बुधवार, 2 जुलाई 2025

Amarnath Yatra 2022: Day 4 From Panchtarani to Holy Cave to Baltal

अमरनाथ यात्रा  2022 


पंचतरणी में सुबह के सूरज की किरणें अपनी आभा बिखेर रही थीं जिनसे न केवल ये जग... ये विश्व प्रकाश पाता है .. इंसान भी जीवित रह पाता है मगर ! यहां से मतलब कि पंचतरणी से मुश्किल से छह किलोमीटर दूर बैठे जग के तारणहार भगवान भोलेनाथ का दर्शन इस जीवन को धन्य कर देता है ! जीवन का मूल्य बता देता है और जीवन को सार्थक बना देता है भगवान भोलेनाथ का दर्शन !

                 

सुबह करीब 7 बजे नाश्ता करके मैं अपनी आगे की यात्रा पर निकल चुका था। ये वाला हिस्सा या कहें आज का दिन बहुत रोमांचक लग रहा था , पेट में खुडख़ुडी सी होने लगती थी जब भी मैं कुछ देर के लिए बैठता था और इस दिन के लिए, आगे की यात्रा के लिए कल्पना करता था ! शरीर में झुरझुरी उठती और ये झुरझुरी पेट में खुडख़ुडी कर देती थी ! मेरे साथ ऐसा होता है, मैं चीजों की कल्पना कर के बहुत रोमांचित हो उठता हूँ, बहुत उत्सुक हो जाता हूँ ! आप हँसेंगे मेरी बात पर मगर मैं नया अंडरवियर / नया बनियान पहनते हुए भी उतना ही खुश होता हूँ जितना नई शर्ट या नई पेंट पहनकर खुश होता हूँ ! उम्र ही बढ़ी है, दिल अभी भी बच्चा है जी ! 

                 

असली में तो इस यात्रा की परीक्षा आज होनी थी। निकलते ही लगभग चढ़ाई शुरू हो गई थी पंचतरणी से। लगातार चढ़ाई चढ़ते जाना था इस पार्ट में। तीन -तीन लेयर एक साथ थीं ! आप दूसरे और तीसरे पायदान पर चलते हुए श्रद्धालुओं को देखते हुए चल रहे होते हैं।  अभी ब्रश नहीं किया था मैंने , एक जगह नदी के किनारे ब्रश भी किया और मुंह -हाथ भी धोए ! ये पंचतरणी नदी ही है और इसी नदी  के नाम पर इस जगह का भी और इस वैली का भी नाम पंचतरणी पड़ा है ! 

                 

पंचतरणी आपको ऐसा ही लग रहा होगा पढ़कर कि एक सामान्य सी जगह होगी ! जैसी और पहाड़ी जगहें  होती हैं पंचतरणी भी ऐसी ही जगह होगी मगर नहीं ! पंचतरणी सनातन परंपरा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ये।  वास्तव में ये जो पंचतरणी नदी यहाँ बह रही है इसका जल पांच अलग -अलग ग्लेशियरों से आ रहा है और फिर ये सभी छोटी -छोटी जलधाराएं मिलकर पंचतरणी नदी का  निर्माण करती हैं।  ये पांच ग्लेशियर - 1 . सिंध 2 . लिद्दर 3 . शेषनाग 4 . विषव और 5 . पहलगाम ! ये पाँचों जल धाराएं सनातन परंपरा के पांच तत्वों को व्यक्त करती हैं ! पांच तत्व जिनके विषय में शायद आप भी  जानते ही होंगे अगर नहीं जानते हैं तो लिखता हूँ आपके लिए ! ये पांच तत्व हैं - पृथ्वी , आकाश , अग्नि , जल और वायु ! ये वो पांच  तत्व हैं जिनके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं होता ! 

               

ब्रश करके आगे बढ़ गए ! धीरे -धीरे चढ़ाई फिर शुरू हो गई थी और एक जगह पहाड़ के ऊपर मात्र दो व्यक्ति निकल सकें , बस इतनी सी जगह दिखी ! एक तरह का Gate जैसा बना है मगर अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने रेलिंग लगाईं हुई है सुरक्षा के लिए ! इस जगह से नीच कलकल बहती पंचतरणी और आसपास का सुन्दर नजारा दिखता है।  थोड़ी देर के लिए यहाँ ठहर सकते हैं , साँसों को संतुलित कर सकते हैं , प्रकृति के सुन्दर दृश्यों का अवलोकन कर सकते हैं ! 

               

मैं लगभग 10 बजे संगम पहुँच गया था।  यानि अभी आज मुश्किल से तीन किलोमीटर ही चल के आया होऊंगा पंचतरणी कैंप से निकलकर। खैर आज समय ही समय है मेरे पास तो आराम से चलते रहेंगे।  संगम बड़ी सुन्दर और बड़ी पवित्र जगह है ! यहाँ पंचतरणी और अमरावती नदी का संगम है ! अमरावती , चिनाब की शाखा है जो अमरनाथ ग्लेशियर से निकलती है।  अमरनाथ ग्लेशियर कोई एक ग्लेशियर नहीं है बल्कि पवित्र अमरनाथ गुफा के आसपास के ग्लेशियर ही अमरनाथ ग्लेशियर कहे जाते हैं।  संगम से यानि यहाँ से अब पवित्र गुफा तीन किलोमीटर और रह गई है मगर मुझे रास्ता उतना कठिन नहीं लग रहा अब।  सर के ऊपर लगातार हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट चालू है , मुझे बिलकुल भी डिस्टर्बेंस नहीं बल्कि आनंद आ रहा है इतना पास हेलीकॉप्टरों को देखते हुए मैं भी आगे बढ़ता जा रहा हूँ ! जय बाबा बर्फानी !! 
 
                

रास्ता चलते हुए ऐसा लग रहा है भीड़ और बढ़ गई है ! खच्चर -पालकी और बढ़ गए हैं ! मैं सही कह रहा हूँ क्यूंकि हेलीकॉप्टरों से पंचतरणी में उतर के लोग खच्चर /पालकी में आ रहे हैं।  मतलब पीछे जो संगम निकला है वो सिर्फ नदियों का ही संगम नहीं है वहां बालटाल और पहलगाम दोनों तरफ से हेलीकॉप्टर से आने वाले  और पहलगाम की तरफ से पैदल आने वालों का संगम है।  भीड़ बढ़नी ही थी।  चलो भाई धीरे धीरे चलते चलो ! 

               

रास्ता टर्न लेकर एकदम 100 डिग्री के आसपास मुड़ गया और जहाँ कुछ मिनट पहले कुछ नहीं दिख रहा था अब एक पूरी बस्ती दिख रही थी।  पवित्र गुफा से आती जलधारा जिसे शायद अमरगंगा कहते हैं , उसके दोनों तरफ हजारों टेंट लगे हैं।  दुकानें लगी हैं ! अरे ! अब तो उधर भी एक रास्ता दिख रहा है ! ये शायद वही रास्ता है जो बालटाल को जाता है ! यहाँ , यानि इधर  की तुलना में उधर कम लोग दिख रहे हैं।  एक जगह बैठ गया ! नदी के थोड़ा ऊपर की ओर बाउंड्री बनाई हुई है , उसी पर बैठ गया ! चश्मा लगाया हुआ धुप से बचने के लिए मगर यहीं छूट गया ! 150 रुपया का भारी नुकसान हो गया यार ! 

                 

मैंने संगम में स्नान नहीं किया था और यहाँ नदी में भी स्नान लायक पानी नहीं दिख रहा था इसलिए एक जगह 50 रूपये में गरम पानी की बाल्टी लेकर बढ़िया स्नान कर लिया ! प्रसाद भी वहीँ से ले लिया और बैग भी अपना वहीँ छोड़ दिया।  पॉकेट में मोबाइल था सिर्फ मगर जैसे ही गुफा के पास वाले रास्ते पर पहुंचा , मोबाइल अंदर नहीं ले जा सकते !! 

मोबाइल फ़ोन रख के आया 20 रूपये में ! जो नियम है उसको मानना ही चाहिए ! 

सामने भग्वान आशुतोष की पवित्र गुफा है ! मुझे मात्र 100 मीटर दूर और मैं भावविहल होकर मन में अनेकों कल्पनाएं करने लगा हूँ ! मुझे कितने दिन लग गए यहाँ तक आने में , कितने सालों का इंतज़ार आज पूर्ण होगा ! जय भग्वान भोलेनाथ ! तुम्हारी सदा जय जयकार रहे ! 

               

मैं पवित्र गुफा की सीढ़ियां चढ़ते हुए एकटक बाबा बर्फानी की पवित्र शिवलिंग की आकृति को निहारता जा रहा हूँ और फिर जब कोई कहता है वो देखो -सफ़ेद कबूतर ! वो देखो उधर -सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा ! जैसे इन शब्दों को सुनकर मैं स्वयं में विलीन हो गया हूँ ! मैं धन्य हो गया हूँ सामने की बर्फ की आकृति देखकर ! बाबा तुम भी न क्या क्या रूप धार लेते हो अपने भक्तों का मन  मोह लेने को ! अत्यंत सुन्दर  रूप है बाबा का।  अभी पूर्ण है क्यूंकि हम पहले ही दिन  यात्रा के लिए चल पड़े थे।  बराबर में कुछ लोग कह रहे हैं कि जो छोटी छोटी आकृतियां हैं वो गणेश जी और कार्तिकेय का अंश है , उनका रूप हैं ! अदभुत है बाबा ! प्रसाद चढ़ा भी दिया और प्रसाद ले भी लिया।  कुछ ही मिनट के दर्शन में ऐसा एहसास हुआ जैसे जग जीत लिए हो जैसे जीवन को पूर्णता मिल गई हो जैसे सब पा लिया हो !  

               

दर्शन करने के पश्चात नीचे आ गया था।  एक तरह का बाजार सजा था दोनों तरफ।  कुछ खाया जाए पहले ! अभी करीब दोपहर का एक बज रहा होगा और मैंने सुबह से कुछ खाया नहीं था।  यही सोचा था कि पहले भगवान भोलेनाथ के दर्शन करूँगा तभी कुछ खाऊंगा आज ! अब मन की / वर्षों की इच्छा पूरी हुई तो कुछ खाया जाए ! 

अब रास्ता बदल गया था , रूट भी बदल गया था ! अब पहलगाम से आकर बालटाल वाले रास्ते पर था जिससे दोनों रास्ते देख सकें ! कुछ ही दूर चला होऊंगा , एक जगह रास्ते पर थोड़ी भीड़ सी थी ! पता लगा यहां पहाड़ में ही काली मैया की मूर्ति विराजमान है ! न न किसी ने बनवाई नहीं है बल्कि खुद से ही है ! बहुत ही आकर्षक मूर्ति लगी ! आगे बढ़ने का समय है और अच्छी बात ये है की अब उतरना है तो पैर खुद से ही तेज तेज चल रहे हैं।  

                                        

भयंकर धूल है इस रास्ते में ! रास्ता भी उतना चौड़ा नहीं है जितना पहलगाम वाला है और इस रास्ते में उतने भण्डारे / लंगर भी नहीं हैं इसलिए जहाँ जो मिल जाए खाते रहिये।  यहाँ तक कि अगर आपका पानी ख़त्म हो गया है तो संभव है आपको पानी खरीदना भी पड़ जाए ! अगर आप मेरी तरह पहली बार अमरनाथ यात्रा में जा रहे हैं तो पहलगाम वाला रास्ता ही चुनियेगा जाने के लिए ! 

               

एक जगह रास्ता टूट गया था जिससे खच्चर उसमें गिर गया ! बालटाल पहुँचते -पहुँचते पता लगा उस खच्चर की मौत हो गई ! कितने ही खच्चर इस रास्ते पर ऐसे ही दम तोड़ देते हैं ! मालिक भी दुखी और परिवार भी दुखी ! 

               

अँधेरा होने में समय था मगर बालटाल भी अब ज्यादा दूर नहीं था।  लगभग एक किलोमीटर पहले एक अच्छा सा भण्डारा मिला , भीड़ भी अच्छी थी और इंतेज़ाम भी अच्छा था तो जूते निकाल के बैठ गया।  उधर यूपी का या शायद पंजाब का कोई नेता आया हुआ था , उसके चेले चपाटों ने मस्त माहौल बनाया हुआ था।  बहुत सारे फल लेकर आये हुए थे वो लोग और भर भर झोली बांटे जा रहे थे।  

                

अब बालटाल पहुंचे ! बसें खडी थीं कई सारी ! ये बालटाल बेस कैंप था ! थोड़ी दूर चलने के बाद ई रिक्शा मिल गया ! अब याद नहीं कितना पैसा लिया था उसने ! यहाँ जूते धोने वाले लोग दिखे।  उन्हें मालुम रहा होगा कि इस रास्ते में बहुत धूल उड़ती है तो जूते खराब होंगे ही , उन्होंने अपना रोजगार ढूंढ लिया इसी में ! भगवान उनको तरक्की देवें !

                
 
                 

अभी और आगे जाना है , वहीँ रुकने की व्यवस्था मिलेगी।  दोमेल ((DOMAIL) बोलते हैं उस जगह को।  खूब सारे लंगर / भंडारे और खूब सारे टैंट ! पहले खा लिया जाए कुछ ! और जब खाने के लिए एक भण्डारे में घुस ही रहा था राहुल और संतोष मिल गए।  वही दोनों देहरादून वाले जो मुझे शेषनाग लेक पर मिले थे ! बोले -भैया ! कहाँ रुके हो ? मैंने कहा -अभी कहाँ ? अभी तो मैं आया हूँ ! फिर सभी ने साथ खाना खाया और एक ही टैंट में रुक गए ! शायद 200 रूपये प्रति बिस्तर ! 

                 

                 

                 

सुबह निकल चले सोनमर्ग और फिर श्रीनगर के लिए ! कल की बात अगली पोस्ट में तब तक खूब खुश रहिये मस्त रहिये और जोर से बोलिये ! 

                 


                 

                 

       

       

      

    

  

 






जय बाबा बर्फानी !
भूखे को अन्न प्यासे को पानी !! 

रविवार, 4 मई 2025

Amarnath Yatra 2022 : Day 3 From Sheshnag to Panchtarani

 अमरनाथ यात्रा  2022 


अमरनाथ यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करिये !


मैं ये बात पहले लिख चूका हूँ कि शेषनाग झील पर देहरादून से आये दो यात्रियों राहुल और संतोष से मुलाकात हुई थी और फिर इन दोनों के साथ ही मेरी आगे की यात्रा हुई।  

Sheshnag Shelter

शेषनाग में जिस टेंट में हम सोए पड़े थे वहां कई लोगों से बहुत देर तक बात होती रही मगर सुबह देखा तो सब निकल चुके थे। राहुल और संतोष भी निकल चुके थे !  फ्रेश होकर हाथ मुंह धोने को पानी लिया था.. भयंकर ठण्डा पानी मिला मगर अच्छी बात रही कि गरम पानी भी उपलब्ध हो रहा था।  हमने भी अपना झोला उठाया और निकल पड़े आज की यात्रा पर। अभी सुबह के छह ही बजे थे और मैं अपने ठिकाने से बाहर आ चुका था, ऐसा अमूमन कम ही होता है मगर आज ऐसा हुआ था और ऐसा इसलिए हुआ था क्यूंकि रात पता चल गया था कि सुबह छह बजे आगे जाने के लिए गेट खुल जायेंगे।  

Sheshnag Shelter
     
चाय -टोस्ट का नाश्ता लेकर मैं भी गेट के बाहर निकलने का इंतज़ार करने के लिए लाइन में लग गया।  अभी 6:50 हो चुके थे मगर गेट नहीं खुले थे।  लाइन पर लाइन लगी थीं और ...भी बड़ी होती जा रही थीं।  एकदम से आदेश हुआ कि सभी लोग दो लाइन बना लो, अब मैं और पीछे चला गया ! अंततः मैं लगभग सात बजकर 20 -22 मिनट पर बाहर निकल पाया . 


आज की यात्रा पंचतरणी तक की थी और ...थोड़ी और भी खूबसूरत होने वाली थी।  मुश्किल से आधा  घण्टा भी नहीं  चले होंगे , एक अत्यंत ही सुन्दर वॉटरफॉल दिखने लगा था।  मन एकदम प्रसन्न हो गया !  वाटर बॉडीज सच में प्रकृति का वो सुन्दर उपहार हैं जो प्रकृति की शोभा को बहुत बढ़ा देती हैं और सिर्फ सुंदरता नहीं बढ़ाती , वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ाती हैं।  इनकी वजह से ही पहाड़ और भी खूबसूरत लगते हैं।  मुझे तो विशेषकर इन वॉटर बॉडीज को देखने का बहुत आकर्षण है -वो चाहे लेक हो , चाहे वॉटरफॉल हो ! मैं ट्रैक भी यही देखकर डिसाइड करता हूँ कि रास्ते में कितने वॉटरफॉल या कितनी lakes देखने को मिलेंगी . आप चाहें तो मेरे ट्रेक्स का विवरण पढ़ सकते हैं विशेष रूप से कागभुशुण्डि ट्रैक , जो मैंने 2021 के सितम्बर महीने में किया था। 

Waterfall at Warbal

चलते-चलते हम वारबल पहुँच गए थे।  यहाँ एक लंगर लगा था जो बहुत बड़ा नहीं था लेकिन जितना था बहुत अच्छा था।  ऊपर थोड़ी दूर पर ॐ का एक बहुत सुन्दर चिन्ह लगा था जो बहुत आकर्षित कर रहा था।  यहाँ कुछ हल्का -फुल्का खाया और आगे बढ़ चले।  आगे अब महागुण टॉप तक चढ़ाई भी आएगी और साथ के साथ खूबसूरत दृश्य भी इस यात्रा को मनमोहक बनाते हुए दिखेंगे।  


Langar at Poshpatri

महागुण टॉप पहुँचते -पहुँचते मुझे साढ़े दस बज गए थे।  इतना बुरा भी नहीं चल रहा था मतलब मैं।  शेषनाग से महागुण टॉप की दूरी लगभग 5 किलोमीटर की है और लगातार ठीक चढ़ाई भी है।  आप देखेंगे  तो  आपको पता चलेगा कि शेषनाग , जहाँ हम पिछली रात रुके थे वो करीब 11700 फुट की ऊंचाई पर है जबकि महागुण टॉप लगभग 14500 फुट की हाइट पर है यानी पांच किलोमीटर की दूरी में आप लगभग 3000 फुट की हाइट तय करते हैं मतलब की लगभग 930 मीटर की हाइट।  इतना चढ़ाई गेन करना न तो आसान होता है न इतनी चढ़ाई रेकमेंड किया जाता है।  मगर क्यूंकि सब साथ में चलते रहते हैं इसलिए न तो महसूस होता है न पता चलता है।  

@ Mahagun Top

@ Mahagun Top

@ Mahagun Top

यहाँ से पहले आपको बहुत सारे लंगर देखने को मिलेंगे।  एक से एक बेहतरीन और लगभग सबकुछ देखने और खाने को उपलब्ध है।  मैंने कुछ टॉफियां लीं और एक bowl खीर खाई।  गणेश टॉप नाम है इस जगह का।  

Beautiful Langar@ Ganesh Top

महागुण टॉप वो जगह है जहाँ आपको literally बर्फ देखने को , छूने को और खेलने को मिलेगी।  लोग पागल हुए जाते हैं बर्फ देखकर ! होना भी चाहिए , यात्रा में आनंदित होना भी एक कला है , एक भाव है।  आप यात्रा में जितना आनंद लेंगे आपको थकान उतनी ही कम लगेगी।  


महागुण टॉप पर मैं बहुत देर तक पड़ा रहा ! सामने की पहाड़ियों पर बर्फ थी और वो बर्फ अजीब किस्म के पैटर्न बनाते हुए नजर आ रही थी।  ये पैटर्न अत्यंत ही खूबसूरत , अत्यंत ही आकर्षक और विशिष्ट लग रहे थे।  यहाँ आंध्र प्रदेश के कुछ यात्रियों से बातचीत होती रही ! पता लगा कि उनमे से ज्यादातर लोग आठवीं -नौवीं या दसवीं बार अमरनाथ यात्रा पर आये हुए हैं और मैं ! मैं पहली बार इस यात्रा पर आया हूँ ! 
                               

थोड़ा आगे चले होंगे तो एक जगह सीढ़ियों से उतर के नीचे जाना था।  जिसे आगे जाना है वो चले गए मगर मैं रुक गया।  लगभग दोपहर के 12 बजे होंगे ! सीढ़ियों के दोनों तरफ बहुत खूबसूरत फूलों से सजे गमले रखे गए थे।  


यहाँ दो रोटी खाई और एक गिलास लस्सी पी ली।  लस्सी का गिलास उठाकर मैं बाहर की तरफ आ गया था और एक जगह बैग का सपोर्ट लेकर बैठ गया।  बैठे -बैठे कब फ़ैल गया कुछ पता ही नहीं लगा।  पता लगा तब तीन बज रहे थे ! मतलब कि मैं दो तीन घंटे की नींद खींच चुका था।  यार ! लेट हो जाऊंगा अब तो ! 


एक कप चाय पी और कदम तेज़ कर दिए।  पोषपत्री नाम की जगह पहुंच गया ,थोड़ा जल्दी पहुंचा था इस बार ! नहीं तो ये दूरी आराम से तय करता मैं।  यहाँ I LOVE MAHADEV का बड़े बड़े अच्छरों में लिखा देखा तो निश्चित ही एक फोटो तो बनता था यहाँ भी।  आगे बढ़ रहा था मैं और सोने के दौरान जो समय खर्च कर दिया था उसकी भरपाई लगभग कर ली थी।   एकदम खुला मैदान और कोई चढ़ाई नहीं थी इसलिए खूब तेज कदमों से ये दूरी नाप डाली। 


पल -पल पर हेलीकाप्टर और उनकी आवाजें गूँज रही थीं ! समय की या समय पर पहुँचने की दिक्कत अब नहीं लग रही थी मुझे।  ये रास्ता बहुत कठिन नहीं मगर संभलकर चलना ही होता है। 


पंचतरणी का मैदान सामने था।  एकदम हरा भरा मैदान इतना बड़ा कि एकाध क्रिकेट स्टेडियम और फुटबॉल स्टेडियम यहाँ आराम से बनाया जा सकता है।  मगर अभी हाल -फिलहाल यहाँ घोड़े -खच्चर घास चर रहे थे और घास चरते हुए घोड़े -खच्चर भी इस मैदान की खूबसूरती को सच में बढ़ा रहे थे।  यहाँ बैग पटक दिया।  बैग इस कॉन्फिडेंस में पटक दिया था क्यूंकि सामने ही कुछ दूरी पर पंचतरणी की टेंट सिटी दिखाई दे रही थी और वही हमारी आज की मंजिल थी।  

@ Panchatarani

यानि कि आज की मंजिल सामने ही थी इसलिए कोई जल्दी नहीं थी।  पहले पंचतरणी के इस मैदान में बैठकर प्रकृति का रसास्वादन किया जाए , आते -जाते हेलीकॉप्टरों को देखा जाए , प्रकृति की मनमोहक छवि को निहारा जाए।  


आज इस यात्रा को।,पैदल यात्रा को शुरू हुए दूसरा दिन था मेरा।  दूसरा दिन समाप्त होने को आ रहा था और अभी तक बहुत आनंद दायक यात्रा रही थी ये।  शाम के धुंधलके में पंचतरणी के मैदान से निकलकर मित्रवर अश्वनी कुमार शुक्ला जी के लखनऊ वालों का लंगर ढूंढना था।  उनसे पहले ही बात हो गई थी।  ढूंढते -ढाँढते लखनऊ वालों के लंगर पर आखिरकार जा पहुंचा।  


राहुल और संतोष जो एकबार शेषनाग से बिछड़े वो अभी तक मिले ही नहीं दोबारा।  यहाँ भी नहीं मिले !  कुछ थोड़ा बहुत खाया और अश्वनी जी से बात चीत करने के बाद अन्ततः सो गया।  ऐसे यहाँ 500 रूपये में सोने की जगह मिल जाती है किसी भी टेंट के अंदर मगर हमें बस कम्बल का 100 रुपया या शायद 80 रुपया ही देना पड़ा।  


सोने के लिए सभी को जगह उपलब्ध हो जाती है।  बाहर ही लोग मिल जाते हैं जो आपको अपने -अपने टेंट में जगह देने को 'इन्वाइट " करते हुए दीखते हैं।  आखिर उन्हें भी तो बिज़नेस करना है।  


इस तरह आज का दूसरा दिन समाप्त हुआ और समाप्त होती है दुसरे दिन की मेरी कथा -कहानी ! कल भगवान् भोलेनाथ की पवित्र गुफा में उनके दर्शन करेंगे और फिर उसका विवरण आपको सुनाएंगे ! तब तक के लिए जय भोलेनाथ !!