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सिटी पैलेस और जगदीश मंदिर देखते हुए जब सूरज अपनी ड्यूटी पूरी करके वापस अपने घर अपने बीवी बच्चों के पास जाने की तैयारी करने लगा तब हमें भी याद आया कि अभी तो हमें रोप वे और पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क भी जाना है ! ऑटो वाले ने अपना ऑटो जगदीश मंदिर के सामने वाले पोल में खड़ा कर लिया था ! उससे बात करी तो वो फोन पर ही चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा - सर सामने देखिये , सामने ही हूँ ! कई बार देखा ! नहीं दिखा ! सर सामने , सामने वाले पोल में ! दिख गया ! मैंने पूछा -यहां ऐसे छुप के क्यों बैठे हो ? बोला सर , पुलिस वाले चालान काट देते हैं इसलिए यहां अंदर की तरफ ही हूँ ! उसने जहां अपना ऑटो लगा रखा था उसके ही बिल्कुल सामने चाय समोसे की दूकान भी थी ! खाना तो खाया ही नहीं था , बस ऐसे ही बीच बीच में कुछ खाकर काम चल जा रहा था , और सच बात तो ये है कि हमें भूख लग भी नहीं रही थी ज्यादा ! बस चाय पीने का ही मन था। अंदर घुस गए ! अंदर नमक पारे जैसी कोई चीज थी , 10 रुपये की 100 ग्राम ! ले ली ! सच में अच्छी थी ! बाहर ऑटो वाला खड़ा था उसे भी अंदर ही बुला लिया , भाई तुम भी चाय पी लो ! पहले तो कुछ सकुचाया ! जब मैंने कहा कि पी लो तुम्हारे पैसों में से कम नहीं होंगे , तब थोड़ा सा मुस्कराता हुआ अंदर आ गया और अपनी चाय बाहर ही ले गया ! चाय ख़त्म करते ही अब हमारी मंजिल सीधा मंशा पूर्ण करनी देवी मंदिर तक जाने की थी। मनसा पूर्ण करनी देवी मंदिर एक ऊँची सी पहाड़ी पर है ! जहां तक गंडोला ( रोप वे ) से जाते हैं ! हालाँकि जब तक रोप वे नहीं बना था तब तक लोग शायद सीढ़ियों से जाते होंगे। ये सीढ़ियां रोप वे की ट्राली से नजर आती है और एक आध आदमी इनपर से ऊपर जाता
हुआ भी दिखाई दे जाता है ! चौड़ी लगती है और शायद एकदम साफ़ सुथरी भी ! इसका
मतलब इनका उपयोग अभी जारी है !
जग मंदिर दूर से देखते हुए पिछोला झील के किनारे किनारे से ऑटो वाले ने बमुश्किल 10 मिनट में हमें रोप वे के पास पहुंचा दिया ! रोड के किनारे ही एक छोटी सी दूकान है कन्फेक्शनरी की जहां चॉकलेट वगैरह ज्यादा बिकते हैं , उसी के एक कोने में छोटा सा केबिन बनाया हुआ है रोप वे के टिकेट बेचने के लिए। वयस्क के लिए 78 रुपये का ! मैंने ढाई टिकट लिया , सोचा कि छोटे बेटे का तो शायद फ्री चल जाएगा ! अभी चार ही साल का तो है ! टिकट लेकर दुकान के बराबर से ही नीचे की तरफ से रोप वे स्टैंड तक जाने के लिए रास्ता है । नीचे पहुंचे , हमारा नंबर स्क्रीन पर आने लगा तो उसने टिकट चेक किया , बोला आधा टिकट और लेना पड़ेगा आपको। क्यों भाई ? अभी तो ये पांच साल का भी नहीं हुआ !! उसने फिर बताया कि उम्र से नहीं बच्चे की हाइट से टिकट का निर्धारण होता है , 110 सेंटीमीटर की हाइट से ज्यादा के बच्चे का आधा टिकट लगता है ! ओह ! फिर दोबारा गया टिकट लेने , और फिर दोबारा लाइन में लगा ! बच्चे का 39 रूपये टिकट लगता है , पूरे चालीस ही हो जाते हैं ! एक रुपये की टॉफ़ी पकड़ा देगा। ये अच्छा धंधा चल पड़ा है आजकल , जिसके पास खुले पैसे नहीं होते वो 1 -2 रुपये की या तो टॉफ़ी पकड़ा देता है या माचिस दे देता है ! इसी को लेकर एक सच की कहानी मेरे पड़ोस में हुई थी। आज नहीं फिर कभी सुनाऊंगा !
जून 2008 में शुरू हुआ उदयपुर का रोप वे घूमने वालों के लिए एक अच्छा स्थान बन गया है। आने जाने का दोनों तरफ का किराया इस 78 रूपये में ही शामिल है ! रोप वे इधर से ले जाकर उधर करनी माता के मंदिर तक ले जाती है ! हालाँकि मुख्य मंदिर के लिए थोड़ा सा और चलना पड़ता है ! लेकिन इस 10 मिनट के सफर में बहुत रोमांच आ जाता है ! एक ट्राली में छह लोग आ जाते हैं। सामने की सीट पर तीन और लोग बैठे थे ! थोड़ी देर बाद उनमें से एक ने मुझे पूछा - आप आई.बी. में हैं ? मैंने कहा नहीं ! मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में हूँ ! लेकिन आप ऐसे क्यों पूछ रहे हैं ? आपकी जैकेट पर पीस ऑफिसर लिखा है ! ओह ! घंटोली आदमी था। ऐसे किसी की जैकेट पर मोदी लिखा होगा तो वो नरेंद्र मोदी हो जाएगा ?
करनी माता मंदिर ऐसे तो बीकानेर में है जो बहुत प्रसिद्द भी है किन्तु उसी का एक रूप यहां भी बन रहा है ! अभी दान की अवस्था में है ! दान की अवस्था में , मतलब दान आएगा तो काम चालू रहेगा ! करनी माता का मंदिर हो और चूहे न हों , ऐसा कैसे हो सकता ? दान की पेटी रखी हो तो धर्म के लिए कुछ दान कर भी देना चाहिए। मैंने भी कर दिया। इसी मंदिर से आगे एक दरगाह भी है ! किसकी है मालूम नहीं ! दरगाह में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं होती इसलिए मैं अंदर भी नहीं जाता। नीचे एक रास्ता और भी जाता है , इसी रास्ते के अंत में एक खँडहर सा है। दरवाज़ा तो खुला था मगर अंदर नही जा पाया लेकिन जब उसे ऊपर से देखा तो उसका आँगन दिखाई दे रहा था जो एकदम गंदा , बीट से भरा पड़ा था ! उसके बरामदे से लग रहा था कि वो शायद किसी का अधूरा महल रहा होगा ! न इसके विषय में वहां किसी को पता था और न ही कोई पट्टिका दिखाई दी जिससे कुछ पता चल पाता !
जब करनी माता मंदिर से इधर उतरकर आते हैं तो पास में ही पंडित दीन दयाल उपाध्याय पार्क है ! यहां पंडित जी की जो मूर्ति लगी है उसका उद्घाटन राजयपाल कल्याण सिंह ने किया है , इसका मतलब ये अभी हाल ही में लगी है ! क्यों अभी हाल ही में कल्याण सिंह जी राजस्थान के राजयपाल बनाये गए हैं ! अच्छी जगह है , विशेषकर बच्चों के लिए ! और बड़ी बात ये कि फ्री है ! उदयपुर में फ्री होना बड़ी बात है !
इस पोस्ट के साथ हम उदयपुर की यात्रा ख़त्म करेंगे और अब आगे एकलिंगजी चलेंगे अगले दिन :
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केबल कार प्रतीक्षा स्थल |
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केबल कार सेट अप |
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केबल कार वो आई |
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केबल कार अभी दूर है |
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आ रही है |
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आ गयी |
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आ गयी |
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आ गयी |
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केबल कार से खींचे चित्र |
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केबल कार से खींचे चित्र |
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केबल कार से खींचे चित्र |
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बीच में दिखाई देता जगमंदिर |
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करणी माता मंदिर |
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मंदिर को पूर्ण करने के लिए और भी सामान की जरुरत पड़ेगी |
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वापस चलते हैं |
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दीन दयाल उपाध्याय पार्क |
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दीन दयाल उपाध्याय पार्क |
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सूर्यास्त के दर्शन |
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कुछ मौज मस्ती हो जाए |
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कुछ मौज मस्ती हो जाए |
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कुछ मौज मस्ती हो जाए |
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अब रात हो चली है ! होटल वापस चलते हैं |
यात्रा जारी है :
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