एक साइड में खड़ा हो गया। न किसी रोका , न टोका ! कोई आरती चल रही थी ,
मुझे समझ में नही आई तो वहां लोगों द्वारा लाये गए वस्त्रों को भगवान बुद्ध
को पहना रहे बुद्ध भिक्षु से ही पूछ लिया -ये कौन सी भाषा में आरती हो
रही है ? पाली में। वहां बुद्ध की प्रतिमा के बिल्कुल नीचे क्रिस्टल का एक
कटोरा रखा है , बहुत बहुत सुन्दर। वो भगवान को जल पिलाने के लिए उपयोग
में लाया जाता है। अंदर की खुशबू मन मोह लेती है। आप वीडिओ देखेंगे तो आप
को वस्त्र बदलते हुए भिक्षु दिखाई देंगे और प्रतिमा के पास ही वो कटोरा भी। रात के फोटो हैं , संभव है कुछ कमिया रह गयी हों !
तो अब और ज्यादा ज्ञान की प्राप्ति नही करनी आज वरना अपच हो जायेगी। अति हर चीज की बुरी होती है : इसलिए आज इतना ही ! फोटू तो देखते जाओ जी :
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महाबोधि प्रवेश द्वार |
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महाबोधि प्रवेश द्वार |
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स्तूप |
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स्तूप |
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क्रिस्टल का बर्तन दिख रहा है भगवान बुद्ध की गोद में ! बहुत सुन्दर लगता है |
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ये मंदिर के पीछे बने हुए हैं |
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महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! उसके भी दर्शन करते चलते हैं |
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महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! उसके भी दर्शन करते चलते हैं |
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महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! उसके भी दर्शन करते चलते हैं |
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यात्रा ज़ारी रहेगी :
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