शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

Salim Singh ki Haveli : Jaisalmer

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करिये !



अभी जब हम जैसलमेर वार मेमोरियल से निकले हैं तो दोपहर के 12 बजने वाले हैं , इसका मतलब अभी हमारे पास 4 घंटे तो बचते ही हैं ! हमारी ट्रेन 5 बजे की है ! आज 29 जनवरी है दिन रविवार ! तो आज जो अभी समय अपने पास है , इसका उपयोग कैसे किया जाए ? बड़ा बाग़ दूर पड़ेगा , सालिम सिंह की हवेली देखने चलते हैं ! सही रहेगा , क्योंकि उधर ही होटल से अपना बोरिया -बिस्तर भी उठाते लाएंगे ! जैसलमेर फोर्ट के पास ही है सालिम सिंह की हवेली ! तो अब JSM से विदा लेते हैं और चलते हैं , कहाँ ? सालिम सिंह की हवेली ! ज़ालिम सिंह मत पढ़ना भाई लोगो , नहीं तो मुझे उनके परिवार वाले मारेंगे बहुत :) लेकिन जाने से पहले ये जान तो लें कि कौन हैं ये साहब ? क्या बेचते थे , कहाँ रहते थे !! है कि नहीं !! भाई आप उनके घर में जा रहे हो , तो थोड़ा परिचय तो होना ही चाहिए !! तो जी पहले उनके बारे में पढ़ लो :



सालिम सिंह का पूरा नाम सालिम सिंह मेहता था जिन्होंने 1815 ईस्वी में इस महलनुमा हवेली का निर्माण कराया ! वो उस वक्त अपने राज्य "जैसलमेर " के दीवान मतलब प्रधानमंत्री हुआ करते थे ! आप इतिहास देखेंगे तो एक अंदाजा लगेगा कि मेहता नाम से कई लोग उस वक्त के शासक महारावल के प्रधानमंत्री रहे हैं , तो ऐसा कहा जा सकता है कि सालिम सिंह भी उसी फैमिली से आये होंगे ! सालिम सिंह का सम्बन्ध लोग कुलधरा गाँव की बर्बादी से भी जोड़ते हैं और ऐसे कहते हैं कि इन्हीं सालिम सिंह के अत्याचारों और इनकी पालीवाल ब्राह्मणों की लड़की पर बुरी नजर के चलते ही कुलधारा गाँव एक ही रात में वीरान हो गया था। हालाँकि सालिम सिंह के परिवार के लोग ( वंशज ) इस बात को स्वीकार नहीं करते ! सच क्या है -भगवान जाने !

ये हवेली करीब 200 साल पुरानी है और बड़ी यूनिक स्टाइल में बनाई गई है ! इसकी छत को नाचते हुए मोर का रूप दिया गया है ! बड़ी बात ये है कि इस हवेली को बनाने में सीमेंट का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया गया है , बल्कि पत्थरों को इस तरह से interlock किया गया है कि वो बिल्कुल फिक्स हो जाते हैं ! बढ़िया आईडिया था उस समय का ! सिविल इंजिनीरिंग का बेहतरीन उपयोग ! मुझे बहुत ज्यादा समय पत्थरों को और उन्हें interlock करने के तरीके को जानने में ही लग गया ! यहां 20 रूपये प्रति व्यक्ति टिकट लगता है और कैमरा भी ले जा सकते हैं लेकिन इसका भी टिकट लगेगा ! ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं आती यहाँ इस हवेली को देखने ! लेकिन 20 रूपये में बुरी जगह नहीं है देखने के लिए ! सुबह से शाम 6 बजे तक खुली रहती है देखने के लिए ! अब ज्यादा कुछ नहीं है , बताने और लिखने को ! तो अब चलते हैं , लेकिन हाँ एक बात बताता चलता हूँ कि अगर आपको जैसलमेर और आसपास साइकिल से घूमने का मन हो और आप साइकिल किराए पर लेना चाहें तो " नाचना रेस्टारेंट " के सामने नारायण सर्किल से साइकिल किराए पर मिल जाती है ! मेरा मन था तनोट जाने का लेकिन समय की बंदिश भी कुछ होती है ! अगली बार जल्दी ही तनोट जाएंगे , और साइकिल से ही जाएंगे , राजस्थान का पूरा लुत्फ़ लेते हुए ! तनोट के लिए बस सुविधा की जानकारी तो मैं आपको पिछली में दे ही चुका हूँ , दोबारा बता देता हूँ कि तनोट की बस जैसलमेर से शाम 4 बजे निकलती है और रात को तनोट में ही रूकती है और फिर सुबह 7 बजे तनोट से जैसलमेर के लिए चलती है !!

चलो , अब सामान उठाते हैं और स्टेशन चलते हैं ! लेकिन अभी तो तीन बजे हैं बस , बहुत देर है यार ट्रेन निकलने में ! तो स्टेशन के पार्क में बच्चों को एन्जॉय करने देते हैं और हम मस्त कुछ तूफानी करते हैं :) कुछ नहीं यार - Thums Up पीते हैं !!

चलें अब , दिल्ली पहुंचना है और कल सुबह तक गाज़ियाबाद भी पहुंचना जरुरी है ! नौकरी का सवाल है रे बाबा !! नौकरी नहीं करूँगा तो बच्चे कैसे पालूंगा और फिर घूमी घूमी कैसे होगी !! :) :)

तो राम राम !!


पानी इकठ्ठा करने का कोई सिस्टम है ( Used for water collection )
Tiles of that Time
जैसलमेर फोर्ट को यहां से देखा जा सकता है( Outside walls can be seen of Golden Fort from this Haveli)



Initially , it was in shape of Dancing Peacock
नाचते हुए मोर की शक्ल दी गई थी इस छत को , अब तो ऐसी नहीं लगी मुझे ?
These types of  Flowers are erected in this Haveli without use of Cement



                                           काश !! मैं भी जैसलमेर का महारावल होता और मेरी रानी इस बालकनी में बैठी बाल बना रही होती और गाना बजता , कुछ दूर चलते ही.........................   :)


These Stone Flowers are erected with Hooks only


एक और बालकॉनी !! ये आपकी वाली रानी के लिए है , मेरी तरफ से gift   :)




पत्थर को गौर से देखिये , इसमें जो आगे चोंच निकली है वो इसे जोड़ने के काम आएगी


पत्थर को गौर से देखिये , इसमें जो आगे चोंच निकली है वो इसे जोड़ने के काम आएगी












तेज धुप है!!
 पत्थर ऐसे भी जुड़ते हैं
सालिम सिंह की हवेली






Waiting to be open a day !!



रेलवे स्टेशन पहुँच गए , वापस दिल्ली

रेलवे स्टेशन पहुँच गए , वापस दिल्ली!! बाय बाय जैसलमेर !!



                                                                                                 आगे जारी है  :

कोई टिप्पणी नहीं: