सोमवार, 29 जून 2015

Let's Learn Japanese Countings , Lesson -2


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Today , we will learn about the numbers of japanese language. Remember it that in Japanese language different number style is used to count articles . If you are willing to learn Japanese language from very first post or want to jump on last post ...pl click here

आज जापानी भाषा की गिनती सीखते हैं। एक बात स्पष्ट कर दूँ कि जापानी भाषा में अलग अलग वस्तुओं की गिनती के लिए अलग अलग शब्द प्रयोग किये जाते हैं इसलिए ये सिर्फ संख्याएं हैं।

Lets learn countings :

आइये सीखते हैं :


1- ichi - ईची


2- ni - नी


3- san- सान


4-yon/ shi - यौन / शी


5-go - गो


6- roku - रोकू


7- nana / shichi- नाना / शीची


8- hachi - हाची


9- kyuu/ kuu - क्यू / कू


10- Jyu / juu-ज्यू / जू





11 = 10 + 1 = juu + ichi = juu ichi - जू + ईची = जू ईची


12 = 10 + 2 = juu + ni = juu ni - जू + नी = जू नी


similarly you can write more numbers in this way till 19 .


इसी तरह आप 19 तक गिनती बना सकते हैं !



20 - Ni + Juu - नी जू


21 = 20 + 1 = nijuu + ichi = nijuu ichi- निजू ईची


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30 = sanjuu- सांजू

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40 = yonjuu -योन्जू

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50 = gojuu -गोजू

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60 = rokujuu- रोकूजू

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70 = nanajuu - नानाजू

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80 = hachijuu- हाचीजू

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90 = kyuujuu ( never written as kujuu) - क्यूजू ( कूजू कभी मत लिखिए )

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100 = hyaku - हयाकू

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200 = ni hyaku -निहयाकू

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300 = sanbyaku - संब्याकू

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400 = yonhyaku - योन हयाकू

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500 = gohyaku - गोहयाकू

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600 = roppyaku -रोप्प्याकु

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700 = nanahyaku - ननहयाकू

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800 = happyaku -हप्प्याकू

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900 = kyuuhyaku -क्यूह्याकू

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1000 = sen -सेन

Arigatoo gozaimasu !!

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                                                                                                                         आगे जारी है : Continue

शनिवार, 27 जून 2015

Let's Learn Japanese Language ,Lesson-1

इस ब्लॉग में एक नया पेज जापानी भाषा का भी बनाया गया है।  इसमें आपको सामान्य तौर पर प्रति सप्ताह 2 पोस्ट मिलेंगी जिसमें जापान , उसकी भाषा , संस्कृति से सम्बंधित विषय होंगे।  संभवतः मैं आपको जापानी किसी जापानी व्यक्ति की तरह न सिखा पाऊँ किन्तु इतना भरोसा जरूर दे सकता हूँ कि अगर आप कभी किसी जापानी व्यक्ति से मिलें या जापान जाएँ तो आपको परेशानी नहीं आएगी वार्तालाप करने में ! ये ब्लॉग द्विभाषी होगा जिसमें अंग्रेजी और हिंदी के माध्यम से आप जापानी भाषा सीख सकते हैं !
आपके सवालों का सदैव स्वागत है !

I created a new page in this blog of the Japanese Language . Here You can learn Japanese Language and generally there will be 2 post weekly of this subject. Here in this page you can learn about Japan , its Language and its culture. Possibly , I might be able to teach Japanese language like a native Japanese but I would like to assure you that you will not face any problem if you are going to meet a Japanese or going to Japan. This blog will be bilingual and post will be written in Hindi and in English . 


Your queries are always welcome !!
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पाठ :1 

Lesson -1 

अभिवादन : Greetings 


सुप्रभात   : Good Morning    :   ohayoo Gozaimasu - ओहायो गोज़ाइमस 



​नमस्कार ( दिन के समय  :   Hallo    : Konnichiwa- कोनीचीवा  

 

नमस्कार ( शाम के समय )  :  Good Evening : Konbanwa - कॉम्बनवा


धन्यवाद   : Thank you so much   : Arigatoo Gozaimasu- आरीगातो गोज़ाइमस 

 
क्षमा कीजिये  :   Excuse Me       :  Sumimasen -सुमि मासेन 
 

अलविदा     :    Good Bye       :  sayoonara- सायोनारा  



हाँ         :    yes            :  Hai - हाय 


नहीं        :    No             :  Iie- ई..ये  


फिर मिलेंगे   :   See You Later   : Jaa , mata- जा माता 
  
 
  
 

Japanese Language , Lesson-2

Japanese Language , Lesson-3

Japanese Language Lesson-4 

Japanese Language , Lesson -5 

Japanese language Lesson -6 

Japanese Language Lesson -7 

Japanese Language Lesson -8  

Japanese Language Lesson No-9

Japanese Language Lesson -10 

Japanese Language Lesson -11

Japaneses Language Lesson -12

 

 

 

गुरुवार, 25 जून 2015

जापान बौद्ध मंदिर और म्यूजियम



इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !!


बोध गया में ज्ञान फैला पड़ा है लेकिन आजकल उस ज्ञान से ज्यादा दुनियादारी का ज्ञान ज्यादा महत्त्व का हो गया लगता है। महाबोधि मंदिर से वापस लौटते समय रास्ते मेंही एक संग्रहालय भी है। वास्तव में जैसा मैंने पहले लिखा कि बोधगया इतना छोटा सा है कि आपको हर कदम पर कुछ न कुछ देखने को घूमे को मिल ही जाएगा। अब केंद्रीय सरकार ने वहां आईआईएम खोलने का फैसला कर लिया तो शायद और कुछ महत्त्व बढ़ जाएगा।

इस संग्रहालय में 10 रूपये का टिकट लगा , फोटो देूंगा टिकेट का भी। जब मैं गया था तो अकेला था लेकिन बाद में तीन चार फैमिली और आ गयीं। ज्यादा लोगों के आने से स्टाफ ज्यादा व्यस्त हो जाता है और सब पर नजर रखने की कोशिश करता है। पहले जब मैं अकेला था तो फोटो भी खींच रहा था लेकिन जैसे ही और लोग आये उसने फोटो लेने के लिए मना कर दिया। फिर थोड़ी देर बाद ये चेक करने भी आया कि मैं फोटो तो नही ले रहा। इस म्यूजियम में दो गैलरी हैं और बिहार को देखते हुए बहुत ही साफ़ सुथरा कहा जा सकता है। 1956 में बने इस म्यूजियम में पाला समय के बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्हों को बहुत ही शानदार ढंग से सजाया गया है। एक दो घंटे बहुत ही अच्छे गुजरते हैं मतलब 10 रूपये वसूल। भगवान बुद्ध की अलग अलग प्रतिमाएं और उनके सेज सम्बन्धियों की प्रतिमाएं दिखाई गयी हैं।

आइये अब जापानी बुद्ध मंदिर चलते हैं। जापानी बुद्ध मंदिर को इण्डो सान निप्पन मंदिर भी कहते हैं। जापानी भाषा में निप्पन का मतलब जापान होता है और सान का मतलब जी। जैसे आप मुझे जापानी भाषा में कहेंगे तो योगी जी की जगह योगी सान कहेंगे। और अगर जापानी भाषा को जापानी में कहना हो तो कहेंगे निहोंगो ! गो मतलब भाषा। वैसे गो का मतलब जापानी में पांच भी होता है। इतना क्यों लिख रहा हूँ जापानी के लिए ? वो इसलिए क्योंकि मैंने जापानी भाषा पढ़ी हुई है और इसमें सर्टिफिकेट लिया हुआ है और आजकल डिप्लोमा ले रहा हूँ।



आइये फोटो देखते जाते हैं :





जापानीज मोनेस्ट्री के अंदर का दृश्य






संग्रहालय में कुछ फोटो तो ले ही लिए थे













ये जापान बौद्ध मंदिर से भूटान की मॉनेस्ट्री

ये जापान बौद्ध मंदिर

ये जापान बौद्ध मंदिर


ये जापान बौद्ध मंदिर








महाबोधि मंदिर में कैमरे की फीस 100 रुपया है

ये म्यूजियम का टिकट  ! 10 रुपया मात्र


जापानीज़ मॉनेस्ट्री

सामने एक घण्टा लगा है और इसे एक लकड़ी के बड़े से लॉग से बजाया जाता है



शानदार स्तूपस्

शानदार स्तूपस्

शानदार स्तूपस्

शानदार स्तूपस्



शानदार स्तूपस्







                                                                                                                                                            यात्रा जारी रहेगी :

सोमवार, 22 जून 2015

चीन और ताइवान मॉनेस्ट्री : बोधगया



इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये।


महाबोधि मंदिर के रास्ते पर चलते हुए थोड़ा पहले ही चाइनीज़ मॉनेस्ट्री दिखाई देती है। सड़क के उलटे हाथ पर है और उसके बराबर से ही ताइवान की मॉनेस्ट्री के लिए रास्ता जाता है। भयंकर धूप हो रही थी , पसीने से तरबतर , लेकिन मेरे पास बस आज ही का दिन था इसलिए धूप में ही चलना जरुरी भी हो गया था। पहले चीनी बुद्ध मंदिर में ही घुस गया। ठीक ठाक लोग थे। भीड़ का कोई मतलब नही होता ऐसी जगहों पर।


चीनी बुद्ध , जापानी बुद्ध , भारतीय बुद्ध , थाई बुद्ध , ताइवान के बुद्ध , सब अलग अलग दीखते हैं ! इनकी मूर्तियों से तो मैं पहिचान सकता हूँ कि कौन सी मूर्ति किस देश की है लेकिन इनके रूप में ये अंतर क्यों है ? मुझे नहीं मालुम !! आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि इस विषय में मेरा थोड़ा ज्ञान बढ़ाएं !

दोपहर के दो या ढाई बज रहे होंगे जिस वक्त में चीनी बुद्ध मंदिर से बाहर निकला।  उसके बराबर वाले रास्ते से ताइवान मंदिर में पहुंचा।  बिलकुल पीछे ही है ताइवान मंदिर , चीनी मंदिर से।  गेट खुला हुआ था लेकिन कोई दिखाई ही नही दिया।  मैं आगे बढ़ता गया तो एक भारतीय और एक ताइवान का युवक बाहर आये।  भारतीय ने पूछा - हाँ जी ? मैंने सीधा ही कहा मंदिर घूमने आया हूँ।  उसे पता नही ताइवानी ने क्या कहा और वो मुझे घुमाने लगा।  मेरे अलावा कोई भी नही था वहां जो घूमने के लिए आया हो ? और ऐसा लग रहा था शायद सबसे कम यात्री , घुमक्कड़ यहीं आते होंगे पूरे बोधगया में।  एक दो चार !! ऐसा कुछ प्रभावशाली नही दिखा , हाँ ताइवान के योद्धा और महिला योद्धा की मूर्ति जरूर अच्छी लगती है ! 



आइये फोटो देखते हैं , क्योंकि इसके बारे में लिखने के लिए बहुत कुछ नही है :




चीनी मॉनेस्ट्री का प्रवेश द्वार



चीनी बुद्ध






चीनी बुद्ध







ताइवान योद्धा

ताइवान महिला योद्धा !! खूबसूरत भी है ?


ताइवान के बुद्ध
ताइवान के बुद्ध
एक फोटू मेरा भी
ताइवान के बुद्ध
लाफिंग बुद्ध
लाफिंग बुद्धा









                                                                                                              यात्रा ज़ारी रहेगी :

गुरुवार, 11 जून 2015

Travelling with Mr.Yamraaj in Delhi Metro -II

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये।



अब क्या परेशानी है महाराज ? ये बस आपको सीधे इंद्रप्रस्थ उतार देगी। नही पुत्र ! हमने पांडवों का महल नही देखा कृपया तुम हमें पांडवों के महल तक पहुंचा दोगे तो हम वहां से किसी से सहायता लेकर वापस स्वर्ग चले जाएंगे। हमारी अनुपस्थिति में पता नही वहां के सब लोग कितने परेशान और दुखी हो रहे होंगे। पुत्र कृपया हमारी मदद करिये पुत्र। स्वर्ग जाना है आपको -तो किसी भी गाडी के नीचे आ जाओ सीधा स्वर्ग का ही टिकेट काट देगा तुम्हारा। अब झल्लाहट होने लगी थी। एक तो इतनी गर्मी और ऊपर से ये। पांडवों के महल पहुंचा दूँ ? पांडवों को इस दुनिया से गए हुए हजारों साल गुजर गए महाशय, आप कौन हैं ? क्या है ? कहाँ से आये हैं , कहाँ जाएंगे ? कुछ ढंग से बताओ तो कुछ मदद भी करूँ। नीम्बू पानी पी लेते हैं। उसने भी साथ ही पिया। पैसे मुझे ही देने पड़े दारुणिये के।


बताऊंगा ! सब बताऊंगा विस्तार से किन्तु पहले इस गर्मी से मुझे बचाओ। तुमने कपडे ही इतने ज्यादा और अजीब से पहन रखे हैं , इनसे गर्मी नही तो क्या ठंडक मिलेगी। कार्टून लग रहे हो पूरे और तुम्हारे साथ मैं भी पागलों की तरह इस गर्मी में मर रहा हूँ। नही वत्स ! अगर हम ये कपडे उतार देंगे तो हम यमराज कैसे रहेंगे। यमराज है तो मौसम को ठंडा करवा दे , लोग गर्मी से हायतौबा किये हुए हैं , यमराज हैं !! मैं मन ही मन उसे बुरा भला कह रहा था लेकिन पता नही उसने कैसे समझ लिया ? पुत्र ये इंद्र देव का काम है हमारा नही। तो तुम्हारा क्या काम है ? हमारा काम है -प्राणियों के प्राण को सुरक्षित पृथ्वी से स्वर्ग तक लेकर जाना। पुत्र गर्मी से बचाओ !!


चलो चलते हैं। अब मुझे मजा आने लगा था उस बहरूपिये से बात करने में। दरियागंज से किताबें फिर कभी भी मिल जाएंगी लेकिन ऐसा मजेदार आदमी नही मिल पायेगा। चलो पांडवों के नगर इंद्रप्रस्थ चलते हैं लेकिन वहां महल वगैरह तो नही हैं। मैं "यमराज " को लेकर मेट्रो स्टेशन पहुँच गया। कम से कम धूप और गर्मी से तो बचेंगे। मेरे पास तो मेट्रो का कार्ड था भाईसाब के लिए एक टिकट ले लिया। बहुत ज्यादा परेशानी नही हुई। बस एंट्री गेट पर कुछ सुरक्षा कर्मियों ने टोंट कस दिया। भारतीय रेल और मेट्रो में यही अंतर होता है। मेट्रो में घुसते ही आदमी समझदार हो जाता है , न कहीं  थूकेगा, न बीड़ी पियेगा , न गुटका खायेगा और भारतीय रेल में वहीँ खायेगा , वहीँ   थूकेगा और बच्चे को सूसू लगी तो वहीँ करवाएगा। सीट मिल गयी दोनों को ही। अब बताओ जी आप अपने बारे में ? मैंने ही शुरू कर दिया वार्तालाप। आप बता रहे थे -आप यमराज हैं ? हाँ , वो तो में हूँ। तो यहां पृथ्वी लोक पर कैसे ? बड़ी लम्बी कथा है पुत्र - वास्तव में हमें और चित्रगुप्त को पृथ्वी लोक में जासूसी के लिए भेजा गया था कि जाओ और ये पता करो कि अब वहां लोग अब अपनी मौत से कम और दुसरे कारणों से ज्यादा क्यों मर रहे हैं ? इसके लिए हम दोनों पृथ्वी पर आये और एक दिन , रात्रि के समय एक बड़े से कक्ष में घुस गए , वहां देखा तो अप्सराएं नृत्य कर रही हैं। हम देखते रहे लेकिन जब सुबह हुई तो हमने चित्रगुप्त को अपने पास नही पाया और उन्हें ढूंढते हुए शंकर जी की नगरी काशी होते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं। बहुत मुश्किल में हैं हम। सोचा था कि पांडवों की नगरी जाएंगे तो वहां कोई न कोई भला व्यक्ति मिल जाएगा और हम उसी रास्ते से स्वर्ग चले जाएंगे जिस रास्ते से युद्धिष्ठर गए थे।


आँखों में आंसू निकल आये उनके। मैं भी दुखी हो गया। लेकिन महाराज अब न तो पांडव हैं इस धरती पर और न पांडवों जैसे लोग। ऐसा नही है पुत्र ! हर युग में पांडवों जैसे लोग होते हैं और युद्धिष्ठर जैसे सच्चे लोग भी। लेकिन हमारी आँखें उन्हें नही देख पातीं क्योंकि तुम्हें दुर्योधन जैसे लोगों को देखने की आदत हो गयी है। 


अच्छा महाराज मान लिया आप यमराज हो , एक बात तो बताओ कि इस दुनियाँ में करोड़ों लोग हैं , अरबों प्राणी हैं। तुम्हें कैसे पता चलता है कि कब किसको अपने पास बुलाना है ? और इतना काम तुम अकेले कैसे कर लेते हो ? और वो भी भैंसा पर बैठकर ? एयरक्राफ्ट ले लो एक,  तेज़ी और आसानी से काम हो जाएगा ! 


नही पुत्र ! मेरा भैंसा तुम्हारे यहां के जेट प्लेन से भी ज्यादा की स्पीड में चलता है , सुपर सोनिक स्पीड में और वाइट पेट्रोल भी नही पीता। जहां तक काम की बात है तो हमारे यहां और भी स्टाफ है लेकिन जैसे तुम्हारे यहां कंपनी के CEO या VP को ही सब लोग जानते हैं दुसरे स्टाफ को नही। ऐसे ही आप सब लोग सिर्फ मुझे या चित्रगुप्त को ही जानते हो। बाकी के स्टाफ को नही। और पता करने की जरुरत ही नही रहती किसी के बारे में। जब हम किसी को यहां धरती पर भेजते हैं नया जन्म देकर तब ही उसकी वैलिडिटी फिक्स कर देते हैं और जैसे ही उसकी वैलिडिटी ख़त्म होती है हमारे सुपर कंप्यूटर में उसकी डिटेल ब्लिंक करने लग जाती है और हमारे लोग उसे अपने पास बुला लेते हैं।


इतने में इंद्रप्रस्थ आ गया। बाहर निकले तो वही तेज धूप। एक कोल्ड्रिंक ले ली। अरे वत्स तुम मदिरा पान करते हो ? अरे महाराज ये मदिरा नही है -ठंडा पेय पदार्थ है !! तूफानी ठंडा , पियो , पी के देखो। अति स्वादिष्ट। थोड़े से और दिलवा दो -स्वर्ग लेकर जाएंगे और वहां बताएँगे कि पृथ्वी पर बहुत स्वादिष्ट और एकदम ठण्डा पेय मिलता है। बाप का माल है ले जाओगे ? लेकिन ले जाओ ! दो बोत्तल बड़ी वाली दिलवा दी। पृथ्वीलोक का गिफ्ट !!


महाराज अब बताओ , यहां कौन से "महल " में जाना है ? और हाँ , ऐसे ही किसी के महल में मत घुस जाना , कोई मारेगा बहुत। उन्होंने कई लोगों से पूछ लिया कि भैया इधर पांडवों का महल कौन सा है ? कहीं होता तो कोई बताता !! वो दुखी होकर कुछ सोचने लगे और इतने में ही मेरा फोन बजने लगा -बीवी का फोन था ! और सवाल वो ही - कहाँ हो ? मैंने कहा यमराज के साथ !! वो बेचारी रोने लगी ! तुम तो भले चंगे यहां से किताब लेने दरियागंज गए थे , यमराज के पास कैसे पहुँच गए ? मैंने बस इतना कह के फोन काट दिया - मैं ठीक हूँ और जिन्दा हूँ। रो मत। सब बता दूंगा घर आके। और उधर वो भाईसाब फोन को ऐसे देख रहे थे जैसे पहले कभी नही देखा हो !! ये क्या है ? फोन है !! क्या करते हैं इससे ? बात कर सकते हैं किसी से भी ? किसी से भी ? हाँ , किसी से भी !! मेरा एक एजेंट हैं यहां -उसका पृथ्वी का नंबर याद है मुझे , मेरी बात हो जायेगी उससे ? नंबर बताओ ? मैं खुद चाहता था कि उनका कोई केयर टेकर मिल जाए तो मेरा पीछा छूटे। बात हो गयी !


दो मिनट के अंदर ही कोई  सूट बूट वाला आदमी (सूट बूट वाली सरकार नही ) मेरे सामने था। यमराज फूट फूट कर उसके गले लग कर बहुत रोये और अपनी पूरी कहानी बताई। उसी ने बताया कि चित्रगुप्त सही सलामत स्वर्ग वापस पहुँच गए हैं। यमराज मेरी तरफ देखकर बोले -पुत्र अब हमें जाना होगा। हमें सही रास्ता मिल गया है। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। वो गले लग गए मेरे और रोने लगे। उनका आदमी मेरे पास आया और बोला -सर ने बताया आपके विषय में। भले आज पांडव नही हैं धरती पर किन्तु पांडवों जैसे लोग अब भी हैं। यमराज ने मेरे माथे पर अपना हाथ रखा और बोले कोई वरदान माँगना हो तो मांग लो !! मैंने सोचा क्या मांगू ? बस प्रभु यही वरदान दे दो कि जब तक जियूं ख़ुशी से जियूं और मेरे हाथ से किसी का बुरा न हो !!

तथास्तु !!




इतिश्री !!

सोमवार, 8 जून 2015

महाबोधि मंदिर : बोध गया

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये।


भगवान बुद्ध को समर्पित और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइटों में गिना जाने वाला महाबोधि मंदिर ठीक उसी वृक्ष के पास बना है जिसके नीचे कभी भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसके चारों कोनों पर छोटी छोटी चोटियां हैं और बिल्कुल केंद्र में सबसे ऊँची चोटी है जो 55 मीटर ऊँची है। कहते हैं इस मंदिर को सम्राट अशोक ने 206 बी.सी में बनवाया था। इस मंदिर के साथ ही साथ यहां की हर जगह अपने आप में एक कहानी लिए हुए हैं। थोड़ा समय लीजिये पढ़ने के लिए , ज्ञान प्राप्त होगा ! लेकिन गौतम बुद्ध वाला ज्ञान नही !!

गौतम बुद्ध ने यहाँ कुल सात सप्ताह बिताये जिनका विवरण इस तरह से मिलता है :

प्रथम सप्ताह : बोधि वृक्ष ( पीपल का पेड़ ) के नीचे गुजारा जहां उन्हें तीसरे दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई।

दूसरा सप्ताह : इस सप्ताह भगवान बुद्ध पेड़ के पास बिना पलक झपकाये खड़े रहे और निरंतर बोधि वृक्ष की तरफ देखते रहे। इस जगह को नाम मिला - अनिमेष लोचन स्तूप।

तीसरा सप्ताह : ऐसा कहा जाता है कि इस सप्ताह में भगवान बुद्ध अनिमेष लोचन से बोधिवृक्ष तक लगातार चलते रहे और जहां जहां उनके कदम पड़े वहां कमल खिल गए। इस जगह को रत्नचकर्मा या संकामाना ( Cankamana) कहते हैं।

चौथा सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में स्थित रतनगर चैत्य में व्यतीत किया।

पांचवां सप्ताह : इस सप्ताह भगवान बुद्ध ने अजपाला निगोध वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों के प्रश्नों के उत्तर दिए थे। लेकिन अब वो वृक्ष नही है , उसकी जगह पर एक पिलर बना दिया गया है।

छठा सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने कमल तालाब के पास व्यतीत किया। कहाँ है ? ये मुझे नही दिखा !

सातवाँ सप्ताह : ये सप्ताह उन्होंने राज्यत्न वृक्ष के नीचे व्यतीत किया।


ज्ञान की प्राप्ति तो हो गयी अब चलिए ज़रा अंदर चलते हैं। अभी अभी हम भूटान और बांग्ला देश की मोनेस्ट्री देख कर आये हैं। जिस मुख्य रोड पर बांग्ला देश की मोनेस्ट्री है उसी पर और आगे चलते जाएँ तो महाबोधि मंदिर दिखने लगता है। भीड़ बहुत ज्यादा होती है लेकिन इतनी नही कि धक्कामुक्की की नौबत आये। बड़े बड़े दो गेट बने हैं और बहुत चौड़ा रास्ता है। एकदम सुन्दर जगह। बिहार में इतनी शानदार सड़क , अचम्भा है। अपने मोबाइल फोन , जूते चप्पल सब यहीं रख जाएँ नही तो हमारी तरह वापस आना पड़ेगा दोबारा रखने के लिए। कैमरे का टिकट लेना पड़ता है जो कम से कम 100 रूपये का है। कैमरा छुपाकर मत ले जाना , पकडे जाओगे। दो दो जगह जबरदस्त चेकिंग होती है। एक बार वहां विस्फोट भी हो चुका है , अच्छा रहा किसी की मौत नही हुई थी। 

​अंदर भगवान की एक बहुत ही सुन्दर मूर्ति है।  लाइन में लगते हुए दर्शन करते जाइए लेकिन मुझे थोड़ी सी जगह मिली और मैंने लाइन से कल्टी मार दी और एक साइड में खड़ा हो गया।  न किसी रोका ,  न टोका ! कोई आरती चल रही थी , मुझे समझ में नही आई तो वहां लोगों द्वारा लाये गए वस्त्रों को भगवान बुद्ध को पहना रहे बुद्ध भिक्षु से ही पूछ लिया -ये कौन सी भाषा में आरती  हो रही है ? पाली में।  वहां बुद्ध की प्रतिमा के बिल्कुल नीचे क्रिस्टल का एक कटोरा रखा है , बहुत बहुत सुन्दर।  वो भगवान को जल पिलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।  अंदर की खुशबू मन मोह लेती है।  आप वीडिओ देखेंगे तो आप को वस्त्र बदलते हुए भिक्षु दिखाई देंगे और प्रतिमा  के पास ही वो कटोरा भी।  रात के फोटो हैं , संभव है कुछ कमिया रह गयी हों ! 

तो अब और ज्यादा ज्ञान की प्राप्ति नही करनी आज वरना अपच हो जायेगी। अति हर चीज की बुरी होती है : इसलिए आज इतना ही ! फोटू तो देखते जाओ जी :






महाबोधि प्रवेश द्वार

महाबोधि प्रवेश द्वार





स्तूप

स्तूप






































 क्रिस्टल का बर्तन दिख रहा है भगवान बुद्ध की गोद में ! बहुत सुन्दर लगता है





ये मंदिर के पीछे बने हुए हैं




















महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! ​उसके भी दर्शन करते चलते हैं




महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! ​उसके भी दर्शन करते चलते हैं


महाबोधि मंदिर के ही बिलकुल सामने श्री जगन्नाथ जी का भी मंदिर है ! ​उसके भी दर्शन करते चलते हैं 









                                                                                                            यात्रा ज़ारी रहेगी :