गुरुवार, 3 मार्च 2022

Kakbhushundi Trek Uttarakhand Blog : Day 4 From Machhali Tal to Shila Samudra

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आज हमारा काकभुशुण्डि ट्रैक पर चौथा दिन था और सुबह एकदम शानदार थी।  मौसम भी अच्छा दिख रहा था हालाँकि हाथी पर्वत अब भी बादलों में मुंह दबाये हुए था मगर मछली ताल की हमारी Campsite और आसपास एकदम खिली लेकिन ठण्ड से भरी हुई धूप महसूस हो रही थी।  आज 8 सितम्बर 2021 है।  


सुबह नाश्ते में रोटी -चाय लेकर करीब आठ बजे हमने काकभुशुण्डि ताल के लिए प्रस्थान कर दिया।  मछली ताल जैसी खूबसूरत जगह को छोड़ना आसान नहीं था लेकिन हम ट्रैक में थे , आगे बढ़ना ही होता है।  अपनी कैंप साइट से ऊपर की तरफ चल निकले और दो घण्टे चलते रहे।  आज का अपना लक्ष्य " काकभुशुण्डि ताल"  ज्यादा दूर नहीं था , सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी बताई गई थी।  



हम आज पहली बार बर्फ पर चल रहे थे।  सितम्बर में इतनी बर्फ है तो जून में क्या हाल होता होगा ? लेकिन करने वाले करते हैं और एक महिला ने ( जो अब करीब 70 वर्ष की हैं ) मुझे , मेरा वीडियो देखकर मैसेज किया था कि उन्होंने ये ट्रेक 1983 में किया था और वो भी जून में ! उनकी हिम्मत , हौसला और जज्बा मुझसे 100 गुणा ज्यादा रहा होगा क्यूंकि तब न फेसबुक था , न कोई और सोशल मीडिया माध्यम लेकिन उन्होंने किया भी और सफलता भी हासिल की।  प्रणाम करता हूँ उन्हें और उनके जोश को !! 


थोड़ी ही देर चले थे कि फेन कमल दिख गया।  मुझे तो पहचान नहीं थी  लेकिन आगे-आगे चल रहे पंकज भाई को पत्थरों के बीच में से झांकता फेन कमल दिखाई दे गया , और उन्हें दिख गया तो मतलब हमें भी दिख गया।  
फेन कमल जिसे अंग्रेजी में Saussurea Simpsoniana बोलते हैं , हिमालयी क्षेत्र में 4000 से 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर जुलाई से सितंबर के मध्य खिलता है। इसका पौधा छह से 15 सेमी तक ऊंचा होता है और फूल प्राकृतिक ऊन की भांति तंतुओं से ढका रहता है। फेन कमल बैंगनी रंग का होता है।भगवान शिव का अनेक अनेक धन्यवाद जिन्होंने हमारे ऊपर यहाँ तक पहुँचने की कृपा बनाये रखी !!


पहाड़ों में बारिश का कोई समय नहीं होता ! अभी मुश्किल से 11 ही बजे होंगे कि झमाझम बारिश आने लगी।  हमें बर्फ पर पहला कदम रखना था , और जैसा कि अक्सर होता था इस ट्रैक में - मैं , त्रिपाठी जी और डॉक्टर अजय त्यागी सबसे पीछे रह जाने वालों में होते थे , अब भी वही थे लेकिन इस बार तीन नहीं चार थे।  चौथे सुशील भाई थे जो आज बहुत तकलीफ महसूस कर रहे थे।  बर्फ से जमे ग्लेशियर पर चलना बहुत मुश्किल नहीं होता लेकिन उस पर पहला कदम रखते हुए पैर काँप जाते हैं।  ऊपर से बारिश !  डॉक्टर साब ने हिम्मत दिखाई -वैसे भी वो हम सब में सबसे यंग हैं :) बारिश ने बर्फ को और भी रपटीला बना दिया था।  बाकी सब लोग आगे निकल चुके थे ग्लेशियर को पार कर के लेकिन हम पहला कदम बढ़ाते हुए कांप रहे थे और आसपास देखता तो और भी कंपकंपी छूट जा रही थी , सब जगह बर्फ ही बर्फ ! 


कुछ लोगों ने हमे देखा दूसरी तरफ से तो हमारी हालत पर तरस  आया उन्हें और उनमे से तीन चार लोग हमारी तरफ आ गए।  दो लोग डॉक्टर साब को सपोर्ट देकर ग्लेशियर के दूसरी तरफ ले गए , एक त्रिपाठी जी को और दो लोगों ने सुशील भाई को एस्कॉर्ट किया।  मैं रह गया !! असल में मुझे ट्रैकिंग में चलते हुए किसी का सपोर्ट लेकर चलने में मुश्किल होती है तो मैंने बस अपना बैग पीठ से उतारकर उन्हें दे दिया और मैं मस्त बारिश में ग्लेशियर के ऊपर अपनी ट्रैकिंग स्टिक लेकर मजे से चलता रहा।  


आगे एक गली पार करके एक... और ग्लेशियर पार कर के हमें सीधे काकभुशुण्डि ताल पहुँच जाना था।  हमारे गाइड की प्लानिंग ये थी कि गली में से निकलकर हम ग्लेशियर पर फिसलते हुए काकभुशुण्डि ताल के पास पहुँच जाएंगे , इससे समय भी बचेगा और हमें ज्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा।  लेकिन !! उधर वाला ग्लेशियर टूटा हुआ था .. अगर हम उस पर से होकर जाने की कोशिश करते तो किसी के भी साथ कोई भी दुर्घटना हो सकती थी।  हमें लौटना पड़ा और इसने हमारे दिलों में खौफ भर दिया।  हम इतनी मुश्किल से इस ऊंचाई पर पहुँच पाए थे मगर यहाँ पहुंचकर पता लगा कि आगे रास्ता ही नहीं है।  हिमालय में खो जाने में देर नहीं लगती !! हिमालय जितना सुन्दर है , सुन्दर दीखता है उसी में खो जाने या रास्ता भटक जाने पर ये उतना ही खतरनाक भी हो जाता है।  हम अंदर से पसीने से सराबोर थे , ऊपर से बारिश ने भिगोया हुआ था और धड़कनों में खौफ तारी था।  खौफ खुद के खो जाने का , रास्ता भटक जाने का लेकिन पूरी टीम साथ थी , खाना था , राशन था इसलिए थोड़ी तसल्ली भी थी कि चलो ! अगर रास्ता न भी मिला तो वापस मछली ताल चले जाएंगे।  हमारे गाइड साब को आज हमने पहली बार कुछ परेशान सा देखा।  वो दो -तीन पॉर्टर को साथ लेकर एक -डेढ़ घण्टे तक छोटी -छोटी पहाड़ियों पर चढ़कर आसपास नजरें मारकर रास्ता ढूंढते रहे और अंततः हम फिर से एक  बजे के आसपास आगे  चल पड़े।  चल तो रहे थे लेकिन मन में उत्साह नहीं था और रास्ते भी चलने वाले नहीं लग रहे थे।  खतरनाक से भी खतरनाक , बड़े -बड़े पत्थर और उनमे से निकलते हुए जाना ऐसा लग रहा था जैसे हम पृथ्वी पर नहीं बल्कि किसी और ग्रह पर चल रहे हैं।  


कुछ लोग आगे थे मगर बारिश की वजह से एक गुफा में छुपे हुए थे।  हम पहुंचे तो हम भी उनके पास बैठ गए।  गुफा क्या थी ! बस सिर के ऊपर एक लंबा सा पत्थर निकला हुआ था जो हमें जैसे -तैसे भीगने से बचाये हुए था।  तीन -साढ़े  तीन बज रहे होंगे जब बारिश रुकी।  कुछ लोग आगे जाना चाहते थे और कुछ आज यहीं आसपास रुकना चाहते थे।  पास में ही एक कैंपिंग साइट दिखाई दे रही थी जहाँ टैण्ट लगाए जा सकते थे।  पंकज भाई और उनके मित्रों की सलाह थी कि आज हम बहुत कम चल पाए हैं , ऐसे ही चलते रहेंगे तो 5 -6  दिन का ये ट्रेक 10 दिन में पूरा हो पाएगा।  ये बात सही थी कि हम आज बहुत कम चल पाए थे , मुश्किल से 4 किलोमीटर की दूरी ही तय कर पाए होंगे लेकिन हम भीग बहुत गए थे और मानसिक रूप से भी टूट गए थे इसलिए अंततः वहीँ पास में टैण्ट लगा दिए।  जहाँ हमने टैण्ट लगाए उस जगह को - शिला समुद्र कह रहे थे गाइड और पॉर्टर लेकिन पंकज क्यूंकि खुद गढ़वाली हैं , उन्होंने कहा कि जहाँ आसपास बड़े -बड़े पत्थर दिखाई देते हैं और बीच में कोई Campsite होती है तो उस जगह को "शिला समुद्र " कह दिया जाता है।  


खैर ! हम शिला समुद्र पर अपना टैण्ट लगा चुके थे और धीरे -धीरे हमारा चौथा दिन समाप्ति की ओर बढ़ रहा था।  बारिश ने बस इतनी ही मोहलत प्रदान की थी कि हम अपने टैण्ट लगा पाएं और जैसे ही हम टैण्ट लगाकर उसमें घुसे , बारिश ने फिर अपना प्रदर्शन शुरू कर दिया।  पांच बजे खिलखिलाती रौशनी फिर से हमें ऊर्जा देने आई थी मगर रात में 9 -9 :30 बजे जो बारिश शुरू हुई उसने सुबह चार बजे तक हमारी घण्टी बजाए रखी ! 


एक गड़बड़ हो गई ! गड़बड़ ये हुई कि मैंने अपनी कैप टैंट के बाहर ही अपनी trekking Stick पर सूखने के लिए लटका दी थी लेकिन रातभर की बारिश ने उसे पूरी तरह से भिगो डाला ! मुझे पता था कि मेरी कैप भीग रही है लेकिन शरीर में इतनी जान नहीं बची थी कि टैण्ट से बाहर जाकर अपनी कैप को बचा पाता ! मेरी कैप बीमार पड़ गई तो मुझे सुशील भाई की कैप का सहारा लेना पड़ा।  

कल अपने लक्ष्य यानी काकभुशुण्डि ताल की तरह चलेंगे ! तब तक साथ बने रहिये .....