बुधवार, 28 जून 2017

Jaisalmer War Memorial : Jaisalmer

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गड़ीसर लेक से बोटिंग करने के बाद अँधेरा घिरने लगा था और अब इतना समय नहीं था कि कहीं घूमा जाए , तो वापस चल दिए अपने होटल लेकिन रुकने के लिए नहीं , बदलने के लिए ! आपको पता है होटल बदलने की कहानी !! अब माहेश्वरी धर्मशाला में शिफ्ट कर लिया ! साफ़ सुथरा कमरा था और लगभग सस्ता था ! वहीँ हमारे घुमक्कड़ मित्र नरेश चौधरी के इंडियन आर्मी में कार्यरत भाई कृष्ण वीर जी अपनी धर्मपत्नी के साथ मिलने आये ! अच्छा लगा , वो भी इंजीनियर हैं !! बहुत सारा खाने -पीने का सामान लेकर आये बच्चों के लिए !! शुक्रिया नरेश भाई और आभार कृष्णवीर जी , समय निकालने के लिए ! 

                                     

आज 29 जनवरी है , इस जैसलमेर यात्रा का हमारा आखिरी दिन और हमारी ट्रेन 5 बजे है तो हमारे पास लगभग पूरा दिन है कहीं भी जाने को लेकिन हम इतना भी दूर नहीं जाना चाहते कि पास का कोई स्थान रह जाए ! हाँ , एक बात बतानी भूल गया ! हम जब यहाँ गाज़ियाबाद से गए थे तो हमारे कार्यक्रम में "तनोट माता मंदिर " जाना शामिल था लेकिन जब जैसलमेर पहुंचकर बस की टाइमिंग पता करी तो वो हमारे हिसाब से फिट नहीं हो रही थी इसलिए तनोट नहीं जा सके ! मुझे गाज़ियाबाद से जाने तक इतना मालुम था कि एक बस सुबह सात बजे जैसलमेर से जाती है जो तनोट से शाम 4 बजे चलकर वापस आ जाती है लेकिन जब बस स्टैंड पहुंचा जानकारी के लिए तो इसका उल्टा मिला ! एक ही बस है जो शाम को तनोट जाती है और रात में वहीँ रूकती है , फिर सुबह तनोट से जैसलमेर के लिए चलती है ! समय देखने के लिए फोटो पर निगाह डालें !
तो अब तय हुआ कि जैसलमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर , जैसलमेर -जोधपुर रोड पर स्थित भारतीय सेना के गर्व के क्षणों को परिभाषित और प्रदर्शित करने वाले "जैसलमेर वॉर मेमोरियल ( JWM) " को देखने और अपने सैनिकों की महान वीरगाथाओं से परिचित होने चलते हैं ! ऑटो लिया , तीन सौ रूपये में और करीब 10 बजे मेमोरियल पहुँच गए ! शानदार जगह है तो थोड़ा परिचय भी जरुरी हो जाता है इस जगह का ! है न ?


जैसलमेर वॉर मेमोरियल ( JWM ) भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास और भारतीय सैनिकों की वीरगाथाओं को प्रदर्शित करने का एक ऐसा स्थान बन गया है जहां आपका सीना गर्व से 56 " का हो जाता है ! 24 अगस्त 2015 में तैयार हुआ ये म्यूजियम 1965 के युद्ध की Golden Jubilee के रूप में भी देखा जा सकता है ! यहां इंडियन आर्मी हॉल और लोंगेवाला हॉल नाम से दो हॉल हैं जिनमें इंडियन आर्मी के जवान और अधिकारियों की वीरगाथाएं प्रदर्शित की गई हैं ! यहाँ परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के नाम उनकी तस्वीरों के साथ लिखे गए हैं ! पास में ही एक हॉल है जहां 20 मिनट की एक फिल्म चलती है भारतीय सेना के वीर जवानों की बहादुरी के किस्से दिखाती है ये फिल्म ! 20 रूपये का टिकट है और हाँ एक Souvenir Shop  भी है जहाँ से आप भारतीय सेना के प्रतीक चिन्ह जैसे Cap , Key Rings  , T-Shirts  , Stickers खरीद सकते हैं !

यहां पूरे स्मारक में पाकिस्तान से लड़ाई में जीते गए उसके टैंक रखे गए हैं ! भारतीय सेना के टैंक भी प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं ! ऐसी जगह हो तो हर किसी टैंक के सामने फोटो खिचाने का मन करता है ! सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुले रहने वाले इस संग्रहालय में खूब भीड़ बनी रहती है ! तो अगर आप जैसलमेर जाएँ तो एक बार यहाँ जरूर जाएँ ! 12 बजने को हैं और अभी सालिम सिंह की हवेली भी देखने जाना है तो अब निकलते हैं !! 

आइये फोटो देखते हुए भारतीय सेना के महान जांबाजों को नमन करते जाएँ: 






















Arun Khetrapal




























शनिवार, 10 जून 2017

Heritage Walk of Gadisar Lake : Jaisalmer

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कुलधरा गाँव में खूब समय व्यतीत किया और इस चक्कर में पानी की बोतल खत्म हो गईं ! आसपास पानी का कुछ दिखा ही नहीं , और हकीकत बात ये है कि अगर पानी मिलना इतना ही आसान होता तो आज ये गाँव हरा भरा होता , लेकिन फिर हम और आप शायद यहां आते भी नहीं ! कैसी विडम्बना है कि एक उजड़े हुए गांव को देखने आये हैं हम ! चल रहे हैं कुलधरा की गलियों में , कुछ मजदूर काम कर रहे हैं , उनमें से एक से पूछा -पानी मिल जाएगा क्या ? मिल तो गया ! आधा बोतल ही सही , लेकिन पानी में स्वाद नहीं है ! कुछ खारा  ( salty) सा है ! लेकिन काम करेगा ! 


जैसे ही गाँव से बाहर निकले , पीछे से एक टेम्पो आ गया ! हाथ दिया , रुक गया ! उसमें कोई परिवार बैठा था जो सम जा रहा था और हम सम से वापस आ गए थे ! खैर उन्होंने हमें मैन रोड पर उतार दिया ! मेरे दिमाग में था कि इन्होने हमें लिफ्ट दी है , तो फॉर्मेलिटी के लिए पूछ लिया - कितने रूपये दूँ ? आदमी ने कहा -ड्राइवर से पूछिए ! ड्राइवर बोला - 300 रूपये ! 300 सौ !! थोड़ी देर पहले ही तो यहां से 30 रूपये में गए हैं ? आखिर 150 में बात बनी ! इसीलिए मैंने पहले पोस्ट में लिखा कि अपनी किराए की गाडी ले जाते तो बेहतर होता ! अब हम मुख्य सड़क पर थे और जैसलमेर की तरफ खड़े हो गए ! वहां एक झोंपड़ी सी है , एक लड़का खड़ा था ! औपचारिक बात होने लगी तो वो हमारे अलीगढ के पास एटा का निकला ! ज्यादा बात हो पाती उससे पहले ही एक जीप आ गई और हम उसमें लटक गए ! वहां से करीब 8 किलोमीर दूर जैसलमेर की तरफ एक पॉइंट है जहां से लोद्रवा की तरफ रास्ता जाता है ! जगह का नाम याद नहीं रहा ! उतरकर खड़े ही हुए थे कि एक ऑटो मिल गया , चल भैया लोद्रवा ! चल दिया ! आधा घंटा लगा होगा पहुँचने में ! पहुँच गए ! अब लोद्रवा की बात करेंगे !

बहुत छोटी सी जगह है लोद्रवा ! जहां ऑटो रुका , उसके सामने ही कैंटीन है , कैंटीन मतलब खाना -चाय मिल जाती है ! खाना भी खाएंगे लेकिन पहले चाय पिएंगे ! जैन धर्मावलम्बियों का स्थान है ये तो साफ़ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है और सब्जी में लहसुन -प्याज की कोई जगह नहीं ! खाने में नमकीन की सब्जी मिली ! नमकीन में क्या क्या मिलाकर सब्जी तैयार कर दी थी , लेकिन टेस्टी लगी ! एक थाली 60 रूपये की ! अच्छा है ! अब मंदिर दर्शन चलते हैं , कैमरा देखकर बोले -इसका टिकट लगेगा 50 रुपया ! मैं नहीं ले रहा टिकट , फोटो नहीं खींचूंगा ! हालाँकि कुछ फोटो चोरी -छुपे खींच लिए थे !


लोद्रवा , जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूर बहुत छोटा सा गांव है लेकिन यही गाँव 1156 ईस्वी तक रावल की राजधानी हुआ करता था और फिर जब रावल ने जैसलमेर बसा लिया तो राजधानी भी जैसलमेर हो गई ! खैर , इसके अलावा लोद्रवा 23 वे जैन तीर्थंकर पार्शवनाथ जी के मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है ! इस मंदिर को 1152 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने तोड़ दिया था लेकिन फिर बाद में व्यापारी थारू शाह ने सन 1615 ईस्वी में फिर से बनवाया और फिर और भी बेहतर बनता गया ! इसके अलावा ऋषभनाथ जी और सम्भवनाथ जी के मंदिर भी देखने लायक हैं ! इसके थोड़ा पीछे की तरफ माता हिंगलाज देवी का मंदिर है ! हिंगलाज माता का असली मंदिर पाकिस्तान के कराची में है लेकिन वहां जाना लगभग असंभव है हमारे लिए , इसलिए यहीं दर्शन कर लेते हैं !

लोद्रवा से लौटकर जैसलमेर पहुंचे तो अभी भी हमारे पास आज के लिए बहुत समय बचा हुआ था !  क्या करें ? कहाँ जाएँ ? चलिए गड़ीसर लेक चलते हैं ! बोटिंग करेंगे और घूमेंगे ! कल जब यहां आये थे तब अँधेरा हो गया था और बिजली भी चली गई थी ! आज अभी अँधेरा होने में बहुत समय है ! गड़ीसर लेक , एक कृत्रिम जलाशय ( Men  Made ) है जिसे 14 वीं सदी में राजा महरावल गड़सी ने बनवाया था और संभवतः वहीँ से ये नाम आया होगा , गड़ीसर लेक ! यही लेक कभी जैसलमेर के लिए पानी सप्लाई का मुख्य स्रोत थी और आज जैसलमेर का बढ़िया टूरिस्ट पॉइंट बन चुकी है ! बोटिंग के साथ साथ यहां के घाट और मंदिर भी सुन्दर लगते हैं ! लेक के आसपास बहुत सारे पक्षी देखने को मिलेंगे जो शायद "भरतपुर बर्ड सेंचुरी " जाते हुए या आते हुए यहां "स्टे " करते हैं ! जहां से गड़ीसर लेक हेरिटेज वाक  शुरू होता है वहीँ रोड के दूसरी तरफ राजस्थान सरकार का लोक संगीत केंद्र भी है जहां "पपेट शो " होता है ! इसका शो शाम 7 बजे शुरू होता है , मौका मिले तो देखिएगा जरूर , अच्छा लगेगा ! और हाँ , अब और कुछ ज्यादा नहीं है आज लिखने को ! तो मिलते हैं अगली पोस्ट लेकर जल्दी ही : 









ऊपर के सब फोटो जैन मंदिर लोद्रवा के हैं



वापस जैसलमेर पहुँच गए

पता नहीं क्या करना चाह रहा भाई !!


गड़ीसर लेक जा रहे हैं














हल्की गहराती शाम हो और उस पर महकता जाम हो.......ओ तेरी !  मैं तो कवि बन गया





इस उड़ाती हुई चिड़िया की फोटो के लिए कई सारे फोटो लिए ! शायद 50 से भी ज्यादा , फिर भी संतुष्टि नहीं मिली







 मिलते हैं जल्दी ही :