एक कहावत है कि दुनियां की सुन्दर चीजें आसानी से नहीं मिलतीं और न सबको मिलती हैं। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें सुन्दर जगहों के दर्शन हो पाते हैं और जिन्हें सुन्दर के साथ -साथ पवित्र और दुर्गम जगहों पर अवस्थित भगवान से जुड़े स्थानों पर जाने का अवसर मिलता है , वो परम सौभाग्यशाली माने जा सकते हैं। मुझे भगवान ने क्या नहीं दिया , इस बात पर कभी सोचा नहीं लेकिन जो दिया उसमें हिम्मत और सहनशीलता अलग रूप से परिभाषित की जा सकती है। करीब 15 साल पहले आप मुझे मिले होते तो आपको मेरे अंदर ट्रैकिंग के कीटाणु माइक्रोस्कोप से भी ढूंढें नहीं मिलते , मिलता भी तो क्या ? मिलता आपको, हमेशा मेरे साथ रहने वाला inhaler जिसे पुश करके फूं फूं करते हुए मुंह में डाले सांस लेना पड़ता था। मिलता आपको Asthaline -4 mg की टेबलेट का पत्ता जिसमें से 24 घंटे में एक गोली खानी ही पड़ती थी। गोली खत्म तो .. मैं ख़त्म !
वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है .... वो 2004 था और ये 2019 है। आज , कभी मरियल से दिखने वाले एक सवा हड्डी के इंसान के खाते में तीन -चार बेहतरीन ट्रैक हैं वसुधारा फॉल , स्वर्गारोहिणी , नंदीकुंड , आदि कैलाश और श्रीखण्ड के । जिसका वजन कभी 50 किलो से ऊपर का काँटा ही नहीं छू पाता था आज उस मरियल के वजन का काँटा 80 किलो छू के वापस लौट आया 72 -73 पर । वो इंसान जिसको जाड़े का मौसम आते ही दही -मठ्ठा बंद कर दिया जाता था , जिसके माँ बाप पूरी -पूरी रात उसको अदरख की चासनी चटाते रहते थे जिससे सांस कण्ट्रोल में रहे , उसकी Wishlist में अब कागभुशुण्डि , खारदुंगला और अन्नपूर्णा सर्किट जैसे ट्रेक उसकी ख्वाहिशों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। वसुधारा , स्वर्गारोहिणी , नंदीकुंड और आदि कैलाश की ट्रैकिंग कहानियां आप पहले पढ़ चुके हैं , नहीं पढ़ी तो अब पढ़ सकते हैं लेकिन श्रीखण्ड जैसे कठिनतम ट्रैक की कहानी अब शुरू होगी। इस पोस्ट से....
आगे बढ़ने से पहले , अपनी बात कहने से पहले थोड़ा श्रीखण्ड के विषय में बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है। दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित धार्मिक स्थलों में से एक श्रीखंड महादेव का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यहाँ करीब 18300 फुट (5200 मीटर से ज्यादा ) की ऊंचाई पर एक ऊँची लम्बी शिला के रूप में शिवलिंग है जिसके दर्शन कर मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये जो शिवलिंग है उसकी ऊंचाई 70 फ़ीट से ज्यादा है। ये वो जगह मानी जाती है जहाँ भस्मासुर नाम के दानव ने कठोर तपस्या कर भगवान् शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस पर भी हाथ रखेगा वो भस्म हो जायेगा । ये वरदान प्राप्त होने के बाद भस्मासुर के मन में पाप जाग गया और वो माता पार्वती से ही विवाह करने के बारे में सोचने लगा । भगवान शिव भी न , कभी कभी ज्यादा उत्साह में आकर अपने पद का गलत उपयोग करके लोगों को रेवड़ियां बाँट देते हैं और फिर उसका खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है । अगर आज के समय में भगवान शिव सरकार में होते तो उनका इस्तीफा मांग लिया जाता और सोशल मीडिया में खूब 'ट्रोल ' भी होते :) तो जी भस्मासुर को वरदान मिल गया और माता पारवती जी से विवाह की जिद के कारण ये मामला शिव के हाथ से निकल गया । तब विष्णु जी ने एक नृत्यांगना का रूप धरकर भस्मासुर को अपने साथ नृत्य के लिए आमंत्रित किया । नृत्य करते-करते भगवन विष्णु ने एक स्टेप में भस्मासुर का हाथ उसके ही सिर के ऊपर रखवा दिया और इस तरह भस्मासुर की राम नाम सत्य हो गई।
श्रीखण्ड यात्रा Officially इस बार यानि 2019 में , 15 जुलाई से शुरू होनी थी । मैं पहली बार जा रहा था इसलिए यात्रा समय में ही जाने का निश्चय किया और फेसबुक पर साथी भी ढूंढ लिए लेकिन ज्यादातर लोगों का प्रोग्राम आगे -पीछे था इसलिए मैं और अनिल दीक्षित( Delhi ) ही साथ में जाने को तैयार हुए । ऐसे इस ट्रैक को आप आधिकारिक यात्रा समय ( जो अधिकांशतः जुलाई के दूसरे सप्ताह से शुरू होकर 15 दिन चलता है ) के आगे -पीछे भी कर सकते हैं । वहां जून शुरू होते-होते लोग अपना टैण्ट और राशन रखना शुरू कर देते हैं और सितम्बर तक आपको ये सुविधा मिल जाती है । यात्रा समय में हालाँकि आपको भीड़ मिलेगी , टैण्ट में रुकने और खाने पीने की चीजों में थोड़ी वृद्धि भी मिल सकती है लेकिन सुरक्षा और सहूलियत यात्रा समय में ज्यादा मिल जाती है। आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप यात्रा समय में जाना चाहते हैं या यात्रा से हटकर । दोनों बातों के कुछ फायदे हैं कुछ नुकसान।
सावन के महीने में बहुत लोग कांवड़ लाते हैं , कुछ भगवान शिव से जुड़े स्थानों की यात्रा करते हैं । श्रीखण्ड ऐसी ही जगह है और आधिकारिक यात्रा भी उसी हिसाब से लगाईं जाती है । उधर कश्मीर में अमरनाथ यात्रा चल रही होती है , हिमाचल में श्रीखण्ड की यात्रा और तिब्बत में कैलाश मानसरोवर तो उत्तराखंड में आदि कैलाश की यात्रा। जो लोग ये यात्राएं नहीं कर पाते या कर चुके होते हैं वो ज्योतिर्लिंग की यात्राओं की तरफ निकल जाते हैं । अमरनाथ की यात्रा कठिन मानी जाती है और श्रीखण्ड की यात्रा अमरनाथ यात्रा से भी कठिन ....तो आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि श्रीखंड यात्रा कितनी कठिन होगी ? विश्व की सबसे कठिनतम यात्राओं में शामिल है श्रीखण्ड कैलाश की यात्रा लेकिन सच कहूं ....मुझे ज्यादा कठिन नहीं लगी । क्यों नहीं लगी ? इसका जवाब बाद में ...
तो जी 13 जुलाई 2019 को हम बैग लेकर मेट्रो से समयपुर बादली पहुँच गए चार बजे से पहले । पहले भाईसाब अनिल दीक्षित ने तय किया कि मैं उनसे कश्मीरी गेट मिलूं , वो वहीँ बाइक लेकर मेरा इंतज़ार करेंगे । कश्मीरी गेट पहुँचने वाले थे तो मैसेज आया कि विश्वविद्यालय मिलो । विश्वविद्यालय पहुंचे तो फ़ोन आया , समयपुर पहुंचो । समयपुर पहुँच गए जी .. भाईसाब नहीं मिले। चाय पी ली .. भाईसाब नहीं आये . एक और चाय पी ली... . भाईसाब नहीं आये । आखिर भाईसाब साढ़े चार बजे पहुँच गए और ऐसे हमारी श्रीखण्ड महादेव की यात्रा शुरू हो गयी । दिल्ली कब खत्म हुई और कब सोनीपत वाला बॉर्डर आ गया , पता ही नहीं चला और हम जा बैठे श्रीमान संजय कौशिक जी के ऑफिस में । नीबू पानी पिया और जल्दी ही उनसे विदा ली । आज चंडीगढ़ पहुंचना ही था क्योंकि वहां हमारे मित्र विमल बंसल जी हमारा इंतज़ार कर रहे हैं । रात 11 बजते बजते हमारी बाइक चंडीगढ़ की सड़कों पर धुंआ उड़ाती हुई उड़े जा रही थी।
अगला दिन शुरू होते ही बारिश ने स्वागत किया हमारा । हालाँकि विमल जी ने बताया था कि बारिश चार बजे ही शुरू हो गयी थी लेकिन हम दिल्ली से चंडीगढ़ तक बाइक पर चलते चलते इतना थक गए थे कि बारिश का ख्याल करते ....कि अपना दर्द भुलाते । मैं पहली बार इतना दूर बाइक से आया हूँ और वो भी पीछे बैठकर । कहीं ढंग की जगह बैठना भी मुश्किल हो रहा था । बन्दर और मैं लगभग एक जैसे दीखते उस वक्त और अभी तो आज का दिन भी बाइक पर ही जाएगा .....आह ! मर गया !
विमल जी से विदा ले ही रहे थे तभी उनके मित्र और हमारे फेसबुक मित्र लोकेश कौशिक जी भी पहुँच गए। विमल जी बहुत ही मेहनती व्यक्ति हैं और जब काम में लगते हैं तो पूरा दिन और रात काम करते हैं जबकि लोकेश जी चंडीगढ़ पुलिस में हैं और वो पुलिस का एक नया रूप दिखाते हैं । बहुत ही गुणी , ज्ञानवान और बहुत प्रसिद्ध फेसबुक लेखक। जल्दी ही किताब वाले लेखक भी हो जाएंगे । शुभकामनायें लोकेश जी । दस तो यहीं चंडीगढ़ में ही बज गए । नाश्ता करके फटाफट निकल लिए । आज साधुपुल , चैल और कुफरी होते हुए नारकंडा पहुंचना ही है।
साधुपुल से जो हरियाली शुरू होती है वो आपकी यात्रा को यादगार बना देती है । सुन्दर रोड और उसके दोनों तरफ घना जंगल। क्या बात है ! फोटो भी देखने में मस्त लगते हैं और यात्रा में भी आनंद आ जाता है। बंदर के जैसे लाल हो गया होगा पीछे वाला हिस्सा लेकिन आज दर्द पर इन खूबसूरत रास्तों की सुंदरता ज्यादा मायने रखती है। दर्द को थोड़ी देर भूल जाते हैं और आगे चलते हैं चैल की तरफ। चैल ......वही चैल जहां कभी भारत और शायद दुनियां का सबसे ऊंचा क्रिकेट स्टेडियम हुआ करता था लेकिन अब वहां ऐसा कुछ नहीं है। स्टेडियम को भारतीय सेना ने अपने कण्ट्रोल में लिया हुआ है और अब ये बस एक खेल का मैदान है जैसे ...और होते हैं। यहाँ कभी एक क्रिकेट मैच खेला गया था भारत और... . पता नहीं दूसरी टीम कौन सी थी ? इसी चक्कर में यहाँ आये थे कि सबसे ऊँचे स्टेडियम को देखेंगे लेकिन अब खाली हाथ कुफरी की तरफ निकल लिए। बारिश आती रही मगर हम चाय पीते रहे और चलते रहे। कुफरी , बहुत छोटी लेकिन बहुत प्रसिद्ध जगह। एक रोड है जहाँ सर्दियों में खूब बर्फ हो जाती है बस यही बर्फ है जो नए नए लोगों को , हनीमून कपल्स को खींच लाती है। ये जगहें , ये रास्ते ऐसे हैं जहां जिंदगी अपने पुराने कपड़े उतारकर फिर से रिचार्ज होने को आतुर दिखती है और अगले कुछ वर्षों तक शुद्ध प्राणवायु के साथ जीने को लालायित हो जाती है। बहुत धन्यवाद अनिल भाई ! ऐसी सुन्दर और रपटीले रास्तों को दिखाने के लिए।
वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है .... वो 2004 था और ये 2019 है। आज , कभी मरियल से दिखने वाले एक सवा हड्डी के इंसान के खाते में तीन -चार बेहतरीन ट्रैक हैं वसुधारा फॉल , स्वर्गारोहिणी , नंदीकुंड , आदि कैलाश और श्रीखण्ड के । जिसका वजन कभी 50 किलो से ऊपर का काँटा ही नहीं छू पाता था आज उस मरियल के वजन का काँटा 80 किलो छू के वापस लौट आया 72 -73 पर । वो इंसान जिसको जाड़े का मौसम आते ही दही -मठ्ठा बंद कर दिया जाता था , जिसके माँ बाप पूरी -पूरी रात उसको अदरख की चासनी चटाते रहते थे जिससे सांस कण्ट्रोल में रहे , उसकी Wishlist में अब कागभुशुण्डि , खारदुंगला और अन्नपूर्णा सर्किट जैसे ट्रेक उसकी ख्वाहिशों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। वसुधारा , स्वर्गारोहिणी , नंदीकुंड और आदि कैलाश की ट्रैकिंग कहानियां आप पहले पढ़ चुके हैं , नहीं पढ़ी तो अब पढ़ सकते हैं लेकिन श्रीखण्ड जैसे कठिनतम ट्रैक की कहानी अब शुरू होगी। इस पोस्ट से....
आगे बढ़ने से पहले , अपनी बात कहने से पहले थोड़ा श्रीखण्ड के विषय में बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है। दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित धार्मिक स्थलों में से एक श्रीखंड महादेव का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यहाँ करीब 18300 फुट (5200 मीटर से ज्यादा ) की ऊंचाई पर एक ऊँची लम्बी शिला के रूप में शिवलिंग है जिसके दर्शन कर मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये जो शिवलिंग है उसकी ऊंचाई 70 फ़ीट से ज्यादा है। ये वो जगह मानी जाती है जहाँ भस्मासुर नाम के दानव ने कठोर तपस्या कर भगवान् शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस पर भी हाथ रखेगा वो भस्म हो जायेगा । ये वरदान प्राप्त होने के बाद भस्मासुर के मन में पाप जाग गया और वो माता पार्वती से ही विवाह करने के बारे में सोचने लगा । भगवान शिव भी न , कभी कभी ज्यादा उत्साह में आकर अपने पद का गलत उपयोग करके लोगों को रेवड़ियां बाँट देते हैं और फिर उसका खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है । अगर आज के समय में भगवान शिव सरकार में होते तो उनका इस्तीफा मांग लिया जाता और सोशल मीडिया में खूब 'ट्रोल ' भी होते :) तो जी भस्मासुर को वरदान मिल गया और माता पारवती जी से विवाह की जिद के कारण ये मामला शिव के हाथ से निकल गया । तब विष्णु जी ने एक नृत्यांगना का रूप धरकर भस्मासुर को अपने साथ नृत्य के लिए आमंत्रित किया । नृत्य करते-करते भगवन विष्णु ने एक स्टेप में भस्मासुर का हाथ उसके ही सिर के ऊपर रखवा दिया और इस तरह भस्मासुर की राम नाम सत्य हो गई।
श्रीखण्ड यात्रा Officially इस बार यानि 2019 में , 15 जुलाई से शुरू होनी थी । मैं पहली बार जा रहा था इसलिए यात्रा समय में ही जाने का निश्चय किया और फेसबुक पर साथी भी ढूंढ लिए लेकिन ज्यादातर लोगों का प्रोग्राम आगे -पीछे था इसलिए मैं और अनिल दीक्षित( Delhi ) ही साथ में जाने को तैयार हुए । ऐसे इस ट्रैक को आप आधिकारिक यात्रा समय ( जो अधिकांशतः जुलाई के दूसरे सप्ताह से शुरू होकर 15 दिन चलता है ) के आगे -पीछे भी कर सकते हैं । वहां जून शुरू होते-होते लोग अपना टैण्ट और राशन रखना शुरू कर देते हैं और सितम्बर तक आपको ये सुविधा मिल जाती है । यात्रा समय में हालाँकि आपको भीड़ मिलेगी , टैण्ट में रुकने और खाने पीने की चीजों में थोड़ी वृद्धि भी मिल सकती है लेकिन सुरक्षा और सहूलियत यात्रा समय में ज्यादा मिल जाती है। आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप यात्रा समय में जाना चाहते हैं या यात्रा से हटकर । दोनों बातों के कुछ फायदे हैं कुछ नुकसान।
सावन के महीने में बहुत लोग कांवड़ लाते हैं , कुछ भगवान शिव से जुड़े स्थानों की यात्रा करते हैं । श्रीखण्ड ऐसी ही जगह है और आधिकारिक यात्रा भी उसी हिसाब से लगाईं जाती है । उधर कश्मीर में अमरनाथ यात्रा चल रही होती है , हिमाचल में श्रीखण्ड की यात्रा और तिब्बत में कैलाश मानसरोवर तो उत्तराखंड में आदि कैलाश की यात्रा। जो लोग ये यात्राएं नहीं कर पाते या कर चुके होते हैं वो ज्योतिर्लिंग की यात्राओं की तरफ निकल जाते हैं । अमरनाथ की यात्रा कठिन मानी जाती है और श्रीखण्ड की यात्रा अमरनाथ यात्रा से भी कठिन ....तो आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि श्रीखंड यात्रा कितनी कठिन होगी ? विश्व की सबसे कठिनतम यात्राओं में शामिल है श्रीखण्ड कैलाश की यात्रा लेकिन सच कहूं ....मुझे ज्यादा कठिन नहीं लगी । क्यों नहीं लगी ? इसका जवाब बाद में ...
तो जी 13 जुलाई 2019 को हम बैग लेकर मेट्रो से समयपुर बादली पहुँच गए चार बजे से पहले । पहले भाईसाब अनिल दीक्षित ने तय किया कि मैं उनसे कश्मीरी गेट मिलूं , वो वहीँ बाइक लेकर मेरा इंतज़ार करेंगे । कश्मीरी गेट पहुँचने वाले थे तो मैसेज आया कि विश्वविद्यालय मिलो । विश्वविद्यालय पहुंचे तो फ़ोन आया , समयपुर पहुंचो । समयपुर पहुँच गए जी .. भाईसाब नहीं मिले। चाय पी ली .. भाईसाब नहीं आये . एक और चाय पी ली... . भाईसाब नहीं आये । आखिर भाईसाब साढ़े चार बजे पहुँच गए और ऐसे हमारी श्रीखण्ड महादेव की यात्रा शुरू हो गयी । दिल्ली कब खत्म हुई और कब सोनीपत वाला बॉर्डर आ गया , पता ही नहीं चला और हम जा बैठे श्रीमान संजय कौशिक जी के ऑफिस में । नीबू पानी पिया और जल्दी ही उनसे विदा ली । आज चंडीगढ़ पहुंचना ही था क्योंकि वहां हमारे मित्र विमल बंसल जी हमारा इंतज़ार कर रहे हैं । रात 11 बजते बजते हमारी बाइक चंडीगढ़ की सड़कों पर धुंआ उड़ाती हुई उड़े जा रही थी।
अगला दिन शुरू होते ही बारिश ने स्वागत किया हमारा । हालाँकि विमल जी ने बताया था कि बारिश चार बजे ही शुरू हो गयी थी लेकिन हम दिल्ली से चंडीगढ़ तक बाइक पर चलते चलते इतना थक गए थे कि बारिश का ख्याल करते ....कि अपना दर्द भुलाते । मैं पहली बार इतना दूर बाइक से आया हूँ और वो भी पीछे बैठकर । कहीं ढंग की जगह बैठना भी मुश्किल हो रहा था । बन्दर और मैं लगभग एक जैसे दीखते उस वक्त और अभी तो आज का दिन भी बाइक पर ही जाएगा .....आह ! मर गया !
विमल जी से विदा ले ही रहे थे तभी उनके मित्र और हमारे फेसबुक मित्र लोकेश कौशिक जी भी पहुँच गए। विमल जी बहुत ही मेहनती व्यक्ति हैं और जब काम में लगते हैं तो पूरा दिन और रात काम करते हैं जबकि लोकेश जी चंडीगढ़ पुलिस में हैं और वो पुलिस का एक नया रूप दिखाते हैं । बहुत ही गुणी , ज्ञानवान और बहुत प्रसिद्ध फेसबुक लेखक। जल्दी ही किताब वाले लेखक भी हो जाएंगे । शुभकामनायें लोकेश जी । दस तो यहीं चंडीगढ़ में ही बज गए । नाश्ता करके फटाफट निकल लिए । आज साधुपुल , चैल और कुफरी होते हुए नारकंडा पहुंचना ही है।
Satopanth Badrinath Journey
साधुपुल से जो हरियाली शुरू होती है वो आपकी यात्रा को यादगार बना देती है । सुन्दर रोड और उसके दोनों तरफ घना जंगल। क्या बात है ! फोटो भी देखने में मस्त लगते हैं और यात्रा में भी आनंद आ जाता है। बंदर के जैसे लाल हो गया होगा पीछे वाला हिस्सा लेकिन आज दर्द पर इन खूबसूरत रास्तों की सुंदरता ज्यादा मायने रखती है। दर्द को थोड़ी देर भूल जाते हैं और आगे चलते हैं चैल की तरफ। चैल ......वही चैल जहां कभी भारत और शायद दुनियां का सबसे ऊंचा क्रिकेट स्टेडियम हुआ करता था लेकिन अब वहां ऐसा कुछ नहीं है। स्टेडियम को भारतीय सेना ने अपने कण्ट्रोल में लिया हुआ है और अब ये बस एक खेल का मैदान है जैसे ...और होते हैं। यहाँ कभी एक क्रिकेट मैच खेला गया था भारत और... . पता नहीं दूसरी टीम कौन सी थी ? इसी चक्कर में यहाँ आये थे कि सबसे ऊँचे स्टेडियम को देखेंगे लेकिन अब खाली हाथ कुफरी की तरफ निकल लिए। बारिश आती रही मगर हम चाय पीते रहे और चलते रहे। कुफरी , बहुत छोटी लेकिन बहुत प्रसिद्ध जगह। एक रोड है जहाँ सर्दियों में खूब बर्फ हो जाती है बस यही बर्फ है जो नए नए लोगों को , हनीमून कपल्स को खींच लाती है। ये जगहें , ये रास्ते ऐसे हैं जहां जिंदगी अपने पुराने कपड़े उतारकर फिर से रिचार्ज होने को आतुर दिखती है और अगले कुछ वर्षों तक शुद्ध प्राणवायु के साथ जीने को लालायित हो जाती है। बहुत धन्यवाद अनिल भाई ! ऐसी सुन्दर और रपटीले रास्तों को दिखाने के लिए।
कुफरी से निकलकर नारकंडा की तरफ चल दिए। रास्ते में कहीं कुमारघाट करके एक जगह आई थी जहाँ बाइक का ब्रेक रिपेयर कराया था। शाम को आठ बजते बजते नारकंडा पहुँच चुके थे और 500 रूपये में एक रूम ले चुके थे। नारकंडा जगह हो और बारिश का मौसम हो तो रजाई की जरुरत पड़ेगी ही। ये वही नारकंडा है जिसकी हर गली , हर रोड दिसंबर -जनवरी में बर्फ से भर जाती है और हर जगह ठसाठस भरी होती है बर्फ देखने आने वाले सैलानियों से। जिस कमरे में हम थे उसका किराया 2500 -3000 तक पहुँच जाता है मौसम में लेकिन हम तो 500 में ही मौज करेंगे। टीवी पर न्यूज़ आ रही है कुमारघाट में एक होटल के गिरने की और दुखद बात ये कि इस घटना में 12 -13 भारतीय सैनिकों की मौत हो गयी है। हे भगवान ! ये तो वही होटल है जिसके नीचे हमने कुछ घंटों पहले बाइक के ब्रेक रिपेयर कराये थे । आज वर्ल्ड कप का फाइनल मैच है ..आपने भी एन्जॉय किया होगा हमने भी किया ऐसा रोमांचक मैच कोई कैसे छोड़ सकता है ? तो अब कल मिलते हैं.....
फिर मिलेंगे ....
तरीका बढ़िया है न |
ये कुफरी है -Its Kufri - A famous Hill Station |
फिर मिलेंगे ....
30 टिप्पणियां:
Aapki yatra ki shuruwat to badhia ho gai. Agle bhag ka intjjar rahega.
बहुत अच्छा लेखन सचमुच मानसरोवर के बाद श्रीखंड ही कठिन ट्रेक माना जाता है मणिमहेश का नंबर तीसरा है।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१६-११ -२०१९ ) को " नये रिश्ते खोजो नये चाचा में नया जोश होगा " (चर्चा अंक- ३५२१) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जय हो महादेव , जय भूतेश्वर
आपकी और अनिल जी की यात्रा वृतान्त बहुत शानदार लगा ... आगे के लिए इंतजार रहेगा। कुफ़री अपने काम आ सकती है। ट्रैकिंग में तो आपको बहुत फायदा हुआ है।
जिस स्पष्टवादिता से आपने अपनी शारीरिक व्याधि तथा उससे मुक्त होने में घुमक्कड़ी की भूमिका को रेखांकित किया है वह प्रशंसनीय है।
मेरा भी अगले वर्ष कैलाश मानसरोवर तथा मानी महेश की यात्रा करनी हैं। श्रीखंड महादेव की यात्रा आपके अनुभव की पूर्ण जानकारी प्राप्त करके योजना बनाऊंगा...
अस्थमा और 50 kg वजन से 80 kg वजन और बिना inhaler बहुत कुछ परिवर्तन हो गया...नारकंडा से आगे के यात्रा वृतांत की प्रतीक्षा रहेगी
बढ़िया ,शानदार शुरुआत . आपसे कुछ घंटे आगे मैं भी चल रहा था इसी यात्रा पर .
दिल्ली चंडीगढ़ कुफरी से नारकंडा ... मज़ा आ रहा था यात्रा और फोटो दोनों का ... फिर आ गया .... फिर मिलेंगे ... अब देखो कब आप खाली हो के आगे ला लिखोगे ...
पर इन लाजवाब फ़ोटोज़ का मज़ा आ गया ... यात्रा कठिन होगी ये तो समझ आ रहा है ... पर आपका होंसला बता रहा अहि ज्यादा कठिन भी नहीं होगा आपके लिए ...
Lovely pictures!
शानदार शुरुआत यात्रा वृतान्त बहुत शानदार लगा
सराहनीय प्रयास वेहतरीन संकलन
यात्रा का आगाज़ ऐसा है तो यात्रा कैसी होगी। पूरी यात्रा का इंतजार रहेगा।
बहुत धन्यवाद मित्रवर करुणाकर जी ! श्रीखण्ड महादेव का आशीर्वाद है , आते रहिएगा
बहुत धन्यवाद मित्रवर अरविन्द मिश्रा जी ! श्रीखण्ड महादेव कठिन है निश्चित रूप से लेकिन शायद किन्नर कैलाश इससे भी कठिन यात्रा है ..फिर भी यही कहूंगा कि हर किसी का अपना विचार होता है। .. आते रहिएगा
बहुत धन्यवाद अनीता जी।
बहुत धन्यवाद अभिषेक पांडेय जी। आपका प्रोत्साहन मिलता रहे ऐसी आशा करता हूँ। जी ट्रैकिंग ने बहुत कुछ दिया है , जिसे शायद शब्दों में लिख पाना संभव न हो .....आते रहिएगा
बहुत धन्यवाद महेश जी। मानसरोवर की यात्रा अप्रतिम है , आप को बहुत बहुत शुभकामनायें
बहुत धन्यवाद प्रतीक जी। आप जैसे मित्र हौसला देते हैं तो ऊर्जा का संचरण और बढ़ जाता है
यात्रा निश्चित रूप से अत्यंत कठिन है दिगंबर सर लेकिन मुझे आनंद इतना आया कि उसकी कठिनाई से ज्यादा मेरा ध्यान ट्रेक की खूबसूरती पर ज्यादा रहा। जल्दी ही लिखूंगा सर अगला पार्ट , आते रहिएगा
जी सहगल साब ! आपसे मिलना अच्छा रहा इस यात्रा में ! आते रहिएगा
धन्यवाद दीपक जी !! संवाद बनाये रखियेगा
बहुत बहुत आभार संजय भास्कर जी ! आपके शब्द प्रेरणा देते हैं , आते रहिएगा
धन्यवाद फ्री सांग जी
बहुत शुक्रिया विकास भाई ! संवाद बनाये रखियेगा
यात्रा वृतांत की शानदार शुरुआत!अगले भाग का बेसब्री से इंतजार।
बहुत धन्यवाद मित्रवर अमित। अगला भाग भी लिख दिया है
बहुत सुंदर वृतांत।आपने अस्थमा पर कैसे विजय प्राप्त की इसका वर्णन भी किसी लेख में करें।जानने की उत्सुकता है।
बहुत सुंदर वृतांत।आपने अस्थमा पर कैसे विजय प्राप्त की इसका वर्णन भी किसी लेख में करें।जानने की उत्सुकता है।
C k shukla
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