आपने देखा होगा कि मध्य प्रदेश का पर्यटन मंत्रालय बहुत एक्टिव और बहुत ही विशिष्ट विज्ञापन टेलीविज़न पर देता रहता है ! बाकी विज्ञापन मैं देखूं या न देखूं लेकिन MP Tourism के विज्ञापन स्वतः ही आकर्षित करते हैं ! हमेशा ही एक नया और अलग तरह के विज्ञापन लेकर आते हैं वो लोग ! कोई मेरी बधाई उन तक पहुंचाने की कृपा करें !! लेकिन इन विज्ञापन में आपको मुरैना का नाम सुनने को नहीं मिलता ! वास्तव में , अगर आप भारत के पर्यटन मानचित्र ( Tourism Map ) पर नजर डालें तो आपको मुरैना कहीं भी नजर नहीं आएगा , और अगर कैसे भी मोटा चश्मा लगा के नजर आ भी गया तो बहुत धुंधला सा दिखाई देगा जबकि, यहीं , इसी मुरैना में ASI ने बहुत ही पुराना खजाना खोज निकाला है ! तो आइये चलते हैं , इसी खजाने के दर्शन करने !
तारीख थी 6 जनवरी 2017 और बच्चों की सर्दियों की छुट्टियां चल रही थीं ! पत्नी और बच्चे अपनी नानी के यहां थे और ऐसे में मौका था कहीं छोटा मोटा सा ट्रिप मार लेने का :) ! उनके नानी के यहां जाने का प्लान लगभग 15 दिन पहले पक्का हुआ और मैंने चुपके से ग्वालियर तक का रिजर्वेशन करा लिया दक्षिण एक्सप्रेस में , ये ट्रेन हज़रत निजामुद्दीन से रात को 11 बजे निकलती है और सुबह साढ़े पांच बजे ग्वालियर पहुंचा देती है ! बढ़िया है , रात का सफर करके ग्वालियर पहुंचो और सुबह अपनी यात्रा शुरू ! मेरे साथ दो मित्र अमित तिवारी जी और नीरज अवस्थी जी भी चल रहे थे लेकिन वो दूसरी ट्रेन में मुझसे आधा घंटे पीछे चल रहे थे ! जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि बटेश्वर मंदिर जाने के लिए ग्वालियर जाने की जरुरत नहीं है , आप मुरैना उतर जाना ! हम भी मुरैना ही उतरेंगे ! ये भी ठीक है , दक्षिण एक्सप्रेस मुरैना पर भी रूकती है ! दिल्ली से निकलते ही बारिश शुरू हो गई थी और आगरा तक बारिश ही होती रही जिस कारण ठण्ड से सिकुड़ के तीन का आंक बन गया ! हालाँकि कम्बल था मेरे पास लेकिन इतनी ठण्ड में कम्बल के बस की बात नही थी कि ठण्ड का मुकाबला कर पाए ! अरे तीन का आंक समझ आया आपको ? तीन मतलब 3 ! असल में सर्दी में 3 का आंक खुद भी बन जाता है , हम भले इसे मुहावरे में प्रयोग कर लेते हों लेकिन इसके पीछे मैकेनिकल इंजिनीरिंग है ! चलो बता ही देता हूँ ! असल में हीट ट्रांसफर रेट , एरिया पर निर्भर करता है ! ज्यादा एरिया मतलब ज्यादा हीट ट्रांसफर और कम एरिया मतलब कम हीट ट्रांसफर ! तो जब आप ठण्ड में सिकुड़ते हैं तो वास्तव में आप अपने शरीर का एरिया कम करते हैं जिससे हमारे शरीर से कम हीट रिजेक्ट होती है और हमारे शरीर में कुछ गर्मी बनी रहती है जबकि गर्मी में इसका उल्टा होता है और हम हाथ फैलाकर सोने की कोशिश करते हैं जिससे एरिया बढ़ जाता है और शरीर कूल कूल महसूस करता है !
खैर सुबह सुबह साढ़े चार -पांच बजे मुरैना स्टेशन पहुँच गया और उतरते ही चाय खेंच ली , बड़े दिन बाद पांच रूपये की चाय मिली , लेकिन कम थी तो एक कप और ले ली ! लौट
के फिर स्टेशन आ गया , बाहर ठण्ड बहुत थी ! मोबाइल चार्जिंग पर लगा रहा था
कि सामने स्टेट बैंक का ATM दिख गया , स्टेशन परिसर में ही ! पैसे थे जेब
में लेकिन नोटबंदी के चक्कर में कहीं कम न रह जाएँ , देख लेता हूँ यहाँ इस
ATM से मिल जाएँ तो ठीक रहेगा ! ज्यादातर ATM तो खाली चल रहे हैं ! हुर्रे
!! मिल गए , 500 -500 के चार नोट मार लिए , इससे ज्यादा निकल भी नही सकते !
अमित भाई और नीरज जी भी पहुँच गए , उनके साथ एक कप और सही ! अब इस टूर के असली मालिक वो ही हैं ! अमित भाई के हाथ में है सब आगे का प्लान ! अमित भाई के साथ ये दूसरी यात्रा है , इससे पहले उनके साथ सतोपंथ की अविस्मरणीय यात्रा कर चूका हूँ और उन्हें हमारे ग्रुप में "गूगल बाबा " कहा जाता है ! आप समझ गए होंगे कि कितनी जानकारी होगी उन्हें ! स्टेशन से ऑटो पकड़ा और बस स्टैंड पहुँच गए , वहां से नूराबाद की बस लगी थी ! सुबह के मुश्किल से 6 बज रहे होंगे और घुप अँधेरा फैला हुआ था चारों तरफ ! आधा घंटे -चालीस मिनट में नूराबाद पहुँच गए ! अब हमें "बटेश्वर मंदिर समूह " देखने जाना है !
नूराबाद में सुबह सुबह कुछ मिलेगा नहीं इन मंदिरों तक जाने के लिए ! असल में ये मंदिर पड़ावली गाँव में हैं तो वहां कोई इन्हें बटेश्वर मंदिर नही बल्कि पड़ावली के मंदिर कहते हैं और इन मंदिरों तक आसानी से पहुँच भी नही सकते ! या तो आप अपनी गाडी से जाओ , गाडी किराए पर लेकर जाओ या फिर हमारी तरह ट्रेक्टर में लटक लटक के जाओ ! नूराबाद जिस तिराहे पर खड़े थे वहीँ एक चाय -बीड़ी की दूकान वाले ने बता दिया था कि आपको ट्रेक्टर में या मेटाडोर में ही जाना पड़ेगा ! कब मिलेगा , नही पता ! लेकिन अच्छी बात ये रही कि 10 मिनट के अंदर ही एक पिकअप गाडी आ गयी और हम तीनों पीछे लटक लिए ! उसने हमें एक गांव के बाहर तक जाकर छोड़ दिया ! रास्ते में बड़े बड़े पत्थरों से भरे बहुत सारे ट्रेक्टर मिलते रहे , ये पत्थर वहीँ पडावली मंदिरों से खुदाई कर करके निकाले जा रहे हैं !
जहां उतरे वहीँ तीन चार बुजुर्ग इंगहाने ( अलाव ) पर आग ताप रहे थे , हम भी उधर ही बढ़ चले ! उन्होंने अपनी कुर्सियां हमारे लिए छोड़ दीं , ये होता है गांव का सम्मान ! खूब बातें हुईं , उनमे से बस एक ही आदमी ने दिल्ली देखी थी , बाकी ने बस नाम ही सुना था ! शुद्ध दूध की चाय पी , हालाँकि अमित भाई थोड़ा शर्मा रहे थे लेकिन मैं चाय के मामले में थोड़ा बेशर्म हो जाता हूँ ! वहीँ के लोगों ने हमारे लिए ट्रेक्टर रोक लिया और हम उनसे विदा लेकर फिर आगे की तरफ चल दिए ! उस ट्रेक्टर वाले ने भी हमें मंदिरों से करीब एक डेढ़ किलोमीटर दूर उतार दिया ! अब पैदल चलते हैं ! अमित भाई ने अपना GPS चालू कर लिया है ! ये वो ही जगह है जहाँ 80 के दशक में दस्यु मलखान सिंह , निर्भय सिंह का आतंक व्याप्त था लेकिन अब सबकुछ सामान्य !
हालाँकि मंदिरों तक जाने का रास्ता सड़क से ही है लेकिन हम शॉर्टकट लेने के चक्कर में पहाड़ियों के ऊपर होकर गए , जिसका एक नुक्सान हुआ कि हमें ज्यादा चलना पड़ा लेकिन एक फायदा भी हुआ कि हमने इस मंदिर समूह में पीछे की तरफ से प्रवेश किया और पीछे की पहाड़ियां भी देख पाए !
जहां उतरे वहीँ तीन चार बुजुर्ग इंगहाने ( अलाव ) पर आग ताप रहे थे , हम भी उधर ही बढ़ चले ! उन्होंने अपनी कुर्सियां हमारे लिए छोड़ दीं , ये होता है गांव का सम्मान ! खूब बातें हुईं , उनमे से बस एक ही आदमी ने दिल्ली देखी थी , बाकी ने बस नाम ही सुना था ! शुद्ध दूध की चाय पी , हालाँकि अमित भाई थोड़ा शर्मा रहे थे लेकिन मैं चाय के मामले में थोड़ा बेशर्म हो जाता हूँ ! वहीँ के लोगों ने हमारे लिए ट्रेक्टर रोक लिया और हम उनसे विदा लेकर फिर आगे की तरफ चल दिए ! उस ट्रेक्टर वाले ने भी हमें मंदिरों से करीब एक डेढ़ किलोमीटर दूर उतार दिया ! अब पैदल चलते हैं ! अमित भाई ने अपना GPS चालू कर लिया है ! ये वो ही जगह है जहाँ 80 के दशक में दस्यु मलखान सिंह , निर्भय सिंह का आतंक व्याप्त था लेकिन अब सबकुछ सामान्य !
हालाँकि मंदिरों तक जाने का रास्ता सड़क से ही है लेकिन हम शॉर्टकट लेने के चक्कर में पहाड़ियों के ऊपर होकर गए , जिसका एक नुक्सान हुआ कि हमें ज्यादा चलना पड़ा लेकिन एक फायदा भी हुआ कि हमने इस मंदिर समूह में पीछे की तरफ से प्रवेश किया और पीछे की पहाड़ियां भी देख पाए !
क्या है "बटेश्वर मंदिर समूह " ? कहाँ है ? क्यों प्रसिद्द है ? आइये थोड़ा जानकारी लेते हैं :
मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित "बटेश्वर मंदिर समूह "मुरैना से करीब 25 किलोमीटर दूर archaeological site है जहाँ करीब 200 मंदिरों के अवशेष ASI को मिले हैं ! इन मंदिरों में ज्यादातर मंदिर भगवान शिव को और कुछ मंदिर भगवान विष्णु जी को समर्पित हैं ! ये मंदिर सैंडस्टोन के बने हैं और ऐसा माना जाता है कि इन्हें 8 वीं -9 वीं सदी में परिहार वंश के शासकों ने बनवाया ! रोचक बात ये है कि ये मंदिर खजुराहो के मंदिरों से पहले के बने हुए हैं ! चम्बल की घाटी में लगभग 10 एकड़ जगह में बने इन मंदिरों के बारे में जब ASI को पता चला तब एक मुस्लिम अधिकारी डॉ के के मुहम्मद ने इनका जीर्णोद्धार करने का बीड़ा उठाया ! लेकिन मुश्किल ये थी कि यहां आसपास चम्बल के डकैतों का डर व्याप्त था इसलिए न तो कोई अधिकारी आगे बढ़ रहा था और न काम करने वाले मजदूर ! ऐसे में डॉ मुहम्मद ने वहां के दस्यु सरगना निर्भय सिंह गुर्जर से संपर्क किया और निर्भय सिंह को मनाने में सफल हो गए ! उन्ही के प्रयासों का परिणाम है कि हम आज इस विरासत को फिर से जीवंत देख पा रहे हैं ! Thank You !! डॉ साब !! आज कुल 200 मंदिरों में से करीब 80 मंदिर पुनः अपने रूप में हैं , लेकिन दुर्भाग्य ये है कि जबसे (2015 ) डॉ मुहम्मद अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए हैं और दस्यु निर्भय सिंह मारा गया है तब से , मंदिरों जीर्णोद्धार का काम लगभग रुक सा गया है ! वहां जो केयर टेकर था , वो बता रहा कि डॉ मुहम्मद कभी कभी आज भी आते हैं इन मंदिरों को देखने , पूजा पाठ करने ! सही है , उन्होंने जिस जीवट और लगन से इन मंदिरों को दोबारा से खड़ा किया है वो प्रयास सच में सराहनीय है !
आगे अभी बहुत कुछ ऐसा है जिसे आप पहली बार देखेंगे , ऐसा मुझे भरोसा है :
ये निजामुद्दीन स्टेशन पर youtube का कियोस्क लगा है , जहाँ लोग अपनी पसंद का विडियो डाउनलोड करने में लगे थे , और jio के ज़माने में भी खूब भीड़ लगी थी |
मुझे इनकी मूंछ से ज्यादा कडा पसंद आया |
अमित भाई का केंचुआ ब्रांड हमेशा उनके साथ होता है |
ट्रेक्टर ट्राली में ही चलते हैं |
ये 21 वीं शताब्दी है और इंसान चाँद पर पहुँच चूका है लेकिन यहाँ अभी तक बिजली नही पहुँच पाई |
मेरे देश की मिटटी सोना उगले -उगले हीरे मोती |
मुसाफिर चलता जा |
तुम भी चलते जाओ मुसाफिरों |
कुछ दिखा क्या नीरज भाई ? |
अभी तो यही दिख रहा है बस |
मिल गया ! मिल गया ! खजाना मिल गया |
मिल गया ! मिल गया ! खजाना मिल गया! पहली झलक |
पहली झलक |
जल्दी ही मिलेंगे फिर से :
8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर।
अद्भुत यात्रा है।
अद्भुत यात्रा है।
के के मोहमद जी ने इस बारे में जानकारी दी थी यूट्यूब पर उपलब्ध हैं
बहुत धन्यवाद् ज्याणी जी !! आते रहिएगा
बहुत धन्यवाद् अनजान भाई जी !! नाम भी लिख दिया करिये
जी अग्रवाल साब . उनका कार्य सराहनीय है
भाई साक्षी नाम है मेरा
धन्यवाद ये सब पढ़कर बहुत अच्छा लगा इन सब के बारे मे जानकर बहुत खुशी हुई
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